Dr. B. R. Ambedkar Life and Introduction - 2 in Hindi Motivational Stories by Miss Chhoti books and stories PDF | डॉ. बी.आर. अंबेडकर जीवन परिचय - 2

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डॉ. बी.आर. अंबेडकर जीवन परिचय - 2

अब तक आपने डॉ. बी.आर. अंबेडकर के जीवन से लेकर संघर्ष तक के सफर को जाना है। अब उनके राजनीति जीवन से उनके आगे का सफर के बारे मे जानेंगे।

डॉ. बी.आर. अंबेडकर का राजनीतिक जीवन
कई दशकों तक विस्तृत, डॉ. बी.आर. अंबेडकर की राजनीतिक यात्रा विधायक, पार्टी नेता, भारतीय संविधान की प्रारूप समिति के अध्यक्ष और स्वतंत्र भारत के प्रथम विधि मंत्री जैसी भूमिकाओं से भरी रही हैं।


प्रारंभिक राजनीतिक व्यस्तताएँ
औपचारिक राजनीति में अपने पहले महत्त्वपूर्ण प्रयास के रूप में, डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने वर्ष 1936 में दलितों और मजदूर वर्गों के हितों का प्रतिनिधित्व करने के लिए इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी की स्थापना की। पार्टी ने 1937 के बॉम्बे प्रेसीडेंसी चुनावों में चुनाव लड़ा और कुछ सफलता भी प्राप्त की, जिसने बाबासाहेब को एक महत्त्वपूर्ण राजनीतिक व्यक्तित्व के रूप में स्थापित किया।


दलितों के मुद्दों को संबोधित करने के लिए एक केंद्रित राजनीतिक प्रयास की आवश्यकता को पहचानते हुए, डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने 1942 में इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी को अनुसूचित जाति संघ में बदल दिया। संघ का उद्देश्य स्पष्ट रूप से दलितों को राजनीतिक कार्रवाई के लिए संगठित करना था, हालाँकि इसने राष्ट्रीय स्तर पर महत्त्वपूर्ण चुनावी सफलता हासिल करने के लिए संघर्ष किया।


भारतीय संविधान का निर्माण
भारतीय राजनीति में डॉ. बी.आर. अंबेडकर की सबसे स्थायी विरासत संविधान सभा की प्रारूप समिति के अध्यक्ष के रूप में उनकी भूमिका है, जो भारतीय संविधान की रूपरेखा तैयार करने के लिए जिम्मेदार थी। भारतीय संविधान के मुख्य शिल्पकार के रूप में, डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने सुनिश्चित किया कि दस्तावेज में न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के सिद्धांत निहित हों। अस्पृश्यता के उन्मूलन और कुछ पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण जैसे प्रावधानों को शामिल करना जातिगत भेदभाव और असमानता के खतरों से मुक्त स्वतंत्र भारत के उनके दृष्टिकोण को दर्शाता है।


डॉ. भीमराव रामजी अंबेडकर के बाद के राजनीतिक प्रयासों में नव स्वतंत्र भारत में चुनावों के माध्यम से संसद में प्रवेश करने के उनके प्रयास शामिल थे। हालाँकि, उन्हें अपने राजनीतिक जीवन के इस चरण में अधिक सफलता नहीं मिल सकीं और उन्हें कई चुनावी हार का सामना करना पड़ा।


30 सितंबर 1956 को, बाबासाहेब ने अपने पूर्व संगठन अनुसूचित जाति संघ को बर्खास्त करके रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया की स्थापना की घोषणा की। हालाँकि, नई पार्टी के गठन से पहले ही 6 दिसंबर 1956 को उनका निधन हो गया।


बौद्ध धर्म को अपनाना और उसके बाद के वर्ष
सामाजिक न्याय और समानता की अपनी खोज में डॉ. बी.आर. अंबेडकर की बौद्ध धर्म में रुचि उनके करियर की शुरुआत में ही प्रारम्भ हो गई थी, उन्होंने विभिन्न दर्शनों और धर्मों का अध्ययन किया था। 1935 में, येवला (नासिक) में आयोजित एक प्रांतीय सम्मेलन में उन्होंने पहली बार सार्वजनिक रूप से घोषणा की कि – “मैं हिंदू धर्म में पैदा हुआ था, लेकिन मैं हिंदू के रूप में नहीं मरूंगा”।


14 अक्टूबर 1956 को, डॉ. भीमराव रामजी अंबेडकर ने नागपुर में आयोजित एक विशाल सार्वजनिक समारोह में औपचारिक रूप से बौद्ध धर्म अपना लिया। उनका निर्णय केवल एक व्यक्तिगत आध्यात्मिक विकल्प नहीं था, बल्कि एक राजनीतिक और सामाजिक कार्य भी था, जिसका उद्देश्य हिंदू जाति व्यवस्था को अस्वीकार करना था। इसके बाद डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने अपना शेष जीवन बौद्ध धर्म का प्रचार करने में लगाया।


डॉ. बी.आर. अंबेडकर के धर्म परिवर्तन का भारतीय समाज और राजनीति पर गहरा प्रभाव पड़ा। इसने दलितों के बीच बौद्ध धर्म में सामूहिक रूप से परिवर्तन का एक आंदोलन शुरू कर दिया, जिसे दलित बौद्ध आंदोलन के रूप में जाना जाता है, जो आज भी जारी है।


डॉ. बी.आर. अंबेडकर की विरासत
अपने असंख्य योगदानों के माध्यम से, डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने देश के सामाजिक- सांस्कृतिक और राजनीतिक परिदृश्य पर एक स्थायी छाप छोडी है। वर्तमान भारत में , उनकी विरासत को विभिन्न स्मारकों, संस्थानों और कार्यक्रमों के माध्यम से याद किया जाता है। उनकी विरासत के कुछ प्रमुख प्रतीक इस प्रकार देखे जा सकते हैं।

• अंबेडकर जयंती: डॉ. बी.आर. अंबेडकर की जयंती 14 अप्रैल को पूरे भारत में अंबेडकर जयंती के रूप में मनाई जाती है। इस दिन, उनके जीवन और कार्यों का सम्मान करने के लिए राष्ट्रव्यापी स्मरण कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।

• मूर्तियाँ और स्मारक: डॉ. भीमराव रामजी अंबेडकर की मूर्तियाँ पूरे भारत के शहरों और कस्बों में सार्वजनिक स्थानों को सुशोभित करती हैं। इसके अतिरिक्त, डॉ. अंबेडकर को समर्पित कई स्मारक, संग्रहालय और पुस्तकालय स्थापित किए गए हैं।

• राजनीति में प्रभाव: डॉ. अंबेडकर के विचार और सिद्धांत विभिन्न राजनीतिक दलों की नीतियों और विचारधाराओं को आकार देते रहें हैं। कई राजनीतिक दल, विशेष रूप से हाशिए के समुदायों का प्रतिनिधित्व करने वाले दल, भीमराव रामजी अंबेडकर की विरासत को उनके उपदेशों को अपने राजनीतिक एजेंडों में शामिल करके श्रद्धांजलि देते हैं।

• आरक्षण नीतियाँ: डॉ. भीमराव रामजी अंबेडकर की सामाजिक न्याय और सकारात्मक कार्रवाई की वकालत भारत की आरक्षण नीतियों में परिलक्षित होती है।

• साहित्य और कला: डॉ. अंबेडकर के जीवन और कार्य ने साहित्य, कला, संगीत और सिनेमा के एक समृद्ध जगत को प्रेरित किया है। उनके बारे में कई किताबें, आत्मकथाएँ, कविताएँ और नाटक लिखे गए हैं।

• जमीनी स्तर आंदोलन: भारत में दलित और अन्य हाशिए पर रहने वाले समुदाय समानता और सम्मान के अपने संघर्ष में उनके जीवन और शिक्षाओं से प्रेरणा लेते रहें हैं। अंबेडकरवादी आंदोलन इसका एक प्रमुख उदाहरण है।

• शिक्षा और जागरूकता: डॉ. अंबेडकर के जीवन और विचारों के बारे में शिक्षा और जागरूकता को बढ़ावा देने के प्रयास जारी हैं। स्कूल, कॉलेज और सामुदायिक संगठन उनके उपदेशों को प्रसारित करने और सामाजिक सुधार को बढ़ावा देने के लिए सेमिनार, कार्यशालाएं और अध्ययन मंडल आयोजित करते हैं।

• शैक्षणिक संस्थान: बाबासाहेब के नाम पर देश भर में डॉ. बी.आर. अंबेडकर विश्वविद्यालय और कॉलेज स्थापित किए गए हैं।

बाबासाहेब, एक बहुआयामी भारतीय प्रतीक थे, जिनका जीवन और कार्य देश के सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक परिदृश्य को आकार देते रहते हैं। समाज के हाशिए से उठकर स्वतंत्र भारत के सबसे बड़े नेताओं में से एक बनने का उनका सफर पीढ़ियों को प्रेरित करता रहा है।

कहानी को रेटिंग जरूर दीजियेगा। 

_Miss chhoti