स्नेहिल नमस्कार प्रिय मित्रों
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ज़िंदगी की इस कगार तक पहुंचकर कई बार बीते हुए लम्हों पर कभी आश्चर्य होता है, कभी सुख तो कभी दुख भी नासूर सा पक जाता है जो पीड़ा से मन को भर देता है।
हम सभी परिचित हैं कि हम सबके जीवन का लक्ष्य एक ही है। हाँ, रास्ते अलग अलग हो सकते हैं। स्वाभाविक भी है। किसी का शॉर्ट कट है तो कोई लंबे रास्ते पर चलने में अधिक सहज रहता है, आनंदित रहता है लेकिन हम सब अपने लक्ष्य पर पहुंच जाते हैं क्योंकि हमें पहुँचना है।
हमारे भीतर की संवेदनाएं ही जीवन को सफ़ल बनाने का बीज होती हैं । जब भी ज्ञान की खिड़की खुलती है, उसमें से प्रेम का झौंका प्रवेश करता है, उस प्रेम के झौंके से सूखे हुए मन का सूखने की ओर अग्रसर तरु एक बार फिर लहलहाता है। वह फिर से हरा होने लगता है और सुरभित हो प्रेम का संदेश देकर फिर से टहोके मारता है। हर मौसम में प्रेम का यहां एक बीज उपजता है । बताता है प्रेम क्या है ? यह हमारे सच्चे प्रेमिल स्वरूप, हमारी छिपी हुई शक्तियों का उजागर करने का तरीका है जो प्रेम की पुरवाई से हृदय, मनोमस्तिषक को सोचने के लिए बाध्य करता है कि प्रेम ज्ञान है, दूसरी ओर है वह अज्ञानता जिसका प्रेम से कोई सरोकार नहीं है । इसीलिए दुनिया में हर समय मोह, माया, आलस्य, अहंकार, आदि हमेशा अपनी ओर आकर्षित करके हमें उनमे फॅसाने की कोशिश करते रहते हैहैं। प्रेम वह ज्ञान है जो बिना शब्दों वाली भाषा बोले हमें सही राह दिखाता है। परंतु हम लोग समझने का प्रयास नहीं करते ।
हम इस वास्तविकता से भी वाकिफ़ हैं कि ईश्वर ने हमारे के जीवन को तीन भागों में विभाजित किया है।
पहला जन्म, दूसरा जीवन और तीसरा मृत्यु। पहला और तीसरा ईश्वर ने अपने पास रखा है जिन पर हम चाह कर भी कुछ नहीं लिख सकते ।
जीवन का दूसरा भाग हमारे ऊपर छोड़ दिया गया है ।
यह जो ईश्वर है, वह एक ऐसा अदृश्य प्रकाश है जो हमारे पास हर पल है लकिन हमें दिखाई नहीं देता फिर भी निर्देशित करता रहता है।उसने सभी संवेदनाओं को हमें थमाया है जिसमें से हमें छँटनी करनी है। जीवन के इस मध्य भाग को भरने की प्रेम की महत्वपूर्ण संवेदना की सिंचाई हमारे ऊपर छोड़ दी है अब हम पर निर्भर है कि जीवन का यह मध्य यानि बीच का भाग हम कैसा भरेंगे? उस पर अहं, क्रोध, हिंसा, ईर्ष्या - - क्या लिखेंगे। । हम जैसा लिखेंगे वैसा ही परिणाम हमारे सामने होगा। इसीलिए सिर्फ ओर सिर्फ प्रेम ही ऐसी संवेदना है जिसका सही उपयोग करके हम अपने अंदर छिपी प्रतिभा यानि प्रेम की गहनता को पहचान सकते हैं, । जिसके लिए हमें शेष सभी संवेदनाओं पर भी ध्यान देना होगा, अपने आप को तराशना होगा। इसी से जीवन को सही दिशा और सफ़लता मिलेगी ।
हमें. प्रेम को एक बीज की भाँति अपने भीतर की जिजीविषा को जागृत रखना होगा और चैतन्य रहना होगा क्योंकि प्रेम का विस्तार असीमित है, वह कभी वृत्त की परिधि में नहीं रह सकता । वह बंद है फिर भी स्वतंत्र है। वह निराकार है फिर भी स्वीकार है। वह आकाश है फिर भी धरती को अपने प्रेम से सराबोर रखता है। बस, हमें अपनी सभी संवेदनाओं को प्रेम से कोट करके अपने जीवन के बीच के भाग को भरना है।
स्नेह
डॉ प्रणव भारती
अहमदाबाद