Bharat ki rachna - 17 in Hindi Love Stories by Sharovan books and stories PDF | भारत की रचना - 17

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भारत की रचना - 17

 भारत की रचना / धारावाहिक
सत्रहवां भाग      
 भारतीय नारी तो वैसे भी रूढ़ियों से दूसरों के सहारे पर आस लगाकर सदा जीती आई है, आज से नहीं, परन्तु युगों-युगों से. विधाता का ये नियम पहले भी था, आज भी है और कल भी रहेगा. कहाँ तक उसके इस नियम की जंजीरों में नारी जकड़ी रहेगी? पिसेगी- अपने जीवन की सारी आशाओं पर गल-गलकर, उस पर धूल के फूल सजाती रहेगी? कोई नहीं जानता है.       
रचना हवालात की कोठरी में पड़ी हुई अपने प्रति सोचती थी और रोती थी. ऐसा था, उसका भाग्य- भाग्य की विडम्बना- हाथ की लकीरें और उनका प्रतिफल, कि ऐसी परिस्थिति में वह उलझ गई थी कि, जहां पर पहुंचकर वह सभी को अपना मुंह तक दिखाने लायक नहीं रही थी. उसकी मजबूरियों के सिलसिले, यकायक ही एक सूत्र में बंधकर उसके गले में हार बनकर लटक गये थे. बेवफा नसीब के बुझे हुए सितारे बार-बार उसको मुंह चिढ़ा रहे थे. क्या ही अच्छा होता कि, वह कॉलेज बीच में ही अधूरा छोड़कर नहीं आती. नहीं आती तो शायद ये सब-कुछ नहीं होता? ये दिन और इस दिन का काला अक्स उसे क्यों देखना पड़ता?       रामकुमार वर्मा, जो उसकी कक्षा का धनाड्य छात्र है- ऐसा छात्र कि जिस पर वह केवल इस कारण विश्वास कर बैठी, क्योंकि वह भी उसी की कक्षा में पढ़ता है. उस रामकुमार वर्मा ने उसे ज़िन्दगी का कितना बड़ा और ज़बरदस्त धोखा दिया है? यदि वह उसे कभी मिल जाए, तो शायद वह उसका मुंह ही नोच डालेगी. मगर वह कर भी क्या सकती थी? शायद कुछ भी तो नहीं? सारी गलती उसी की ही है. दोष खुद उस पर ही जाता है, क्यों वह यूँ अपना कॉलेज छोड़कर बीच में ही छोड़कर चली आई थी? आई भी थी तो उसने क्यों नहीं ज्योति को साथ लिया था? सबसे बड़ी भूल, उसने क्यों वर्मा से उसका ब्रीफकेस बगैर कुछ भी जाने हुए ले लिया था? अगर ले भी लिया था तो क्यों वह उसे अपने साथ, अपने कमरे तक में ले आई थी? और अब सारे लोग और कॉलेज के तमाम छात्र न जाने उसके बारे में क्या-क्या सोच रहे होंगे? कैसे-कैसे घृणित विचार उसके बारे में बना रहे होंगे? सारे हॉस्टल में केवल उस ही की चर्चा एक अफवाह-सी बनकर फैल चुकी होगी. कॉलेज में भी हरेक की जुबान पर केवल उसका ही नाम होगा. वह तो अब कहीं भी अपना मुंह दिखाने लायक नहीं रही. स्वयं भारत भी सुनेगा तो वह क्या सोचेगा? उसके दिल पर क्या बीत जायेगी? क्या-क्या सोचेगा वह तब? कुछ भी? न जाने किस प्रकार के विचार उसके मन में आ जायेंगे?       
भारत का ख्याल आया तो रचना का दिल, और भी अधिक उदास हो गया. रचना ने मन-ही-मन भारत का नाम दोहराया तो, उसके दिल का सारा दर्द फिर एक बार ज़ख्मों का गुबार बनकर उसकी आँखों के आंसू बनकर बह निकला. उसकी आँखों फिर एक बार भर आईं. फिर से आंसूं उसकी आँखों में झलकने लगे. बड़े-बड़े आंसू- उदासी और बदनामी के प्रतीक- गमों के बोझ से लदे मानो स्वयं अपने दुःख-दर्दों की दास्तान छेड़ बैठे थे?       
रचना फिर से रो पड़ी. बुरी तरह-से रोते-रोते उसे हिचकियाँ भी आ गईं. सिसकियाँ थीं कि, बंद होने का नाम ही नहीं ले रही थीं. शायद बंद होना ही नहीं चाहती थीं? रोते-रोते रचना की आँखें भी सूज गईं थीं. गालों के उभार बार-बार साड़ी के पल्लू से आंसूं पोंछने के कारण लाल पड़ गये थे. चेहरे की सारी आभा ही मानो समाप्त हो जाना चाहती थी.       बाहर बारिश का तूफ़ान शोर मचा रहा था. चीख रहा था. चिल्ला रहा था. ठीक इसी प्रकार हवालात के कमरे में बंद रचना के दिल में भी उसके भविष्य में आने वाली मुसीबतों का तूफ़ान आने की जैसे धमकियां दे रहा था. दुःख और दर्दों के बोझ से लदी हुई रचना अब मात्र एक दुखिया बनकर ही रह गई थी.       
वर्षा अभी तक हो रही थी.वह भी बंद नहीं हो सकी थी. हवाओं में तेजी आ चुकी थी. बारिश की बूंदों से सने हुए वायु के थपेड़ों के कारण  वातावरण का शव ठिठुरता हुआ मानो गठरी बन गया था. आकाश में बिजली अभी तक अपनी कौंध मार रही थी. आकाश में बादल जैसे भाग रहे थे. ऐसे बिगड़े हुए वातावरण में एक ओर प्रकृति का शोर था, तो दूसरी तरफ रचना के दिल में भी एक तूफ़ान अपना शोर मचा रहा था- वर्षा के अत्याचारों के तूफ़ान के समान ही, जो थमने का नाम ही नहीं ले रहा था.       कोर्ट-कचहरी और मुकद्दमा.रचना पर केस लगकर मुकद्दमा चलने लगा. मादक द्रव्यों की तस्करी का कड़ा केस था, सो उसकी ज़मानत भी नहीं हो सकी थी. फिर अगर उसकी ज़मानत हो भी जाती तौभी उसकी ज़मानत करनेवाला था ही कौन? उसका कोई भी तो अपना नहीं था. इतना अवश्य ही था कि, हॉस्टल की तरफ से एक वकील को अवश्य ही नियुक्त कर दिया गया था. रामकुमार वर्मा को भी रचना के पकड़े जाने की खबर लग चुकी थी, सो वह भी अपना ब्रीफकेस हॉस्टल में लेने उसके पास नहीं आया था. फिर, वह आता भी क्यों? उसने तो स्वयं को बचाने के लिए ही अपना अपराध रचना के सिर मढ़ दिया था. बेचारी, रचना थी भी ऐसी ही कि, जो सहज ही उसकी बातों में आ गई थी. इतना अवश्य ही था कि, पुलिस को दिए गये रचना के बयान के अनुसार रामकुमार वर्मा भी कुछेक घंटों के लिए पुलिस की पूछताछ में अवश्य ही आया था. परन्तु सबूतों की कमी और उसके सहज ही मुकर जाने के कारण पुलिस भी उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकी थी. फिर, शहर का एक अलग धनाड्य मनुष्य होने के कारण उसका दबदबा भी कोई कम नहीं था.       
रचना पर केस चलने लगा तरो सर्व-प्रथम उसको हॉस्टल और कॉलेज दोनों ही स्थानों से निष्कासित कर दिया गया. रचना के लिए ये ज़बरदस्त आघात ही था. वक्त का ऐसा कठोर तमाचा था कि, जिसके प्रहार से वह तिलमिलाकर ही रह गई थी. परन्तु, वह कर भी क्या सकती थी? हर पल रोना और अपने किये पर आंसुओं की बरसात करते रहना- बस. इन्हीं हालात में वह एक बिगड़ी हुई गुत्थी बनी हुई, अपनी समस्याओं का समाधान करने का एक असफल प्रयत्न करती रहती- दिन-रात, अपने परमेश्वर से अपनी मुक्ति की दुआएं मांगती रहती.       इसी बीच ज्योति और उसकी कई-एक सहेलियां भी उससे जेल में मिलकर आ चुकी थीं. लेकिन, वे भी क्या करतीं? क़ानून के बन्धनों के सभी सबूत रचना के पक्ष में थे. ज्योति भी उसको समझा-बुझाकर और तसल्ली देकर चली आई थी. पादरी दीनानाथ, जिन्होंने रचना को कुछेक समय का संरक्षण दिया था, उनको भी गहरा आघात लगा था.     
 अपने जीवन के पिछले ढेर सारे वर्ष रचना ने स्वयं को अकेले संसार में असहाय, बेसहारा और तन्हा समझकर व्यतीत किये थे, परन्तु ज़िन्दगी के एक ऐसे स्थान पर आकर, जहां पर आकर वह कुछ लायक हो जाती, अपना बोझ स्वयं उठाने की क्षमता एकत्रित कर लेती, उससे पहले ही रामकुमार वर्मा उसकी सारी खूबियों का सांप बनकर, उसको अपना डंक मार गया था.   
   फिर रचना के केस की जब प्रथम तारीख पड़ी, तो सारा हॉस्टल और उसकी एक-एक लड़की तक उसका दर्द बांटने कोर्ट में उपस्थित हो गई थी. कॉलेज के वे छात्र और छात्राएं जो रचना को जानते थे, तथा वे प्रोफेसर जिन्होंने रचना को पढ़ाया था, मुकद्दमें का प्रभाव देखने वहां आ गये थे. कॉलेज के प्रधानाचार्य तक वहां पर उपस्थित थे. उपरोक्त सभी लोगों को रचना से स्नेह था- सहानुभूति थी. रचना की की परिस्थिति व दर्द को सब ही महसूस भी कर रहे थे, परन्तु कानून के हाथों सब विवश भी थे. सब ही लोग रचना की सहायता करना चाहते थे, परन्तु जैसे मजबूरियों का तमाशा बने हुए, सब-के-सब अपने दुर्भाग्य को कोस भी रहे थे. रामकुमार वर्मा को हिरासत में तो लिया गया था, लेकिन पुलिस हवालात में उसे बंद नहीं किया गया था, सो मुकद्दमें रचना के बयान के आधार पर उसकी भी पेशी थी. आज उसे भी आना था.     
 मुक्तेश्वर की इस अदालत में डिग्री कॉलेज की एक हसीन छात्रा की यूँ अप्रत्याशित गिरफ्तारी तथा उसके मुकद्दमें की पहली तारीख के दौरान ही, सारी कचहरी, मनुष्यों तथा कॉलेज के छात्र और छात्राओं से खचाखच भर गई थी. सब ही को कौतुहल था- एक अनोखा आश्चर्य, अपने जीवन के प्रति हर रोज़ थकती हुई एक अनाथ, बेबस और लाचार युवा लड़की की लाचारियों का तमाशा, शायद आज विधाता ने मनुष्यों की अपार भीड़ के लिए एक न स्वीकारने वाले मनोरंजन के रूप में प्रस्तुत कर दिया था.
-क्रमश: