टाइटल: हर कदम एक नई जंग है अर्थ: यह टाइटल जीवन की उन कठिनाइयों और संघर्षों को दर्शाता है, जो हर इंसान को अपने सफर में रोज़ झेलनी पड़ती हैं। यह संकेत करता है कि ज़िंदगी में हर कदम पर एक नई चुनौती सामने आती है – चाहे वो भावनात्मक हो, सामाजिक हो, आर्थिक हो या आत्मिक।संभावित स्टोरी का छोटा सा सारांश"हर कदम एक नई जंग है" कहानी है अमन नाम के एक मध्यमवर्गीय युवक की, जो एक छोटे शहर से निकलकर अपने सपनों को हासिल करने के लिए बड़े शहर आता है। उसके सपने सिर्फ अपने लिए नहीं, बल्कि अपने परिवार, समाज और उन लाखों युवाओं के लिए हैं जो संघर्ष के बीच उम्मीद का चेहरा ढूंढते हैं।हर मोड़ पर अमन को कोई न कोई चुनौती मिलती है – नौकरी के लिए संघर्ष, किराए के घर की परेशानी, दोस्तों की धोखेबाज़ी, प्रेम में अस्वीकार, और अपने आत्म-संघर्ष से लड़ाई। लेकिन इन सबके बीच वह कभी हार नहीं मानता। उसका एक ही मंत्र होता है – "जो रुक गया, वो मर गया। जो चलता रहा, वही जिंदा है।"धीरे-धीरे वह सिर्फ अपनी मंज़िल ही नहीं पाता, बल्कि एक प्रेरणा बन जाता है हजारों लोगों के लिए। और तब जाकर समझ आता है कि ज़िंदगी सिर्फ मंज़िल पाने का नाम नहीं है, बल्कि हर कदम पर लड़ी जाने वाली ‘जंग’ ही असली ज़िंदगी है।
अब आगे
स्थान: उत्तर प्रदेश का एक छोटा सा गाँव – धरमपुर
समय: जनवरी की सर्द सुबह – 5:00 बजे
ठंडी हवा से कांपते पेड़ों के बीच एक झोपड़ी के बाहर चूल्हे का धुआं धीरे-धीरे आसमान में घुल रहा था। गाँव अभी पूरी तरह जागा नहीं था, लेकिन सीमा देवी की नींद बहुत पहले ही खुल चुकी थी। उनके फटे हुए शॉल के नीचे कंपकंपाता शरीर चूल्हे की आँच के सहारे ज़िंदगी के ताप को बचाने की कोशिश कर रहा था। पास ही बिछी सूखी टाट की चटाई पर अमन सो रहा था — गहरी नींद में नहीं, बल्कि भूख और चिंता की ऊंघ में।
चार दिन से घर में ढंग का खाना नहीं बना था। गुड़ और सूखे चावल के सहारे समय कट रहा था। हरीश — अमन के पिता — तीन महीने से बीमार थे। पहले खेतों में मजदूरी करते थे, फिर बीमारी ने उन्हें बिस्तर से जोड़ दिया। दवाइयाँ महंगी थीं, इलाज अधूरा था, और गाँव के अस्पताल में कहने को इलाज था, पर असलियत में बस सहानुभूति के नाम पर खामोशी मिलती थी।
“माँ, उठाओ मुझे,” अमन ने आँखें मलते हुए कहा।
“बेटा, अभी ठंड है, आराम कर ले,” सीमा बोली, पर वो जानती थी कि आज उसे स्कूल भेजना मुश्किल होगा।स्कूल की फीस 120 रुपए थी – और उनकी जेब में 7 रुपए 50 पैसे पड़े थे, वो भी सिक्कों में।
अमन धीरे से उठा, हाथ-मुंह धोकर स्कूल की पुरानी, फटी-सी यूनिफॉर्म को देखते हुए बोला, “माँ, इस बार भी मास्टरजी डांटेंगे। कहते हैं – बिना फीस दिए स्कूल क्यों आते हो? सबके सामने बहुत बुरा लगता है। मैं अब नहीं जाऊंगा।”
सीमा ने कोशिश की कि अपनी आंखों की नमी को छुपा सके, लेकिन अमन का दर्द उसके चेहरे पर साफ दिख रहा था।
“बेटा, पढ़ाई नहीं करेगा तो क्या करेगा?”
“माँ, काम करूँगा। कल ही चाचा ने कहा था – ईंट-भट्ठे पर मज़दूर चाहिए। दो सौ रुपए रोज़ मिलेंगे। मैं काम करूंगा। पापा की दवा भी लानी है ना?” अमन का गला भारी हो गया था।
सीमा ने कुछ नहीं कहा। वो अंदर गई और एक पुरानी संदूकची से एक पुराना लिफाफा निकाला। उसकी आंखों में सवाल भी थे, पछतावा भी और शर्म भी।
“ये देख,” उसने अमन के हाथ में लिफाफा रख दिया।
अमन ने ध्यान से पढ़ा –
"उत्तर प्रदेश सरकार"विषय: ग्राम पंचायत सहायक के पद पर चयन“आपका चयन ग्राम पंचायत सहायक के पद पर किया गया है। कृपया सात दिनों के भीतर कार्यालय में उपस्थित हों अन्यथा स्थान अगले उम्मीदवार को दे दिया जाएगा।”दिनांक: तीन साल पहले की
अमन सन्न रह गया।“माँ! ये चिट्ठी हमें कभी मिली क्यों नहीं?”
सीमा की आंखें भर आईं। “डाकिया आया था। कहने लगा – दस रुपए दो, वरना चिट्ठी नहीं दूंगा। मेरे पास नहीं थे। उसने गाली देकर लिफाफा वहीं फेंका और चला गया। बाद में ये हमें कबाड़ में मिला।”
एक पल के लिए अमन का दिल बैठ गया।जिस चिट्ठी से उनका जीवन बदल सकता था, वो दस रुपए के अभाव में खो गया।पिता की नौकरी हाथ में आकर भी चली गई। और अब हालत ये कि बेटा मजदूर बनने को तैयार था।
“इस दुनिया में बिना पैसे के इज्ज़त भी नहीं मिलती माँ...” अमन धीरे से बोला।
सीमा को कुछ कहना नहीं सूझा।अमन अब बालक नहीं रहा था — उसे वक्त ने जवान बना दिया था।
वो उठा, बिना कुछ कहे, अपने पुराने जूते पहनकर बाहर निकल गया।सीमा पीछे से देखती रही।
अमन सीधे गया – ईंट भट्ठे की ओर।ईंट-भट्ठा – पहली जंग
सूरज अब उगने को था। चारों तरफ धुंध और धुएँ की मिलीजुली गंध।भट्ठे के बाहर पहले ही मज़दूरों की लाइन लगी थी।
ठेकेदार - मुंशी रामलाल, एक मोटा, घमंडी आदमी, लोगों को काम पर रख रहा था।अमन उसके सामने खड़ा हो गया।
“क्या चाहिए तुझे? बच्चा है तू। ये मज़दूरी तेरे बस की नहीं।”
“कर लूंगा, साब। पैसे चाहिए।”
रामलाल हँसा – “ठीक है, दो दिन ट्रायल पर रखता हूँ। अगर हाथ काँपे, तो निकाल दूँगा। समझा?”
अमन ने सिर हिलाया।
पहली बार हाथ में ईंट उठी। भारी थी। काँधे पर रखी, पीठ सीधी की, और पग बढ़ा दिए।
हर कदम जैसे कह रहा था –“ये भी एक जंग है।”
भट्ठे के बाहर एक बाइक रुकी। उस पर बैठा था एक करीने से कपड़े पहना हुआ युवक, जिसकी आँखों में एक अलग सी चमक थी।
वो कुछ दूर से अमन को काम करते हुए देख रहा था – ध्यान से, जैसे उसे पहचानता हो।
वो बोला – “इस बच्चे में कुछ है… शायद ये खुद को अभी नहीं जानता।”
कौन था वो? और क्यों अमन को देख रहा था?
क्या किस्मत अमन के लिए कोई दरवाज़ा खोलने जा रही है?
एपिसोड समाप्त।