Lapataa khunee in Hindi Crime Stories by SAURAV PATIL books and stories PDF | लापता खूनी

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लापता खूनी


रात का सन्नाटा ऐसा था कि मानो पूरा शहर अपनी साँसें रोककर किसी भयानक अनहोनी का इंतज़ार कर रहा हो। ऑफिस की चारदीवारी में हल्की-हल्की ठंडक घुली हुई थी, और बाहर का अंधेरा खिड़कियों से झाँक रहा था। आसमान में बादल इतने घने थे कि चाँद की एक भी किरण नीचे तक नहीं पहुँच पा रही थी। सड़कों पर सिर्फ हवा की सरसराहट थी एक ऐसी खामोशी जो कानों में सुई की तरह चुभ रही थी, जैसे कोई अनदेखा खतरा चारों ओर मंडरा रहा हो।



नेहा अपने ऑफिस में अकेली थी, उसकी कुर्सी पर बैठी, मेज पर बिखरी फाइलों के ढेर के बीच खोई हुई। उसकी आँखों के नीचे काले घेरे गहरे हो चुके थे, जो चीख-चीखकर बता रहे थे कि नींद अब उसके लिए एक भूला हुआ सपना बन चुकी थी। मेज पर रखी कॉफी की प्याली ठंडी होकर जमी हुई थी, उसकी सतह पर धूल की एक पतली परत चुपचाप बैठ गई थी, लेकिन नेहा का ध्यान उस ओर कहीं नहीं था। उसकी नज़रें फाइलों पर जमी थीं, और उसका दिमाग उन अनसुलझे सवालों में उलझा था जो हर रात उसे और गहरे खींच रहे थे।



पिछले कुछ महीनों से शहर एक अनजाने आतंक की चपेट में था। एक के बाद एक हत्याएँ हो रही थीं हर हत्या अपने आप में एक भयावह पहेली थी। कोई गवाह नहीं, कोई सुराग नहीं, और सबसे डरावनी बात यह कि हत्यारा हर बार पुलिस से दो कदम आगे था। हर हत्या का तरीका बदल जाता था, हर बार जगह बदलती थी, जैसे वह कोई भयानक खेल खेल रहा हो—एक ऐसा खेल जिसमें पुलिस सिर्फ उसकी चालों का शिकार बन रही थी। नेहा एक तेज़-तर्रार और हिम्मत वाली पुलिस अधिकारी थी, जिसके नाम कई मुश्किल से मुश्किल केस सुलझाने का रिकॉर्ड था।


उसकी आँखों में हमेशा एक चमक रहती थी, एक आत्मविश्वास जो हर चुनौती को हराने का वादा करता था। लेकिन यह "लापता खूनी" उसे हर कदम पर मात दे रहा था। उसकी फाइलों में अब तक चार हत्याओं का रिकॉर्ड दर्ज था चार बेरहम हत्याएँ, चार अनसुलझे रहस्य। हर बार उसे लगा था कि वह जवाब के करीब पहुँच गई है, हर बार उसने सोचा था कि अब वह इस हत्यारे की चाल को समझ लेगी, लेकिन हर बार वह खाली हाथ रह गई थी उसके हाथों में सिर्फ सवाल और हताशा बची थी।



उसने एक गहरी, थकी हुई साँस ली, अपनी कुर्सी पर पीछे टेक लगाई और अपनी आँखें बंद कर लीं। उसकी उंगलियाँ अभी भी एक फाइल के किनारे को थामे हुए थीं, जैसे वह उस कागज में छिपे किसी जवाब को ज़बरदस्ती बाहर निकाल लेना चाहती हो। उसका चेहरा थकान से भरा था, लेकिन उसकी आँखों के पीछे एक जिद अभी भी जल रही थी। "यह हत्यारा इतना चालाक कैसे हो सकता है?" उसने खुद से बुदबुदाया, उसकी आवाज़ ऑफिस की खामोशी में हल्के से गूँजी।


"हर बार... हर बार वह मुझसे आगे कैसे निकल जाता है?" उसने अपनी आँखें खोलीं और सामने की दीवार पर टंगे बोर्ड की ओर देखा, जहाँ चार पीड़ितों की तस्वीरें पिन की हुई थीं चार चेहरे, चार कहानियाँ, चार अनसुलझे अंत। उसकी नज़रें एक पल के लिए बोर्ड पर टिकीं, फिर नीचे मेज पर पड़े उस पुराने स्केच की ओर चली गईं।


यह स्केच पिछले हत्या स्थल पर मिला था एक अधूरी, रहस्यमयी तस्वीर जिसमें सिर्फ एक जोड़ी आँखें थीं। गहरी, ठंडी, और ऐसी जो आपको देखती हुई महसूस होती थीं जैसे वे आँखें कागज से बाहर निकलकर आपके अंदर तक झाँक रही हों। नेहा ने उस स्केच को बार-बार देखा था, हर बार उसने सोचा था कि शायद इन आँखों में कोई जवाब छिपा हो।



उसने उसे उठाया और अपनी उंगलियों से उसकी सतह को सहलाया। "ये आँखें किसकी हैं?" उसने धीरे से बुदबुदाया, उसकी आवाज़ में जिज्ञासा और हताशा दोनों थे। "क्या ये उस हत्यारे की हैं? या किसी शिकार की?" लेकिन जवाब अब तक उसकी पकड़ से कोसों दूर था। उसने स्केच को वापस मेज पर रखा और अपने माथे को अपनी हथेलियों में थाम लिया, जैसे उसकी थकान को बाहर निकाल देना चाहती हो।


तभी, उसकी सोच को एक तेज़, कर्कश आवाज़ ने तोड़ दिया। उसका मोबाइल बज रहा था। उसकी आँखें चौंककर खुलीं, और उसका हाथ अनायास ही फोन की ओर बढ़ा। स्क्रीन पर कुछ अजीब था "प्राइवेट कॉलर" लिखा हुआ था, कोई नंबर नहीं। नेहा की भौंहें सिकुड़ गईं, और उसका दिल एक अनजाने डर से धक् से रह गया। "इस वक्त?" उसने खुद से सवाल किया, उसकी आवाज़ में हल्की सी घबराहट थी। "रात के ढाई बजे... कौन मुझे फोन कर सकता है?" उसकी उंगलियाँ फोन पर कस गईं, जैसे वह उस अनजाने कॉलर की मंशा को पहले ही भाँप लेना चाहती हो। उसने एक पल रुककर स्क्रीन को देखा, फिर धीरे से फोन उठाया और अपने कान से लगाया।



"हैलो?" उसकी आवाज़ में सख्ती थी, लेकिन उसमें एक हल्की सी काँप थी जो वह छिपाना चाहती थी। उसने अपने ऑफिस की खामोश दीवारों की ओर देखा, जैसे वहाँ से कोई जवाब मिलेगा। लेकिन दूसरी ओर से कोई जवाब नहीं आया सिर्फ एक धीमी, गहरी साँस की आवाज़ थी। यह साँसें इतनी भारी थीं कि नेहा को लगा जैसे कोई उसके ठीक पीछे खड़ा हो। उसकी रीढ़ में एक ठंडी सिहरन दौड़ गई। "कौन है?" उसने फिर पूछा, इस बार उसकी आवाज़ में तेज़ी थी, उसकी उंगलियाँ फोन को और कसकर पकड़ रही थीं। "बोलो, कौन हो तुम?"



कुछ पल की गहरी खामोशी रही एक ऐसी खामोशी जो नेहा के कानों में चीख रही थी। वह साँसें अब और करीब लग रही थीं, जैसे कोई उसके कंधे के पीछे से साँस ले रहा हो। उसने अनायास ही पीछे मुड़कर देखा, उसकी नज़रें ऑफिस की खाली कुर्सियों और टिमटिमाती ट्यूबलाइट पर पड़ीं। वहाँ कोई नहीं था, लेकिन उसका दिल तेज़ी से धड़क रहा था। "क्या यह मेरा वहम है?" उसने खुद से सवाल किया, लेकिन उसकी सोच को एक ठंडी, भारी आवाज़ ने बीच में ही काट दिया।


"अगली अवनी है। पुरानी हवेली के पास।"  

आवाज़ इतनी धीमी और कर्कश थी कि नेहा को लगा जैसे उसके कानों में बर्फ की सुई चुभ रही हो। हर शब्द में एक अजीब सा ठहराव था, जैसे बोलने वाला हर अक्षर को जानबूझकर खींच रहा हो। यह कोई साधारण धमकी नहीं थी यह एक ऐसी चेतावनी थी जो उसकी आत्मा तक ठंडक पहुँचा रही थी। नेहा का दिल एक पल के लिए थम गया। "अवनी?" उसने बेसाख्ता बुदबुदाया, उसकी आँखें चौड़ी हो गईं। उसने तुरंत अपनी आवाज़ को संभाला और तेज़ी से पूछा, "तुम कौन हो? क्या कहना चाहते हो? बोलो!" उसकी आवाज़ में अब गुस्सा और बेचैनी साफ़ झलक रही थी।




लेकिन जवाब की जगह एक तेज़ कट की आवाज़ आई। लाइन मर गई। नेहा ने फोन को अपने कान से हटाया और स्क्रीन की ओर देखा कोई नंबर नहीं, कोई ट्रेस नहीं, सिर्फ़ एक खाली स्क्रीन जो उसे मुँह चिढ़ा रही थी। ऑफिस में सन्नाटा फिर से पसर गया, लेकिन अब यह सन्नाटा पहले से कहीं ज़्यादा भारी था। उसकी साँसें तेज़ हो गईं, उसकी छाती ऊपर-नीचे हो रही थी।


उसने फोन को मेज पर जोर से पटका, उसकी उंगलियाँ अब भी काँप रही थीं। "यह क्या था?" उसने धीरे से कहा, उसकी आवाज़ ऑफिस की खामोशी में गूँजी। उसने अपने माथे को दोनों हथेलियों से सहलाया, जैसे उस अजीब कॉल के बोझ को कम करना चाहती हो।



"अवनी कौन है?" उसने फिर से बुदबुदाया, उसकी नज़रें मेज पर बिखरी फाइलों की ओर चली गईं। उसका दिमाग तेज़ी से उन फाइलों की यादों में दौड़ा क्या यह नाम कहीं देखा था? उसने एक-एक फाइल को अपनी यादों में खंगाला, लेकिन "अवनी" नाम उसे कहीं नहीं मिला। "यह कोई नया शिकार है?" उसने खुद से सवाल किया, उसकी आवाज़ में एक हल्की सी काँप थी। "या कोई चेतावनी?" उसकी उंगलियाँ अनायास ही अपने बालों में चली गईं, और वह तेज़ी से सोचने लगी। "और पुरानी हवेली? वह वीरान जगह?"




उसके दिमाग में हवेली का नाम सुनते ही एक पुरानी याद ताज़ा हो गई। पुरानी हवेली शहर के बाहर, सुनसान जंगल के बीच खड़ी वह वीरान इमारत, जिसके बारे में लोग तरह-तरह की डरावनी कहानियाँ सुनाते थे। "वहाँ भूत रहते हैं," कुछ लोग कहते थे, उनकी आवाज़ में डर साफ़ झलकता था। "वहाँ गए लोग कभी वापस नहीं लौटे," कुछ और दावा करते थे। एक बार उसने सुना था कि रात में वहाँ से चीखें सुनाई देती हैं—ऐसी चीखें जो इंसानी नहीं लगतीं। नेहा ने हमेशा इन कहानियों को बकवास माना था, लेकिन अब यह कॉल उसकी सोच को हिला रही थी। "क्या यह वही हत्यारा है?" उसने खुद से पूछा, उसकी आँखों में एक अजीब सा तनाव था। "क्या वह मुझे वहाँ बुला रहा है?"




उसने एक पल के लिए रुककर अपने चारों ओर देखा। ऑफिस की खामोशी अब उसे चुभ रही थी। उसने अपनी कुर्सी से उठकर खिड़की की ओर कदम बढ़ाए और बाहर झाँका। सड़क पर अंधेरा पसरा था, सिर्फ़ एक स्ट्रीटलाइट की मद्धम रोशनी बारिश की बूँदों में टिमटिमा रही थी। "यह कोई मजाक नहीं हो सकता," उसने धीरे से कहा, उसकी आवाज़ में दृढ़ता लौट रही थी। "अगर यह सच है, तो हमारे पास वक्त बहुत कम है।"



उसने बिना और सोचे अपने फोन को उठाया और अपनी टीम को कॉल किया। "सभी लोग तैयार हो जाओ," उसने तेज़ी से ऑर्डर दिया, उसकी आवाज़ में एक ऐसी ताकत थी जो किसी को सवाल उठाने की इजाज़त नहीं देती थी। "हमें अभी हवेली जाना है। अभी निकलो। कोई सवाल नहीं, कोई बहाना नहीं।" उसने फोन रखा और अपनी वर्दी की जेब से पिस्तौल निकालकर चेक की। उसकी उंगलियाँ हथियार पर कस गईं, और उसने एक गहरी साँस ली। "यह हत्यारा मुझसे खेल रहा है," उसने बुदबुदाया, उसकी आँखों में एक चमक थी। "लेकिन इस बार मैं तैयार हूँ।"




कुछ ही मिनटों में, ऑफिस में हलचल मच गई। उसकी टीम के सदस्य एक-एक करके पहुँचे कॉन्स्टेबल राजेश, श्याम, और मीना। नेहा ने उन्हें तेज़ी से ब्रीफ किया। "हमें एक कॉल आई है," उसने कहा, उसकी आवाज़ तेज़ और सख्त थी। "हत्यारा हमें पुरानी हवेली की ओर बुला रहा है। उसने एक नाम लिया—अवनी। हमें वहाँ पहुँचना होगा, और अभी।" उसकी नज़रें अपनी टीम पर टिकी थीं, और उसने उनके चेहरों पर डर की हल्की छाया देखी।




"मैडम, पुरानी हवेली?" राजेश ने हिचकिचाते हुए पूछा, उसकी आवाज़ में घबराहट थी। "वह जगह... लोग कहते हैं कि वहाँ..."

"मुझे पता है लोग क्या कहते हैं," नेहा ने उसे बीच में काटते हुए कहा। "लेकिन हमें कहानियों पर नहीं, हकीकत पर यकीन करना है। तैयार हो जाओ।" उसने अपनी टॉर्च उठाई और दरवाजे की ओर बढ़ी। उसकी टीम ने उसका पीछा किया, और कुछ ही पल में वे सभी पुलिस जीप में सवार थे।




"यह क्या होने वाला है?" श्याम ने पीछे की सीट से धीरे से पूछा, उसकी नज़रें बाहर के अंधेरे पर टिकी थीं।

"जो भी हो," नेहा ने स्टीयरिंग व्हील को कसते हुए कहा, "हम उसे रोकेंगे।" उसने जीप स्टार्ट की, और गाड़ी तेज़ी से हवेली की ओर बढ़ चली। बाहर का अंधेरा उन्हें निगलने की कोशिश कर रहा था, लेकिन नेहा की आँखों में एक जलती हुई जिद थी यह हत्यारा उससे नहीं जीत सकता।


दोस्तों में इस प्लेटफार्म पे नया राइटर हूं तो प्लीज मेरी कहानियों को आपका प्यार जरूर दिजीए।


धन्यवाद आपका प्रिय लेखक सौरव 🙏🏻 🩵