Hanuman Shatak - Samiksha evm Padya - 1 in Hindi Book Reviews by Ram Bharose Mishra books and stories PDF | हनुमान शतक- समीक्षा एवं पद्य - 1

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हनुमान शतक- समीक्षा एवं पद्य - 1

हनुमान शतक- समीक्षा एवं पद्य

 

हनुमान शतक सवैया कविता और दोहों में रचा गया 100 छंदों का ग्रंथ है। जो महा कवि करुणेश "द्वारका" द्वारा सम्वत 2012 के वैशाख माह की तृतीया तिथि रविवार को रचे गए छंदों का संकलन है( 100 वे छन्द के बाद का दोहा अनुसार) इसके कुछ छंदों में जहां कवि का नाम करुणेश आता है, और कुछ छंदों में द्वारका आता है। एक विद्वान का मत है कि संभवत: यह द्वारका और करुणेश दो कवियों के हनुमान जी की स्तुति के छंदों का संकलन है। बहरहाल हम दोनों कवियों को एक ही मानते हुए इस पुस्तक पर यहां विचार कर रहे हैं।

 यह पुस्तक 100 छंदों का संकलन है।

 इस पुस्तक में हनुमान जी के विभिन्न महान कार्यों और उनके श्री राम की सेवा में बल, बुद्धि समेत संपन्न किए गए कार्यों का उल्लेख है । हनुमान जी की स्तुति भी इसमें अनेक रूप में की गई है। निष्पक्ष दृष्टि से देखा जाए तो अगर हनुमान पताका, हनुमान साठिका,बजरंग बत्तीसी की तुलना में  और हनुमान बाहुक की को की तुलना में इन छंदों को देखा जाए तो ऐसा लगता है कि कवि करुणेश  'द्वारका' के आरंभिक रचनाओं में यह ग्रँथ रहा होगा। जो संस्कृत निष्ठ  हिंदी और समृद्ध छन्द की परंपरा हनुमान पताका वह अन्य ग्रँथों में मिलती है इस ग्रंथ में अभी विकास के दौर में वह चल रही थी। लेकिन प्रभु स्तुति,  हनुमान जी की प्रार्थना तो किसी भी रूप में की जाए, किसी भी छन्द में की जाए, सदैव उसकी सराहना की जानी चाहिए। अतः हनुमान जी की उपासना के इस ग्रंथ को हनुमान जी के चरणों में कवि करुणेश द्वारका की विनम्र स्तुति मानकर इसकी प्रशंसा की जानी चाहिए। ग्रंथ के कुछ छंदों का यहां उदाहरण प्रस्तुत किया जा रहा है-

 

 

हनुमान शतक

 

/ जय श्री राम //

0

// श्री मन्महागणाधिपतयेनमः //

 

आवाहन

 

कवित्तः-

 

दर्श हेतु दीन बन्धु बीर बजरंगी शीघ्र  पूजाहित आज हम आवाहन कीन्हा है ।

आईये पधारिये, अरू कीजे स्वीकार नाथ चाहे ये कुटिया को, हम पवित्र कीन्हा है ।।

सुन्दर सलौने न वस्त्र हैं दयालु पास लीजै अपनाय लघु आसन में दीन्हा है ।

 कहै करूणेश आशा पूजिये हमारी नाथ लीजै हरसाय जो संकल्प हम कीन्हा है ।। (1)।।

 

 

 

 पूजा विधि

 

कीजै स्नान नाथ, गंगा के जल से खूब चन्दन कस्तूरी को मिलाय कें लगाये हैँ।

 चावल चढ़ाय आप लीजै अपनाय वस्त्र अधिक सुगन्ध पुष्प लाय कें चढ़ाये हैँ।

भोजन के हेतु है समर्पित पकवान मीठे अति है पवित्र जल लीजै अपनाये हैँ  ।

 कहें करूणेश है सुगन्ध धूप गूगर की दर्श पाय पूजा कर मैने सुख पाये  हैँ।   (2)

 

:: श्री हनुमान प्रार्थना :-:

 

सुन्दर सुवर्ण और बज्र सौ कठोर अंग शीश पैं किरीट पाय पैजनी सुहाये  हैँ।

 राम के उपासी ऐसे भाल पै तिलक सोहै गदा कर दायें वायें द्रोणागिरि भाये हैँ।

तन में सिंदूर और कंकण सुहावै कर निश्चर संहार नाथ पाँयन दबाये हैँ ।

 कहें करूणेश ऐसी शोभा ना बखानी जात दर्श पाँय पूजा कर मैंने सुख पाये  हैँ ।। (3)

 

मुक्तन की माल है सुहात तुव कण्ठ माहि बाहुन विजाय ठये अति ही सुहाये हैँ।

 गले गलजन्दा छवि न्यारी अति नेकर की कुण्डल सलौने त्यों कानन छवि छाये हैँ।

 सुन्दर मुखार विन्द चहरा चमकीला त्यो मधुर मुस्कान यों हमारे मन भायें  हैँ।

 कहै करूणेश ऐसी शोभा ना बखानी जात दर्श पाँय पूजा कर मैंने सुख पाये हैँ।।(4)

 

दोहा:-

 

जै गणेश गिरजा सुमन विघ्न हरण गजराज ।

कंठ विराजौ आय मम पूरण हो सब काज।।

वास कीजिये जीभ पर शारद् माता आन ।

पूरण होवै काज यह दीजौ बुद्धि महान् ।।

संकट मोचन भय हरण विद्या बुद्धि निधान ।

महावीर करूणा अयन मैटो कष्ट महान ।।

 संकट नाशन भय हरण टारन बहु दुख द्वन्द।

विघ्न विनाशन पवन सुत मेंटहु भव भय फन्द।।

 

- मंगला चरण:

 

 

 सुख दायक मंगल करण नाशन पाप कलाप।

सतक बीर बजरंग कौ हरण सकल संताप ।।

 

विनय करूँ चरणन परूँ सुनिये श्री बजरंग ।

सुनो सतक मम कष्ट सब शीघ्र करो प्रभु भंग

 

कवित्त-

 

:-: अथावटाष्टकम :-:

 

-1-

 

टेरत है हनुमान बली, करूणा करके यह दास तिहारौ ।

बाढ़ रहे खल शत्रु घने, नहि और दिखात बचावन हारौ ।।

मातु पिता सब स्वारथ मीत, तू ही सब कष्ट निबारण हारौ ।

संकट वेग हरौ हनुमान प्रभु, अब संकट मोचन नाम तिहारौ ।।

2

द्वार फिरौ सब देवन के कर यत्न अनेक परौ मन हारौ ।

 तंत्र किये बहु मंत्र जपे अरू जो कछु सूझ परौ कर डारौ ।।

नाथ तिहारे समान तुम्ही. नहि दूसर संकट मेंटन हारौ ।

संकट वेग हरौ हमरौ अब, संकट मोचन नाम तिहारौ ।।

 

-3-

 

जान किये अन्जान किये हम, जो कछु पाप किये सब टारौ।

 भार ना जात सहौ हम सों, करूणानिधि वेग तुम्ही निरवारौ ।।

 दैहिक, दैविक, भौतिक या, मम जो कछु संकट हो सब टारौ ।

संकट वेग हरौ हमरौ, अब संकट मोचन नाम तिहारौ ।।

 

-4-

 

प्राण पियारी परी दुख में, अरू कोऊ ना बच्चन कौ रखवारौ।

क्लेश बड़ौ सिर आन परौ, धन पास ना मित्र दिखात हमारौ ।।

 हे बलवीर दया करियें, हरिये दुख वेग ना आन सहारौ ।

संकट वेग हरौ हमरौ. अब संकट मोचन नाम तिहारौ ।

5

मुक्तन की माल है सुहात तुव कण्ठ माहि बाहुन विजाय तये अति ही सुहाये है।

गले गलजन्दा छवि न्यारी अति नेकर की कुण्डल सलौने सलौने त्यों कानन छवि छाये है।

सुन्दर मुखार विन्द चहरा चमकीला त्यो मधुर मुस्कान यों हमारे मन भायें है ।

कहै करूणेश ऐसी शोभा ना बखानी जात दर्श पौय पूजा कर मैंने सुख पाये है 11(4)

 

 

-5-

 जीवन नाव परी मझधार, दिखात नहीं अब खेवन हारौ ।

 वेग दया कर पार करौ, नहि डूबत है अब दास तिहारौ ।।

नाथ सनाथ करौ हम कों, तन सों, मन सों निज दास तिहारौ ।

संकट वेग हरौ हमरौ, हनुमान अब संकट मोचन नाम तिहारौ ।।

 

:-6-:

 

राम सुमित्र बनाकर नाथ, हरौ तुम कष्ट कपीशहु भारौ ।

खोजत वेग अशोक तरें, सु दे मुदरी सिय शोक निवारौ ।।

लाय संजीवन वेगहि नाथ, सु-लक्ष्मण के तुम प्राण उवारौ ।

 संकट वेग हरौ हमरौ, अब संकट मोचन नाम तिहारौ ।।

 

:-7-:

 

रामहिं काज अनेक किये, कहँ लों वरणों जग जानत सारौ।

पीर परी जब भक्तन पै. तब वेगहि जाकर दीन सहारौ ।।

 देर करी अब क्यों बलवीर, पुकारत आरत दास तिहारौ ।

 संकट वेग हरौ हमरौ, अब संकट मोचन नाम तिहारौ ।।

 

8

 

टेरत "द्वारका" द्वार खड़ौ. अब स्वामी दया कर वेग निहारौ ।

जो कछु भूल भई हम सों, सब नाथ क्षमा कर दास तिहारौ ।

 जो कछु लाज गई हमरी सब भाँति सदा उपहास तिहारौ ।

संकट वेग हरौ हमरौ अब संकट मोचन नाम तिहारौ ।।

 

:-9-:

 

प्रीति को जुड़ाई गिरवासी वन बानी बीच, संकट कपीस के मिटाये वेग सारे  हैं  ।

सुरमा मद मार पछार लंकिनी निसंक, मुदरी दिखाय सिय सोच सब टारे हैं  ।

 बाटिका उजार पुनि लंक पुरी जार बहु . निश्चर संहार पास राम के पधारे हैं  ।

द्वार पै तिहारे दीन "द्वारका" पुकारे नाथ, राम काज सारे काज केतिक हमारे  हैं   ।।

 

:-10:

 

क्रोधित घननाद की चलाई ब्रह्म शक्ति से, मूर्छा खा गिरे भूमि लक्ष्मण विचारे हैं  ।

 

ऐसी दशा को देख विकल भये रामचन्द्र, शिथिल भये मंत्री कपि हा हा पुकारे हैं  ।

संजीवन लाये और बचाये प्राण लक्ष्मण के. पुष्प बरसाये देव जय जय उचारे हैं  ।

द्वार पै तिहारे दीन "द्वारिका" पुकारे नाथ, राम काज सारे काज केतिक हमारे हैं।

 

11-

 

युद्ध कियौ रात में अचानक घननाद ने, नाग फांस डार सब ही को बांध हारे हैं  ।

 राम के समेत सभी दल को महान कष्ट, सूझ में न आवै कैसे संकट निवारे हैं  ।

आपने विचार के बुलाये खग राज और, फांस कटवाये वेग संकट निवारे हैं  ।

द्वार पै तिहारे दीन "द्वारका" पुकारे नाथ. राम काज सारे काज केतिक हमारे हैं  ।।।

 

:-12-

 

जब अहिरावण श्रीराम-लक्ष्मण दोनो को, ले गयौ पाताल बलि देन सो विचारे हैं  ।

 ताही समय काली की मूर्ति में प्रवेश कर, रावण समेत सब निश्चर संहारे हैं  ।

राज पाट सोंप निज पुत्र मकरध्वज को. लंका में आये सब जय जय उचारे हैं  ।

 द्वार पै तिहारे दीन "द्वारका" पुकारे नाथ, राम काज सारे काज केतिक हमारे हैं  ।

 

-13-

 

बाल समय सूर्य को निगल गये कौतुक ही, छायौ अंधकार तीनों लोक हू पुकारे  हैं  ।

 

आये सब देव कीन्ही विनती सहस भांति छांड़ दियौ भानू वेग संकट निवारे हैं  ।।

 देर क्यों लगाई नाथ आपने हमारी बार, दास निज जान कष्ट मेंटिये हमारे हैं  ।

 

द्वार पै तिहारे दीन "द्वारका" पुकारे नाथ, राम काज सारे काज केतिक हमारे हैं  ।

 

 

-6-

14

 

देखिये विचार मन मोहि हनुमान प्रभो, देवों के महान कार्य आपने सँभारे हैं  ।

ऐसे है कठिन कौन कारज हमारे तासे, बैठे चुप साध नाथ जात ना संभारे हैं  ।।।

कीजिये कृपा की कोर हो रहो बिलम्व अति, कीजै सब पूर्ण काज जो कछु हमारे हैं  ।।

द्वार पै तिहारे दीन "द्वारिका" पुकारे नाथ, राम काज सारे काज केतिक हमारे हैं  ।।।

 

-15:

 

बाढ़ रहे शत्रु चहुँ ओर कष्ट देने हेतु कीजै प्रभु नष्ट जिम निश्चर सँहारेहैं  ।

 दीजिये अभयदान जान निज दास प्रभु, कीजै उद्धार जिय संकट को उवारी हैं  ।

जैसी प्रभु राखी टेक भक्तन की बार-बार, राखौ लाज मेरी अब शरण तिहारे हैं  ।

 द्वार पै तिहारे दीन "द्वारिका" पुकारे नाथ. राम काज सारे काज केतिक हमारे हैं  ।

 

:-16-:

 

कैधौं हार बैठे बहु टारे कष्ट भक्तन के कँधो ना सुनत नाथ दीनों की पुकारे हैं  ।

 कैधौं  कलिकाल जान बैठे चुप साध अब, छोड़ दीनों बान कैधौं पौरूष विसारे हैं  ।।।

कीजै सब माँफ मेरे जो हों अपराध नाथ टारौ प्रभु वेग कष्ट जो कछु हमारे हैं  ।।

द्वार पै तिहारे दीन "द्वारिका" पुकारे नाथ, राम काज सारे काज केतिक हमारे हैं  ।।।

 

17

आय रहे ऊपर ये कष्टों के पहाड़ प्रभु. छाय रहे बादल में शोक के निहारौ तौ।

  डार रहे वैरी भी रूकावटें सभी प्रकार, कैसें धरों धीर नाथ नेक ये विचारौ तौ ।।

 मेरे तो तुम्ही एक मात-पिता सखा बन्धु. कोई ना सहाय सिर्फ बल है तिहारौ तौ।

 ऐ हो बलवीर दास "द्वारिका" पुकारे तुम्हें, कीजौ ना बिलम्ब वेग संकट निवारौ तौ ।।

 

-18-:

 

टूट जें है कष्टों के पहाड़ बल विक्रम सों, उड़ जें हैं  बादल नेक पौन को झकोरौ तौ ।

 फूट जें हैं मस्तक अरू चूर्ण ह्वै जें हैं तनु. लूम में लपेट बैरियों को जो पछारौ तौ ।।

ह्वै जें है सनाथ दास थोड़े ही परिश्रम से करके दया की दृष्टि नेक जो निहारौ तौ ।

 ऐ हो बलवीर दास "द्वारिका" पुकारे तुम्हें, कीजौ ना बिलम्व वेग संकट निवारो तौ ।।

 

-19-:

 

टोर हो ना जो पैं नाथ वेग इन पहाड़ों  को, कैसे तब दास तनु राख है विचारौ तौ ।

बोझ बढ़ जै है तब सक है ना भार झेल, उठ ना सकेंगौ फिर दास ये तिहारौ तौ ।।

भारी दुख पै है तनु जर्जर ह्वै जै है मन, व्याकुल ह्वैजै है तारों शीघ्र ही निवारौ तौ ।

ऐ हो बलवीर दास "द्वारिका" पुकारे तुम्हें, कीजौ ना बिलम्व वेग संकट निवारौ तौ ।

 

-20

 

नों पै कहूँ जें है ना उड़ाय शोक बादल ये छायें अन्धकार चहुँ ओर ये विचारौ तौ ।

 सूझ ना परेगौ कछु बाट ना मिलेगी नाथ, कैसे धाय नाथ दर्श पावेगौ तिहारौ तौ ।।

पावें नहि चैन मन रहै ये मलीन सदा, अति दुख पावै तब दास ये तिहारौ तौ।

 ऐ हो बलवीर दास "द्वारिका" पुकारे तुम्हें, कीजौ ना बिलम्ब वेग संकट निवारौ तौ ।।