Chai ki Pyali - 1 in Hindi Short Stories by Mansi books and stories PDF | Chai ki Pyali - 1

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Chai ki Pyali - 1

Part: 1




अर्णव शर्मा, एक आम सा सीधा सादा लड़का, एक ऑफिस मे काम करता ग्राफ़िक डिज़ाइनर था। शांत था, ज्यादा बोलने वाला नही था। अकेले रहना पसंद था।

बोलने से ज्यादा वो लिखता रहता था, उसके हाथ मे एक डायरी और पेन जरूर रहती है, उसका अकेला पन उसे लिखने की प्रेरणा देता था ऐसा नही था दोस्त और फॅमिली नही थी। है वो सब भी है पर उसे फिर भी अकेले रहना पसंद नही था। ना कोई जिंदगी मे प्रॉब्लम थी।

पर वो कहते है ना साले दोस्त कभी अकेले छोड़ते हि नही। पर फिर भी शाम के पाँच बजे से लेकर आठ बजे तक अपने लिए टाइम निकाल लेता था।

इन तिन घंटो मे वो अपना मन पसंदीदा काम करता था।  जैसे लिखना, घूमना और समंदर के किनारे आके एक बढ़िया सी चाई पीते हुए सनसेट को देखना ये उसका मनपसंदीदा वक्त होता था। 

शाम की हवा में समंदर की हल्की-सी नमी घुली हुई थी। सूरज धीरे-धीरे पानी की लहरों में उतर रहा था, जैसे थककर दिन अब सोने जा रहा हो। मरीन ड्राइव के कोने पर, एक पुरानी सी चाय की टपरी से भाप उठ रही थी, और लोगों की बातचीत में चाय की सोंधी खुशबू घुली हुई थी।

आज भी वो अपना टाइम गुजरने बिच पर आया और वहाँ पर अपनी रोजाना की टी स्टॉल पर जाके उसने एक चाई की प्याली ऑर्डर की, "भैया एक कड़क चाई"

जैसे उसने ऑर्डर दिया उसी के साथ हि उसे अपने बाजू मे खनकती हुई आवाज सुनाई दी, "भैया एक कड़क चाई"

अर्णव ने ज्यादा ध्यान नही दिया और वही एक थोड़ी दूर लकड़ी की बेंच पर जाके बैठ गया, उसकी आँखे थकी हुई थी, हाथ मे डायरी और पेन चुपचाप समंदर को देखने लगा, उसने अपनी चाई की प्याली वही बेंच पर रखी हुई थी। 

गर्म गर्म चाई की खुशबु हवा मे फैली हुई थी। और वो कही और हि खोया हुआ था। 


उसे आसपास का कोई ध्यान हि नही था। तभी....


“सॉरी!” किसी ने अचानक उसकी चाय की प्याली गिरा दी।

अर्णव को ध्यान आया की ये आवाज तो वही है जो अभी उसने सुनी थी उसने उस तरफ देखा, एक लड़की उसी की उम्र की थी खुले भाल, हल्की सी गुलाबी चुन्नी उड़ती हुई, हाथ मे उसका पर्स और किताब, चहेरे पर थोड़ा डर और झिझक थी पर आँखे चमक रही थी।

वो लड़की फिर से अपनी मीठी आवाज मे बोली, "सोर्री ! मै माफ़ी चाहती हु। हड़बड़ी मै ... मै शर्मिंदा हु इसके लिए।"

अर्णव थोड़ा चौक गया, "कोई बात नही... वैसे भी आज मेरा चाई पिने का मन नही हो रहा था। और सगाई अधूरी हि थी। तो ज्यादा मत सोचिये शायद आज मेरे हिस्से मे इतनी हि चाई थी।"

लड़की उसकी बात सुन हस्ते हुए बोली, "चाई को कभी अधूरी नही छोड़ना चाहिए।"
वो वही बैठ गयी और बोली, "इफ यु डोंट माइंड.."

अर्णव उसकी बात पुरी होने से पहले हि बोला, "हा हा ... आप बैठ सकती है। मै क्यू माइंड करुगा।"



वो बैठ गई उसके पास, उसी जगह जहां से सूरज को डूबता देखा जा सकता था साफ साफ।

अर्णव कुछ नहीं बोल रहा था, वो बस सामने डूबते सुरज को शांत चहेरे से देख रहा था, और उसके साथ बैठी लड़की उसके चहेरे के भावो को समझ रही थी।

कुछ पल बाद जब अर्णव कुछ नही बोला तो लड़की ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हुए अपना गला खानखेर,
"अह्हहन..."

अर्णव ने उसकी ओर देखा तो लड़की एक प्यारी सी मुस्कान के साथ उसे हि देख रही थी, उसकी मुस्कान मे एक पल के लिए अर्णव खो सा गया।

ये पहली बार था जब अर्णव किसी अनजान लड़की के कॉन्टेक्ट मे आया और उससे एट्रेक्ट हो रहा था उसे समझ नही आ रहा था ये सब।

तभी वो लड़की ने अपने होठो को काटते हुए कहा, "क्या मै आपके लिए चाई खरीद सकती हु ? दरअसल अभी जो गलती मुझसे हुए उसकी भरपाई करना चाहती हु।"

अर्णव मुस्कुराया, "इसकी कोई जरूरत नही है मैने कहा तो, मै चाई पी चुका था।"

लड़की बोली, "मुझे पता है आप झूठ बोल रहे है मैने देखा था चाई का गिलास भरा हुआ था।"

अर्णव से कुछ बोलते नही बना, तो लड़की बोली, "देखिये मुझे भी चाई पीनी है पर रोज रोज अकेले पी कर बोर हो गयी हु, तो आज किसी अनजान साथी के साथ हि पी लेती हु।"

अर्णव उसकी बात सुन बोला, "ठीक है फिर दो प्याली चाई.... एक आपके लिए और एक मेरे लिए"

लड़की फ़ौरन खुश होके वही से चाई वाले को चाई का ऑर्डर दे देती है।

उसके बाद अर्णव बस मुस्कुरा रहा था कुछ बोला नही तो फिर से लड़की ने हि बात शुरु की।


लड़की: “मैं रोज़ यहाँ आती हूँ, लेकिन आज पहली बार आपसे टकराई। या शायद… टकराना जरूरी था।”

अर्णव भी मजाक करते हुए बोला, "हा, इत्तेफाक -ए- चाई हो गया ये तो।"




लड़की बोली, “पता नहीं… लेकिन आज की शाम खास लगेगी। शायद चाय की वजह से।”

अर्णव हँसते हुए बोला, “या शायद आपके टकराने की वजह से।”

कुछ देर दोनों चुप हो जाते हैं। बस समंदर की लहरें बोलती हैं, और उनके बीच दो प्यालियाँ धीरे-धीरे खाली होती जाती हैं।

लड़की, “मुझे चाय के साथ चुप रहना पसंद है। बहुत कुछ कह देती है वो।”

अर्णव उसकी बात सुन हस पड़ता है,  “और मुझे चाय के साथ अनजाने लोग पसंद हैं — कुछ कहें बिना सब समझ लेते हैं।”

तभी सूरज समंदर में पूरी तरह डूब गया। दोनों ने एक-दूसरे की तरफ देखा। एक हल्की सी मुस्कान दोनों के होठों पर आई — जैसे किसी कहानी का पहला पन्ना पलट गया हो।

लड़की चलते हुए, “कल मिलें… शायद इसी वक़्त, इसी जगह?”

अर्णव खड़ा हो गया, “अगर चाय ने चाहा तो ज़रूर।”

लड़की चली गई। वो बस उसे जाते हुए देखता रहा। उसके जाते ही समंदर की हवा कुछ और ठंडी हो गई, और उसकी प्याली एकदम खाली।