Mera Rakshak - 1 in Hindi Fiction Stories by ekshayra books and stories PDF | मेरा रक्षक - भाग 1

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मेरा रक्षक - भाग 1

1. अलग-अलग दुनियां 

यह दुनिया शायद सिर्फ ताकत से चलती है, और मैं इतनी ताकतवर नहीं हूं। कुछ लोग है जो इस ताकत का उपयोग गलत तरीके से करते हैं, उन्हें किसी की भावनाओं से कोई मतलब नहीं होता, वो बस अपनी ताकत दिखाकर अपना काम कर लेना चाहते है।

वो भी ऐसा ही था। शहर का सबसे ताकतवर इंसान, हर धन संपन्न इंसान उसके आगे झुकता था। वो जो चाहे पा सकता था। उसे किसी भी बात का डर नहीं था। 

आंखों में ऐसी चमक जिसे देखकर कोई भी मोहित हो जाए उसपर, कद-काठी और सुंदरता ऐसी जैसे भगवान ने समय लेकर उसे बनाया हो। अमीर घर की सारी लड़कियां उसे देखकर बस उसकी एक झलक के लिए सारी हदों से गुज़र जाने को तैयार रहतीं, ग़रीब लड़कियां सिर्फ उसे देखकर आहें मात्र भर लेती, उनका उसकी एक झलक देख पाना नामुमकिन था।

उम्र कुछ ज्यादा नहीं थी उसकी, मात्र अभी 23 का ही तो था वो, पर रुतबा उसका उसकी उम्र से काफी बड़ा था। वो इस देश का सबसे बड़ा माफिया था, नाम था उसका "रणविजय सिंह राठौर"। उसके नाम से हर कोई कांपता था, वो जितना गंभीर दिखता था उतना ही निर्दयी उसका दिल था। आख़िरी बार वो अपनी मां के जाने पर रोया था, जब वो 16 साल का था। उसके बाद से वो पत्थर दिल हो गया था।

उसने कितने ही बच्चों को अनाथ किया, कितने घरों को बर्बाद किया, पर उसे अपने किए हुए किसी भी काम का पछतावा नहीं था।

उसकी नजर जिस भी लड़की पर पड़ती उसे हर कीमत पर वो लड़की चाहिए होती थी, लड़कियों को भी कोई एतराज़ नहीं होता था, वो था ही ऐसा। उसकी इस दुनिया में उसके हुक्म के बिना एक पत्ता नहीं हिलता था।

उसकी दुनिया से अंजान मैं "मीरा" सादा सरल जीवन जीने वाली लड़की जिसकी ज़िंदगी किसी नर्क से कम नहीं थी। बचपन में मां पापा के तलाक हो गया था, मां चली गई थीं किसी और के साथ। अकेले रह गए थे पापा, मैं, और शिवा , मेरा छोटा भाई। मां के जाने का गम पापा सह नहीं पाए और नशे की दुनिया में चले गए।

मुझे शिवा का ध्यान रखना था और अब पापा का भी तो मैंने एक नौकरी शुरू की जहां मैं अनाथालय में काम करती थी। मेरी कुछ खुशियां वापस आने लगी थीं। बच्चों के साथ में सारे दुःख भूल जाती थी। घर से काम, काम से घर, बस ये ही मेरी दुनिया थी। मेरी दुनिया में सबसे अनमोल मेरा भाई था- "शिवा, इधर आओ खाना खा लो। ये लड़का भी न सुनता ही नहीं है, शिवा कहां हो, जल्दी आओ खाना ठंडा हो जाएगा वरना, शिवा, शिवा (घबराते हुए) शिवा मजाक नहीं, जल्दी आओ मुझे जाना है काम पर।"

किचिन से बाहर आई देखा शिवा फर्श पर बेहोश पड़ा है, "शिवा, शिवा उठो, आंखें खोलो" पर वो आंखें नहीं खोल रहा है, मेरी आंखों के सामने मेरा शिवा बेसुध पड़ा था और मैं बस रो रही थी, ये पहली बार नहीं हुआ था, हां ये सब पहली बार नहीं हो रहा था जहां शिवा बेसुध हो गया हो। उसके दिल में छेद था, डॉक्टर ने बोला था ऑपरेशन करना पड़ेगा, पर पैसों की कमी की वजह से अभी तक नहीं हो पाया। पर अब मैंने रूपए जमा कर लिए हैं और कल उसे डॉक्टर के पास लेकर ही जाने वाली थी उससे पहले ये अब हो गया। "शिवा, आंखें खोल न शिवा" जल्दी से शिवा को पीठ पर रखकर बाहर तक ले गई, कहीं कोई एक रिक्शा भी नहीं दिख रहा। अब क्या करूं मैं? "रिक्शा, रिक्शा( रिक्शा को रोकते हुए) शिवा तू चिंता मत कर दीदी है न। अभी बस डॉक्टर के पास चल रहे हैं।" 

"मीरा, अब देर नहीं करनी चाहिए, शिवा अब और ये दर्द नहीं झेल सकता। हमें जल्द से जल्द ऑपरेशन करना होगा।" 

मेरा शिवा, पता नहीं कितन दर्द झेला है इस बच्चे ने, पर कभी कुछ नहीं कहा। उम्र से पहले ही बड़ा हो गया था, जब मां हमे छोड़कर गईं तब शिवा सिर्फ 2 साल का था, और मैं 10 साल की। 14 साल तक शिवा दर्द से गुजरता रहा पर कभी कुछ नहीं बोला।

"हां डॉक्टर, आप ऑपरेशन करिए, मैंने रुपयों का बंदोबस्त कर लिया है। अब मेरा शिवा बिल्कुल ठीक हो जाएगा।"