क्या सोचते हो आप, लोग अच्छे होते है या बुरे? आप बोलेंगे के उनका अच्छा होना या बुरा होना matter तब करता है जब , हम किस नज़रिये से उन्हें देख रहे है समझ रहे है उसपे है । जैसे कि समुंदर कितना गहरा है वो हम कहा उतरे है उसके ऊपर निर्भर करता है। वैसे ही अगर कोई अपने घर के लोगो को लिए चोरी करता है तो वह गलत या सही? आप उसे कुछ भी समजो लेकिन जो लुटा गया है उनके लिए वो गलत ही हैं। उसी तरह कोई आदमी हमेशा सच बोलता है वोह अच्छा है, जब तक उसके सच की वजह से किसी अपने का बुरा न हो।
तो फिर माना जाए कि कोई अच्छा या बुरा है ही नही, सब कुछ matter करता है की हम उसे कितनी प्रियॉरिटी देते है। किसी अजनबी का विश्वास करके किसी अपने को जूठा करार दिया जाए या जो अपना है वो हर वक्त सही मान लिया जाए। हर कोई अपने तरीके से सही होता है, न कोई हीरो होता है ना कोई विलन होता हौ, बस हमे एक फेसला लेना होता है और कभी कभी वोह फेसलो का हिसाब देना पड़ता है।
बात नज़रिये पर आके ठहरती है, जैसे कि किसीको ग्लास पानी से भरा दिखेगा, किसीको आधा खाली दिखेगा, किसीको वोह कहा रखा है वो दिखेगा, किसीको उसमे से निकल रही रोशनी दिखेगी, किसीको ग्लास काच का दिखेगा, अगर में प्यासा हु तो में अंदर पानी देखूंगा मुझे फरक नही पड़ता कि वो आधा खाली है या आधा भरा हुआ है। तो आधा ग्लास कभी प्रॉब्लम नही होता, प्रॉब्लम है उस प्रॉब्लम के बारेमे एक ही perfect जवाब के बारे मे सोचना। जो कभी भी जायज़ नही है। Everything is not and never perfect. Similarly, There are no single answer to any problem. बहूत से जवाब होते है लेकिन हम उस जवाब को ही सच मानते है जो हम सुनना चाहते है चाहे मिला हुआ सच ही क्यों न हो।
जिसको हम ईश्वर कहते है, परमात्मा कहते है उसने शायद से जान बूझ कर ये दुनिया परफैक्ट नही बनाई है। थोडे रोग, थोड़ी परेशानी, थोड़े दुख, थोड़ा न होना, थोड़ी सी मुश्केलियाँ , थोड़े से challenges, थोड़ा न सोचा हुआ होना। ये सब इसलिए परफेक्ट नही बनाया क्योंकि ईश्वर आपको संदेश देना चाहते है की जो चीज़ आपको नही मिल रही , जिसको पाने की कोशिश आप बरसो से कर रहे हो, जो आपको परफेक्ट ना लग रही हो ,उसको चाहना कैसे है, उसे प्यार करना सीखो। उसके में जो अधूरापन अपने प्यार से पूरा करो।
हर चीज़ या इंसान में अगर तुम अपनी पसंद की चीज़ परफेक्ट ढूंढो गे तो वो तो मिलने से रही। आप कोई एक चीज़ पकड़ के उसे ही सारी महानता नही दे सकते। तभी तो आईने जैसा character रखो, एक आईना ही जो अपने बहारी चित्र को दिखाता है जिसमे स्वागत सबका होता है, और संग्रह किसीका नही है। That's the character. सबका स्वागत करता है, everyones,, आईना किसको पकड़ के नही रखता, फ़ोटो पकड़ के रखता है, अगर किसी picture में आप हो तो आप वहाँ हो, शायद तुम नही रहो फिर भी आप उस पिक्चर में तो रहोगें ही। लेकिन आप नही हो तो आप आईने में नही दिखोगे। स्वागत करो सबका, हो सके उतने लोगो को अपने मे समा लो, लेकिन जो समय में टूट के अलग रहना है उस समय में भी आईना तो आईना ही रहेगा। उसकी चमक तो वैसे की वैसी ही रहेगी।
जो आईने के सामने आ रहा हो उसको अपने आपको देख कर judge करना है, वरना आईने को तो अपने स्वभाव में ही पूरी ज़िंदगी निकाल नी है। ऐसे ही बनानी है अपनी लाइफ, उसमे बन रहे relation , उसमे आ रहे प्रॉब्लम, इसकी अहमियत तब समझ मे आती है जब ये सब हाथ से निकल चुका होता है, जैसे school टाइम निकल जाने के बाद आज उसकी अहमियत हमे पता चलती है। जैसे कि मछली को पानी ही अपनी ज़िंदगी लगती जब तक कि वो वहाँ से बाहर न निकले, हमे भी बुढ्ढे होने के बाद जवानी याद आएगी। so बीती ज़िन्दगी का अफसोस न करके आज में सबको समा कर, आज की importnace को समझते हुए जीते रहिये।
तो यह हिसाब देने का वक़्त आ गया है, हर चीज़ में परफेक्ट solution ढूंढना , खुद को परफेक्ट बनाने में कितना दूर होना सबका हिसाब देने का वक्त। वोह ग़ालिब का शेर है कि,
"ज़िन्दगी भर आईना साफ करते रह गए,
धूल तो चेहरे पर थी।"
So Dear तुम,
तुम कोशिश करना आईना बनने की, हर उस रिश्ते का स्वागत करना जो तुम से जुड़ना चाहता है। और सामने से कोशिश ना हो तो तुम मत रुकना, कोशिश करना उसे समझने की, कोशिश करना कि तुम कहा से अपने रिश्ते को देख रहे हो फिर तय करना कि क्या सही है या गलत और वोह तय किया हुआ जवाब सही है या नही यह तुम समय पर छोड़ देना क्योंकि There are no single answer to any problem.
चलो में एक कहानी से बताता हूं, मेरे घर मे न एक दरवाजा है, और बारिश के मैसम में वो पानी की वजह से उसकी लकड़ी फूल जाने से वो खुल नही पाता। घर मे सबको पता है कि उस दरवाजे को धक्का मारने से कुछ नही होगा, उसे अंदर तरफ खीचने वो खुल जायेगा।
मुझे लगता है हम लोग भी इन्ही दरवाजे की तरह होते है, सब अपने आप मे अलग, हर एक ने अपने हालातो की वजह से खुद में कुछ कमियां साथ ली है। जिनकी वजह से हम किसीको अपना सारा प्यार नही दे पाते और ऐसे किसी दरवाजे को धक्का मार ते मारते शायद हम उसे तोड़ देते है। पर अगर उसे और उसके हालातो को समजोगे तो वो खुद ही बता देगा कि वोह क्यों नही खुल पा रहा। क्योंकि वो भी तो खुलना चाहता है ना...
तो अगली बार किसी दरवाजे को खोलने के लिए उसे जखजोरना मत,बस कुछ पल उसे सुन लेना, समझ लेना और वो खुशी खुशी खुल जायेगा। और शायद ये बुरा मोसम गुज़रने के बाद बेहतर भी ही जायेगा।
उसके अच्छा या बुरा होने से पहले Dear तुम, उसे समझना, उसको वहाँ से देखना जहा से वो अपने आपको दिखाना चाहता है। अपने नज़रिये से ज्यादा उसकी कहानी को उसके नज़रिये से पढ़ना। अपनी राय थोपने से पेहले खुद समझने के काबिल बनना। और तब उस समय क्या प्रायोरिटी उस पर अपना मन रखना, क्योकि हम सबको एक फैसला लेना है और फेसलो का हिसाब देना पड़ता है।
किसी इंसान को अगर नही जानते और मिलने का मन करे तो मिल लिया करो। कभी ऐसा होता कि, किसीने तुम्हारा कोई नुकसान नही किया फिर भी वोह अच्छा नही लगता, और किसीने तुम्हारा कोई भला नही किया फिर भी वोह आपको अच्छा लगता हो, क्यों? ज़िन्दगी में एक आदमी अच्छा लगा, उससे मिलना, उसके साथ बातें करना और क्या चाहिए? कभी कभी न हम अपनी आंखों के आधार पर दुसरो को compeletly judge करते है। कोई अगर आपको पूछ नही रहा, आपके साथ बोल नही रहा, तो ज़रूरी नही है कि वोह rude है, हो सकता है वो अपनी लाइफ में कोई जंग लड़ रहा हो। कोई आपको खुश दिख रहा हो ज़रूरी नही वोह अंदर से खुश ही हो। वो किसीने खूब कहा है ना कि,
"तुम क्यों इतना मुस्कुरा रहे हो कोई गम है जो छुपा रहे हो'
हम सब ना अपने आंखों के आधार पर दुसरो को judge कर लेते है , लेकिन कई बार सच देखने से ज़्यादा किसीको समझने से समझ आता है। So Dear तुम ना उसके परफेक्ट होने न होने से पहले उसको समझने की कोशिश करना, try करना कि उसके करैक्टर वो कोना पकड़ सको जो किसीने इसलिए नही खोला क्योंकि वो उनके मुताबिक महानतम नही था। तुम वहाँ उसका साथ निभाना।
क्योकि ना, जो कोई भी तुम्हारी लाइफ में आ रहा है वोह एक Expiry Date के साथ आता है। अगर आपकी इश्क़ की किताब है तो वो लोग उस किताब का chapters है, तो जब हम वोह chapter को पढ़ लेते हो तो हम आगे बढ़ जाते है, हम उसे वापस नही पढ़ते। उसको शायद से फाड़ के फेकते है। उसकी मौजूदगी बहुत जरूरी है, मौजूदगी खूबसूरत भी होगी पर हम वोह Chapter को फिर से नही खोलते। we just move on... लेकिन जब तुम वोह chapter पढ़ रहे हो तो उसका वो सबकुछ उसमे से निचोड़ लेना जो वो चाहता है न्योछावर करने को, उसको तुम आखरी वक्त तक Enjoy करना। और बिछड़ने के समय ये खेद न रहे की हम उसे जान ना पाए।
अगर हम किसी बात में पूर्णविराम लगा रहे है तो make sure की उसका अप्लवीराम ना हो वापस से, आईना बनकर wlecome करो बेशक लेकिन समय के बाद उससे छूटना सीखो। उस chapter को पूर्णविराम ज़रूर लगाओ। उसमे जो दिखा वो perfact है मान लो, या फिर ढूंढो वो हज़ार जवाब जो रिश्ते से बड़े है। बस उसे judge मत करना। और जो परफैक्ट नही है उसे चाहना start करो। जो मिला वो स्वीकार करो या फिर सब्र करो। और याद रखना कोई अच्छा या बुरा नही होता,
बस हमे एक फेसला लेना होता है और कभी कभी वोह फेसलो का हिसाब देना पड़ता है।
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