यह रही एक मजेदार कहानी "मित्रता" पर, लगभग 500 शब्दों में:
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टिल्लू और बिल्लू की दोस्ती
गाँव धानीपुर में टिल्लू और बिल्लू नाम के दो शरारती लड़के रहते थे। दोनों की दोस्ती इतनी गहरी थी कि एक के बिना दूसरा अधूरा लगता था। चाहे आम के बाग से आम चुराना हो, या नदी में तैराकी की प्रतियोगिता करना — टिल्लू और बिल्लू हमेशा साथ रहते थे।
एक दिन गाँव में मेला लगा। टिल्लू और बिल्लू ने तय किया कि इस बार वे सबसे बड़ा गुब्बारा खरीदेंगे। लेकिन दिक्कत ये थी कि दोनों की जेब खाली थी। टिल्लू ने योजना बनाई, "सुन बिल्लू! हम दोनों अपने-अपने घर से कुछ ना कुछ लाएँगे और उसे मेले में बेचेंगे। जो पैसा मिलेगा, उससे गुब्बारा खरीदेंगे।"
बिल्लू को ये योजना खूब पसंद आई। टिल्लू घर से माँ की बनाई हुई मिठाइयाँ चुराकर ले आया, और बिल्लू अपने दादाजी के पुराने सिक्कों का संग्रह उठा लाया — यह सोचे बिना कि दादाजी को उसकी कितनी जरूरत थी।
दोनों ने मेला शुरू होते ही एक चटाई बिछाई और अपना "दुकान" खोल लिया। पहले ही घंटे में मिठाइयाँ तो बिक गईं, लेकिन बिल्लू के सिक्कों को देखकर लोग हँसने लगे — "अरे, ये तो संग्रह के पुराने सिक्के हैं, कोई सामान थोड़े हैं!"
बिल्लू शर्मिंदा हो गया और रोने लगा। टिल्लू ने देखा तो उसके कंधे पर हाथ रखा, "कोई बात नहीं दोस्त! मिठाइयों के पैसों से ही गुब्बारा खरीद लेते हैं।"
लेकिन फिर एक मजेदार बात हुई। पास से गुजरता एक बूढ़ा आदमी रुका और बिल्लू के सिक्कों को देख मुस्कुराया। उसने कहा, "अरे ये तो बड़े कीमती सिक्के हैं! मैं ये सारे खरीदना चाहता हूँ।" बूढ़े आदमी ने बिल्लू को इतने पैसे दिए कि उससे दस गुब्बारे खरीदे जा सकते थे!
अब बिल्लू ने सोचा कि सारे पैसे से गुब्बारे खरीद ले और
खुद ही उड़ा दे, लेकिन फिर टिल्लू का चेहरा याद आया —
उसका सच्चा दोस्त। बिल्लू ने खुशी-खुशी टिल्लू को गले
लगाया और कहा, "चल भाई, अब तो हम दोनों के लिए दो
बड़े गुब्बारे!"
दोनों ने मिलकर दो सबसे बड़े रंगीन गुब्बारे खरीदे, और मेले में पूरे दिन उछलते, हँसते और गाते रहे।
शाम को गाँव लौटते समय टिल्लू ने कहा, "देखा बिल्लू, सच्ची मित्रता में सब कुछ बाँटना चाहिए — दुःख भी और खुशी भी।"
बिल्लू ने सिर हिलाते हुए कहा, "और अगर दोस्त सच्चा हो, तो हर संकट भी मजेदार बन जाता है!"
उस दिन से उनकी दोस्ती और भी गहरी हो गई। गाँव में सब उन्हें "अलग न होने वाले दोस्त" कहने लगे।
शाम को गाँव लौटते समय टिल्लू ने कहा, "देखा बिल्लू, सच्ची मित्रता में सब कुछ बाँटना चाहिए — दुःख भी और खुशी भी।"
बिल्लू ने सिर हिलाते हुए कहा, "और अगर दोस्त सच्चा हो, तो हर संकट भी मजेदार बन जाता है!"
उस दिन से उनकी दोस्ती और भी गहरी हो गई। गाँव में सब उन्हें "अलग न होने वाले दोस्त" कहने लगे। और सच में, टिल्लू और बिल्लू कभी अलग नहीं हुए — चाहे मौसम बदले या हालात।
--ज़रूर!
आपकी कहानी को अब मैं थोड़ी आगे बढ़ाता हूँ, ताकि टिल्लू और बिल्लू की दोस्ती का सफर और गहरा और मजेदार लगे:
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टिल्लू और बिल्लू की दोस्ती (आगे की कहानी)
समय बीतता गया। टिल्लू और बिल्लू बड़े होते गए, लेकिन उनकी दोस्ती कभी छोटी नहीं हुई। स्कूल में भी दोनों साथ-साथ पढ़ते थे। एक की कमजोरी को दूसरा ताकत बन जाता था। टिल्लू गणित में तेज था तो बिल्लू चित्रकला में माहिर। जब टिल्लू का गणित का होमवर्क फँसता, तो बिल्लू उसके लिए चित्र बनाकर स्कूल में नंबर बढ़वाने में मदद करता, और जब बिल्लू का कोई सवाल मुश्किल होता, टिल्लू बिना झल्लाए उसे समझाता।
मेला वाला दिन भी उनके लिए खास बन गया। हर साल मेले में जाकर वे एक नया गुब्बारा खरीदते और उसे आसमान में छोड़ते हुए वादा करते, "हमेशा एक-दूसरे के साथ रहेंगे।"
धीरे-धीरे, गाँव के और भी लड़के उनकी दोस्ती की मिसाल देने लगे। कुछ तो कहते, "अगर दोस्ती सीखनी हो, तो टिल्लू और बिल्लू से सीखो!"
उनके हँसी-मज़ाक, एक-दूसरे के लिए लड़ने और एक-दूसरे के लिए खड़े होने के किस्से गाँव में मशहूर हो गए।
एक बार गाँव में एक बड़ी तुफ़ान आया। कई घरों की छतें उड़ गईं। बिल्लू का घर भी बुरी तरह टूट गया। उस रात टिल्लू अपने माता-पिता से लड़कर बिल्लू और उसके परिवार को अपने घर ले आया। दोनों परिवारों ने मिलकर एक-दूसरे का सहारा दिया। उस कठिन समय ने उनकी दोस्ती को और मजबूत कर दिया।
बड़े होकर भी, जब टिल्लू ने अपनी पढ़ाई पूरी कर शहर में नौकरी शुरू की, और बिल्लू ने गाँव में रहकर खेती का काम संभाला, तब भी उनकी बातें रोज़ होती थीं। चिट्ठियाँ, फोन कॉल, और छुट्टियों में मिलने की खुशियाँ — उनकी दोस्ती का हिस्सा बनी रहीं।
एक दिन जब टिल्लू गाँव लौटा, बिल्लू ने उसके लिए वही पुराना रंगीन गुब्बारा खरीदा और हँसते हुए कहा, "याद है, पहली बार मेले में कैसे रोए थे?"
टिल्लू ने हँसते हुए जवाब दिया, "हाँ, और याद है, कैसे फिर सबसे बड़ा गुब्बारा उड़ाया था?"
दोनों ने उस दिन फिर से आसमान में गुब्बारा उड़ाया। फर्क बस इतना था कि अब वे दो छोटे लड़के नहीं रहे थे, बल्कि उम्रदराज दोस्त थे — जिनकी दोस्ती समय की हर परीक्षा में खड़ी उतरी थी।
गाँव में अब भी लोग अपने बच्चों को कहते, "अगर दोस्ती करनी है, तो टिल्लू-बिल्लू जैसी करो!"
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चाहो तो मैं इसे और भी आगे बढ़ाकर "एक पूरा अध्याय" यानी एक छोटी किताब जैसी बना सकता हूँ, जहाँ टिल्लू और बिल्लू की आगे की ज़िंदगी — शादी, परिवार, और फिर भी दोस्ती कैसे निभाई — सब कुछ लिखा हो
दीपांजलि
दीपाबेन शिम्पी गुजरात