Kaala Jaadu in Hindi Horror Stories by Neha jha books and stories PDF | काला जादू

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काला जादू



मेरा नाम राजीव है,मैं अब सत्तावन साल का हो गया हूँ, लेकिन अभी भी हर रात जब अंधेरा गहराता है, वही आवाज़ें मेरे कानों में गूँजती हैं। कभी-कभी वे इतनी तेज होती हैं कि मैं चौंक कर उठ जाता हूँ और अपने बेडरूम की खिड़की से बाहर देखता हूँ, यह जानने के लिए कि क्या कोई मुझे बुला रहा है। लेकिन हमेशा सिर्फ वही पुराने बरगद का पेड़ मिलता है, जिसकी शाखाएँ हवा में हिलती हैं।

यह वही पेड़ है जिसके नीचे तीस साल पहले मैंने वह किया था जिसने मेरी ज़िंदगी हमेशा के लिए बदल दी।



मैं सिर्फ सत्ताईस साल का था तब, एक महत्वाकांक्षी युवक जो जल्द ही अमीर बनना चाहता था। मेरे परिवार ने तीन पीढ़ियों से संघर्ष किया था। मेरे पिता एक मामूली कपड़े की दुकान चलाते थे और हमारी आर्थिक स्थिति कभी भी अच्छी नहीं रही। मैं इंजीनियरिंग पढ़ रहा था, लेकिन मुझे पता था कि अच्छी नौकरी पाने में भी वर्षों लग सकते हैं।

हमारे गाँव में एक बुज़ुर्ग थे, रामू काका। लोग उनसे डरते थे और उन्हें 'काले जादू का साधक' कहते थे। कोई उनके घर के पास नहीं जाता था, जो गाँव के अंतिम छोर पर, बड़े से बरगद के पेड़ के पास था। कहते थे कि वह रात में अजीब प्रयोग करते हैं, जिनमें जानवरों की बलि और मृतकों की हड्डियां शामिल होती हैं।

मैं इन सब अफवाहों पर विश्वास नहीं करता था, क्योंकि मैं खुद को पढ़ा-लिखा और आधुनिक मानता था। लेकिन एक दिन, जब मैंने अपनी प्रेमिका रीमा को एक महंगा उपहार देने के लिए पैसे उधार लेने की कोशिश की और कहीं से भी मदद न मिली, तो मैंने निराशा में रामू काका के पास जाने का फैसला किया।



उनका घर जितना डरावना बाहर से दिखता था, उससे कहीं ज्यादा भीतर था। दीवारों पर अजीब चिन्ह बने थे, छत से जानवरों के खोपड़ी और हड्डियाँ लटकी थीं, और हर जगह मोमबत्तियां जल रही थीं, जिनसे कमरे में एक अजीब लाल रोशनी फैली थी।

"मैं जानता था कि तुम आओगे," रामू काका ने धीमे स्वर में कहा, बिना मेरी ओर देखे। वे एक कोने में बैठे कुछ जड़ी-बूटियों को कूट रहे थे।

"आप... आप कैसे जानते थे?" मैंने हकलाते हुए पूछा।

"मुझे बहुत कुछ पता है, राजीव," उन्होंने मेरा नाम लेते हुए कहा, हालांकि मैंने उन्हें अपना परिचय नहीं दिया था। "तुम अमीर बनना चाहते हो, जल्दी से। तुम्हारी प्रेमिका रीमा तुम्हें छोड़कर किसी अमीर आदमी के साथ चली जाएगी अगर तुमने उसे वह हीरे का हार नहीं दिया।"

मेरे पैर कांपने लगे। यह सच था। रीमा ने मुझे धमकी दी थी कि अगर मैं उसे वह हार नहीं दूंगा, जो उसने शहर के एक आभूषण विक्रेता की दुकान पर देखा था, तो वह मुझे छोड़ देगी। और हाल ही में, एक अमीर व्यापारी का बेटा उसके पीछे पड़ा था।

"आप मेरी मदद कर सकते हैं?" मैंने आशा से पूछा।

रामू काका मुस्कुराए, एक ऐसी मुस्कान जिसने मेरी रीढ़ में सिहरन पैदा कर दी। "हाँ, मैं तुम्हें इतना धन दे सकता हूँ कि तुम्हारी सात पीढ़ियां भी खर्च नहीं कर पाएंगी। लेकिन इसकी एक कीमत है।"

"कोई भी कीमत," मैंने बिना सोचे-समझे कहा।

"हर काले जादू के लिए एक बलिदान देना होता है। तुम्हें अपने सबसे करीबी व्यक्ति का खून देना होगा।"

मैं पीछे हट गया। "आप चाहते हैं कि मैं रीमा को मार दूँ? कभी नहीं!"

रामू काका जोर से हंसे। "नहीं, मूर्ख। रीमा तुम्हारे सबसे करीब नहीं है। तुम्हारी छोटी बहन आरती है, जिसकी तुमने हमेशा रक्षा की है, जिसे तुम अपने प्राणों से भी ज्यादा प्यार करते हो।"

मेरा दिल धड़कना बंद हो गया। आरती, मेरी प्यारी बहन, जिसके लिए मैं कुछ भी कर सकता था। नहीं, यह असंभव था।

"मैं ऐसा नहीं कर सकता," मैंने कहा और वहां से जाने के लिए मुड़ा।

"तुम फिर आओगे," रामू काका ने कहा। "और अगली बार, मैं तुम्हें एक आसान रास्ता दिखाऊंगा।"



वह सही थे। दो हफ्ते बाद, रीमा ने मुझे छोड़ दिया और उस अमीर व्यापारी के बेटे के साथ चली गई। मैं टूट गया था। न सिर्फ प्यार में बल्कि अपने अहंकार में भी। मैं फिर से रामू काका के पास गया।

इस बार, उन्होंने मुझे एक अलग प्रस्ताव दिया। "तुम्हें आरती को मारने की जरूरत नहीं है। बस उसके हाथ की एक अंगुली काट दो, और वह भी पहले वाली, जिसे कोई देख नहीं पाएगा। वह पीड़ा सहेगी, लेकिन जीवित रहेगी।"

मुझे यह विचार भी भयानक लगा, लेकिन रीमा को खोने का दर्द अब भी ताज़ा था। और मैं सोचने लगा: एक अंगुली के बदले में अपार धन? शायद आरती समझ जाएगी अगर मैं उसे सच बता दूँ। हम दोनों अमीर हो जाएंगे।

मैंने रामू काका से विस्तार से जानना चाहा। उन्होंने बताया कि मुझे पूर्णिमा की रात को बरगद के पेड़ के नीचे एक विशेष मंत्र का जाप करना होगा, और फिर एक विशेष छुरी से आरती की अंगुली काटनी होगी। खून को एक काले मिट्टी के बर्तन में इकट्ठा करना होगा, और फिर उसे एक विशेष मिश्रण में मिलाना होगा जो वे मुझे देंगे।

मैंने हाँ कह दिया।



पूर्णिमा की रात आ गई। मैंने आरती को बताया कि मैं उसे एक रहस्य जगह पर ले जा रहा हूँ, जहाँ हमें एक ख़ज़ाना मिलेगा। वह मुझ पर पूरी तरह से विश्वास करती थी। जब हम बरगद के पेड़ के पास पहुंचे, मैंने उसे नींद की दवा दी हुई चाय पिलाई।

रात के अंधेरे में, चांदनी के प्रकाश में, मैंने मंत्र का जाप किया और छुरी उठाई। मेरे हाथ कांप रहे थे। आरती मेरे सामने बेहोश पड़ी थी, उसका चेहरा शांत और विश्वास से भरा हुआ।

मैं छुरी को उसकी सबसे छोटी उंगली पर रख चुका था, जब मुझे रामू काका की आवाज़ सुनाई दी: "रुको!"

वे पेड़ के पीछे से निकले, एक अजीब मुस्कान के साथ। "मैंने तुम्हें आधा सच बताया था, राजीव। हाँ, तुम्हें अपार धन मिलेगा, लेकिन उसकी वास्तविक कीमत बहुत अधिक है।"

"क्या मतलब?" मैंने भयभीत होकर पूछा।

"जब तुम यह अनुष्ठान पूरा करोगे, तो आरती की अंगुली नहीं, बल्कि उसकी आत्मा मेरी हो जाएगी। वह जीवित रहेगी, लेकिन एक खोखले खोल की तरह, बिना किसी खुशी, दर्द या भावना के। और हर पूर्णिमा को, तुम्हें एक नई बलि देनी होगी - हर बार एक ऐसे व्यक्ति की, जिसे तुम प्यार करते हो।"

मैं पीछे हट गया, छुरी मेरे हाथों से गिर गई। "नहीं! यह सौदा नहीं था!"

"यही काले जादू का असली स्वरूप है," रामू काका ने कहा। "कुछ भी मुफ्त नहीं है। और अगर तुम अब मना करते हो, तो अनुष्ठान अधूरा रह जाएगा, और तुम्हारी अपनी आत्मा इसकी कीमत चुकाएगी।"

मैं फंस गया था। या तो मुझे अपनी बहन की आत्मा देनी थी या अपनी खुद की। उस क्षण में, मैंने एक तीसरा विकल्प सोचा।

मैंने झपटकर छुरी उठाई और खुद पर नहीं, बल्कि रामू काका पर हमला कर दिया।

वे चीखे, लेकिन देर हो चुकी थी। छुरी उनके सीने में धंस गई। "तुमने क्या किया है?" उन्होंने गुर्राते हुए कहा, जैसे-जैसे उनके मुंह से खून बहने लगा। "तुम नहीं जानते कि तुमने क्या किया है!"

"मैंने अपनी बहन को बचाया," मैंने दृढ़ता से कहा।

रामू काका हंसे, एक ऐसी हंसी जो धीरे-धीरे गुरगुराहट में बदल गई। "नहीं, मूर्ख। तुमने सिर्फ स्वयं को मेरी जगह ले लिया है। अनुष्ठान अब भी पूरा होगा... लेकिन अब तुम काले जादू के नए साधक हो। मेरी आत्मा आज़ाद हो जाएगी, और तुम... तुम इस शाप के साथ जीना सीखोगे।"

उनके शब्द काटते हुए महसूस हुए। मैंने महसूस किया कि हवा अचानक ठंडी हो गई है, और पेड़ की शाखाएँ हिलने लगी हैं, हालांकि कोई हवा नहीं थी।

रामू काका की आंखें बंद हो गईं, और उनका शरीर धीरे-धीरे काली राख में बदलने लगा। मैंने देखा कि राख से एक काला धुआं उठा और मेरी ओर आया। मैं पीछे हटने की कोशिश करता, लेकिन मैं हिल नहीं पा रहा था। धुआं मेरे मुंह और नाक में प्रवेश कर गया, और मुझे लगा जैसे मेरा पूरा शरीर जल रहा हो।

जब मैं होश में आया, तो आरती अभी भी बेहोश थी, और रामू काका का कोई निशान नहीं था - सिर्फ थोड़ी सी काली राख, जिसे हवा उड़ा रही थी।



अगले दिन, मैंने अपने बैंक खाते में पाया कि मेरे पास अब करोड़ों रुपये हैं। मैंने आरती से कहा कि हमें अचानक एक भूले हुए रिश्तेदार से विरासत में मिली है। हमने एक बड़ा घर खरीदा, अच्छी कारें, और हर वह चीज़ जिसकी हमने कभी इच्छा की थी।

लेकिन मुझे जल्द ही पता चला कि रामू काका ने क्या कहा था। हर पूर्णिमा की रात को, मुझे एक अजीब खिंचाव महसूस होता था, बरगद के पेड़ की ओर। और मेरे सपनों में, मैं उन लोगों के चेहरे देखता था जिन्हें मैं प्यार करता था - मेरे माता-पिता, मेरे दोस्त, और हमेशा आरती - उनकी आंखें दर्द से भरी हुई, मुझसे मदद के लिए पुकारती हुई।

पहली पूर्णिमा पर, मैंने इस खिंचाव का विरोध किया और घर पर ही रहा। अगली सुबह, मेरे पिता की अचानक हृदय गति रुकने से मृत्यु हो गई। मैंने समझ लिया कि अगर मैं अनुष्ठान नहीं करूंगा, तो काला जादू खुद ही अपना भोग लेगा।

दूसरी पूर्णिमा पर, मैंने अपने एक पुराने दुश्मन को बरगद के पेड़ के नीचे बुलाया और उसकी बलि दे दी। इस बार, मेरे परिवार के सदस्य सुरक्षित रहे।

ऐसे ही चलता रहा। हर महीने, मैं किसी न किसी को चुनता - कभी एक अपराधी, कभी एक बेघर व्यक्ति, कभी कोई ऐसा जिसे कोई याद नहीं करेगा। मैं अपने आप को समझाता कि मैं बुराई नहीं कर रहा हूँ, कि मैं अपने प्रियजनों की रक्षा कर रहा हूँ।

लेकिन हर बलि के साथ, मुझे महसूस होता कि मेरी आत्मा का एक हिस्सा मर रहा है। मेरे बाल सफेद हो गए, मेरी आंखों में एक खालीपन आ गया, और मेरी त्वचा सूखकर पर्गामेंट जैसी हो गई। मैं रामू काका जैसा दिखने लगा था।



बीस साल बीत गए। आरती की शादी हो गई और उसके बच्चे हो गए। मैं अकेला रह गया, अपने बड़े घर में, अपने पाप के साथ। मैंने कभी शादी नहीं की, यह जानते हुए कि मैं किसी को भी अपने जीवन में नहीं ला सकता था।

फिर एक दिन, आरती की बेटी सोनिया, मेरी भतीजी, मेरे पास आई। वह सिर्फ पंद्रह साल की थी, लेकिन उसकी आंखों में वही चमक थी जो एक बार आरती की थी।

"मामा," उसने कहा, "मुझे आपकी मदद चाहिए। मेरी कक्षा में एक लड़की है जो मुझे परेशान करती है। मैं चाहती हूँ कि वह... चली जाए।"

मैंने उसकी आंखों में देखा और वहां कुछ ऐसा देखा जो मुझे परेशान कर गया - वही महत्वाकांक्षा, वही अंधापन जो एक बार मेरा था।

उस रात, मैंने एक निर्णय लिया। अगली पूर्णिमा पर, मैं बरगद के पेड़ के नीचे गया, लेकिन इस बार अकेला। मैंने अनुष्ठान शुरू किया, लेकिन बलि के लिए किसी और को नहीं, बल्कि स्वयं को चुना।

जैसे ही छुरी मेरे सीने में घुसी, मुझे वही दर्द महसूस हुआ जो रामू काका ने महसूस किया होगा। लेकिन इसके साथ ही एक अजीब मुक्ति का भाव भी था।

मुझे लगा कि मैं मर जाऊंगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इसके बजाय, मैंने महसूस किया कि काला धुआं मेरे शरीर से बाहर निकल रहा है, हवा में तैरता हुआ, जैसे कोई निर्णय ले रहा हो।

फिर, धुआं उड़ गया और मैं अकेला रह गया, अपने खून में, लेकिन अभी भी जीवित। मैंने महसूस किया कि मेरे ऊपर से एक बोझ उतर गया है।



मैं ठीक हो गया, हालांकि वह घाव कभी पूरी तरह से नहीं भरा। मैंने अपनी संपत्ति बेच दी और पैसे दान कर दिए, सिर्फ इतना रखा जितना मामूली जीवन के लिए जरूरी था। आरती और उसके परिवार के साथ मेरे संबंध बेहतर हो गए, हालांकि मैंने उन्हें कभी नहीं बताया कि मैंने क्या किया था।

लेकिन अब सोनिया बदल गई थी , उसकी आंखों में वो अंधकार समा चुका था।

लेकिन अभी भी, हर पूर्णिमा की रात को, मुझे लगता है कि वह काला धुआं मेरे घर के बाहर मंडराता है, मुझे देखता है, इंतजार करता है। काला जादू अभी भी है, इंतजार कर रहा है, और हमेशा एक कीमत मांगता है।