धनी और निर्धन का अंतर
राजा शुद्धोधन राजकुमार के लिए वैभव-विलास के जितने साधन कुट रहे थे, उतने ही वे उससे विमुख होते जा रहे थे। एक दिन सिद्धार्थ का बालसखा बसंतक सिद्धार्थ में बोला, "राजकुमार आपके माता-पिता अपने कितना प्रेप और स्नेह करते है। उन्होंने आपके लिए संसार में लगभग सभी सुख उपलब्ध करा दिए हैं।"
"बसंतक" सिद्धार्थ बोले, "संगार के सभी माता-पिता अपनी संतान में प्रेम और स्नेह करते हैं। जिनके माता-पिता की जितनी सामध्ये होती है, वे अपनी मंडान को मुख-सुविधाएँ उपलब्ध कराते हैं, किंतु यहाँ पर एक गंभीर प्रश्न उठता है।"
"वह क्या?"
"संसार में सभी लोग एक समान क्यों नहीं हैं? किसी के पास धन को माश इतनी अधिक है कि वह इसे कहाँ खर्च करे, नहीं समझ पाता, जबकि दूसरी ओर किसी के पास इतना भी धन नहीं है कि दो रोटी जुटा सके, संसार में यह अन्याय क्यों, वसंतक?"
"यह तो विधाता की लीला है, राजकुमार।"
यह कहकर घमंतक तो मौन हो गया, किंतु राजकुमार सिद्धार्थ गहरे सोच में पड़ गए।
राजकुमार सिद्धार्थ संसार के सभी वैभव-विलास के प्रति विरक्ति का भाव रखते थे, यह देखकर राजा शुद्धोधन चिंतित हो उठे। उन्हें अमित कृषि और राज ज्योतिषी की भविष्यवाणी याद आने लगी।
राजा शुद्धोधन को लगा कि राजकुमार सिद्धार्थ में सम्राद की अपेक्षा मो के गुण अधिक हैं। कहीं यह राज्य का त्याग कर संन्यास ही न ग्रहण कर लें।
यह सोचकर राजा चितित हो उठे।
अब राजा ने ऐसा कोई उपाय करने का निश्चय किया, जिससे सिद्धार्थ पूरी तरह सांसारिक हो सके। अतः इस विषय में उन्होंने रानी प्रजावती से भी गहन विचार-विमर्श किया।
कुछ समय पश्चात् रानी प्रजावठी बोली, "महाराज। राजकुमार सिद्धार्थ को सामान्यतः वैभव-विलास की कोई भी सामग्री अपनी ओर आकर्षित नहीं कर पाई। अब अंतिम अध्ध के रूप में केवल एक ही उपाय है।"
"कैसा अतिम अस्व और कैसा उपाय महारानी?" राजा शुद्धोधन उत्सुकता से बोले, "अपनी बात पूरी तरह से स्पष्ट करो।"
"देवा अब राजकुमार युवा हो चुके हैं, यदि हम उनका किसी सुंदर राजकुमारी से विवाह कर दें तो वह उसके सौंदर्य-पाश में जकड़ा जा सकता है।"
"कदाचित् आपकी बात ठीक लगती है, महारानी। यदि हम राजकुमार का विवाह कर दें तो यह निश्चय ही विवाह बंधन में जकड़ा जा सकेगा।"
"तब शीघ्र ही राजकुमार के विवाह हेतु स्वयंवर का आयोजन कीजिए, महाराज।"
"हाँ अवश्य। हम ऐसा ही करेंगे?" कहते हुए राजा शुद्धोधन के मुखमंडल पर दृढता के भाव छा गए।
सिद्धार्थ और यशोधरा
कुछ समय पश्चात् ही राजा शुद्धोधन ने अपने निश्चय को कार्यरूप में परिणत कर दिया। अपने राज्य के सभी निकटवर्ती राजाओं को उन्होंने अपनी राजकुमारियों के साथ राजकुमार सिद्धार्थ के स्वयंवर में आने के लिए आमंत्रित किया।
राजकुमार सिद्धार्थ अत्यंत सुंदर, उदार और प्रतिभाशाली थे। प्रत्येक राज अपनी पुत्री का विवाह उनके साथ करने के लिए उत्सुक था।
स्वयंवर की तिथि और वार निश्चित कर दिए गए थे। निर्धारित समय विभिन्न राज्यों के राजा अपनी पुत्रियों के साथ स्वयंवर में आ विराजे। स्वयंवर मंडप में अभी अभ्यागतों के बैठने और विश्राम की समुचित व्यवस्था की गई थी।
मंडप को रंग-बिरंगे पुष्प मालाओं से सुसज्जित किया गया था। एक ओर एक ऊँचे मंच पर राजकुमार सिद्धार्थ बैठे हुए थे। उनके निकट ही रत्नों और मोती-माणिक्यों से भरा एक थाल रखा गया था। राजा शुद्धोधन और राज्य के अधिकारीगण भी मंच पर एक और विराजमान थे।
राजा श्री आज्ञा से स्वयंवर की काररवाई आरंभ हुई। विभिन्न राज्यों की राजकुमारियाँ क्रमशः राजकुमार सिद्धार्थ के आसन के निकट पहुंचती और उन्हें अभिवादन करतीं, किंतु राजकुमार किसी की ओर दृष्टि उठाकर नहीं देख रहे थे।
राजकुमार सिद्धार्थ अपने निकट रखे थाल में से मुट्ठी भर मोती-माणिक्य उठाने और चुपचाप आने वाली राजकुमारी को भेंटस्वरूप दे देते। राजकुमारी उदास मुख लिये लौट जाती। बहुत देर से यही क्रम चलता रहा, यहाँ तक कि थाल की सभी मोती-माणिक्य इसी प्रकार राजकुमारियों में वितरित्त हो गए। अब केवल थाल ही शेष था।
अंततः एक राजकुमारी सिद्धार्थ के पास आई। उसकी आँखें चंचल हिरणी के समान थीं। उसकी पायलों की रून-झुन ने एकाएक राजकुमार सिद्धार्थ को अपनी ओर आकर्षित किया। राजकुमार ने उसकी ओर देखा तो राजकुमारी का मुख लाज की लालिमा से लाल हो गया।
इस राजकुमारी का नाम यशोधरा था। यशोधरा अभिवादन करके लौटने लगी तो राजकुमार सिद्धार्थ ने थाल में मोती निकालने के लिए हाथ डाला, किंतु थाल खाली देखकर वह सन्न रह गया।
राजकुमार सिद्धार्थ यशोधरा के सौंदर्य को सप्रेम निहार रहे थे, किंतु जब उन्हें मोती माणिक्य से भरा थाल रिक्त मिला तो बहुत संकोच हुआ। वे अपने मंच से उठ खड़े हुए और बिना कुछ सोचे-विचारे ही यशोधरा के सामने जा खड़े हुए।
तभी सिद्धार्थ ने अपने गले में पड़े बहुमूल्य मुक्ता हार को उतारा और निःसंकोच भाव से यशोधरा के गले में डाल दिया।
तभी स्वयंवर स्थल पर मंगल वाद्य बजने लगे और महाराज शुद्धोधन एवं राजकुमार सिद्धार्थ की जय-जयकार गूंजने लगी।
राजा शुद्धोधन ने आसन से खड़े होकर उपस्थित सभी गण्यमान्य जनों का आभार व्यक्त किया और राजकुमार सिद्धार्थ का राजकुमारी यशोधरा से विवाह करने की घोषणा कर दी। राजकुमारी यशोधरा के पिता ने भी उपस्थित जनों का धन्यवाद करते हुए राजा शुद्धोधन की घोषणा का अनुमोदन किया। इस विवाह घोषणा को सुनकर उपस्थित जनों को बड़ा हर्ष हुआ, किंतु वहाँ पर कम-से-कम एक व्यक्ति ऐसा भी उपस्थित था, जो इस घोषणा से विक्षुब्ध था।