Whispers of Crime प्रस्तुत करता है:तंदूर मर्डर केस — प्यार, धोखा और जलती हुई चुप्पी
2 जुलाई 1995 की रात।
दिल्ली की हवा में घुटन थी, जैसे शहर खुद किसी बोझ को छुपा रहा हो। अशोका रोड की एक बर्फ फैक्ट्री के पास, बग्गा रेस्तरां से घना, काला धुआं उठ रहा था। फैक्ट्री मालिक ने जब धुएं को देखा, तो उसे लगा कि कुछ जल रहा है — लेकिन यह कोई सामान्य आग नहीं थी।
पुलिस टीम मौके पर पहुँची। रेस्तरां में बने बड़े तंदूर से धुआं निकल रहा था। जब पुलिस ने ध्यान से देखा, तो उन्हें कुछ अधजला मांस जैसा कुछ दिखा। आग बुझाई गई। राख में से निकली जली हुई हड्डियाँ, अधजली कलाई पर बंधी घड़ी, और एक गहरी, असहनीय गंध — इंसानी शरीर के जलने की गंध।
पूरे इलाके में सन्नाटा छा गया।
यह किसी साधारण रेस्टोरेंट दुर्घटना का मामला नहीं था — यहाँ कोई भयानक राज छिपा था।
पुलिस ने तुरंत जांच शुरू की। शव की पहचान करना कठिन था। लेकिन शुरुआती सुरागों ने एक नाम की ओर इशारा किया —
नैना साहनी।
और जैसे ही नैना का नाम सामने आया, एक और नाम लोगों की फुसफुसाहट में गूंजने लगा —
सुशील शर्मा — उसका पति, एक राजनीतिक चेहरा, दिल्ली यूथ कांग्रेस का स्टार नेता।
दिल्ली, जो राजनीति और अपराध दोनों की मिलीभगत के लिए कुख्यात थी, अब एक नए काले अध्याय के मुहाने पर खड़ी थी।
अध्याय 1: नैना साहनी और सुनील के रिश्ते की शुरुआत
नैना साहनी का जन्म एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था।
शिक्षित, महत्वाकांक्षी और आधुनिक सोच रखने वाली नैना ने कॉलेज के दिनों में राजनीति में कदम रखा। दिल्ली यूथ कांग्रेस में उसकी एक पहचान बन गई थी। आत्मविश्वास और आकर्षण उसकी सबसे बड़ी ताकतें थीं।
वहीं सुशील शर्मा, जो मध्यप्रदेश से था, दिल्ली में राजनीति में बड़ा नाम कमाने की कोशिश कर रहा था।
सुशील ने नैना को एक पार्टी मीटिंग में पहली बार देखा। वह उसकी खूबसूरती और आत्मनिर्भरता से तुरंत प्रभावित हो गया। जल्द ही दोनों के बीच नजदीकियां बढ़ीं। एक छुपा हुआ रोमांस शुरू हुआ।
चुपचाप शादी कर ली गई। परिवार वालों और जनता से छुपाकर।(यहां इस बात का जिक्र करना जरूरी है कि भले ही सुशील शर्मा और नैना साहनी साथ में रह रहे थे, लेकिन उनकी शादी की स्थिति पूरी तरह से स्पष्ट नहीं थी। कुछ खबरों में यह बताया गया है कि नैना ने एक बार जिक्र किया था कि शर्मा ने उन्हें सिंदूर लगाकर शादी की थी। वहीं, अदालत ने इस बात पर ध्यान दिया कि इस तरह का विवाह उनके परिवार की सामाजिक संस्कृति के अनुसार नहीं था, जिससे यह सवाल उठता है कि क्या उनकी पारंपरिक रूप से शादी हुई थी या नहीं। खुद सुशील शर्मा ने भी अपनी बचाव में यह दावा किया था कि वह नैना से विवाहित नहीं थे, इसलिए उनके पास उसे मारने का कोई कारण नहीं था। हालांकि, अदालत ने यह माना कि वे एक सहवासी रिश्ते में थे, भले ही सामाजिक मानदंडों के अनुसार उनकी औपचारिक शादी नहीं हुई थी। इसलिए, यह कहना कि उनकी 'गुप्त' शादी हुई थी, पूरी तरह से सटीक नहीं है, क्योंकि उनकी शादी की वैधता ही विवादित थी।)
लेकिन यह रिश्ता, जो बाहर से मजबूत दिखता था, भीतर ही भीतर दरक रहा था।
अध्याय 2: दरार की शुरुआत
समय के साथ, सुशील का नैना पर शक बढ़ने लगा।
उसे लगता था कि नैना के किसी दूसरे पुरुष से संबंध हैं। गुप्त फोन कॉल्स, मीटिंग्स और नैना की स्वतंत्रता उसे बर्दाश्त नहीं थी।
वहीं नैना को सुशील का नियंत्रण पसंद नहीं था। वह अपने करियर के लिए उड़ान भरना चाहती थी, लेकिन सुशील उसे एक "घर की औरत" तक सीमित रखना चाहता था।
उनका रिश्ता प्यार से अविश्वास और फिर दुश्मनी की ओर बढ़ गया।
अध्याय 3: हत्या की रात
2 जुलाई 1995
दिन भर में सुशील ने कई बार नैना से झगड़ा किया।
उस दिन खबर थी कि नैना ने सुशील के एक राजनीतिक प्रतिद्वंदी से फोन पर बात की थी। सुशील का शक अब आग बन चुका था।(खबरों और अदालती कार्यवाही के अनुसार, सुशील शर्मा को यह शक था कि नैना साहनी का उसके एक राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी, मतलूब करीम, के साथ संबंध था। उस दिन, 2 जुलाई 1995 को, सुशील ने नैना को फोन पर बात करते हुए देखा और सुना, जिससे उसका शक और बढ़ गया।)
रात को घर में दोनों के बीच फिर बहस हुई।
सुशील ने गुस्से में आकर नैना पर गोली चला दी।
गोली नैना के सिर में लगी — उसकी तत्काल मौत हो गई।
हत्या हो चुकी थी। अब सवाल था: सबूत कैसे मिटाया जाए?
सुशील ने नैना के शव को कार में रखा, और अशोका रोड स्थित बग्गा रेस्तरां की ओर बढ़ा — जो उसकी अपनी परिचित जगह थी।
वहाँ बड़े तंदूर में, उसने नैना के शरीर को जलाने की कोशिश की — यह सोचकर कि सबूत पूरी तरह नष्ट हो जाएगा।
लेकिन किस्मत को कुछ और मंजूर था।
अध्याय 4: पुलिस जांच — सुराग और सबूत
पुलिस को शुरुआत में बस आग की सूचना मिली थी। लेकिन जैसे-जैसे तहकीकात आगे बढ़ी, कहानी खुलने लगी।
जांच की प्रमुख बातें:
फोरेंसिक जांच: तंदूर से मिली हड्डियाँ इंसानी थीं।
गवाहों की गवाही।
रक्त परीक्षण: नैना के डीएनए से मैचिंग की गई।
सुशील का फरार होना: जब पुलिस उसे पकड़ने गई, तो वह गायब था। इससे शक और गहरा गया।
पुलिस ने आखिरकार एक गुप्त सूचना के आधार पर उसे गिरफ्तार किया।
गिरफ्तारी के बाद, सुशील ने जुर्म कबूल नहीं किया, लेकिन सबूत इतने भारी थे कि उसकी सफाई बेमानी लगती थी।
अध्याय 5: मीडिया का तूफान
"तंदूर में जली पत्नी" — यह हेडलाइन दिल्ली के हर अखबार और न्यूज चैनल पर थी।
इंडियन एक्सप्रेस, टाइम्स ऑफ इंडिया, हिंदुस्तान टाइम्स — सबने इस केस को पहले पन्ने पर जगह दी।
उस वक्त न्यूजपेपर्स में छपी हेडलाइंस के अंश -
(मैं यहां इस बात का जिक्र करना चाहूंगा क्योंकि यह मामला 1995 का है तो उसे वक्त की न्यूज़ पेपर्स को हासिल कर पाना काफी मुश्किल है। क्योंकि उसे वक्त के न्यूजपेपर्स को डिजिटाइज नहीं किया गया है तो यह हेडलाइंस इंटरनेट से अलग-अलग आर्टिकलस से ली गई है इनकी विश्वसनीयता की पुष्टि मैं नहीं करता।)
"दिल्ली शर्मसार: नेता ने पत्नी को तंदूर में जलाया"
"प्यार की आग में जला हत्या का सबसे खौफनाक सच"
"Delhi Shocked as Politician Burns Wife in Tandoor"
"Outrage in Delhi Over Tandoor Murder"
"Delhi Aghast at Tandoor Killing"
देश में हर जगह सुशील शर्मा का नाम नफरत से लिया जाने लगा।
यह पहला मौका था जब किसी राजनीतिज्ञ पर इतने खुलेआम एक स्त्री की बर्बर हत्या का आरोप लगा था।
महिलाओं के खिलाफ अपराध और राजनीतिक सत्ता के दुरुपयोग की बहस पूरे देश में गरम हो गई।
अध्याय 6: अदालत में लड़ाई
ट्रायल कोर्ट
1995 के अंत में मुकदमा शुरू हुआ।
पुलिस ने 100 से ज्यादा गवाह पेश किए।
फोरेंसिक सबूत, गवाहों के बयान और घटनास्थल से मिली वस्तुएँ सुशील के खिलाफ एक मजबूत केस बना चुकी थीं।
1996 में, ट्रायल कोर्ट ने सुशील शर्मा को IPC 302 (हत्या) और 201 (सबूत नष्ट करना) के तहत दोषी ठहराया।
उसे फाँसी की सजा सुनाई गई।
हाई कोर्ट
सुशील ने दिल्ली हाई कोर्ट में अपील की।
2003 में, हाई कोर्ट ने भी उसकी दोषसिद्धि को बरकरार रखा। फाँसी की सजा भी कायम रही।
सुप्रीम कोर्ट
सुशील ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
2007 में सुप्रीम कोर्ट ने उसकी हत्या में दोष को बरकरार रखा, लेकिन फाँसी की सजा को उम्रकैद में बदल दिया।
कोर्ट का मुख्य तर्क:
यह मामला "रेयरेस्ट ऑफ द रेयर" नहीं है।
सुशील का क्राइम क्रूर था, लेकिन पूर्व नियोजित नहीं था।
सुशील शर्मा ने तिहाड़ जेल में लगभग 23 साल बिताए।
2018 में उसे "अच्छे आचरण" के आधार पर समय से पहले रिहा कर दिया गया।
आज भी, तंदूर मर्डर केस भारतीय अपराध इतिहास में एक भयावह उदाहरण माना जाता है — जहां राजनीति, अहंकार और पागलपन ने मिलकर एक निर्दोष जिंदगी को आग में झोंक दिया।
निष्कर्ष:
तंदूर हत्याकांड भारतीय आपराधिक इतिहास के सबसे सनसनीखेज मामलों में से एक रहा है। इस मामले ने सत्ता, प्रेम, विश्वासघात और कानून व्यवस्था की जटिलताओं को उजागर किया। सुषील शर्मा द्वारा अपनी पत्नी नयना साहनी की हत्या और उसके शव को जलाने का प्रयास समाज में व्याप्त हिंसा और राजनीतिक संरक्षण की संस्कृति की भयावह तस्वीर पेश करता है।
इस मामले की जाँच और कानूनी प्रक्रिया ने यह भी दिखाया कि किस प्रकार न्याय में देरी होती है, लेकिन अंततः सच्चाई सामने आती है।
तंदूर कांड हमें यह सिखाता है कि सत्ता या प्रभाव से ऊपर कानून का शासन होना चाहिए, और हर अपराधी को उसके कृत्य का दंड मिलना ही चाहिए, चाहे वह कितना भी प्रभावशाली क्यों न हो। यह घटना आज भी न्याय, नैतिकता और मानवता पर एक महत्वपूर्ण प्रश्नचिह्न की तरह बनी हुई है।
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https://indiankanoon.org/doc/504254
अगले हफ्ते एक और सनसनीखेज केस की तह तक पहुंचेंगे। तब तक के लिए अलविदा, जुड़ें रहिए हमारे साथ सच्चाई के इस दिलचस्प सफर में!