मंजिले सगरे की मर्मिक कहानी --- सत्य कथा पर आधारत हैं।
(बर्खास्त )
"--वक़्त पूछे हो भाई जान --- रात होने वाली हैं... होंगे कल वाले ही आठ के करीब " अब्दुल की बाहरी रिश्ते की बहन जो हिंदू परिवार से थी ने घड़ी पर दो चपाटी मारी थी, खींझ कर। " इस क्वाड़ को फेक कयो नहीं देती!" अब्दुल जैसे खीज कर बोला।
"अच्छा नयी ला दो। " नैना ने मशकरी की।
बस वो उसे भैया जान जरूर बुलाती थी। यूँ ये कह लो, उम्र के मुताबिक ज़ब माँ बाप रिश्ता नाता नहीं देखते, तो फिर लड़की भी कया करे।
हिन्दू परिवार मान प्रतिष्ठा वाला, साथ बगल मे मुस्लिम परिवार जो सलाई कड़ाई का काम करते थे। यूँ सुना था कि बलोचस्थान से आये थे।
बात करते हैं उम्र दराजो की। वर्ना -------
कहानी लम्बी हो जाएगी।
उम्र मुताबिक ही हो जाये तो अच्छा होता हैं, वर्ना क्वेले के काम तो टकरे जैसे हो जाते हैं...
"घर और चार दीवारों मे फ़र्क़ होता हैं, नैना जी !"
"--हाँ तुम ये सवाल को हल कर दो.. अब्दुला जान... "
अब समझ गए हो न....
वो बर्गर वाली सड़क की नुकर की शॉप.....
कहने को तो हम रिश्तों का कचूबर निकाल देते हैं। मुहल्ला निवासी अक्सर कहते थे...
"सस्कारी लड़की हैं "-----
रिश्ता कोई आया ही नहीं... उमरिया हैं जो ठहर नहीं जाती... चलती ही जाती हैं...
कया समझे हो...
रिश्ता नहीं आया... आये लेकिन दाज़ बेहद थे।
कौन अपनायेगा.....
बात बन गयी।
एक जगह....
पर सब तेह हो गया...
पर लड़का मिस ही हो गया।
किसी यूनि वर्षाटी से......
सब ठप हो गया.... दिल टुटा बाप का, दादी का, मोम का... फिर और कल आ गयी।
सब चुप....
नैना की शादी नहीं हुई... चलो कोई बात नहीं। नैना खुश थी। पर घर मे दुखी थी। पोती और दादी घर मे एक साथ ही सोते थे।
दादी के ख़याल उच्च थे यानी वो जानती थी घर और बाहर कैसे रहना चाइये... एक दम बेदास.. खुलम खुला।
कभी कभी तो लगता था, दादी का दिमाग़ खिसका हैं।
वो दादी मॉडलिंग की दुनिया की बेदास बुड़िआ थी।
बाप तीन बेटियों का पिता था...
निराश, गंभीर... चुप रहने वाला।
दो बेटियां तो गुजरात साइड को विवाह दी थी।
अब नैना एक गंभीर समस्या बन गयी थी।
अखबारे भी काली हो चुकी थी...
पर शादी डॉट पर भी अब उसके मुताबिक लड़का नहीं था।
कलयुग आ गया था। सास के डबल रिश्ते अखबारों मे खबरें बने थे। और कया नहीं था खबरों मे.......
कम्प्यूटर की डिग्री... फेशन डजाइंग की डिग्री...
बाहर जाती थी... कैंप्स मे जो बड़ी बड़ी यहुनीवारसटी के लिए जाती थी फेशन डजाइंग के लिए।
तभी कुछ लाइफ मे घुटाला हो चूका था।
भाग गयी। भाग गयी। भाग गयी।
खबर इलाहबाद के कुछ शहरो मे आग की तरा लगी।
शक किसी पर नहीं था... किसी का भी।
बस दादी को एक दिन पहले पता चल चूका था... उसने मगल सूत्र भी दिया था नैना को.. और आशीर्वाद भी...
कि मुड़ के कब मिले? ??
एक फ्लेट मे दूर से हसने की आवाज़ ने लेखक को अचभित कर दिया था। ये परसो से नया जोड़ा.....
मुलमान घराने का लग रहा था। फ्लेट उसके बड़े भाई का था। एक हिंदू लड़की.. मुसलमान लडके से भाग कर दिल्ली दिल वालो मे आकर बसेरा कर लिया था। बचपन से तो जानते ही थे... अब और कया हो सकता था।
सब एक हफ्ते बाद चुप हो गए थे। नैना उसका प्यार उसकी बाहो मे था।
सूरज ढल रहा था.... हिंदू धर्म से वो सब परिवार ही बरखास्त हो चूका था। अब कया हो सकता था... कुछ हो सकता हैं कया.... रिपोर्ट....
दादी ऐसा कभी होने देगी ही नहीं.... जरूरी नहीं वोह नैना के करके हिंदू धर्म से जोड़ दिए जाये।
प्यार मे बहुत ताकत होती हैं। दादी जी अक्सर कहते थे..... नैना को।
(चलदा ) नीरज शर्मा।