आज काव्या का पहला इंटरव्यू था । जिंदगी के पहले सपने की दस्तक ।
“काव्या, चलो,” उसके चचेरे भाई ने पुकारा। वह उसी स्कूल में शिक्षक था। उसके पीछे-पीछे, बिना कुछ बोले, काव्या उस अजनबी इमारत में दाख़िल हो गई — जैसे अनजानी ज़िंदगी की ओर पहला कदम।स्टाफ़रूम के बाहर कुछ महिला शिक्षिकाएँ बैठी थीं। “सर, ये कौन हैं?” एक ने पूछा। “मेरी बहन है,” भाई ने सहजता से जवाब दिया।काव्या ने हल्की मुस्कान के साथ सबका अभिवादन किया। पहली बार वह एक ऐसी दुनिया में थी जहाँ हर चेहरा नया था, और हर मुस्कान — एक अनसुलझी पहेली।
कुछ ही देर में प्रिंसिपल मैडम आईं — तेज़ चाल, तीखी नज़रें, और बिल्कुल स्पष्ट संवाद।
“रिज़ल्ट रेडी हुआ?”
“जी, होने ही वाला है मैम।”
“काव्या, अंदर आइए।”
“May I come in, ma’am?”
“Come in.”
उन्होंने सीधे कहा,
“मैं तुम्हारे पापा को जानती हूँ। तुमने पढ़ाई ठीक की है। कुछ बातों की पुष्टि करनी है…”
संक्षिप्त सवाल-जवाब के बाद उन्होंने मुस्कराकर कहा —
“3 अप्रैल से नया सत्र शुरू हो रहा है। तुम्हारी नियुक्ति वहीं से मानी जाएगी।”
काव्या ने नम्रता से सिर हिलाया — और उसी क्षण, उसके जीवन की दूसरी दुनिया का दरवाज़ा खुल गया।
1अप्रैल, 2025
लाल सूट, माथे पर चंदन-कुमकुम का हल्का टीका, और आँखों में आत्मविश्वास का मिश्रण — आज काव्या अपने पहले दिन बतौर अध्यापिका स्कूल पहुँची थी।स्टाफ़रूम में कदम रखते ही सबकी नज़रें उसी पर ठहर गईं।
“क्या बात है, आज तो बहुत सजी-धजी लग रही हैं मैडम!”
“गुड मॉर्निंग,” काव्या ने शालीनता से कहा और अपनी कुर्सी पर बैठ गई।
पहला पीरियड शुरू हुआ। वह पढ़ा ही रही थी कि दरवाज़े पर दस्तक हुई।
एक गम्भीर चेहरा अंदर आया —
“May I enter?”
“हाँ,” काव्या ने कहा।
“मैम, आपकी क्लास का अटेंडेंस रजिस्टर… कृपया साइन कर दें।”
वह रजिस्टर देकर चला गया।
दूसरे पीरियड में कुछ छात्राएँ उससे मिलने आईं।
“मैम, आपका नाम क्या है?”
“काव्या।”
“आप इंग्लिश पढ़ाती हैं?”
“हाँ बेटा।”
“रीवान सर की क्लास चल रही है?”
“जी मैम, लेकिन हम उनसे परमिशन लेकर आए हैं… बस आपसे मिलने का मन था।”
काव्या ने मुस्कुरा कर कहा —
“अब वापस जाकर पढ़ाई करो।” छात्राएँ लौट गईं। बाहर रीवान सर खड़े थे — वही जो रजिस्टर लेकर आए थे।
“मैडम, लड़कियाँ मेरी अनुमति से ही गई थीं।”। “ठीक है,” काव्या ने शांति से कहा। स्टाफ़रूम में चाय, बातचीत और ठहाकों का माहौल था।रीवान सर, जिनका हँसी-मज़ाक पूरे स्कूल में मशहूर था, केंद्र में थे।
काव्या चुपचाप अपनी डायरी में कुछ लिख रही थी — जैसे यह हँसी उस तक पहुँचती ही न हो।
एक टीचर ने हँसते हुए कहा —
“काव्या मैडम, ये सर तो पूरे स्कूल के जोकर हैं!” काव्या ने सिर उठाया, हल्की मुस्कान दी, फिर डायरी में लौट गई।
🍱 लंच ब्रेक
कैंटीन में महिला स्टाफ़ के बीच बैठी काव्या अभी भी उस माहौल से पूरी तरह जुड़ नहीं पाई थी। “आप बहुत भोली हैं या सिर्फ दिखावा कर रही हैं?” “नहीं मैडम, मैं वाकई नहीं समझ पाई।” — काव्या का सीधा जवाब था। तभी किसी ने कान में कहा —“रीवान सर से बचकर रहिएगा। बहुत ‘लाइनों’ के लिए बदनाम हैं।” काव्या ने एक गहरी साँस ली। फिर अपनी आवाज़ में आत्मविश्वास लाकर बोली —
“मैडम, किसी के बारे में इस तरह की बातें करना ठीक नहीं लगता। हर किसी की अपनी निजी ज़िंदगी होती है… और हमें किसी के चरित्र का न्याय करने का अधिकार नहीं है।”
कमरे में एक अजीब-सी चुप्पी फैल गई।
उस रात डायरी के पन्नों पर काव्या ने लिखा:
“शब्दों से ज़्यादा यहाँ नज़रों की धार लगती है…
हर मुस्कान के पीछे एक कहानी छुपी है।
क्या मैं यहाँ टिक पाऊँगी?”
… पर एक स्याही की लकीर में उसने यह भी लिखा —
“मैं अलग हूँ, और शायद इसी अलगपन में मेरी पहचान छुपी है…”