Kadar in Hindi Moral Stories by Deepa shimpi books and stories PDF | कदर

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कदर






क़दर

रामू एक छोटे से गांव में रहने वाला गरीब किसान था। उसका एक बेटा था, सोनू, जो शहर में पढ़ाई कर रहा था। रामू ने अपनी सारी जमा पूंजी अपने बेटे की पढ़ाई में लगा दी, क्योंकि वह चाहता था कि उसका बेटा पढ़-लिखकर एक बड़ा आदमी बने।

सोनू पढ़ाई में होशियार था। कुछ सालों में उसने इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की और एक बड़ी कंपनी में नौकरी मिल गई। नौकरी लगते ही सोनू शहर में ही रहने लगा और धीरे-धीरे उसने गांव आना बंद कर दिया। रामू हर त्योहार पर उसके लौटने का इंतजार करता, लेकिन सोनू बहाने बना कर टाल देता।

समय बीतता गया। रामू अब बूढ़ा और कमज़ोर हो गया था। उसके खेत भी अब पहले जैसे नहीं रहे। गांव में लोग कहते, “रामू का बेटा तो बड़ा आदमी बन गया, लेकिन अपने बाप को भूल गया।” रामू चुपचाप सुनता रहता, लेकिन उसके मन में बेटे के लिए प्यार कम नहीं हुआ।

एक दिन सोनू को ऑफिस से छुट्टी मिली। उसने सोचा, "चलो गांव जाकर पापा से मिल लेते हैं। बहुत दिन हो गए।" जब वह गांव पहुँचा, तो देखा कि रामू बहुत बीमार है। घर टूटा-फूटा था, और खेतों में झाड़ियाँ उग आई थीं। यह देखकर सोनू को झटका लगा। उसे पहली बार एहसास हुआ कि उसने कितनी बड़ी गलती की है।

रामू ने कमजोर आवाज़ में कहा, “तू आ गया बेटा, अब मैं चैन से मर सकूंगा।”

सोनू की आंखों में आंसू आ गए। उसने कहा, “नहीं पापा, अब मैं हमेशा आपके पास रहूंगा। आपने मेरी ज़िंदगी बनाई, लेकिन मैंने आपकी क़दर नहीं की। अब मैं सब कुछ ठीक कर दूंगा।”

सोनू ने गांव में रहकर रामू का इलाज करवाया, घर की मरम्मत करवाई और खेतों को दोबारा उपजाऊ बना दिया। अब वह हर काम में अपने पिता की राय लेने लगा।

गांव के लोग हैरान थे। एक दिन किसी ने रामू से पूछा, “बाबा, आपने तो कभी शिकायत नहीं की, और अब देखो, आपका बेटा तो मिसाल बन गया।”

रामू मुस्कराया और बोला, “कभी-कभी क़दर समझने में वक़्त लगता है, लेकिन जब समझ आ जाए, तो इंसान बदल जाता है।
इस कहानी से हमें यह सिखने को मिलता है कि अपनों की क़दर समय पर करनी चाहिए। क्योंकि रिश्तों की असली कीमत तब समझ आती है, जब वे दूर हो जाते हैं।



सोनू ने गांव में रहते हुए न सिर्फ अपने पिता की सेवा की, बल्कि गांव के अन्य किसानों की भी मदद करना शुरू किया। उसने देखा कि गांव के लोग अब भी पुराने तरीके से खेती कर रहे हैं और मुनाफा नहीं कमा पा रहे। उसने अपने ज्ञान का उपयोग करते हुए किसानों को आधुनिक खेती के तरीके सिखाए – जैसे ड्रिप सिंचाई, जैविक खाद और बेहतर बीजों का इस्तेमाल।

धीरे-धीरे गांव की तस्वीर बदलने लगी। फसलें अच्छी होने लगीं, गांव में खुशहाली लौट आई। रामू का चेहरा भी अब पहले जैसा चमकने लगा था। वह गर्व से अपने बेटे को देखता और सोचता, "मेरी मेहनत अब रंग लाई है।"

एक दिन सोनू ने गांव के स्कूल में एक सभा बुलाई। वहां उसने बच्चों और उनके माता-पिता से कहा,
“हम अक्सर समझते हैं कि शहर की जिंदगी ही सब कुछ है। लेकिन असली शांति, असली अपनापन तो अपने गांव, अपने लोगों में है। मैं भाग्यशाली हूं कि मुझे अपने पिता की क़दर करने का दूसरा मौका मिला।”

उसकी बातें सुनकर सबकी आंखें नम हो गईं। सभा के बाद कई युवा गांव लौट आए और उन्होंने भी अपने माता-पिता की मदद करने का संकल्प लिया।

रामू अब हर सुबह अपनी लाठी के सहारे खेतों में घूमता, लोगों से बात करता और बेटे की तारीफ करता। वह कहता, “मुझे किसी संपत्ति की जरूरत नहीं, मेरा सबसे बड़ा धन मेरा बेटा है, जिसने मेरी क़दर की और गांव की भी।”

सालों बाद जब रामू शांतिपूर्वक इस दुनिया से विदा हुआ, तो पूरे गांव ने उसे कंधा दिया। उस दिन सोनू ने गांव के बीच एक स्मारक बनवाया, जिस पर लिखा था:

“जिसने अपने पिता की क़दर की, वह कभी हार नहीं सकता।”

क़दर सिर्फ माता-पिता की नहीं, अपने गांव, संस्कृति और रिश्तों की भी करनी चाहिए। जो अपनी जड़ों को नहीं भूलता, वही असल में ऊंचाई तक पहुंचता है
दीपांजलि
दीपाबेन शिम्पी