DR B R AMBEDKAR in Hindi Motivational Stories by Deepa shimpi books and stories PDF | डॉ बाबासाहेब आंबेडकर का राष्ट्र निर्माण मेंयोगदान

Featured Books
  • જીવન પથ - ભાગ 33

    જીવન પથ-રાકેશ ઠક્કરભાગ-૩૩        ‘જીતવાથી તમે સારી વ્યક્તિ ન...

  • MH 370 - 19

    19. કો પાયલોટની કાયમી ઉડાનહવે રાત પડી ચૂકી હતી. તેઓ ચાંદની ર...

  • સ્નેહ સંબંધ - 6

    આગળ ના ભાગ માં આપણે જોયુ કે...સાગર અને  વિરેન બંન્ને શ્રેયા,...

  • હું અને મારા અહસાસ - 129

    ઝાકળ મેં જીવનના વૃક્ષને આશાના ઝાકળથી શણગાર્યું છે. મેં મારા...

  • મારી કવિતા ની સફર - 3

    મારી કવિતા ની સફર 1. અમદાવાદ પ્લેન દુર્ઘટનામાં મૃત આત્માઓ મા...

Categories
Share

डॉ बाबासाहेब आंबेडकर का राष्ट्र निर्माण मेंयोगदान

डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर का राष्ट्र निर्माण में योगदान – एक प्रेरणादायी कहानी

सन 1930 के दशक की बात है। भारत स्वतंत्रता की ओर बढ़ रहा था, पर समाज में गहरी खाई थी—छुआछूत, जातिवाद और असमानता ने राष्ट्र के ताने-बाने को जकड़ रखा था। ऐसे समय में एक तेजस्वी, निर्भीक और दूरदर्शी व्यक्तित्व ने समाज को नई दिशा देने का बीड़ा उठाया—वे थे डॉ. भीमराव रामजी आंबेडकर।

एक छोटे से गांव में जन्मे भीमराव बचपन से ही भेदभाव का शिकार होते आए थे। स्कूल में उन्हें अलग बैठाया जाता, पानी पीने का अधिकार भी नहीं था। लेकिन शिक्षा उनके जीवन की धुरी बन गई। उन्होंने तय किया कि वे न केवल खुद को शिक्षित करेंगे, बल्कि समाज की बेड़ियों को तोड़ने का काम भी करेंगे।

शिक्षा के क्षेत्र में उन्होंने एक मिसाल कायम की। कोलंबिया यूनिवर्सिटी और लंदन स्कूल ऑफ इकॉनॉमिक्स जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों से उन्होंने डिग्रियाँ हासिल कीं। लेकिन उनका उद्देश्य केवल व्यक्तिगत सफलता नहीं था—वे समाज की जड़ों में फैली असमानता को खत्म करना चाहते थे।

देश जब स्वतंत्रता की ओर बढ़ रहा था, तब भारत के भविष्य के लिए एक मजबूत संविधान की आवश्यकता थी। डॉ. आंबेडकर को संविधान मसौदा समिति का अध्यक्ष बनाया गया। उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि भारत का संविधान हर नागरिक को समान अधिकार दे, चाहे वह किसी भी जाति, धर्म, या लिंग से संबंधित हो।

यहाँ एक प्रेरणादायी प्रसंग जुड़ता है।

एक बार संविधान निर्माण के दौरान एक सदस्य ने पूछा, "डॉ. साहब, क्या दलितों को इतनी स्वतंत्रता देना उचित है? क्या वे इसके योग्य हैं?"

डॉ. आंबेडकर शांत थे, लेकिन उनकी आँखों में आत्मविश्वास चमक रहा था। उन्होंने उत्तर दिया, "स्वतंत्रता कोई दया नहीं, यह प्रत्येक मनुष्य का जन्मसिद्ध अधिकार है। जिस दिन समाज के सबसे अंतिम व्यक्ति को सम्मान मिलेगा, उसी दिन राष्ट्र सच्चे अर्थों में महान बनेगा।"

डॉ. आंबेडकर ने ऐसे प्रावधानों को संविधान में शामिल किया जो समानता, स्वतंत्रता, धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक न्याय की नींव बने। उन्होंने आरक्षण व्यवस्था का प्रस्ताव रखा ताकि पिछड़े वर्गों को मुख्यधारा में लाया जा सके।

राष्ट्र निर्माण केवल राजनीतिक दस्तावेजों से नहीं होता, यह सामाजिक चेतना से होता है—और यही डॉ. आंबेडकर का असली योगदान था। उन्होंने लोगों को आत्म-सम्मान का पाठ पढ़ाया, उन्हें हक की आवाज़ बुलंद करना सिखाया।

उन्होंने श्रमिकों के अधिकारों के लिए काम किया, महिलाओं को समान अधिकार दिलवाने में अहम भूमिका निभाई, और जल नीति से लेकर वित्तीय संरचना तक, हर क्षेत्र में उन्होंने राष्ट्र के आधार मजबूत किए।

एक और प्रेरणादायक घटना

डॉ. आंबेडकर एक बार एक गाँव में भाषण दे रहे थे। एक बूढ़ा व्यक्ति आया और बोला, "बाबा, तुमने हमें जीने का हौसला दिया है। पहले हम खुद को इंसान नहीं समझते थे। अब लगता है कि हम भी इस देश के नागरिक हैं।"

डॉ. आंबेडकर की आँखें भर आईं। उन्होंने कहा, "जब तक इस देश का अंतिम व्यक्ति मुस्कुरा नहीं लेता, तब तक मेरा संघर्ष जारी रहेगा।"

डॉ. आंबेडकर न केवल संविधान निर्माता थे, वे विचारों के क्रांतिकारी थे। उनका सपना था एक ऐसा भारत जहाँ सबको समान अवसर मिलें, जहाँ शिक्षा, स्वास्थ्य और सम्मान पर सबका हक हो।

आज जब हम लोकतंत्र, समानता और न्याय की बात करते हैं, तो यह डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर के दूरदर्शी योगदान का ही परिणाम है।

निष्कर्षतः, डॉ. आंबेडकर ने राष्ट्र निर्माण में वह भूमिका निभाई जो नींव की ईंटें निभाती हैं—अदृश्य होकर भी सबसे महत्वपूर्ण। उनकी कहानी केवल इतिहास नहीं, आज भी हर भारतीय को प्रेरणा देने वाली जीवंत विरासत है।

दीपांजलि 
दीपाबहन रामदास शिम्पी ,गुजरात