ये कहानी है सीमा व उसके परिवार की। सीमा व अमित पति - पत्नी है। गीता, उनकी प्यारी सी व इकलौती बेटी है। अब गीता की स्कूल की शिक्षा समाप्त हो गयी । आईये देखते हैं आगे की कहानी।
सीमा, रसोई में बरतन समेते हुए ख्यालों में खो गयी। काश,जिस तरह मैं बरतनों से चिकनाई की परत हटा पाई उसी तरह अपने परिवार से भी रूढ़ीवादी सोच की परत भी हटा पाती।
अरे, मैं भी कहा उधेड़बुन में उलझ गई,अमित भी आफ़िस से आते ही होंगे।
माँ, कहाँ हो आप? रसोई में हूँ, गीता। क्या हुआ गीता ?
माँ, आज मुझे प्रवेश प्रक्रिया के बारे में कॉलेज से फोन आया।
लेकिन, पापा चाहते हैं कि मैं अपनी आगे की पढ़ाई पास के कॉलेज से करूं। मैं भोपाल (M.K.) कॉलेज से अपनी आगे की पढ़ाई जारी रखना चाहती हूं। माँ, आप तो जानती है कि वहाँ दाखिला लेने के लिए विद्यार्थी तरसते है। माँ, मैंने यह परीक्षा उत्तीर्ण करने के लिए दिन रात मेहनत की है। नम आँखों के साथ गीता कहती है, कुछ करो, माँ।
गीता, तुम रोना बंद करो मैं कुछ करती हूँ।
मैं, अमित के लिए शाम के नाश्ते तैयार करने में लग गयी।
अचानक मुझे एक योजना सूची।
सीमा, भूख लगी है जल्दी से चाय नाशता दो।
अमित, चाय और नाश्ता तैयार है, आप जाइए और हाथ मुँह धो लीजिए । सीमा जल्दी करो बहुत भूख लगी है।
अमित, आपको मेरी पहेली सुलझानी होगी।
क्या, मज़ाक है, ये सीमा ?
बस दो मिनट रुको तो आसान सी पहेली है।
सीमा, आज कुछ विशेष है क्या ?
पकौड़े, चीला, हलवा, वाह! तुमने इतना अच्छा नाश्ता बनाया है।
अमित, आपको बस इन व्यंजनों में कोई समानता बतानी है। तभी आपको ये खाने के लिए मिलेगी।
सीमा, यह बहुत आसान है।
ये सभी बेसन से बने हैं।
अब, आप खुश हैं। ये कहकर अमित मुस्कुराए ।
तो, क्या मैं अपने नाश्ता का आनंद ले सकता हूं?
अमित ,मैंने बेसन को तला, नमक , चीनी मिलाई फिर भी आपको कैसे पता चला?
सीमा, क्योंकि तुम प्रमुख साम्राज्ञी को नहीं बदल सकती।
वाह, यही बात मैं आपको समझाना चाहती हूँ।
अमित, गीता को हमने संस्कार , जीवन मूल्य, सहीगलत में भेद करने की सूझ बूझ दी है।
मैं जानती हूँ आप को डर लगता है कि कही आपकी लाडली कॉलेज छात्रावास की चकाचौंध में आपको भूल न जाएँ।
अमित, जिस प्रकार बेसन का बाहरी रूप बदलता है उसी प्रकार हो सकता है गीता की वेशभूषा, रहन सहन में फर्क आए परंतु उसके संस्कार , अंतर मन कभी नहीं बदलेंगे। हमने उसे सही शिक्षा दी है । अब समय आ गया है कि हम अपनी परवरिश पर भरोसा करे।
अरे, समय आने पर पक्षी भी अपने बच्चे को घोंसले से बाहर निकाल देती है। सीमा - अमित , मैं कम पढ़ी - लिखी हूँ, पर मैं चाहती हूँ कि मेरी बेटी खूब पढ़े व अफसर बने।
काश, अमित आप समझ पाते।
मैं रसोई में आ गई तभी गीता आई और मुझे गले से
लगा लिया। मैं अपने आंसू नही रोक पाई।
सीमा, कुछ आंसू बचा लो तब गीता को भोपाल। कालेज छोडकर आयेगे तब काम आयेगे। सीमा ने गहरी सांस ली कि उसकी तरकीब काम आयी।
बताए कैसी लगी आपको ये कहानी ?
धन्यवाद।