Sundari ka Rakshak - 2 in Hindi Love Stories by Hemang Patel books and stories PDF | सुंदरी का रक्षक - 2

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सुंदरी का रक्षक - 2


पार्किंग एरिया महंगी और लग्ज़री कारों से भरा हुआ था, और उनमें भी तरह-तरह के मॉडल्स की कोई कमी नहीं थी।

यह साफ़ दिखाई देता था कि शुर्वंधी इंडस्ट्रीज़ के कर्मचारी बहुत ऊँची सैलरी पाते थे। इसी के मद्देनज़र, अर्जुन की तीस हज़ार रुपये की मासिक तनख्वाह अब उतनी बड़ी नहीं लग रही थी।

लीलाधर के साथ चलते हुए अर्जुन एक गहरे नीले रंग की 2006 मॉडल बेंटली 728 के पास पहुँचा। कार इतनी साफ़-सुथरी और चमकदार थी कि अर्जुन यह नहीं तय कर सका कि यह हाल ही में खरीदी गई थी या फिर इसकी देखभाल बहुत अच्छे से की गई थी।

"मिस्टर अर्जुन, यहाँ आइए," लीलाधर ने सामने वाला दरवाज़ा खोलते हुए इशारा किया।

"मैं आगे बैठ रहा हूँ? पर मिस कहाँ बैठेंगी?" अर्जुन ने थोड़ी हिचकिचाहट के साथ पूछा।

"मिस हमेशा पीछे ही बैठती हैं," लीलाधर ने कहा। "वो अपना बैग वगैरह साथ लाती हैं, आगे बैठना उनके लिए असुविधाजनक होता है।"

अर्जुन ने सिर हिलाया और कार में बैठ गया। लीलाधर ने बेंटली को धीरे-धीरे पार्किंग लॉट से बाहर निकाला और सिक्योरिटी गेट से गुज़रा, जहाँ सुरक्षाकर्मी गंभीर मुद्रा में सलामी दे रहे थे।

लीलाधर के ड्राइविंग कौशल पुराने और अनुभवी थे। अर्जुन को साफ़ पता चल गया कि वह एक नियमों का पालन करने वाला ड्राइवर है। अर्जुन खुद तो तेज़ और जोखिमभरी ड्राइविंग का आदी था, लेकिन वह उसकी पसंद नहीं, मजबूरी थी। बुज़ुर्ग अर्जुन (पुराने अर्जुन) हमेशा कहा करते थे, "अगर तुम जीत नहीं सकते, तो भाग सको इतना तो बनो!"

इसी सोच के चलते अर्जुन ने कई भागने की तकनीकें सीखी थीं, हालांकि वो ज़्यादातर का इस्तेमाल बुज़ुर्ग अर्जुन के सामने ही करता था। बाकी वक़्त, आमतौर पर भागने वाला वह नहीं होता था।

"मिस्टर अर्जुन, आप गाड़ी चलाना जानते हैं?" लीलाधर ने ट्रैफिक सिग्नल पर रुकते हुए पूछा और अर्जुन की ओर देखा, जो चुपचाप बैठा था।

लीलाधर एक अनुभवी आदमी था, और उसकी नजरें तेज़ थीं। वह केवल किसी व्यक्ति के गाड़ी में बैठने के तरीके से समझ जाता था कि वह गाड़ी चला सकता है या नहीं। उसने पूछा इसलिए क्योंकि अर्जुन ने कोई संकेत नहीं दिया था।

"थोड़ा बहुत," अर्जुन ने विनम्रता से कहा, क्योंकि वह अभी नया था।

"लाइसेंस है?" लीलाधर ने सीधे पूछा, यह जाने बिना कि 'थोड़ा बहुत' का मतलब क्या है। अध्यक्ष (चंद्रकांत सूर्यवंशी ) ने उस पर विश्वास जताया था, और लीलाधर उस विश्वास पर संदेह नहीं करता था।

"अभी तक नहीं।" अर्जुन ने सिर हिलाते हुए कहा। वह गाड़ी चलाना जानता था, यहां तक कि विदेशों में रेसिंग भी की थी, लेकिन भारत में लाइसेंस नहीं बनवाया था। "अभी-अभी अठारह का हुआ हूँ, समय नहीं मिला बनवाने का।"

"कोई बात नहीं। अपना आधार कार्ड दो, मैं तुम्हारा लाइसेंस बनवा देता हूँ। फिर जब मैं या मिस्टर सूर्यवंशी व्यस्त होंगे, तुम मिस को स्कूल ले जाया करोगे।"

कार एक भव्य और शानदार स्कूल के बाहर आकर रुकी। ली फू शायद बेंटली की चकाचौंध के कारण और अंदर तक नहीं गया।

अर्जुन ने फाइल से पढ़ा था कि सूर्यगढ़ का फर्स्ट स्कूल एक प्राइवेट स्कूल है, लेकिन यह कोई आम अमीरों वाला स्कूल नहीं था। यहाँ दाखिले के लिए कठिन परीक्षाएँ होती थीं। कुछ स्टूडेंट्स को परिवार की सिफारिशों से प्रवेश मिलता था, लेकिन ज़्यादातर अपनी योग्यता से ही आते थे।

इस स्कूल को तीन बड़ी कंपनियाँ फंडिंग करती थीं, इसलिए यहाँ सुविधाओं और शिक्षकों की गुणवत्ता बहुत ऊँची थी। यही कारण था कि यहाँ से पढ़कर निकला हर छात्र किसी न किसी कॉलेज में दाख़िला पा लेता था।

हालाँकि अर्जुन को पता था कि यह 100% रेट पूरी तरह ईमानदार नहीं होता—कुछ छात्र बिना पढ़ाई के भी, परिवार के संपर्कों के कारण कॉलेज पहुँच जाते थे।

स्कूल की घंटी की जानी-पहचानी आवाज़ सुनाई दी, और अर्जुन ने स्कूल के मैदान की ओर देखते हुए सोचा—आख़िरी बार उसने यह आवाज़ कब सुनी थी?

थोड़ी ही देर में छात्र-छात्राओं के झुंड स्कूल भवन से बाहर निकलने लगे। कुछ यूनिफॉर्म में थे, कुछ कैजुअल कपड़ों में। स्कूल में आम तौर पर कोई ड्रेस कोड लागू नहीं होता था, जब तक कि कोई बड़ा कार्यक्रम न हो।

"वो रही मिस," लीलाधर ने अचानक हाथ उठाकर इशारा किया, उसकी ऊँगली एक समूह के बीच चल रही एक लड़की की ओर थी।

अर्जुन ने जिस ओर इशारा किया गया था, वहाँ देखा—एक सुंदर चेहरे और लंबी कद-काठी वाली लड़की खड़ी थी। वहाँ और भी लड़कियाँ थीं, लेकिन अर्जुन को एक ही नज़र में समझ आ गया कि यही वो लड़की है, जिसकी सुरक्षा की ज़िम्मेदारी उसे सौंपी गई है।

लीलाधर ने अर्जुन को बताया था कि मेघा स्कूल की सबसे खूबसूरत लड़की है। और जब कोई लड़की स्कूल ब्यूटी कहलाए, तो स्वाभाविक है कि वह सबसे सुंदर होगी।

उसके साथ एक और लड़की थी, जिसकी सूरत भी कम नहीं थी, लेकिन उसका शरीर थोड़ा कद में छोटा था, जैसा कि फाइल में वर्णित नहीं था। वह भी भविष्य की स्कूल ब्यूटी बन सकती थी।

मेघा अपनी सहेली के साथ कार की ओर बढ़ रही थी, तभी कुछ रईसी लड़कों ने उनका पीछा किया।

"मेघा, रुको न...!" उन लड़कों में से एक उसके रास्ते में आकर बोला। "मेघा, प्लीज़! एक मौका तो दो!"

मेघा ने नाक-भौं सिकोड़ते हुए उसकी ओर देखा। "पिनाकी लाल, तुम बाज़ नहीं आ सकते क्या? मैंने कहा था ना, मुझे तुम पसंद नहीं हो। जाओ यहाँ से।"

"पर..." पिनाकी कुछ और कहने ही वाला था कि मेघा उसे झटककर आगे निकल गई।

वह तेज़ी से चलकर कार तक पहुँची और बिना समय गंवाए अंदर बैठ गई। उसकी सहेली ने भी वही किया, जिसे देखकर अर्जुन थोड़े भ्रम में पड़ गया।

"उफ्फ! ये पिनाकी लाल पूरा दिन मेरे पीछे पड़ा रहता है। थकता नहीं क्या?" मेघा कार में बैठने के बाद भी शिकायत करती रही, लेकिन उसकी नजर जैसे ही सामने बैठे अर्जुन पर पड़ी, वह रुक गई। "तुम कौन हो?"

"हाय, मैं अर्जुन हूँ," अर्जुन ने कोशिश की कि वो थोड़ा मासूम और प्यारा लगे—क्योंकि मिस की शक्ल ज़्यादा प्रसन्न नहीं लग रही थी।

"अर्जुन? अंकल लीलाधर, ये कौन है?" मेघा ने पूछा।

"अर्जुन आपके पिताजी द्वारा भेजे गए स्टडी पार्टनर हैं..." लीलाधर ने जवाब देना शुरू किया।

"स्टडी पार्टनर? मैंने कब कहा कि मुझे कोई स्टडी पार्टनर चाहिए? मैंने तो कहा था कि मुझे एक बॉडीगार्ड चाहिए! और ये लड़का तो बिल्कुल भी नहीं लगता कि ये मेरा रक्षक बन सकता है!" मेघा घबरा गई और अर्जुन को ऊपर-नीचे देखने लगी। "ये क्या पहन रखा है? ये तो पूरा किसान लग रहा है! ऐसे कैसे कोई इतना किसान जैसा लग सकता है?"
लीलाधर ने माथे का पसीना पोंछते हुए अर्जुन की ओर देखा, जैसे वह माफ़ी माँग रहा हो। उसे राहत तब मिली जब उसने देखा कि अर्जुन के चेहरे पर कोई प्रतिक्रिया नहीं थी। वह जानता था कि यह लड़का खास है—इतना खास कि उसे बुलाने के लिए तो खुद अध्यक्ष के पिता को सामने आना पड़ा था।

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"चेयरमैन साहब ने खुद कहा है, मैडम... अर्जुन बहुत काबिल लड़का है, कई मामलों में माहिर। वो समझदार है, ताकतवर भी। आपको सुरक्षा देना तो उसके लिए सबसे आसान काम होगा..." लीलाधर ने समझाया।

कुछ बातें चंद्रकांत सूर्यवंशी ने मेघा के हित में छुपा कर रखीं, और लीलाधर को भी वही निर्देश दिए गए थे। बाहर से देखा जाए तो अर्जुन को उसकी पढ़ाई और रोजमर्रा की ज़िंदगी के लिए एक साथी के रूप में लाया गया था... लेकिन इसके पीछे एक गहरी वजह थी, जो चेयरमैन के पुराने वादे से जुड़ी थी।

ज़ाहिर है, मेघा जैसी लड़की किसी अजनबी को पढ़ाई का साथी मानने के लिए यूं ही तैयार नहीं होती। लेकिन एक संयोग ने इसका रास्ता बना दिया। मेघा ने अपने पिता से स्कूल में रोज़ उसके पीछे पड़ने वाले लड़कों से बचने के लिए एक ‘शील्ड’ की माँग की। इस मौके का फायदा उठाते हुए, चंद्रकांत सूर्यवंशी ने अर्जुन को अपनी बेटी के सामने पेश कर दिया।

हालांकि, अब लीलाधर को पछतावा हो रहा था कि वे रास्ते में कपड़े नहीं ले सके। अर्जुन की तस्वीर में वह एक साफ-सुथरे नौजवान जैसा दिख रहा था, लेकिन उसका पहनावा इस जगह के हिसाब से बिल्कुल भी उपयुक्त नहीं था...

"यह?" मेघा सूर्यवंशी ने अर्जुन में कोई खास बात नहीं देखी। क्या उसके पिता ने किसी गांव से आए अनपढ़ को अपने बिज़नेस में रख लिया?

उसके बगल में बैठी चिन्मयी अपनी हँसी रोक नहीं पाई।

"तू भी न! चिन्मयी!" मेघा पहले ही अपने पिता के इस जबरदस्ती के फैसले से गुस्से में थी, और अब उसकी सबसे अच्छी दोस्त उस पर हँस रही थी! मेघा ने उसे गुस्से से घूरा।

चिन्मयी ने मज़ाक में ज़ुबान बाहर निकाली और अर्जुन की ओर उत्सुकता से देखने लगी।

"लीलाधर अंकल, उससे कहिए कि गाड़ी से उतर जाए। मुझे कोई और चाहिए।" मेघा ने बिना समय गंवाए साफ मना कर दिया।

"मैडम... चंद्रकांत सर को अर्जुन पर पूरा भरोसा है... और कॉन्ट्रैक्ट पहले ही साइन हो चुका है..." लीलाधर ने धीरे से समझाने की कोशिश की कि अब कुछ बदलना संभव नहीं है। चेयरमैन ने अपना निर्णय ले लिया है।

"क्या?" मेघा की बड़ी-बड़ी आँखें खुली की खुली रह गईं। उसका दिल रोने को हुआ। उसके पिता आखिर सोच क्या रहे थे? वो इस लड़के को बॉडीगार्ड तो छोड़िए, पास तक नहीं आने देना चाहती थी। और अब उसे पढ़ाई का साथी बता रहे थे? पूरा स्कूल उसका मज़ाक उड़ाएगा!

वो तो सोच रही थी कि अगर लड़का थोड़ा हैंडसम हो, तो उसे अपना फर्ज़ी बॉयफ्रेंड बताकर ज़ोंग पिनलियांग जैसे लड़कों से पीछा छुड़ा लेगी...

लेकिन अगर वो लड़का अर्जुन जैसा हो, तो वो तरकीब काम ही नहीं करेगी!

कोई भी नहीं मानेगा कि मेघा सूर्यवंशी ऐसा बॉयफ्रेंड चुनेगी! ज़ोंग पिनलियांग तो हँसी से लोटपोट हो जाएगा!

उधर अर्जुन खुद उलझन में था। शील्ड? उसके हिसाब से तो यह शब्द किसी प्रेमी को दर्शाता था! चेयरमैन का व्यवहार भी अजीब था। क्या वो वाकई अपनी बेटी की शादी करवाने जा रहे थे...?

"ठीक है। तुम जाओ और उस लड़के को सबक सिखाओ, जो मेरा पीछा कर रहा था। अगर ठीक से किया, तो शायद मैं तुम्हें पास दे दूँ।" मेघा ने देखा कि शायद इससे वह अर्जुन से छुटकारा पा सकेगी। अगर वह पहला काम ठीक से नहीं कर पाया, तो वो पिता से कह देगी कि अर्जुन इस जिम्मेदारी के लायक नहीं है।

"वो लड़का?" अर्जुन ने सिर हिलाया और तुरंत गाड़ी से उतरकर पिनाक सिंघानिया की ओर तेज़ी से बढ़ चला।

"वो मेघा सूर्यवंशी... हमेशा मुझे टाल देती है। कोई और लड़की होती तो अब तक मेरी बाहों में आ चुकी होती!" पिनाक अपने दो चमचों से शिकायत कर रहा था।

"पिनाक भैया, वो तो चंद्रकांत सूर्यवंशी की बेटी है! आम लड़की थोड़ी न है, मुश्किल तो होगी ही!" एक चमचा गगन बोला।

"पता है मुझे! मुझे ज्ञान मत दे!" पिनाक ने कमर पर हाथ रखकर कहा। "मुझे डटे रहना होगा..." तभी उसने देखा कि एक लड़का, जो गंदे भूरे पैंट और पीला पड़ा बनियान पहने था, उसकी तरफ तेज़ी से आ रहा है।

अर्जुन ने बिना समय गंवाए पिनाक के पिछवाड़े पर ज़ोरदार लात मारी। पिनाक सीधा मुँह के बल ज़मीन पर गिरा। अर्जुन बिना पीछे देखे वापस गाड़ी की ओर लौट गया।

"क-क-क... कौन था वो!! क्या वो सोचता है कि ऐसे करके बच निकलेगा?" पिनाक ने गुस्से में ज़मीन से उठते हुए चिल्लाया।

"वो देहाती लड़का था..." गगन ने जवाब दिया।

"तो फिर क्या खड़े हो? पकड़ो उसे! मार डालो!" पिनाक गुस्से से चीखते हुए बोला।

"पिनाक भैया... वो तो अब जा चुका है..." चमचों ने देखा कि जब तक वे पिनाक को सँभालते, अर्जुन वहाँ से जा चुका था।

"हरामी!" पिनाक ने गाली दी। "उसका चेहरा मैंने देख लिया है। मैं उसका चेहरा अखबार में छपवाऊँगा! सारे देहात में उसकी फोटू छपवाऊँगा! उसे ढूँढ निकालूँगा, उस देहाती को!"

"मेघा, मैंने पहले नहीं सोचा था, लेकिन ये अर्जुन तो बड़ा दमदार निकला! ज़रा भी नहीं डरा पिनाक से!" चिन्मयी ने अपनी आँखें बड़ी करके कहा।

"पागल है वो।" मेघा को थोड़ा तो अर्जुन की हिम्मत पर आश्चर्य हुआ, लेकिन उसका इरादा तो उसे निकाल फेंकने का ही था। वो चाहे कुछ भी कर ले, मेघा उसे पास नहीं देने वाली।

"मेघा, क्यों न तुम उसे रख ही लो?" चिन्मयी ने शरारती मुस्कान के साथ कहा।

"तू किसकी साइड में है, चिन्मयी?" मेघा ने उसे घूरा। "कहीं तू... उसे पसंद तो नहीं करने लगी?"

"भाग जा! बिल्कुल नहीं!" चिन्मयी ने सिर हिलाया। "मुझे तो लगता है तुझे पसंद आ गया है!"

"अगर तुझे पसंद नहीं, तो उसे रोकने की कोशिश क्यों कर रही है? ताकि मैं खुद को और ज़्यादा शर्मिंदा करूँ क्या?" मेघा चकित रह गई।

"ओह प्लीज़, ज़रा सोच! पिनाक तो स्कूल में मनमानी करता है, कोई रोकने वाला नहीं! अब आया है एक ऐसा बंदा जो उसे लात मार दे... मज़ा आएगा! अब पिनाक तेरे पीछे पड़ेगा नहीं!" चिन्मयी ने कहा।

"क्या? पिनाक को क्या समझा है तूने?" मेघा सीधी बात पर आई। "वो तो देहाती है! पिनाक उसे कुचल देगा!"

"मेघा, तुम इतनी बेवकूफ कैसे हो सकती हो? ये बात ताकत की नहीं है! पिनाक अर्जुन को हाथ लगाएगा भी नहीं, क्योंकि वो जानता है कि तुम उसके पीछे खड़ी हो! और मैं भी उसका साथ दूँगी!" चिन्मयी ने मुँह फुलाकर कहा।