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मीरा को आज ऐसा लग रहा था कि जिस समय वो सोना चाहती थी पर सो नहीं पा रही थी। उसकी वजह वो समझ पा रही थी, उस दिन और आज के दिन में क्या हो रहा है या क्या हुआ था। वही तो संसार की अगमता है। हर दिन एक जैसा नहीं होता, भले ही क्यों लोग एक हो, रिश्ते एक हो, दोस्त वही हो पर दिन वही नहीं होता। मीरा बिस्तर पर लेटे लेटे उसी को ही महसूस कर रही थी। गुजरी हुई याद के साथ उस जुड़े खत पर प्यार से अपना हाथ ग़ुमाती है। फिर वापस वही यादों में चली जाती है।
रोज की तरह मीरा बस स्टैंड पर पहुंचती है। मिली के आने की राह देखती है। थोड़ी खुश थी और थोड़ी उतावली भी हो रही थी। वह मिली को खत के बारे में बताने का नूर चेहरे पर दिख रहा था। बस, मिली के आने का इंतजार सालों की तरह लग रहा था।
इंसान को सभी रिश्ते जन्म के साथ मिल जाते है, उसे बनाने नहीं पड़ते। पर कुछ रिश्ते ऐसे है जो दिल से बनते है और वही रिश्ता इंसान के लिए काफी मायने रखता है। सुख हो, दुःख हो, ग़म हो, खुशी हो या कुछ भी हुआ हो हर वक्त साथ में ही रहता है और मरते दम तक साथ ही रहते है। यह बात का एहसास मीरा की आंखे टपका जाता है। मिली के साथ दोस्ती बहुत गहरी थी। हर दम उसके साथ ही खड़ी रहती थी। दोस्ती का नाता भी अजीब है। कुछ लेना देना नहीं होता, बस एक लगाव से ही जुड़े रहते है। मिली मीरा के अंतिम श्वास तक साथ में खड़ी थी।
मीरा चाहती थी कि मरने से पहले मिली से मिल लू। वह नर्स को इशारा करके मिली को पास भेजने के लिए कहती है।
मिली अंदर आके देखती है तो मीरा की आंखे में आंसू थे। मिली मीरा को देखते ही पता लग गया कि मीरा को किस वजह से आंसू आए है। मीरा की आंखों में खामोशी थी और दूसरी ओर खुशी की भी बात दिखाई रही थी। मीरा चाहती थी कि अपनी जिंदगी की ये अंतिम खुशी को भी मिली के साथ बांटना चाहती थी। आज से पांच साल पहले खत वाली बात बताने में उकसुकता थी उससे भी ज्यादा आज की बात बताने में थी।
" तुम ठीक हो? क्या हुआ?" मिली हल्के स्वर में पूछती है।
" कुछ नहीं हुआ। आज मैं बहुत खुश हु।" मीरा ने कहा।
" मैं जानती हूं कि आज तुम बहुत खुश भी हो और दर्द भी हो रहा है..... " बात पूर्ण हो उसके बीच में ही मीरा ने कहा, " मुझे किसी भी बात का ग़म या दर्द नहीं है।"
इतनी बात सुनकर मिली के आंख में आंसू आ जाते है और कस के मीरा से भेट पड़ती है।
" तुम अपनी आवाज और खुशी को बचाकर रखो। किसी ओर के साथ भी बाटनी है। उसके साथ भी दो पल बिताने है। वही तो आखिरी ख्वाइश है दो पल की। " मिली मीरा को उम्मीद देते हुए कहती है। पर मिली टूट रही थी। अपने दिल को सम्भाल नहीं पा रही थी। क्योंकि जिस के साथ गहरा रिश्ता था वह कभी भी आंख बंद कर सकती थी। यही दर्द के साथ बाहर निकल जाती है। मीरा भी जानती है कि मिली के दिल में क्या बीत रहा है। मीरा मिली को उम्मीद देना चाहती थी, इसलिए आवाज देती है,
"बस, इतनी ही निभाई तूने दोस्ती? बीच रास्ते में ही मेरा साथ छोड़कर चली जा रही हो? फिर मुझे नहीं कोसना? "
मीरा और मिली की ये मीठी नोंकझोंक चलती ही रहती थी। मिली फिर मुस्कान के साथ मीरा के पास आके बैठ जाती है। फिर मीरा पुरानी यादें दोहराने लग जाती है। वह पहली बार खत आया था, तब खुशी झलक रही थी उससे भी ज्यादा आज खुशी दिख रही थी। वह गुरु को पहली बार मिलने वाली थी, यही खुशी साफ साफ ज़ाहिर हो रही थी। उसकी आंखों में मरने का कोई खौफ या ग़म नहीं दिखाई दे रहा था।