रेलवे स्टेशन पर सांझ का नरम उजाला बिखरा हुआ था। हल्की-हल्की बूँदाबाँदी ने माहौल को और गहरा कर दिया था, जैसे आसमान भी किसी की कहानी का हिस्सा बनना चाहता हो। प्लेटफॉर्म नंबर 3 पर भीड़ कम थी, और हर कोने में कुछ अनकही कहानियाँ छिपी हुई थीं। लेकिन सबसे गहरी कहानी उस बेंच पर लिखी जा रही थी, जहाँ आयान अकेला बैठा था, सामने की खाली पटरियों को निहारते हुए।
उसके हाथ में एक चमड़े की जिल्द वाली डायरी थी। पुरानी, किनारे घिसे हुए, जैसे उसकी आँखों के नीचे के हल्के काले गड्ढे। उसकी उंगलियाँ डायरी के कवर पर धीरे-धीरे फिर रही थीं, जैसे वह उन पन्नों में कुछ खोज रहा हो शायद कोई जवाब, शायद कोई सवाल।
आयान (मन ही मन):
“पाँच साल… और एक पल। कभी वक्त ढूँढने से भी नहीं मिलता… और कभी बिना चाहे मिल जाता है।”
प्लेटफॉर्म की उद्घोषणा ने उसकी तंद्रा तोड़ी:
“ट्रेन नंबर 12904, नई दिल्ली एक्सप्रेस, प्लेटफॉर्म नंबर 3 पर कुछ ही देर में पहुँचने वाली है…”
आयान ने नजरें उठाईं, लेकिन उसका ध्यान कहीं और था। तभी, एक छाया उसके सामने से गुजरी। एक औरत, नेवी-ब्लू कुर्ते में, एक सूटकेस खींचते हुए, जल्दी में थी, फिर भी उसकी चाल में एक हिचक थी। आयान की नजर उसके चेहरे पर पड़ी, और पल भर में वक्त ठहर गया।
आयान (फुसफुसाते हुए):
“मेहर…?”
यह नाम उसके होंठों से एक दुआ की तरह निकला, जिसे वह कहना नहीं चाहता था। औरत रुक गई। उसका सूटकेस हाथ से छूटकर प्लेटफॉर्म पर गिर पड़ा। उसने पलटकर देखा, उसकी आँखों में आश्चर्य, भय और कुछ अनकहा दर्द था।
मेहर:
“तुम?”
आयान:
“मैं…”
दोनों के बीच एक अजीब सी खामोशी छा गई। प्लेटफॉर्म की भीड़, उद्घोषणाएँ, बूँदाबाँदी सब कुछ पृष्ठभूमि में गुम हो गया। सिर्फ़ दो जोड़ी आँखें थीं, जो एक-दूसरे को देख रही थीं, जैसे पाँच साल की दूरी को एक पल में मिटाना चाहती हों।
मेहर (आवाज में कंपन):
“जिंदा हो?”
आयान के होंठों पर एक हल्की, दर्द भरी मुस्कान उभरी।
आयान:
“तुम्हारे बाद, ये भी एक सवाल लगता है…”
बारिश अब तेज हो रही थी। आयान ने अपने बैग से एक काला छाता निकाला और खोल लिया। मेहर बिना कुछ कहे उसके पास आकर बेंच पर बैठ गई। छाते ने बारिश से तो बचा लिया, लेकिन उन दोनों के बीच उमड़ते भावनाओं के तूफान से नहीं।
वे चुप थे। ऐसी खामोशी जो सिर्फ़ वही समझ सकते हैं, जिन्होंने कभी दिल तोड़ा हो… और जिनका दिल टूटा हो। मेहर की उंगलियाँ उसके बैग के पट्टे से खेल रही थीं, जबकि आयान की नजर उसकी डायरी पर टिकी थी। प्लेटफॉर्म एक मंच सा लग रहा था, और वे दोनों ऐसे अभिनेता थे, जिन्हें अपनी पंक्तियाँ भूल गई थीं।
मेहर (हल्का व्यंग्य लिए):
“अब भी लिखते हो?”
आयान (दर्द के साथ):
“बस लिखता हूँ… जीता कम हूँ।”
मेहर की आँखों में कुछ पल के लिए नरमी आई, लेकिन उसकी आवाज में कड़वाहट थी।
मेहर:
“मैं भी काम से ज्यादा जिंदगी में व्यस्त हो गई हूँ।”
उनके शब्द हवा में लटक गए, जैसे कोई अनकहा सच बाहर निकलने को बेताब हो। बारिश छाते पर टप-टप गिर रही थी, और उसकी लय उनके दिलों की धड़कनों से मिल रही थी। आयान ने मेहर को देखा, उस मेहर को ढूँढने की कोशिश की, जो कभी कॉलेज की लाइब्रेरी में उसकी शायरी पर हँसती थी, जो चुपके से उसकी डायरी पढ़ लेती थी, जो उसकी दुनिया को रंगों से भर देती थी।
आयान (मन ही मन):
“ये मेहर है, लेकिन फिर भी नहीं है। वो हँसी, वो बातें, वो सपने… कहाँ गए?”
तभी मेहर का फोन बजा। स्क्रीन पर एक नाम चमका विक्रांत। आयान की साँसें ठिठक गईं, उसका दिल एक पुराने दर्द से सिकुड़ गया।
आयान (धीरे से):
“शादी…?”
मेहर ने फोन की स्क्रीन को देखा, उसकी उंगलियाँ कस गईं।
मेहर:
“लगभग। रिश्ता है… प्यार नहीं।”
ये शब्द आयान के लिए एक अनचाहा झटका थे। उसने नजरें फेर लीं, जबड़ा कस गया, जैसे वह अपने भीतर के तूफान को छिपाना चाहता हो।
आयान (आवाज टूटते हुए):
“तो फिर क्यों…?”
मेहर की आँखें चमक उठीं, लेकिन बारिश की वजह से नहीं कुछ और था, कुछ गहरा।
मेहर (आवाज में दरार):
“क्योंकि जिसके साथ प्यार था… उसने कभी कुछ कहना जरूरी नहीं समझा।”
ये शब्द एक खंजर की तरह थे, तेज और बेरहम। आयान की साँस अटक गई, उसका दिमाग उन दिनों में वापस चला गया जब सब कुछ अलग था जब प्यार एक वादा था, न कि एक जख्म।
फ्लैशबैक: प्रेम की शुरुआत
पाँच साल पहले। कॉलेज की लाइब्रेरी, जहाँ सूरज की नरम रोशनी किताबों की अलमारियों पर पड़ रही थी। हवा में पुरानी किताबों की महक थी, और पास की कॉफी मशीन से हल्की सी खुशबू आ रही थी। आयान एक कोने की मेज पर बैठा था, अपनी डायरी में कुछ लिख रहा था, उसका चेहरा गहरी तल्लीनता में डूबा हुआ।
मेहर (चुपके से पीछे आकर):
“ये क्या लिख रहे हो, शायर साहब?”
आयान चौंक गया, उसने जल्दी से डायरी बंद कर दी। मेहर हँसी, उसकी आँखें शरारत से चमक रही थीं। वह आयान से बिल्कुल उलट थी बिंदास, बेफिक्र, और इतनी जीवंत कि पूरी दुनिया रंगीन लगने लगती थी।
आयान (घबराते हुए):
“कुछ नहीं… बस ऐसे ही।”
मेहर उसके सामने वाली कुर्सी पर बैठ गई, बिना रुके। उसने डायरी की ओर हाथ बढ़ाया, उसकी उंगलियाँ आयान के हाथ को छू गईं। उस स्पर्श में एक करंट सा दौड़ा, जिसे मेहर ने शायद नजरअंदाज कर दिया, लेकिन आयान के लिए वह बिजली की तरह था।
मेहर (छेड़ते हुए):
“छुपा क्यों रहे हो? कोई शायरी है या लव लेटर?”
आयान (मुस्कुराते हुए):
“शायरी तो दिल से दिल तक जाती है। लव लेटर के लिए तो दिल चाहिए।”
मेहर ने हँसते हुए डायरी छीन ली, इससे पहले कि आयान कुछ कह पाता। उसने पन्ना खोला और पढ़ने लगी, उसकी मुस्कान धीरे-धीरे नरम हो गई।
मेहर (पढ़ते हुए):
“उसने पूछा, क्या लिख रहे हो… मैंने कहा, तुझ में जो नहीं कह पाए…”
उसने नजरें उठाईं, उसका चेहरा आश्चर्य और मजे का मिश्रण था।
मेहर:
“ये तो अच्छी है! लेकिन ये लाइन चोरी की है, है ना?”
आयान (नजदीक झुकते हुए):
“चोरी तो सिर्फ़ तुम्हारी मुस्कुराहट ने की है… मेरा चैन।”
मेहर की हँसी गूँज उठी, और वह आवाज आयान के दिल में कहीं गहरे तक बसी रही। यहीं से उनकी कहानी शुरू हुई थी चोरी-छिपे नजरें मिलाने, देर रात तक बातें करने, और तारों भरे आकाश के नीचे किए गए वादों की कहानी।
वर्तमान में वापस
बारिश अब धीमी हो चुकी थी, लेकिन आयान और मेहर के बीच का माहौल अभी भी भारी था। मेहर का कबूलनामा उनके बीच लटक रहा था, जैसे कोई पुराना जख्म जो अब तक नहीं भरा था।
आयान (आवाज धीमी):
“तुमने मुझे गलत समझा, मेहर। रिया… वो मेरी बहन जैसी थी। उस दिन उसका ब्रेकअप हुआ था। मैं बस उसका सहारा बन रहा था… तुम्हारा नहीं।”
मेहर की आँखें फैल गईं, उसकी साँसें जैसे रुक गईं।
मेहर (फुसफुसाते हुए):
“रिया… बहन जैसी?”
आयान ने सिर हिलाया, उसकी नजर स्थिर थी, लेकिन उसमें दर्द साफ झलक रहा था।
आयान:
“तुमने उसे मेरे साथ देखा, हॉस्टल के पास। शायद कुछ मैसेज भी देखे। लेकिन तुमने कभी पूछा नहीं। तुमने फैसला कर लिया… और चली गई।”
मेहर की उंगलियाँ काँप रही थीं, जैसे वह अपने बैग को और कसकर पकड़ना चाहती हो। उसकी गलती का बोझ उसे कुचल रहा था। उसे वो रात साफ याद थी जब उसने आयान को रिया के साथ देखा था, उसका हाथ रिया के कंधे पर, उनकी हँसी अंधेरे में गूँज रही थी। वह वापस अपने कमरे में भागी थी, आँसुओं में डूबी, यह मानते हुए कि आयान ने उसे धोखा दिया।
मेहर (आवाज टूटते हुए):
“मैं गलत थी, आयान। लेकिन तुमने मुझे कभी रोका नहीं… एक बार भी नहीं कहा कि रुक जाओ।”
आयान की आँखें चमक उठीं, लेकिन उसने मेहर की नजरों से नजरें नहीं हटाईं।
आयान:
“मैंने रोका था, मेहर। हर दिन। हर रात। हर उस लाइन में जो मैंने लिखी, वो सिर्फ़ तुम थी।”
उसने अपनी डायरी खोली और एक मुड़ा हुआ कागज निकाला, जिसके किनारे समय के साथ पीले पड़ चुके थे।
आयान:
“ये मैंने उस दिन लिखी थी, जब तुम गई थी। लेकिन मुझे लगा जो चली गई, उसे रोका नहीं जाता।”
मेहर ने काँपते हाथों से चिट्ठी ली, उसका दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। उसने अभी इसे खोला नहीं। उस कागज का वजन ऐसा था, जैसे उनके पूरे अतीत को एक पन्ने में समेट लिया गया हो।
प्लेटफॉर्म अब और शांत हो चुका था। नई दिल्ली एक्सप्रेस धीरे-धीरे प्लेटफॉर्म पर रुकी, उसकी गड़गड़ाहट ने हवा को भर दिया। यात्री इधर-उधर भाग रहे थे, लेकिन आयान और मेहर अपनी ही दुनिया में थे, छाते के नीचे, अपने अतीत के बोझ तले।
मेहर का फोन फिर बजा। विक्रांत का नाम फिर स्क्रीन पर चमका। उसने फोन साइलेंट कर दिया, लेकिन आयान ने देख लिया। उसका जबड़ा कस गया, लेकिन उसने कुछ नहीं कहा।
मेहर (उसके बेचैन चेहरे को देखकर):
“विक्रांत… मेरे परिवार का फैसला है। मैं थक गई हूँ, आयान। हर चीज के लिए लड़ते-लड़ते।”
आयान (धीरे से):
“और हमारे लिए? कभी लड़ा भी नहीं तुमने।”
ये शब्द मेहर को चुभ गए, और उसकी आँखों में गुस्सा और अपराधबोध का मिश्रण उभरा।
मेहर:
“लड़ा? मैं अकेली लड़ती रही, आयान! तुम तो अपनी डायरी के पन्नों में खो गए थे। कभी मुझे बताया भी नहीं कि तुम क्या सोचते हो!”
आयान आगे झुका, उसकी आवाज स्थिर लेकिन तीव्र थी।
आयान:
“तुमने मेरी डायरी पढ़ी थी, मेहर। हर शायरी, हर लफ्ज, तुम्हारे लिए था। तुमने कभी पूछा नहीं कि मैं क्यों लिखता हूँ। तुमने मेरी खामोशी को धोखा समझा।”
मेहर के आँसू छलक पड़े, उसकी आवाज टूटने लगी, जैसे आखिरकार उसके भीतर का बांध टूट गया हो।
मेहर:
“और मैं क्या करती, आयान? मैं तुमसे प्यार करती थी! हर दिन, हर पल, मैं तुम्हें देखती थी, तुम्हारे लफ्जों में खुद को ढूँढती थी। लेकिन जब मैंने तुम्हें किसी और के साथ देखा… मेरा दिल टूट गया। मैंने सोचा, मैं तुम्हारे लिए कुछ भी नहीं थी।”
आयान का दिल उसके शब्दों से दुख गया। वह उसे गले लगाना चाहता था, उस दर्द को मिटाना चाहता था जो सालों से उनके बीच था। लेकिन उनके बीच की दूरी अब भी बहुत गहरी थी।
आयान:
“तुम मेरे लिए सब कुछ थी, मेहर। हमेशा।”
उसने फिर से चिट्ठी की ओर इशारा किया, उसकी आवाज फुसफुसाहट से ज्यादा कुछ नहीं थी।
आयान:
“पढ़ लो। शायद अब भी कुछ समझ आए।”
मेहर ने चिट्ठी खोली, उसके हाथ काँप रहे थे। स्याही फीकी पड़ चुकी थी, लेकिन शब्द उतने ही कच्चे थे, जितने उस दिन थे जब वे लिखे गए थे:
“तुम गुस्सा थी, मैं खामोश। तुम चली गई, मैं रुक गया। तुम सोचती रही कि मैंने धोखा दिया… और मैं सोचता रहा तुम मुझसे इतना कम कैसे समझ गई? मेहर, मैंने तुमसे प्यार किया, शायद जिंदगी से भी ज्यादा। लेकिन प्यार के लिए कभी लफ्जों की जरूरत नहीं पड़ी… शायद यही मेरी गलती थी।”
मेहर के आँसू कागज पर गिरे, स्याही को धुंधला करते हुए। उसने आयान की ओर देखा, उसकी आवाज भावनाओं से भरी थी।
मेहर:
“तुमने ये क्यों नहीं भेजा, आयान? क्यों नहीं रोका मुझे?”
आयान:
“क्योंकि मुझे लगा, अगर तुम वापस नहीं आई, तो शायद ये प्यार मेरी वजह से नहीं, मेरी कमी से था।”
ट्रेन का सायरन हवा में गूँजा, यह संकेत दे रहा था कि वह अब चलने वाली थी। मेहर खड़ी हुई, चिट्ठी को कसकर पकड़े हुए, उसकी आँखें आयान की आँखों से जुड़ी थीं। एक पल के लिए ऐसा लगा जैसे वह कुछ कहने वाली थी कुछ ऐसा जो सब कुछ बदल दे। लेकिन फिर वह मुड़ी, अपना सूटकेस उठाया, और ट्रेन की ओर चल पड़ी।
आयान (मन ही मन):
“ये पल भी चला जाएगा, जैसे वो चली गई थी। लेकिन इस बार, मैं खुद को नहीं रोकूँगा।”
फ्लैशबैक: वह रात जब सब खत्म हुआ
पाँच साल पहले। मेहर के हॉस्टल के बाहर एक बारिश भरी रात। आयान एक स्ट्रीटलैंप के नीचे खड़ा था, उसका जैकेट भीगा हुआ था, चेहरा चिंता से भरा था। रिया उसके पास थी, उसकी आँखें रोने से लाल थीं।
रिया:
“उसने मुझे छोड़ दिया, आयान। मैं अब क्या करूँ?”
आयान ने उसके कंधे पर हाथ रखा, उसकी आवाज नरम थी।
आयान:
“तुम गलत नहीं हो, रिया। वो तुम्हें नहीं समझा। कोई और समझेगा।”
उन्हें नहीं पता था कि मेहर छाया में खड़ी थी, उन्हें देख रही थी। उसका दिल टूट गया जब उसने आयान को किसी और लड़की के साथ देखा, उसका हाथ उसके कंधे पर, उनकी बातें अंतरंग। उसने कोई स्पष्टीकरण नहीं माँगा। वह मुड़ी और भाग गई, उसके आँसू बारिश में खो गए।
अगले दिन, मेहर चली गई थी। कोई चिट्ठी नहीं, कोई अलविदा नहीं। बस एक खाली जगह, जहाँ उनका प्यार था।
आखिरी चिट्ठी और अंतिम फैसला
मेहर ट्रेन में बैठी थी, चिट्ठी अभी भी उसके हाथों में थी। डिब्बा लगभग खाली था, इंजन की गूँज समय के बीतने की याद दिला रही थी। वह खिड़की से बाहर देख रही थी, दुनिया हरे और ग्रे रंगों में धुंधली हो रही थी।
मेहर (मन ही मन):
प्यार सब कुछ कह जाता है, लेकिन जब कहना जरूरी होता है… तब हम खामोश हो जाते हैं।”
उसने चिट्ठी फिर से खोली, उन शब्दों को पढ़ा जो पाँच साल से आयान को सता रहे थे। हर वाक्य उसका एक टुकड़ा था, एक टुकड़ा जिसे मेहर ने गलत समझा था, एक टुकड़ा जिसे उसने पीछे छोड़ दिया था।
मेहर (खुद से फुसफुसाते हुए):
“अगर मैं उस दिन थोड़ी देर और रुक जाती… तो शायद जिंदगी कुछ और होती।”
प्लेटफॉर्म नंबर 3 पर अब सन्नाटा छा गया था। नई दिल्ली एक्सप्रेस की आखिरी बोगी धीरे-धीरे दूर जा रही थी, उसकी गड़गड़ाहट अब हल्की पड़ चुकी थी। बारिश रुक चुकी थी, और आसमान में बादल छट रहे थे, जिससे एक सुनहरा उजाला प्लेटफॉर्म पर बिखर रहा था। मेहर खड़ी थी, उसका दिल जोर-जोर से धड़क रहा था, जैसे वह किसी अनजाने डर और आशा के बीच झूल रही हो। उसके हाथ में आयान की डायरी थी, और उसका चेहरा आँसुओं से भीगा हुआ था, लेकिन उन आँसुओं में अब दर्द के साथ-साथ एक नई उम्मीद भी थी।
मेहर (चिल्लाते हुए):
“रोकिए! प्लीज, मुझे उतरना है!”
ट्रेन धीमी हुई थी, और मेहर ने जल्दी से अपना सूटकेस पकड़ा, दरवाजे से कूदकर प्लेटफॉर्म पर उतर गई। उसकी साँसें रुकी हुई थीं, जैसे वह एक अनमोल मौके को खोने के डर से भाग रही हो। उसने भीड़ में नजरें दौड़ाईं, आयान को ढूँढते हुए। लेकिन वह कहीं नहीं दिख रहा था। प्लेटफॉर्म पर कुछ लोग बिखरे हुए थे—कोई अपने सामान के साथ भाग रहा था, कोई चाय की चुस्कियाँ ले रहा था, लेकिन आयान का कोई निशान नहीं था।
उसका दिल डूब गया। एक पल के लिए उसे लगा कि शायद यह मौका भी उसकी उंगलियों से फिसल गया। उसने अपने चारों ओर देखा, उसकी आँखें बेचैन थीं, जैसे वह किसी चमत्कार की उम्मीद कर रही हो। तभी उसकी नजर उस बेंच पर पड़ी, जहाँ वे कुछ देर पहले साथ बैठे थे। वहाँ, बेंच के एक कोने पर, उसकी डायरी रखी थी वही चमड़े की जिल्द वाली डायरी, जो आयान का सबसे करीबी साथी थी।
मेहर दौड़कर बेंच तक पहुँची, उसके हाथ काँप रहे थे जब उसने डायरी उठाई। उसने इसे खोला, और अंदर एक नोट था, आयान की लिखावट में, जो उसके लिए उतना ही परिचित था जितना उसका अपना दिल:
“मैं जा रहा हूँ, लेकिन अगर तुम कभी सच का बोझ उठाना चाहो… तो वापस लौटना। मैं हर दिन वही लिख रहा हूँ तुम्हारे लिए।”
मेहर के आँसू पन्ने पर गिरे, लेकिन इस बार वे दुख के नहीं, संकल्प के आँसू थे। उसने डायरी का एक खाली पन्ना खोला और अपनी काँपती उंगलियों से लिखा:
“मैं वापस आ रही हूँ, आयान।”
उसने डायरी को अपने सीने से लगाया, और एक हल्की सी मुस्कान उसके चेहरे पर उभरी। प्लेटफॉर्म अब लगभग खाली था, बारिश की आखिरी बूँदें जमीन पर सूख रही थीं, और आकाश में पहला तारा चमक रहा था, जैसे वह उनकी कहानी का गवाह बनना चाहता हो।
मेहर (मन ही मन):
“तुम कहीं भी जाओ, आयान। इस बार मैं तुम्हें ढूँढ लूँगी।”
उसने एक गहरी साँस ली और अपने चारों ओर देखा। तभी, उसकी नजर प्लेटफॉर्म के दूर छोर पर पड़ी, जहाँ एक परिचित साया धीरे-धीरे चल रहा था। वह आयान था। उसका काला कोट हल्के से हवा में लहरा रहा था, और उसका सिर झुका हुआ था, जैसे वह अपने ही विचारों में खोया हो। मेहर का दिल जोर से धड़का। उसने बिना सोचे अपने सूटकेस को बेंच पर छोड़ा और आयान की ओर दौड़ पड़ी।
मेहर (मन ही मन):
“नहीं, इस बार मैं तुम्हें जाने नहीं दूँगी।”
उसके कदम तेज थे, उसकी साँसें फूल रही थीं, लेकिन वह रुकी नहीं। प्लेटफॉर्म की ठंडी टाइलें उसके जूतों के नीचे चीख रही थीं, और उसकी आँखें आयान पर टिकी थीं, जैसे वह उसकी आखिरी उम्मीद हो। वह पास पहुँच रही थी, उसका दिल अब और जोर से धड़क रहा था। वह चिल्लाना चाहती थी, उसका नाम पुकारना चाहती थी, लेकिन उसकी आवाज गले में अटक गई थी।
तभी, एक अनचाहा हादसा हुआ। मेहर का पैर एक गीली टाइल पर फिसला, और उसका संतुलन बिगड़ गया। वह गिरने वाली थी, उसका शरीर आगे की ओर झुक गया, और एक पल के लिए उसे लगा कि वह जमीन पर गिर जाएगी। उसने अपनी आँखें बंद कर लीं, जैसे वह उस दर्द को स्वीकार करने को तैयार थी। लेकिन तभी, एक मजबूत हाथ ने उसकी कमर थाम ली, और उसे हवा में ही रोक लिया।
मेहर ने धीरे से अपनी आँखें खोलीं। आयान उसके सामने था, उसकी आँखों में वही गहराई थी, वही दर्द, और अब एक नई चमक। उसने मेहर को पकड़ा हुआ था, उसका चेहरा मेहर के इतना करीब था कि वह उसकी साँसों की गर्मी महसूस कर सकती थी। दोनों की नजरें एक-दूसरे से टकराईं, और उस पल में समय फिर से ठहर गया।
मेहर (आँसुओं से भरी आवाज में):
“आयान…”
आयान (आवाज में कंपन):
“मेहर… तुम…?”
मेहर की आँखों से आँसू छलक पड़े, लेकिन इस बार वे खुशी के थे। उसने आयान के कोट को कसकर पकड़ लिया, जैसे वह उसे फिर से खोने के डर से जकड़ रही हो।
मेहर (भावुक होकर):
“मैंने तुम्हें खो दिया था, आयान। पाँच साल… मैंने हर दिन तुम्हें याद किया। हर पल तुम्हारी डायरी के उन शब्दों में खोई रही। मैं गलत थी, आयान। मुझे माफ कर दो।”
आयान की आँखें भी नम हो गईं। उसने मेहर को और करीब खींच लिया, उसका हाथ अब भी उसकी कमर पर था, जैसे वह उसे कभी छोड़ना नहीं चाहता।
आयान:
“मेहर, तुम गलत नहीं थी। हम दोनों गलत थे। मैंने तुम्हें रोका नहीं, तुमने मुझसे पूछा नहीं। लेकिन अब… अब सब ठीक हो जाएगा।”
मेहर ने सिर हिलाया, उसकी आँखें आयान की आँखों में डूबी हुई थीं। उसने एक गहरी साँस ली, जैसे वह अपने दिल का सारा बोझ उतार देना चाहती हो।
मेहर (आवाज टूटते हुए):
“आयान, मैं तुमसे प्यार करती हूँ। हमेशा करती थी। और अब… मैं उस गलती को भूलकर सब कुछ नया शुरू करना चाहती हूँ। क्या तुम… क्या तुम मेरे साथ फिर से शुरू करोगे?”
आयान के चेहरे पर एक ऐसी मुस्कान उभरी, जो पाँच साल के दर्द को पिघला देती थी। उसकी आँखों में खुशी के आँसू चमक रहे थे। उसने मेहर का चेहरा अपने हाथों में लिया, उसकी आँखों में गहराई से देखा, और धीरे से कहा:
आयान:
“मेहर, मैंने तुम्हें कभी छोड़ा ही नहीं। मेरी हर शायरी, हर लफ्ज, हर साँस सब तुम्हारे लिए थे। और अब, मैं तुम्हें कभी नहीं खोने दूँगा।”
यह सुनते ही मेहर की सारी हिचक टूट गई। उसने अपने आप को आयान की बाहों में झोंक दिया, और दोनों ने एक-दूसरे को इतनी गहराई से गले लगाया, जैसे वे अपने पाँच साल के दर्द, तड़प, और अधूरे सपनों को एक-दूसरे में समेट लेना चाहते हों। मेहर का चेहरा आयान के कंधे में दब गया, और उसके आँसू आयान के कोट को भिगो रहे थे। आयान ने उसे और कसकर गले लगाया, जैसे वह इस पल को हमेशा के लिए रोक लेना चाहता हो।
मेहर (फुसफुसाते हुए):
“मैंने सोचा था, मैं तुम्हें फिर कभी नहीं देखूँगी। लेकिन अब… अब मैं तुम्हें कभी नहीं छोड़ूँगी।”
आयान (हल्के से हँसते हुए):
“और मैं तुम्हें जाने नहीं दूँगा, मेहर। इस बार नहीं।”
उनके गले मिलने में एक ऐसी गहराई थी, जैसे उनका हर दर्द, हर गलतफहमी, हर अनकहा शब्द उस एक पल में पिघल गया हो। प्लेटफॉर्म की हल्की हवा उनके चारों ओर नाच रही थी, और दूर कहीं एक चायवाला अपनी आवाज में गर्म चाय का राग अलाप रहा था। लेकिन आयान और मेहर के लिए, उस पल में सिर्फ़ वे दोनों थे—और उनका प्यार, जो पाँच साल बाद आखिरकार पूरा हो रहा था।
आयान (मेहर के माथे को चूमते हुए):
“तुमने मेरी डायरी पढ़ी, ना? उसमें हर शब्द तुम्हारे लिए था। लेकिन अब… अब मैं तुम्हें सिर्फ़ शब्दों में नहीं, जिंदगी में बताऊँगा कि मैं तुमसे कितना प्यार करता हूँ।”
मेहर ने हल्के से हँस दिया, उसकी आँखें अभी भी नम थीं, लेकिन अब उनमें एक नई चमक थी।
मेहर:
“और मैं तुम्हें हर दिन, हर पल, ये दिखाऊँगी कि मैंने तुम्हें कभी भुलाया नहीं।”
वे दोनों बेंच की ओर वापस चले, जहाँ मेहर का सूटकेस अभी भी पड़ा था। आयान ने उसका सूटकेस उठाया, और मेहर ने उसका हाथ पकड़ लिया। उनकी उंगलियाँ एक-दूसरे में उलझ गईं, जैसे वे कभी अलग न हों।
आयान:
“अब क्या, मेहर? कहाँ जाएँगे हम?”
मेहर (मुस्कुराते हुए):
“कहीं भी, आयान। बस… साथ में।”
आयान ने हल्के से हँस दिया, और दोनों प्लेटफॉर्म के अंत की ओर चल पड़े, जहाँ स्टेशन की रोशनी धीरे-धीरे मद्धम हो रही थी। आसमान में तारे चमक रहे थे, और हवा में एक नई शुरुआत की खुशबू थी। मेहर ने आयान की डायरी को अपने बैग में रखा, लेकिन इस बार वह सिर्फ़ एक डायरी नहीं थी—वह उनकी कहानी थी, जो अब पूरी होने जा रही थी।
मेहर (मन ही मन):
“पाँच साल… कितना लंबा इंतजार था। लेकिन अब, हर पल तुम्हारे साथ है, आयान। और ये पल… ये हमेशा के लिए हैं।”
वे स्टेशन के बाहर निकले, जहाँ दिल्ली की सड़कें अपनी रोजमर्रा की चहल-पहल में डूबी थीं। लेकिन आयान और मेहर के लिए, वह पल सिर्फ़ उनका था। उन्होंने एक-दूसरे की ओर देखा, और बिना कुछ कहे, एक बार फिर गले मिले। इस बार, वह गले मिलना सिर्फ़ प्यार का इजहार नहीं था वह एक वादा था, एक नई शुरुआत, और एक ऐसी कहानी का अंत जो अब हमेशा के लिए एक साथ चलेगी।
प्यार का अधूरा सफर, जो पाँच साल बाद पूरा हुआ
प्यार वो स्याही है, जो दिल की डायरी के पन्नों पर बिना इजाजत बिखर जाती है।
कभी शब्द बनकर, कभी खामोशी बनकर, कभी आँसुओं की नदी बनकर।
पाँच साल पहले, जब तुम चले गए थे,
मेरे लफ्ज़ अधूरे रह गए, जैसे आधा लिखा खत, जो कभी पोस्ट न हुआ।
हर रात मैंने तुम्हें तारों में ढूँढा,
हर सुबह मैंने तुम्हारी मुस्कान को याद किया।
वक्त ने हमें अलग किया, लेकिन प्यार ने हमें बांधे रखा।
तुम्हारी खामोशी ने मुझे सवाल दिए,
मेरी खामोशी ने तुम्हें गलतफहमियाँ।
हम दोनों ने अपने-अपने दर्द को सीने में छिपाया,
लेकिन दिल ने कभी हार नहीं मानी।
पाँच साल… एक अनंत इंतजार,
जैसे बारिश के बाद धूप का वादा,
जैसे रात के बाद सुबह की आस।
फिर एक दिन, वो पल आया,
जब तुम्हारी आँखों ने मेरी आँखों से बात की।
वो आँसू, जो पाँच साल तक छिपे थे,
वो लफ्ज़, जो डायरी के पन्नों में कैद थे,
सब एक पल में आजाद हो गए।
तुमने मेरे हाथ थामे, और मैंने तुम्हारा दिल।
उस गले लगने में, पाँच साल का दर्द पिघल गया,
जैसे बर्फ का पहाड़ सूरज की गर्मी में गल जाता है।
प्यार कभी खत्म नहीं होता,
वह सिर्फ़ इंतजार करता है।
कभी एक स्टेशन पर, कभी एक पुराने कैफे में,
कभी एक अनकही चिट्ठी में।
और जब वह पूरा होता है,
तो हर दर्द, हर आँसू, हर इंतजार वसूल हो जाता है।
क्योंकि प्यार वो गीत है, जो अधूरा भी सुना जाता है,
लेकिन जब पूरा होता है,
तो हर धड़कन उसकी धुन बन जाती है।
तो ऐ मेरे अधूरे प्यार,
जो पाँच साल बाद पूरा हुआ,
तुम मेरे हो, और मैं तुम्हारा।
अब न कोई सवाल, न कोई जवाब,
बस हम, और हमारा प्यार।
फिर मिलेंगे, कहीं, कभी,
लेकिन इस बार, हमेशा के लिए।