जामुनी रास्ता
जब हम गोवा में रहते थे तब हरियाली में, समंदर के साथ घुमने का शौक सब के उपर चढा हुआ था। कुरतरी गाव में एक श्रीपाद श्रीवल्लभजी का बहुत ही सुंदर मंदिर है, वह घर के पास ही होने के कारण रोज या हफ्ते में दो-तीन बार मंदिर में तो जाते ही थे। मंदिर के आस-पास भक्त लोगों ने ही अपने मकान बनवाये थे। बहुत ही शांत, निवांत, पवित्र मंदिर था वह। सभोवताल में बडे-बडे पेडों से घिरा ठंडक देनेवाला वातावरण था। बडा बरगद का पेड मंदिर के दर्शनी भाग में ही अपनी आध्यात्मिक प्रगती कैसे सखोलता से अपनी जडों की तरह अंदर तक जानी चाहिये वह दर्शा रहा था। औदुंबर पेड के चारों ओर गोलाकार में बैठने के लिए जगह बना दी थी।
जब हम सब पहली बार वहाँ गए तब बारिश का मौसम था। बारिश बरसकर चले जाने के बाद पुरे वातावरण में फैली मिट्टी की सुगंध मन को बडी लुभा रही थी। पँछी नीचे जमिन पर जमा हुए पानी में अपने पंख फड-फडाकर जलक्रीडा का आनंद ले रहे थे। मंदिर के पिछे का औदुंबर, छाया फैला रहा था। सामने से छोटी सिडिया मंदिर में प्रवेश करती दिखायी दी, तो हम चढकर अंदर गए। सामने श्रीपाद श्रीवल्लभजी की प्रसन्न मुर्ती दिखायी दी। दिपज्योती के उजाले में, फुलों से सजा गर्भगृह ओैर प्रभुजी का वलयांकित अस्तित्व से, हाथ अपने आप जुड गए। शिश उनके चरणों में झुक गया। मन में शांती की लहर प्रस्थापित हो गई। परिक्रमा करने के बाद पुजारीजीने दिया हुआ कपुर मिश्रित तीर्थ का सेवन करते हुए प्रसाद भक्षण किया। बालों में फुल लगाकर हम बाहर आ गए। वहाँ ऐसा ही रिवाज है, भगवान के सामने का फुल बालों में लगाते है। अब भगवान दर्शन तो रोज का हो गया। ऋतुचक्र चलता गया। उसी के अनुसार आस-पास के पेडों की शोभा भी बदल जाती थी।
बीच में बहुत दिन मंदिर जाना ही नही हुआ। लगभग एप्रिल के महिने में मंदिर में जाना हुआ ओैर वहाँ का नजारा देखते ही हम आनंद से विभोर हो उठे। मंदिर का पुरा परिसर नीला हो गया था। उपर लटके हुए जामून ओैर नीचे गिरे जमुनों के कारण चारों ओर नीला रंग फैला हुआ था। अपने बच्चों को लेकर पेड, हर्षता में जैसे झुम रहे थे। कुछ अधपकी जमुनी फलों की हरी चादर अभी खुली भी नही थी। हरे-जमुनी रंगसंगीता के बीच में नीला आकाश अपना वजुद दिखा रहा था। अनगिनत जामून। बच्चे तो टुट पडे। अपने नीले जिव्हा से जब वे बात करते तो हमे हँसी न रोकी जाती थी। कुछ गरीब घर के लडके, औरते जामून जमा कर रहे थे, उनके लिए वह पैसे कमाने का जरिया था। उसके बाजू में लहराता सोनचाफा का सुगंध ओैर जमुनी रास्ता दोनों मन में इस तरह बैठ गए की अब जीवनभर वह एक मिठी याद दिल में रहेगी। जामून का मौसम खत्म होने तक मंदिर में, नीले रंग के रंगोली बनी हुई थी।
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