अब आगे -
माधुरी फीकी मुस्कान के साथ सिर हिला देती है।दाई माँ कहती हैं –
"ठीक है बिटिया, अब हम भी चलते हैं।
इतना कहकर वे कमरे से बाहर निकल जाती हैं।
घर में एक अजीब सा सन्नाटा था। शाम ढल चुकी थी।
तभी माधुरी की सास कमरे में झाँकते हुए तंज कसती है – "अब काम-धंधा भी करेगी कि बस सोती ही रहेगी?"। इतना कहकर वो बिना माधुरी की बात सुने ही पलट जाती हैं। माधुरी का पति भी उस वक्त घर पर नहीं था। वो किसी तरह हिम्मत जुटाकर उठने की कोशिश करती है। तभी उसकी नवजात बच्ची धीमे से रोने लगती है।माधुरी बच्ची की ओर देखती है – उसकी मासूम सी सूरत देख, माधुरी के चेहरे पर हल्की मुस्कान बिखर जाती है।बच्ची भूखी थी, माधुरी समझ जाती है। वह धीरे से उसे अपनी गोद में उठाती है और दूध पिलाने लगती है।
बच्ची की छोटी-छोटी आँखें जब अपनी माँ को निहारती हैं, तो माधुरी के चेहरे पर एक सुकून भरी मुस्कान फैल जाती है।
कुछ देर में बच्ची सो जाती है। माधुरी धीरे से उठती है और कमरे में जाकर सबसे पहले लाइट की जगह एक लालटेन जलाती है।
गाँवों में उस वक़्त लोग मिट्टी के तेल से लालटेन जलाया करते थे क्योंकि बिजली बहुत कम आती थी।माधुरी अलमारी से लोहे की एक पुरानी कील निकालती है और जाकर उसे बच्ची के सिरहाने रख देती है – क्यूंकि गाँव में मान्यता थी कि लोहे की वस्तु रखने से बच्चा डरेगा नहीं और कोई बुरी चीज़ पास नहीं आएगी।फिर वो धीरे से कमरे से बाहर निकलती है। आँगन में जूठे बर्तन वैसे ही बिखरे पड़े थे और ज़मीन पर मिट्टी भी फैली थी।माधुरी झाड़ू उठाकर ज़मीन साफ करती है, बर्तन इकट्ठा करती है और नल के पास जाकर बाल्टी में पानी भरकर उन्हें धोने लगती है।उसके शरीर में ज़रा भी ताक़त नहीं थी, लेकिन काम करनी उसकी मजबूरी थी।
अब वो रसोई में खाना बनाने जाती है, लेकिन लकड़ियाँ नहीं थीं।वो पास के खेत की ओर चल पड़ती है – जहाँ उसके पति श्याम ने लकड़ियों का गठ्ठर रखा था।जैसे ही वो लकड़ी खींचने लगती है, तभी एक काकी अपनी बेटी के साथ खेत से लौट रही थीं।
काकी ने आवाज़ लगाई –"अरे बहुरिया! ये क्या कर रही है?"माधुरी झुककर उन्हें प्रणाम करती है – "कुछ नहीं काकी, खाना बनाने के लिए लकड़ी ले रही
हूँ।"काकी और उनकी बेटी एक-दूसरे का चेहरा देखने लगती हैं।फिर काकी कहती हैं – "अरे कैसी सास है तेरी! आज ही डिलीवरी हुई है और तुझसे काम करवा रही है?ऐसी हालत में तेरह दिन का परहेज़ होता है, ये नियम होता है। रुक, मैं उसे बुलाती हूँ… ।""नहीं काकी! रुकिए ना…" – माधुरी रोकने की कोशिश करती है,लेकिन काकी आवाज़ लगाती हैं –"कमला जरा इधर तो आ !"आवाज सुनकर माधुरी की सास कमला वहां आ जाती है।काकी कहती हैं – "क्या बहुरिया से काम करवा रही हो? जानते हो ये समय अशुद्धि का होता है, और परहेज़ ज़रूरी है!"कमला कहती है –"अरे कहाँ! मैंने तो मना किया था, ये खुद ही नहीं सुनती!"काकी घूरते हुए कहती हैं – "हाँ-हाँ, सब जानती हूँ! तू चुप रह। अगर नहीं होता तुझसे, तो मेरी बिटिया कर देगी काम।"काकी की बेटी आगे आकर कहती है –"हा अम्मा, मैं भाभी के घर जाकर काम कर दूँगी। भाभी, आप आराम करो।"काकी कमला की ओर देखती हैं –"और तू, सुन ले, बहुरिया को थोड़ा खिला-पिला भी दिया कर।कितनी कमजोर हो गई है बेचारी।थोड़ा सा काजू-बादाम, हल्दी, अजवाइन, घी – ये सब सिलवट पर पीस कर दूध में मिलाकर पिलाया कर। इससे ताक़त आएगी।"कमला का मुंह बन जाता है।मन में बड़बड़ाती है –"हां इसने तो मुझे बड़ी खुशी दे दी ना जो इसे मै खिलाऊं पिलाऊं !"काकी पूछती हैं – "क्या हुआ, क्या सोचने लगी?"सास बेमन से कहती है – " हाँ ठीक है, बना दूंगी "काकी मुस्कुराते हुए कहती हैं –"ठीक है, हम चलते हैं। बिटिया को भेज दूँगी।और बहुरिया, तू लकड़ी छोड़, जाकर आराम कर।"माधुरी चुपचाप सिर झुकाकर हाँ भरती है और घर के अंदर चली जाती है।काकी जाते-जाते सास से कहती हैं –"और सुन, बहुरिया को ज़्यादा मत सताया कर। इकलौती बहू है तेरी – थोड़ा प्यार भी दे!"माधुरी की सास आकर आँगन में चारपाई पर बैठ जाती है, और माधुरी अपने कमरे में चली जाती है।थोड़ी देर बाद…श्याम घर आता है। उसके हाथ में झोला (या थैला) था।वो आकर कहता है –"अरे माधुरी, एक गिलास पानी तो ला! और ये सब्ज़ी लाया हूँ, ले जा…"सास ताने मारते हुए कहती है –"क्यों? महारानी अब काम नहीं करेंगी क्या? बहुत खुशियाँ लाई है घर में, अब बस आराम ही करेगी?"श्याम गुस्से में माँ की ओर देखता है –"छोड़ न मां शायद भगवान की यही मर्ज़ी थी। "वो माँ के कंधे पर हाथ रखकर कहता है –"छोड़ माँ… जाने दे " माधुरी पानी लेकर बाहर आती है। श्याम उससे पानी लेता है, पीता है और थैला उसकी ओर बढ़ाते हुए कहता है –"ले, मटर और थोड़ा पनीर लाया हूँ। जाकर सब्जी बना ले।"माधुरी हल्की सी मुस्कराती है, लेकिन सास फिर चिल्लाती है –"क्यों लाया ये सब? इतना महँगा सब्ज़ी! इसके लिए? जोरू का गुलाम बनता जा रहा है तू धीरे धीरे " माधुरी की मुस्कान एक पल में ग़ायब हो जाती है।श्याम गुस्से में कहता है –"पाँव की जूती के नीचे रखता हूँ मैं इसे! और वहीं रहेगी ये सिर पर क्यों चढ़ाऊँ इसे! औरत जात मर्द की बराबरी कभी नहीं कर सकती है वो पैरों के नीचे ही अच्छी लगती है ""और तू क्या खड़ी है इधर? जा, जाकर बना खाना!"माधुरी की आँखें भर आती हैं, वो चुपचाप रसोई की ओर चली जाती है।श्याम कहता है –"माँ, मैं मुँह-हाथ धोकर आता हूँ।"सास हाँ में सिर हिलाती है।श्याम अपने कमरे में जाता है, बनियान उतारकर एक रस्सी पर टांगता है जो कपड़े टांगने के लिए कमरे में बनाया गया था।तभी उसकी नज़र अपनी सोती हुई बेटी पर पड़ती है।वो ठिठक कर रुक जाता है।धीरे से झुकता है…बेटी को छूने के लिए हाथ बढ़ाता है…फिर एक पल को रुककर हाथ वापस खींच लेता है।कपड़े पहनता है और बाहर निकल जाता है।
क्रमशः