भाग 1: धूल में दबी खामोशीदिल्ली — दिसंबर की ठंडी रात। घड़ी की सुई 2:45 पर ठिठकी थी। चारों ओर कुहासा पसरा हुआ था, जैसे किसी ने ज़माने भर की सच्चाइयों को चुप्पी की चादर ओढ़ा दी हो। इंडिया गेट से कुछ किलोमीटर दूर, RAW का गुप्त मुख्यालय "अदृश्य" इस रात भी जाग रहा था।वहीं एक अंधेरी स्क्रीन पर चमकता एक नाम था —“ATHARVA – 0369”एजेंट अथर्व। उम्र 34। प्रशिक्षित स्नाइपर, क्रिप्टोलॉजिस्ट और अनकहे रहस्यों के पीछे भागने वाला अकेला भेड़िया। एक मिशन जिसने न जाने कितनों की नींदें उड़ा दी थीं, अब उसकी ज़िम्मेदारी बनने वाला था।कमरे में सीनियर कमांडर रेहान सिंह खड़ा था।“अथर्व, तुम्हें बनारस जाना होगा। वहां कुछ है… जो समय की परिधि से भी बाहर है।”“बनारस?” अथर्व ने चौंकते हुए कहा, “इतिहास में उलझा शहर... वहां क्या मिला है?”“एक किताब।” कमांडर की आँखों में डर था।“लेकिन ये सिर्फ़ कागज़ों की नहीं... आत्माओं की किताब है।”
भाग 2: बनारस और किताब की दस्तकबनारस। गंगा के घाट। मंदिरों की घंटियां और हवाओं में गूंजते मंत्र। लेकिन इस बार सब सामान्य नहीं था।अथर्व अब "अभिषेक शुक्ल" बनकर वहां पहुँचा — एक पुरातत्त्ववेत्ता के रूप में। उसके पास सिर्फ एक क्लू था: "नाग कुण्ड के नीचे कुछ दफ्न है, जो कभी उजागर नहीं होना चाहिए था।"पुरानी लाइब्रेरी में एक टूटी खिड़की से घुसते हुए उसे वो किताब मिली।एक बेहद पुरानी, काली चमड़े की जिल्द वाली किताब — बिना शीर्षक, बिना लेखक, लेकिन उसके पहले पन्ने पर खून से लिखा था:"जो इसे पढ़ेगा, वो समय से परे जाएगा। और हर बार लौटते वक़्त कुछ खो देगा।"जैसे ही अथर्व ने किताब को छुआ, एक झटका लगा।कमरे की दीवारें कंपकंपाईं। रोशनी बुझ गई। और उसकी आंखों के सामने अंधकार में उभरे अजीब-सी भाषा में कुछ वाक्य..."तु माया नहीं, स्वप्न का रक्षक है। तू ही यक्ष है, और तू ही दंड का अधिकारी।"
भाग 3: गुप्त संगठन और मृत सभ्यताअथर्व जान चुका था — ये केवल कोई रहस्यमय किताब नहीं, बल्कि एक "कुंजी" है…एक प्राचीन गुप्त संगठन "त्रिकाल" की कुंजी, जो सदियों से भारत की हर परछाई में मौन संचालित होता आया है।उसे पता चला कि इस संगठन का उद्देश्य है — आत्माओं और मृत्यु के दरवाज़े को नियंत्रण में रखना।काली किताब उस द्वार को खोल सकती है।लेकिन त्रिकाल के अंदर अब भी कई गद्दार छिपे हैं —कुछ इसे दुनिया के सामने लाना चाहते हैं, ताकि मृत्यु को बेचा जा सके।अथर्व ने वाराणसी के नीचे मौजूद प्राचीन भूमिगत गुफाओं में प्रवेश किया। वहाँ उसे मिला एक प्राचीन संत का शव, जो अब भी जीवित प्रतीत होता था — और वही बुदबुदाया…"तू 0369 है… अंतिम रक्षक… अग्नि-युग की छाया तुझे ही रोकनी है..."
भाग 4: त्रिकाल का सत्यअथर्व ने गुफा की ठंडी दीवारों को छुआ, जहां प्राचीन संत का शव पड़ा था। उसकी आंखें आधी खुली थीं, और आवाज़ अभी भी कानों में गूंज रही थी।"0369... अंतिम रक्षक... अग्नि-युग की छाया तुझे ही रोकनी है..."यह संदेश था, एक चेतावनी और एक जिम्मेदारी।त्रिकाल संगठन सदियों से छुपा हुआ था, पर उसकी शक्तियाँ और नियंत्रण अब कमजोर हो रहे थे।कुछ गुट इसे खत्म करना चाहते थे, तो कुछ इसे पूरी ताकत से वापस लाना।अथर्व ने किताब खोलकर देखा। हर पन्ने पर अजीब संकेत, चित्र और भाषा में कुछ छुपा था, जिसे पढ़ना उसके लिए एक मिशन था।
भाग 5: पहली परीक्षाकिताब पढ़ते ही उसके आसपास की हवा भारी हो गई। काली छायाएं दीवारों पर नाचने लगीं। एक गुप्त द्वार खुल गया, जो उसे ले गया प्राचीन मंदिर के अंदर।वहां उसे सामना हुआ एक प्राचीन प्राणी से — जो न तो पूरी तरह जीवित था, न मृत। उसकी आंखों में अनगिनत पीढ़ियों का दर्द था।यह प्राणी था उस संत की आत्मा, जो त्रिकाल के रहस्यों की रक्षा करता था।अथर्व को समझना था कि क्या वह इसका विश्वास जीत पाएगा, या फिर उसकी परीक्षा असफल हो जाएगी।
जल्द ही अगले भाग में...
शैलेश वर्मा