Sannata? in Hindi Horror Stories by Neha jha books and stories PDF | सन्नाटा?

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सन्नाटा?

# सन्नाटा

आज से पांच साल पहले की बात है। मैं हमेशा से ही एक नॉर्मल इंसान था। मेरा नाम अनंत है और मैं दिल्ली के एक छोटे से फ्लैट में अकेला रहता था। मेरी जिंदगी बिलकुल आम थी - सुबह उठो, ऑफिस जाओ, शाम को वापस आओ, खाना खाओ और सो जाओ। हर दिन एक जैसा। लेकिन पिछले हफ्ते से मेरी जिंदगी में कुछ अजीब होने लगा था। ऐसा लगता था जैसे कोई मुझे देख रहा है...हर वक्त...हर जगह।

शुरुआत छोटी-छोटी चीजों से हुई। मैं जब भी अपने फ्लैट में आता, तो चीजें अपनी जगह से थोड़ी हटी हुई मिलतीं। पहले मैंने सोचा कि शायद मैं ही भूल गया होऊंगा कि मैंने उन्हें कहां रखा था। फिर धीरे-धीरे मुझे अपने फ्लैट में अजीब आवाजें सुनाई देने लगीं - कभी रात में कोई खांसता, कभी किसी के पैरों की आहट। मैंने इन सब बातों को अपने दिमाग का वहम समझा और अनदेखा कर दिया।

एक रात की बात है, मैं अपने बेडरूम में सो रहा था। अचानक मेरी नींद खुली। कमरे में अंधेरा था, लेकिन मुझे लगा जैसे मेरे बेड के कोने पर कोई बैठा है। मैंने उस तरफ देखा तो मेरा दिल धड़कने लगा। वहां एक काला सा साया था, जो धीरे-धीरे हिल रहा था। मैं डर के मारे चिल्ला पड़ा और लाइट ऑन की। कमरा खाली था। मैंने पूरे घर की तलाशी ली, लेकिन कोई नहीं मिला। उस रात मैं सो नहीं पाया।

अगले दिन मैंने अपने दोस्त राहुल को फोन किया और उसे सारी बात बताई। वो हंस पड़ा और बोला, "यार, तू बहुत थक गया है। छुट्टी ले ले कुछ दिन की।" शायद वो सही था। मैंने सोचा कि कुछ दिन घर से बाहर जाना ठीक रहेगा। मैंने अपने बॉस से एक हफ्ते की छुट्टी ली और अपने पुराने घर चला गया, जो मेरे माता-पिता के देहांत के बाद से खाली पड़ा था।

जब मैं वहां पहुंचा तो घर धूल से भरा हुआ था। सब कुछ वैसा ही था जैसा मैंने पांच साल पहले छोड़ा था। पुरानी यादें मेरे दिमाग में ताजा हो गईं। मां की मौत, फिर पिताजी का अचानक गायब हो जाना...सब कुछ मुझे याद आ गया। मैंने घर की सफाई की और अपने पुराने कमरे में सो गया।

रात को मेरी नींद अचानक टूटी। मुझे लगा जैसे कोई मेरे कमरे में है। मैंने आंखें खोलीं और देखा - सामने की दीवार पर एक परछाई थी। वो धीरे-धीरे हिल रही थी। मेरा खून जम गया। वो परछाई मेरे पिताजी जैसी लग रही थी। मैंने कांपते हुए आवाज में पूछा, "पापा...आप हैं?" कोई जवाब नहीं मिला। परछाई धीरे-धीरे फैलने लगी और पूरी दीवार को ढक लिया। फिर एक आवाज आई, "बेटा...तुमने मुझे क्यों मारा?"

मैं चीखते हुए उठा और लाइट जलाई। कमरा खाली था। मेरा पूरा शरीर पसीने से भीग चुका था। मैंने खुद को समझाया कि ये सिर्फ एक बुरा सपना था, लेकिन मेरे दिमाग में एक सवाल घूम रहा था - क्या मैंने वाकई अपने पिता को मारा था?

मुझे याद आया कि पिताजी के गायब होने से पहले हमारी बहुत बड़ी लड़ाई हुई थी। मां की मौत के बाद वो बहुत बदल गए थे। वो हर वक्त शराब पीते और मुझ पर चिल्लाते। उस रात हमारी लड़ाई इतनी बढ़ गई थी कि मैंने उन्हें धक्का दे दिया था। वो गिर गए और उनके सिर से खून निकलने लगा। मैं डर गया और वहां से भाग गया। जब मैं अगले दिन वापस आया तो वो गायब थे और घर में कहीं भी खून के निशान नहीं थे। मैंने सोचा कि शायद वो ठीक हो गए होंगे और कहीं चले गए होंगे। पुलिस ने भी कुछ दिनों की तलाश के बाद केस बंद कर दिया था।

लेकिन अब मुझे शक होने लगा था। क्या मैंने वाकई उनकी हत्या कर दी थी? क्या मैंने खून के निशान मिटा दिए थे? मुझे कुछ याद नहीं आ रहा था।

अगले दिन मैंने फैसला किया कि मैं पुराने बेसमेंट में जाकर देखूंगा, जहां हमारी लड़ाई हुई थी। बेसमेंट का दरवाजा खोलते ही मेरी नाक में एक अजीब सी बदबू आई। अंदर जाकर देखा तो सब कुछ धूल से भरा हुआ था। मैंने टॉर्च जलाई और चारों तरफ देखा। एक कोने में कुछ पुराने सामान के पीछे मुझे एक दीवार में दरार दिखाई दी। मैंने उस दरार को खोदना शुरू किया और जो देखा, उससे मेरी रूह कांप गई।

दीवार के पीछे एक लाश थी...मेरे पिता की लाश...पूरी सड़ी हुई। उनके सिर पर चोट के निशान साफ दिख रहे थे। मेरी आंखों के सामने अंधेरा छा गया और मैं वहीं बेहोश हो गया।

जब मेरी आंखें खुलीं, तो मैं अपने पुराने कमरे में लेटा हुआ था। शाम हो चुकी थी। मैंने सोचा कि शायद ये सब मेरा वहम था। मैंने फैसला किया कि मैं वापस अपने फ्लैट लौट जाऊंगा। लेकिन जैसे ही मैं उठा, मुझे एहसास हुआ कि मेरे हाथों पर खून लगा हुआ था...ताजा खून।

मैं डर के मारे चीख पड़ा और बाथरूम की तरफ भागा। मैंने अपने हाथ धोए और खुद को देखा। मेरे कपड़ों पर भी खून के धब्बे थे। मेरा दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। मैं कुछ समझ नहीं पा रहा था कि ये सब क्या हो रहा है। क्या मैं पागल हो रहा हूं?

उसी रात मैंने एक डॉक्टर के पास जाने का फैसला किया। डॉक्टर ने मेरी बात सुनी और कहा, "अनंत , तुम्हें कुछ टेस्ट करवाने होंगे। मुझे लगता है कि तुम्हें डिसोसिएटिव आइडेंटिटी डिसऑर्डर है।" मैंने पूछा कि ये क्या होता है। डॉक्टर ने बताया कि इस बीमारी में इंसान के अंदर अलग-अलग पर्सनैलिटीज होती हैं, और कभी-कभी एक पर्सनैलिटी को दूसरी के किए हुए कामों का पता नहीं होता।

मुझे याद आया कि पिछले कुछ महीनों से मुझे अक्सर ऐसा लगता था जैसे मैंने कुछ घंटे या दिन कहीं खो दिए हैं। कभी-कभी मैं ऐसी जगहों पर पहुंच जाता था, जहां जाने का मुझे कोई याद नहीं होता था। क्या ये सब मेरी दूसरी पर्सनैलिटी कर रही थी?

डॉक्टर ने मुझे कुछ दवाइयां दीं और कहा कि मैं जल्द ही ठीक हो जाऊंगा। मैं वापस अपने फ्लैट आ गया और सोचने लगा कि आगे क्या करना है। क्या मुझे पुलिस के पास जाना चाहिए और सब कुछ बता देना चाहिए? लेकिन अगर मेरी दूसरी पर्सनैलिटी ने वाकई पिता की हत्या की है, तो क्या मैं जेल जाने के लिए तैयार हूं?

उसी रात मुझे एक और सपना आया। मैं अपने पुराने घर के बेसमेंट में था और पिताजी की लाश को दीवार में छिपा रहा था। लेकिन इस बार मैं खुद नहीं था...मैं अपने आप को बाहर से देख रहा था। वो मैं था, लेकिन फिर भी मैं नहीं था। उसके चेहरे पर एक अजीब सी मुस्कान थी और आंखों में एक अजीब सा पागलपन।

जब मैं उठा तो मेरे बगल में एक नोटबुक पड़ी थी, जिसे मैंने कभी नहीं देखा था। मैंने उसे खोला और पढ़ना शुरू किया। उसमें मेरी ही हैंडराइटिंग में लिखा था, लेकिन वो बातें मुझे याद नहीं थीं:

"आज मैंने उसे मार दिया...आखिरकार। वो हमेशा मां को मारता था और मुझे भी। लेकिन अब वो कभी किसी को नहीं मारेगा। मैंने उसके सिर पर इतनी जोर से मारा कि वो तुरंत मर गया। फिर मैंने उसे बेसमेंट में ले जाकर दीवार में छिपा दिया। अनंत को कुछ पता नहीं चलेगा। वो बहुत कमजोर है...हमेशा डरता रहता है। लेकिन मैं डरता नहीं हूं। मैं जो चाहता हूं, वो करता हूं।"

मैं हैरान रह गया। क्या ये मेरी दूसरी पर्सनैलिटी का लिखा हुआ था? मैंने आगे पढ़ा और पाया कि पिछले पांच सालों में मेरी दूसरी पर्सनैलिटी ने और भी कई लोगों को मारा था। मेरे पुराने बॉस को, जिसने मुझे नौकरी से निकाल दिया था...मेरी एक्स-गर्लफ्रेंड को, जिसने मुझे छोड़ दिया था...और यहां तक कि मेरे पड़ोसी को भी, जो हमेशा शिकायत करता रहता था।

मेरे हाथ कांपने लगे। मैं एक सीरियल किलर था? नहीं, मैं नहीं...मेरी दूसरी पर्सनैलिटी...लेकिन क्या फर्क पड़ता है? ये सब मेरे ही हाथों से हुआ था।

मैंने फैसला किया कि मुझे पुलिस के पास जाना होगा। मैं तैयार होकर बाहर निकला, लेकिन जैसे ही मैं अपने फ्लैट से बाहर आया, मुझे अचानक चक्कर आने लगे। मेरी आंखों के सामने अंधेरा छा गया और मैं बेहोश हो गया।

जब मेरी आंखें खुलीं, तो मैं अपने बेड पर लेटा हुआ था। मेरे बगल में वही नोटबुक थी, और उसमें नया पेज लिखा हुआ था:

"प्रिय अनंत , मैं जानता हूं कि तुम इसे पढ़ोगे। तुम बहुत कमजोर हो। तुम पुलिस के पास जाना चाहते हो? तुम मुझे पकड़वाना चाहते हो? याद रखो, अगर मैं जेल गया, तो तुम भी जाओगे। हम एक ही शरीर में हैं। और वैसे भी, मैंने जो किया, वो सही किया। उन सबने हमें दुख दिया था। वे सब मरने के लायक थे। अब चुप चाप रहो, वरना अगली बारी तुम्हारी होगी।"

मैं डर के मारे कांप उठा। क्या मेरी दूसरी पर्सनैलिटी मुझे धमकी दे रही थी? क्या वो मुझे मार सकती है? लेकिन हम तो एक ही शरीर में हैं...ऐसा कैसे हो सकता है?

मैं समझ नहीं पा रहा था कि क्या करूं। एक तरफ मैं चाहता था कि सब सच सामने आ जाए, लेकिन दूसरी तरफ मैं डर भी रहा था। अगर मैं पुलिस के पास गया, तो मुझे उम्रकैद हो सकती थी। लेकिन अगर मैं नहीं गया, तो शायद और लोग मारे जाएंगे...मेरे ही हाथों से।

उस रात मैंने फैसला किया कि मैं खुद को मार दूंगा। यही एकमात्र रास्ता था। मैंने अपनी रसोई से एक चाकू लिया और अपनी कलाई पर रख लिया। लेकिन जैसे ही मैंने चाकू अपनी त्वचा पर रखा, मेरा हाथ जकड़ गया। मैं अपना हाथ हिला नहीं पा रहा था।

फिर मेरे मुंह से आवाज निकली, लेकिन वो मेरी आवाज नहीं थी। "तुम ऐसा कुछ नहीं करोगे, अनंत । मैं तुम्हें ऐसा करने नहीं दूंगा।" मैंने महसूस किया कि मेरा शरीर अब मेरे कंट्रोल में नहीं था। मेरे हाथ ने चाकू फेंक दिया और मैं अपने बिस्तर पर लेट गया। मेरी आंखें खुद-ब-खुद बंद हो गईं और मैं सो गया।

अगली सुबह जब मैं उठा, तो मुझे कुछ याद नहीं था। बस इतना पता था कि मुझे बहुत अजीब सपने आए थे। मैं तैयार होकर ऑफिस के लिए निकल गया, जैसे कि हर रोज निकलता था।

आज भी मैं वही जिंदगी जी रहा हूं। सुबह उठो, ऑफिस जाओ, शाम को वापस आओ, खाना खाओ और सो जाओ। हर दिन एक जैसा। लेकिन कभी-कभी, जब मैं अकेला होता हूं, तो मुझे लगता है जैसे कोई मुझे देख रहा है...हर वक्त...हर जगह। और कभी-कभी, मुझे अपने अंदर से एक आवाज सुनाई देती है: "डरो मत, अनंत । मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूं...हमेशा।"

और फिर मैं सोचता हूं - क्या मैं वाकई अकेला हूं? या फिर मेरे अंदर कोई और भी है...जो मेरे जीवन को कंट्रोल कर रहा है? और सबसे डरावनी बात यह है कि मुझे कभी पता नहीं चलेगा कि सच क्या है।