Bajarang vijay chalisa – samiksha evm pady - 2 in Hindi Spiritual Stories by Ram Bharose Mishra books and stories PDF | बजरंग विजय चालीसा- समीक्षा एवं पद्य - 2

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बजरंग विजय चालीसा- समीक्षा एवं पद्य - 2

बजरंग विजय चालीसा- समीक्षा एवं पद्य 2

 

 

"बजरंग विजय चालीसा" नामक ग्रँथ हनुमानजी की प्रार्थना में  चालीस छन्द और लगभग 8 दोहों व सोरठा में लिखा गया है। इसके रचयिता भगवान दास थे। जिन्होंने अंत मे  ग्रँथ का रचना काल इस दोहै में कहा है-

होरी पूनै भौम संवत उन इस सौ साठ।

चालीशा बजरंग यह पूरण भयो सुपाठ।।

बाद में इसकी प्रतिलिपि तैयार करते समय तिथि और लेखक कवि का उल्लेख किया गया है-

समर विजय बजरंग के कौउ बरन न पावे पार।

कहें दास भगवान किमि अति मतिमन्द गंवार। (दोहा क्रमांक 8)

 

श्रुभग साठ की साल, चैत्र कृष्ण एकादसी।

वणिक धवाकर लाल, लिखी दास भगवान यह।।( चालीसा के अंत का सोरठा)

इस ग्रंथ की सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह चालीसा हिंदी के छंद शास्त्र के सबसे कठिन छन्द में से एक किरवान  छन्द  में लिखा गया है , जो वीर रस के ग्रँथों में उपयोग किया जाता था। किरवान छन्द  में चार-चार मात्राओं के चार हिस्से एक पंक्ति में आते हैं। पँक्ति के अंतिम शब्द से हर पंक्ति के अंत  की तुक मिलती है। इस परकार यह दुर्लभ कठिन छन्द है। इसे धुन के साथ बोलना भी जटिल है । इसके अलावा इस पुस्तक में लगभग 11 है दोहै भी लिखे गए हैं । कुछ दोहे प्रार्थना में चालीसा के अंत में लिखे गए हैं। उनको अलग क्रमांक दिया गया है।   संवत 1960 यानी 122 वर्ष पहले इस ग्रंथ की रचना की गई थी। उस समय काव्यशास्त्र में ब्रजभाषा का प्राधान्य था। इस ग्रंथ की भाषा ब्रज है। कुछ शब्द बुंदेली के भी मिल जाते हैं । कवि  किस ग्राम सड़  रहने वाले थे, इसके बारे में ग्रंथ में कोई उल्लेख नहीं है, वे हनुमान जी से प्रार्थ्ना करर्ते हैं कि सड़ गांव मे प्लेग न फैले, वे मूल चंद बुध लाल पर क्रुपा करनेकी भी स्तुति करते हैं  ।  हां, नागरी प्रचारिणी सभा में जो अभिलेख रखा गया है, पूर्व में जो पोथियाँ  गांव गांव में खोजी गई हैं उसमें भगवान दास नाम के कवि हो सकते हैं । अगर ऐसा ज्ञात होता है तो उनके बारे में अलग से नोट लिखा जाएगा ।फिलहाल यह दुर्लभ ग्रंथ हमको खोजने के बाद प्राप्त हुआ है। जिसमें हनुमान जी की स्तुति बहुत ही नए प्रकार से की गई है। मूल कथा गोस्वामी तुलसीदास जी के सुंदरकांड की तरह ही है लेकिन कई जगह अपने नए प्रयोग हैं जैसे लंका जलाते समय हनुमान जी से कुंभकरण की पत्नी का यह कहना कि मेरा पति सो रहा है उसे न जलाइए । लंका को हवन कुंड मानकर एक रूपक भी खड़ा किया है जिसमें पूछ को शुरुआत नर नारी को निशाचारों को समिधा मानकर हनुमान जी द्वारा यज्ञ करना बताया गया है । इस तरह तमाम अलंकारों, तमाम रस इसमे हें। मुख्य तौर पर वीर रस में लिखा गया यह ग्रंथ साहित्यिक मित्रों को भी, साहित्य प्रेमियों को भी अच्छा लगेगा और हनुमान जी के भक्तों को तो यह वरदान की तरह प्रतीत होता है। इस ग्रंथ के छंद भी संलग्न किए जा रहे हैं-

 

 

 

फल लगे देख रूख, मोहि अतिशय भूख, दीजे आयसु अदूख, मातु अति सुख मान ॥

कहितात तुम जाहु, अति मीठे फल खाहु, हिय राम को प्रभाव,धर कीन्हों है पयान ॥

चढ़ वृक्ष फल खाये, कछु टोर के बहाये, रखवारे देख धाये, गहि परिघ कृपान ॥

रामचंद्र जू कौ दूत, महावीर मजबूत, भट समर सपूत बजरंग हनूमान ॥ ९९॥

 

रखवारे करे खीश, देख जम्बुमाली  रीश, धायौ ताकेतरु सीश, हनो भयौ बिन प्रान ॥

 पंच महारथी बीर, देख गरज गंभीर,मारे सनमुख तीर, धाये कीरश नियरान ॥

 तिन्हें लूम से लपेट, दये फेंक सरपेट, मारे खेत चरपेट, झरपेट बलवान ॥

रामचंद्र जू कौ दूत, महावीर मजबूत, भट समर सपूत बजरंग हनूमान॥१२॥

 

 

तरु तोरे असरार, डारे रैनचर मार, कही रावनै  पुकार, भागें जौन लेके प्रान ।

आयौ एक कपि भारी, सब बाटिका उजारी, वीर डारे तिहि मारी, भारी शैल के समान।

 सुन रावण गुहार, भेजो अक्षय कुमार, चलो संग लै जुझार, तिन घेरो कपि ज्वान ।।

रामचंद्र जू कौ दूत, महावीर मजबूत, भट समर सपूत बजरंग हनूमान ॥१३॥

 

कपि देखकें गराज, धायो वृक्ष ले दराज, रक्ष पक्षिन समाज, मनौ बाज गिरौ आन ।।

एक एक नर पेट, मारे दौर है दपेट, चाप चरण चपेट,जुरो अक्ष समुहान। ।।

जैसे मची खिलबार, पग पकड़ पछार,अक्ष मार करो छार,  लागे सुभट परान्।

 रामचंद्र जू कौ दूत, महावीर मजबूत, भट समर सपूत बजरंग हनूमान।।१४।।

 

 

तब भग्गुलन जाय, कही रावणे सुनाय, हिय सोच सरसाय, दशकंठ मुरझान।

कर क्रोध यौ विषाद ,तब बोलो मेघनाद, जुट सब मनुजाद, सुनै सोच सरसान ॥

दशसीश कहि रीश, गहि ल्याबो  बल कीश, देखों कौन ताको ईश, कौन कैसो  बलवान ।

रामचंद्र जू कौ दूत, महावीर मजबूत, भट समर सपूत बजरंग हनूमान।।१५।।

 

चलो खल दल सज्ज,रत्थ चढि वंव, वज्ज  मेघनाद गल गज्ज, भयौ वाग समुहान  ॥

तब देख कवि वीर,आयौ महा रणधीर ,गल गरज गंभीर, प्रलै मेघ के समान ॥

भारी विटप उपार, गहि रथ पर मार, कियौ व्याकुल जुझार,गिरौ भूमि मुरझान।

रामचंद्र जू कौ दूत, महावीर मजबूत, भट समर सपूत बजरंग हनूमान ॥१६॥

 

कर विकट झपट्ट, बाज रथन के ठट्ठ,  गज सुंडधर  फट्ट, मारे मीज जातुधान ॥

कर पग बिन साये बहु धूर में मिलाये ,मुंड टोर के बहाये, फिर रुण्ड मयदान ।।

कपि खेले जैसे फाग, गए निशिचर भाग, को उसा मुहैन लाग,छोड संगर परान ॥

रामचंद्र जू कौ दूत, महावीर मजबूत, भट समर सपूत बजरंग हनूमान ॥ १७॥

 

इंद्र‌जीत चेत होय, छांडो ब्रह्म सर सोय, लियो ओढ बीर जोय,राखी महिमा जहान ।

गिरो मूरछित होय,जुर मिल सब सोय, बांध नाग पांस जोय, चले लैके जातु धान ।।

दश सिर दरबार, करी जायके जुहार, देख कोपि कै सुरारि, हिये धारि के  गुमान ।

रामचंद्र जू कौ दूत, महावीर मजबूत, भट समर सपूत बजरंग हनूमान॥ १८।।

 

कहै दशमुख बात, कैसे टोरे तरु   पात, करे रैनचर घात, बल कौन के अजान ।।

 तोहि  प्राण की न संक, देखों अति निरशंक, मोहि जानत न रंक, हरौ इन्द्र कौ गुमान ।

तब बोले बजरंग, अरे त्रिय चोर बंग, राम दूत हों अभंग, जिन्हें जानत जहान ।

रामचंद्र जू कौ दूत, महावीर मजबूत, भट समर सपूत बजरंग हनूमान ॥१९॥

 

जाहि जपत महेश, गुण  गावत हमेश, पार पावत न शेष, बेद नैत के बखान ।।

जिन्हें ध्यावत गणेश, अरु शारद दिनेश, सनकादिक सुरेश,कहें  जासु गुणगान ॥

जाके बल के समान, तीन लोक मै न आन, तू न जानत नदान, अरे दूरख 'अजान ।

रामचंद्र जू कौ दूत, महावीर मजबूत, भट समर सपूत बजरंग हनूमान।। 20।।