हनुमान शतक- समीक्षा एवं पद्य 4
हनुमान शतक सवैया कविता और दोहों में रचा गया 100 छंदों का ग्रंथ है। जो महा कवि करुणेश "द्वारका" द्वारा सम्वत 2012 के वैशाख माह की तृतीया तिथि रविवार को रचे गए छंदों का संकलन है( 100 वे छन्द के बाद का दोहा अनुसार) इसके कुछ छंदों में जहां कवि का नाम करुणेश आता है, और कुछ छंदों में द्वारका आता है। एक विद्वान का मत है कि संभवत: यह द्वारका और करुणेश दो कवियों के हनुमान जी की स्तुति के छंदों का संकलन है। बहरहाल हम दोनों कवियों को एक ही मानते हुए इस पुस्तक पर यहां विचार कर रहे हैं।
यह पुस्तक 100 छंदों का संकलन है।
इस पुस्तक में हनुमान जी के विभिन्न महान कार्यों और उनके श्री राम की सेवा में बल, बुद्धि समेत संपन्न किए गए कार्यों का उल्लेख है । हनुमान जी की स्तुति भी इसमें अनेक रूप में की गई है। निष्पक्ष दृष्टि से देखा जाए तो अगर हनुमान पताका, हनुमान साठिका,बजरंग बत्तीसी की तुलना में और हनुमान बाहुक की को की तुलना में इन छंदों को देखा जाए तो ऐसा लगता है कि कवि करुणेश 'द्वारका' के आरंभिक रचनाओं में यह ग्रँथ रहा होगा। जो संस्कृत निष्ठ हिंदी और समृद्ध छन्द की परंपरा हनुमान पताका वह अन्य ग्रँथों में मिलती है इस ग्रंथ में अभी विकास के दौर में वह चल रही थी। लेकिन प्रभु स्तुति, हनुमान जी की प्रार्थना तो किसी भी रूप में की जाए, किसी भी छन्द में की जाए, सदैव उसकी सराहना की जानी चाहिए। अतः हनुमान जी की उपासना के इस ग्रंथ को हनुमान जी के चरणों में कवि करुणेश द्वारका की विनम्र स्तुति मानकर इसकी प्रशंसा की जानी चाहिए। ग्रंथ के कुछ छंदों का यहां उदाहरण प्रस्तुत किया जा रहा है-
:-60-:
दीनों की पुकार सुन दौड़ते तुरन्त आप करते न देर फल देते मन चावनो ।
तापों को मिटाते और जिताते कही कोट बीच. संकट मिटाते कही सो भी समझावनो ।।
दुष्टन दुखायों कहीं शत्रुन सहारौ कही. द्रव्य दिलवाते ऐसे ध्यान दिलवावनों ।
दास "द्वारिका" को अपनाओ दुख मैटो वेग छोड़ो या नाम संकट मोचन कहावनौँ ।
-61-:
आय के परों मैं दास चरण तिहारे नाथ, चिन्ता को हटाकर दुःस्वपन को नसावनों ।
दुख को निबारो अरू शोक को विनाशो सब, संकट हटाओ अब शीघ्र अपनावनौ ।।
राम की शपथ तुम्हें कष्ट सब नष्ट करौ, पुष्ट करो तनु वेग पातक नसावनौ ।
दास "द्वारिका" को अपनाओ दुख मैंटो वेग, छोड़ो या नाम संकट मोचन कहावनौँ ।।
62-:
जो पै कही दोगे नही ध्यान रंच शीघ्र नाथ, जानेंगे चाहत आप दावा करवावनौ ।
मानेंगे न नेक हम राम की कचहरी में, देगे प्रमाण जिमि मुझको विसरावनौँ ।।
तासें मान जाओ नही होगी हंसी दोनों की, होगा यही अच्छा आपस में निवटावनौं ।
दास "द्वारिका" को अपनाओ दुख मैटो वेग, छोड़ो या नाम संकट मोचन कहावनौँ ।।
:-63-:
मानना पड़ेगा जब हुक्म राम चन्द्र जी का. तब ना चलेगौ ये वहानों मन भावनों ।
टारना पड़ेंगे वेग संकट हमारे नाथ, मेंटना पड़ेंगे दुख सोकन नसावनौं ।।
तासें मान जाओ व्यर्थ झगड़ा बढ़ाओ नही, सार है इसी में आपस में निवटावनौं ।
दास "द्वारिका" को अपनाओ दुख मैटो वेग, छोड़ो या नाम संकट मोचन कहावनौँ ।।
:-64-:
विनती यही है अब दास की हजार बार, अच्छा नही होगा अब अधिक सतावनौं ।
काम न चलेगो मौन साधे बैठ रहने में, हो गयौ बिलम्व अब वेग अपनावनौं ।।
स्वामी आप मेरे हम सेवक तिहारे नाथ, हाथ है तिहारे बेड़ा पार ये लगावनौं ।
दास "द्वारिका" को अपनाओ दुख मैटो वेग, छोड़ो या नाम संकट मोचन कहावनौँ ।।
-65:
एक विजय भानू को भक्ष कियो कौतुकही दूजी बार संकट सुकण्ठ को उवारौ है ।
तीसरे बचाये प्राण आप भालू कपियों के चौथे सुरसा को मान चूर कर डारौ है ।।
पांचवी विजय जो उलांघ गये सागर हूँ, छठवी विजय हेतु अक्षय सँहारो है ।
दास "द्वारिका" की लाज नाथ है तिहारे हाथ, कीजिये विजय प्रभु शरण तिहारौ है ।।
-66-:
सांतवी विजय वहीं सीता सुध लीनी जाय. आठवी विजय बाग नौ लखा उजारौ है ।
नोवमी विजय हेतु लंका हू जलाई नाथ, दसवों मधुवन को नष्ट कर डारौ है ।
ग्यारही विजय विनाश किया असुरों का, द्वादश में प्राण लक्ष्मण को उवारौ है।
दास "द्वारिका" की लाज नाथ है तिहारे हाथ, कीजिये विजय प्रभु शरण तिहारौ है ।
:-67-
तेरवीं विजय घननाद यज्ञ नष्ट कियो, चौदवीं विजय अहिरावण संहारौ है।
पन्द्रवी विजय कियो मूर्छित दसानन को, सोलहवें जाय कष्ट सीय को निवारौ है ।।
कहां लो बखानौ प्रभु जानत जहान सारौ, पाई है विजय कार्य जौन सो संभारौ है।
दास "द्वारिका" की लाज नाथ है तिहारे हाथ, कीजिये विजय प्रभु शरण तिहारौ है ।।
-68-:
लाल लाल गोल गोल सूरज विलोक कर. बालक स्वभाव फल आपने विचारोहै।
दौड़कर आपने दबाया उसे मुँख महि, तो कोई भी देव सको संकट न टारो है ।।
विनत्ती सुन देवों की आपने ही पल माहि, मुख सों उवार नाथ भानु ताप टारौ है ।
दास "द्वारिका" की लाज नाथ है तिहारे हाथ, कीजिये विजय प्रभु शरण तिहारौ है ।।
:-69-
बालि औ सुकण्ठ युग बन्धु रहे साथ साथ प्रेम अति बाढ़ौ नहि कपट निहारौ है।
आकर असुर ने ललकार दीनी बाली को. तो बाली ने ताहि दौड़ मारवों विचारौ है ।।
पीछे से सुकण्ठ गयौ बन्धु की सहाय हेतु. पाख को वचन दे गुफा पगु धारौ है ।
दास "द्वारिका" की लाज नाथ है तिहारे हाथ कीजिये विजय प्रभु शरण तिहारौ है ।।
:-70-:
एक मास बीतौ नहि बालि को निहारौ तब, आय के सुकण्ठ राजपाट को सँभारौ है।
दानव सँभार आय बाली क्रोध कीन्हो अति राजपाट नारी ले सुकण्ठ को निकारौ है ।।
राम को मिलाये और बाली मरवाय, राजपाट सब दिलाय सुग्रीव दुख टारौ है ।
दास "द्वारिका" की लाज नाथ है तिहारे हाथ, कीजिये विजय प्रभु शरण तिहारौ है ।।
-71-
सीता जी की खोज को बुलाये भाकपियों को. ऐसे बचन तब कपि पति उचारो है ।
जाओ और खोजो पर लौटो द्वय पाख मांहि, बिनु सुघ पाये आये मरण तिहारौ है ।।
धाये बलवीर और लाये खबर सीता की, सर्व कीस भेंटे प्रभु संकट निवारो है ।
दास "द्वारिका" की लाज नाथ है तिहारे हाथ, कीजिये विजय प्रभु शरण तिहारौ है ।।
-72-
सुरसा निहारो मग जात वीर पौन पुत्र, भक्षन हित धाई यों बचन उचारौ है।
जाँऊ सुध लाऊँ सीय राम को सुनाऊँ तब, आऊँ करो भक्ष मानो कहन हमारौ है ।।
वाढ़ी अति जिद देख हो गये तैय्यार पुनि. मुख में प्रवेश कर बाहर सिधारौ है।
दास "द्वारिका" की लाज नाथ है तिहारे हाथ' कीजिये विजय प्रभु शरण तिहारौ है ।।
:-73-:
नदियों का ईश और रत्नों की खान पुनि, लक्ष्मी जन्म दाता ऐसो सागर निहारौ है ।
सैकड़ों योजन तक जाको विस्तार देख, कोऊ न त्रिलोक में जो लांघ जाय सारो है ।।
सिन्धु है अजीत ताहि लांघ जाय पाई आप, राम काज कीन्हो कष्ट सबको निवारौ है ।
दास "द्वारिका" की लाज नाथ है तिहारे हाथ, कीजिये विजय प्रभु शरण तिहारौ है ।।
74-:
लंक में निशंक जात देखो जब लंकिनी ने, रोकी है वाट ताहि मूर्छित कर डारो है ।
जाय के निहारो एक रावण को पुत्र वली. काल से न हारौ नाम अक्षय पुकारौ है ।।
आय वरयाय युद्ध कीनों सो अकारण ही, भूमि पर पछाड़ ताहि वेग ही सँहारो है ।
दास "द्वारिका" की लाज नाथ है तिहारे हाथ. कीजिये विजय प्रभु शरण तिहारो है ।।
:-75-:
जान सब हाल गये वागहि तत्काल आयौ, रावण ज्यों काल सीय डाटत निहारौ है ।
जब गयो वह भाग सीय मांगी तब आग, मुंदरी दी डार लखी सीय शोक भारौ है ।।
हाल राम को समस्त आप वरणों प्रत्यक्ष, की विनती समक्ष सर्व शोक सो निवारौ है ।
दास "द्वारिका" की लाज नाथ है तिहारे हाथ. कीजिये विजय प्रभु शरण तिहारौ है ।।
:-76-
जो लागी बहु भूख, फल खाय दे हूँक और, तोड़े सब रूख ध्यान राम उर धारौ है ।
दीन वाटिका उजार बहु निश्चर संहार, कछु भागे दरवार और हा हा पुकारे है ।।
हो ऐसे बलवीर शीघ्र नाशी पर पीर और, दीन हितकारी मोहि आपको सहारौ है।
दास "द्वारिका" की लाज नाथ है तिहारे हाथ, कीजिये विजय प्रभु शरण तिहारौ है ।।
77
बांध ब्रद्धा फांस सो गयो ले घननाद जब, पूंछ को जलायो ये मंत्र सब विचारौ है ।
लाये सब घी, वस्त्र, तेल निज घर घर से. लूम सो लपेट तब पावक प्रचारौ है ।।
कूद के अट्टान पै सो लंकहू जलाई खूब पूंछ को बुझाय राम कारज संभारो है ।
दास "द्वारिका" की लाज नाथ है तिहारे हाथ. कीजिये विजय प्रभु शरण तिहारौ है ।।
-78-:
बाग इक कपीश को मधुवन कहावै जो. रक्ष कन मार नष्ट भ्रष्ट कर डारो है।
ऐसो वरदानी बिन सीता सुधि लाई कोई, फल ना सकेगो खाय कोऊ भट मारौ है ।।
रक्षकों ने जाकर जब यह पुकार करी, जाना सुधि लाये कार्य राम को संभारौ है ।।
दास "द्वारिका" की लाज नाथ है तिहारे हाथ कीजिये विजय प्रभु शरण तिहारौ है ।1
:-79-:
रावण पठायो दल योद्धा युद्ध करने को, अति बलवान अस्त्र शस्त्र संम्हारो है।
कालो है भयंकर कवच तनु धारो ऐसो कालते ना हारौ जय रावण पुकारौ है ।।
पेड़ों अरू पहाड़ों की कीनी तब भार नाथ, रूण्ड-मुण्ड नाचे यों सर्व दल संहारौ है ।
दास "द्वारिका" की लाज नाथ है तिहारे हाथ, कीजिये विजय प्रभु शरण तिहारौ है ।।
80
कीनों अति घोर युद्ध आप इन्द्रजीत जब छल-बल सों मायावी मरत ना मारो है।
मारे अति विशिष्ट और माया वाण बहु. लक्ष्मण ने वेग तिन्हें काट के निवारो री है ।।
मार ब्रम्ह शक्ति मूर्छित किये लक्ष्मण को, संजीवन लाये प्राण शेष को उवारो है।
दास "द्वारिका" की लाज नाथ है तिहारे हाथ, कीजिये विजय प्रभु शरण तिहारौ है ।।