चलिए एक नई कहानी शुरू करते हैं –
राजस्थान के एक छोटे से ऐतिहासिक शहर में, एक पुरानी हवेली खड़ी थी ऊँची दीवारें, जटिल नक्काशीदार झरोखे और बरामदों में गूंजती फुसफुसाहटें। यह हवेली एक समय रियासत की शान हुआ करती थी, लेकिन अब समय की मार से जर्जर हो चुकी थी। लोग कहते थे कि इसकी दीवारों के भीतर एक अधूरी प्रेम कहानी की परछाइयाँ अब भी भटकती थीं।
इसी शहर में रहती थी आर्या, जो स्थानीय लाइब्रेरी की लाइब्रेरियन थी। किताबों की दुनिया में जीने वाली आर्या को पुरानी इमारतों से खास लगाव था। उसे लगता था कि हर पुरानी इमारत के पत्थरों में छिपी कहानियाँ होती हैं।
एक दिन, शहर में एक नई चर्चा शुरू हुई सरकार ने फैसला किया था कि हवेली को पुनर्निर्माण कर इसे एक ऐतिहासिक संग्रहालय में बदल दिया जाए। इस प्रोजेक्ट की जिम्मेदारी एक युवा आर्किटेक्ट को दी गई थी वीर प्रताप सिंह। वीर पुरानी विरासतों को संजोने में माहिर था और उसका मानना था कि हर इमारत की आत्मा होती है, जिसे बचाना जरूरी होता है।
वीर जब हवेली के निरीक्षण के लिए आया, तो उसने हवेली की दीवारों पर हाथ फेरते हुए कहा, "यहाँ कुछ अधूरा रह गया है… कोई अधूरी दास्तान जो हवाओं में अब भी गूंज रही है।"
उसी दिन वह लाइब्रेरी पहुंचा, जहां उसे हवेली के इतिहास पर शोध करना था। वहाँ उसकी मुलाकात आर्या से हुई।
"क्या आप हवेली के बारे में कुछ खास किताबें सुझा सकती हैं?" वीर ने पूछा।
आर्या ने बिना सिर उठाए कहा, "हवेली के बारे में जो भी लिखा गया है, वो यहाँ मौजूद है, लेकिन असली कहानियाँ किताबों में नहीं, हवेली की दीवारों में कैद हैं।"
वीर को आर्या की यह बात गहरी लगी। उसने महसूस किया कि वह भी एक ऐसी इंसान थी, जो इमारतों को सिर्फ पत्थरों का ढांचा नहीं मानती थी।
धीरे-धीरे वीर और आर्या के बीच दोस्ती बढ़ने लगी। वीर रोज लाइब्रेरी आता और कभी किताबों पर चर्चा करता, तो कभी हवेली की पुरानी कहानियों के बारे में पूछता।
आर्या को वीर की बातें पसंद आने लगीं, और वीर को आर्या की सोच।
वीर और आर्या ने हवेली के बारे में पुरानी किताबों और दस्तावेज़ों को खंगालना शुरू किया। एक दिन उन्हें एक बहुत पुरानी चिट्ठी मिली, जिसमें लिखा था
"अगर इंतज़ार प्रेम का सबसे बड़ा इम्तिहान है, तो मैं इस इमारत में हमेशा तुम्हारा इंतज़ार करूंगी।"
चिट्ठी पर नाम धुंधला हो चुका था, लेकिन तारीख लगभग सौ साल पुरानी थी।
वीर और आर्या को यह जानने की जिज्ञासा हुई कि आखिर यह चिट्ठी किसकी थी। उन्होंने और गहराई से शोध किया और पाया कि यह हवेली कभी राजकुमारी रत्नप्रिया की थी, जो एक आम सैनिक अर्जुन से प्रेम करती थी। लेकिन रियासत के कायदों के कारण दोनों का मिलन संभव नहीं था। राजकुमारी ने अर्जुन से वादा किया था कि वह इस हवेली में उसका इंतज़ार करेगी, लेकिन अर्जुन युद्ध में चला गया और फिर कभी लौटकर नहीं आया।
वीर ने गहरी सांस लेते हुए कहा, "क्या प्रेम का इंतज़ार सच में कभी खत्म नहीं होता?"
आर्या ने मुस्कुराकर कहा, "शायद कुछ प्रेम कहानियाँ समय की दीवारों में हमेशा के लिए कैद रह जाती हैं।"
हवेली के पुनर्निर्माण का काम तेजी से चल रहा था। इस बीच वीर और आर्या की दोस्ती भी गहरी हो गई थी। वीर को लगने लगा था कि वह आर्या को पसंद करने लगा है, लेकिन उसने कभी कुछ नहीं कहा।
एक दिन, हवेली के पुनर्निर्माण का आखिरी दिन था। वीर ने आर्या को हवेली के सबसे पुराने हिस्से में बुलाया। वहाँ एक पुराना झरोखा था, जहाँ से सूरज की रोशनी ठीक वैसे ही पड़ती थी, जैसे सौ साल पहले पड़ती होगी।
वीर ने कहा, "आर्या, क्या तुमने कभी सोचा है कि कुछ लोग मिलते तो हैं, लेकिन हमेशा के लिए नहीं?"
आर्या चुप रही। वह जानती थी कि वीर को जल्द ही किसी और शहर जाना होगा, लेकिन वह खुद से यह स्वीकार नहीं कर पा रही थी कि यह कहानी भी अधूरी रह सकती है।
वीर ने जाने से पहले आर्या को एक किताब दी। उसके पहले पन्ने पर लिखा था—
"इंतज़ार की इमारत कभी नहीं ढहती। अगर हमारी कहानी सच्ची है, तो समय इसे संजोकर रखेगा।"
पाँच साल बीत चुके थे। हवेली अब एक खूबसूरत संग्रहालय बन चुकी थी। आर्या अब भी लाइब्रेरी में थी, लेकिन अब वह सिर्फ दूसरों की कहानियाँ नहीं पढ़ती थी, अपनी भी लिखती थी।
एक दिन हवेली में एक बड़ा समारोह था, जिसमें एक विशेष अतिथि के रूप में एक प्रसिद्ध आर्किटेक्ट को बुलाया गया था।
स्टेज पर वीर खड़ा था। उसने भाषण देते हुए कहा
"इमारतें सिर्फ पत्थर नहीं होतीं, वे कहानियाँ होती हैं। और कुछ कहानियाँ समय से परे होती हैं।"
भीड़ में बैठी आर्या की आँखें नम हो गईं।
वीर स्टेज से उतरकर सीधा आर्या के पास आया और हल्की मुस्कान के साथ कहा,
"इंतज़ार की इमारत अब भी खड़ी है, आर्या। क्या तुम अब भी मेरी कहानी का हिस्सा बनोगी?"
आर्या ने कोई जवाब नहीं दिया, बस किताबों के बीच से एक पुरानी चिट्ठी निकाली, जो वीर ने उसे दी थी, और मुस्कुराकर कहा,
आर्या की आँखें वीर की आँखों में टिक गईं। उसकी उंगलियाँ धीरे-धीरे उस पुरानी चिट्ठी को सहला रही थीं, जो वीर ने उसे पाँच साल पहले दी थी। वह हल्के से मुस्कुराई और बोली,
"कुछ प्रेम कहानियाँ कभी खत्म नहीं होतीं। लेकिन वीर, तुम्हें कैसे यकीन था कि मैं यहीं मिलूंगी?"
वीर ने गहरी सांस ली और कहा, "क्योंकि जब कोई सच में किसी से प्यार करता है, तो इंतज़ार की कोई सीमा नहीं होती। मुझे यकीन था कि हम फिर मिलेंगे।"
आर्या थोड़ी देर चुप रही, फिर धीरे से बोली, "पाँच साल बहुत लंबा वक्त होता है, वीर। इन सालों में मैंने तुम्हें हर दिन याद किया, लेकिन कभी नहीं सोचा था कि तुम लौटोगे।"
वीर ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा, "क्या मैं सच में लौटकर नहीं आया, आर्या? मैं हर किताब के पन्ने में, हवेली की हर ईंट में, तुम्हारी हर कहानी के शब्दों में मौजूद था। बस, तुमने कभी मुझे महसूस नहीं किया।"
आर्या का दिल तेज़ी से धड़कने लगा। उसने नजरें चुराने की कोशिश की, लेकिन वीर की आँखें उसकी आँखों में सवाल खोज रही थीं।
"तो अब क्या?" आर्या ने धीमे स्वर में पूछा।
वीर ने हल्के से उसकी उंगलियों को छुआ और कहा, "अब मैं कहीं नहीं जाने वाला।"
समारोह खत्म हो चुका था। हवेली की छत पर वीर और आर्या अकेले बैठे थे। ऊपर चाँद चमक रहा था, और ठंडी हवा चल रही थी।
वीर ने आर्या की तरफ देखा, "क्या तुमने कभी सोचा कि अगर मैं वापस न आता तो?"
आर्या मुस्कुराई, "तो शायद मैं हवेली की किसी खिड़की पर खड़ी रहकर तुम्हारा इंतज़ार करती रहती।"
वीर ने हंसते हुए कहा, "तो इसका मतलब, तुम्हें भी मेरी याद आती थी?"
आर्या ने हल्की मुस्कान के साथ कहा, "याद आना तो बहुत छोटा शब्द है, वीर। तुम मेरे हर लफ्ज़ में थे। लेकिन मैंने कभी अपने दिल को यह मानने नहीं दिया कि तुम लौटोगे। मैं बस... इंतज़ार करती रही, बिना उम्मीद के।"
वीर थोड़ा गंभीर हो गया। उसने धीरे से आर्या का हाथ पकड़ा और बोला, "मैंने तुम्हें बहुत मिस किया, आर्या। हर शहर में, हर इमारत में, हर पत्थर में मैं तुम्हें ढूंढता रहा। लेकिन सच कहूं, तो मैं हमेशा जानता था कि मेरी असली मंज़िल यहीं है, तुम्हारे पास।"
आर्या की आँखों में हल्की नमी थी। वह हल्की हंसी के साथ बोली, "तो अब क्या? क्या हम फिर से अजनबी बनकर रहेंगे, या…"
वीर ने उसकी बात काटते हुए कहा, "या फिर अपनी कहानी खुद लिखेंगे, बिना किसी इंतज़ार के?"
आर्या ने कोई जवाब नहीं दिया, बस चुपचाप वीर के कंधे पर सिर रख दिया। हवेली की पुरानी कहानियों में एक नया अध्याय जुड़ रहा था—इस बार, एक पूरी होने वाली कहानी।
वीर और आर्या अब अजनबी नहीं थे। वीर ने अपने अगले प्रोजेक्ट के लिए उसी शहर में रहने का फैसला किया।
एक शाम, जब हवेली में वीर अपनी डायरी लिख रहा था, आर्या ने उसे चुपके से देखा और मुस्कुराते हुए बोली, "अब भी लिखते हो?"
वीर ने सिर उठाकर कहा, "हाँ, लेकिन अब मेरी कहानियों में अकेलापन नहीं होता।"
आर्या ने झुककर उसकी डायरी देखी। उसमें लिखा था "किसी-किसी प्रेम कहानी को समय पूरा करता है, क्योंकि कुछ कहानियाँ कभी खत्म नहीं होतीं।"
आर्या ने मुस्कुराकर कहा, "अब कहानी पूरी हो गई?"
वीर ने उसकी आँखों में देखते हुए कहा, "नहीं, अब तो बस शुरुआत हुई है।"
और हवेली की दीवारों ने फिर से एक नई प्रेम कहानी को संजो लिया।
वीर और आर्या हवेली के सबसे पुराने हिस्से में खड़े होते हैं, जहाँ कभी राजकुमारी रत्नप्रिया इंतज़ार किया करती थी। वीर झरोखे से बाहर देख रहा होता है, और आर्या किताबों के पन्ने पलट रही होती है।
वीर (हल्की हंसी के साथ): "क्या तुम्हें लगता है कि अगर किसी को सच्चे दिल से चाहो, तो वो लौटकर ज़रूर आता है?"
आर्या (गहरी सांस लेते हुए): "अगर ऐसा होता, तो यह हवेली एक प्रेम कहानी का स्मारक होती, न कि इंतज़ार की इमारत।"
वीर उसकी तरफ देखता है, और दोनों के बीच एक गहरी चुप्पी पसर जाती है। हवेली के पत्थरों के बीच, कुछ अनकहे जज़्बात हवा में घुल जाते हैं।
एक दिन वीर और आर्या एक पुराने महल के खंडहरों का निरीक्षण करने जाते हैं, लेकिन अचानक बारिश आ जाती है। दोनों एक पेड़ के नीचे खड़े होते हैं, लेकिन वीर बारिश में भीगने लगता है।
आर्या (झुंझलाकर): "वीर, अंदर आओ, भीग जाओगे!"
वीर (हंसते हुए): "पाँच साल बाद तुम्हें देखकर भीगने से ज्यादा खुशी मिल रही है!"
आर्या सिर झटकती है, लेकिन वीर को यूँ हँसता देखकर खुद भी हल्का महसूस करती है। वह धीरे-धीरे बारिश में उसके पास आकर खड़ी हो जाती है।
वीर (धीरे से): "क्या तुमने कभी महसूस किया कि कुछ लम्हें बारिश की बूंदों की तरह होते हैं? हम उन्हें पकड़ नहीं सकते, लेकिन वे हमें अंदर तक भिगो जाते हैं।"
आर्या कुछ नहीं कहती, बस हल्की मुस्कान के साथ अपनी हथेली खोल देती है, जहाँ बारिश की बूंदें गिर रही होती हैं
समारोह के बाद, वीर और आर्या हवेली की छत पर बैठे होते हैं। चाँदनी चारों ओर फैली होती है। वीर की नज़रें आर्या पर टिकी होती हैं, जो चुपचाप हवेली के बुर्ज को देख रही होती है।
वीर: "क्या सोच रही हो?"
आर्या: "सोच रही हूँ कि कुछ इमारतें समय से बच जाती हैं, और कुछ कहानियाँ भी…"
वीर थोड़ा करीब आ जाता है, उसकी नज़रों में हल्की शरारत होती है।
वीर: "और क्या हमारी कहानी भी बच जाएगी?"
आर्या (हल्के से मुस्कुराकर): "अगर तुम दोबारा चले गए, तो शायद फिर यह हवेली अकेली रह जाएगी।"
वीर (गहरी सांस लेते हुए): "मैं कहीं नहीं जाऊँगा, आर्या। अब इंतज़ार की इमारत नहीं बनेगी, अब साथ की इमारत बनेगी।"
आर्या हल्के से सिर झुका लेती है, और वीर पहली बार उसके हाथों को थाम लेता है। हवेली की ठंडी हवा भी इस पल को महसूस कर रही होती है।
वीर को आर्या की दी हुई पुरानी किताबों में एक खत मिलता है, जो उसने वीर के जाने के बाद लिखा था।
"इंतज़ार की इमारत कभी नहीं ढहती। अगर हमारी कहानी सच में कोई इमारत होती, तो वो ज़रूर कायम रहती।"
वीर जब यह पढ़ता है, तो तुरंत लाइब्रेरी की तरफ भागता है, जहाँ आर्या एक टेबल पर बैठी होती है।
वीर (तेज़ साँस लेते हुए): "तुम्हें पहले क्यों नहीं बताया?"
आर्या (चौंककर): "क्या?"
वीर (खत दिखाते हुए): "ये... तुमने यह लिखा और मुझे कभी नहीं भेजा?"
आर्या हल्के से मुस्कुराती है।
आर्या: "अगर यह खत तुम तक पहुँचता, तो तुम लौटते नहीं, तुम्हें पता होता कि मैं तुम्हारा इंतज़ार कर रही हूँ। और अगर तुम लौटते भी, तो शायद मजबूरी में। मैं चाहती थी कि तुम अपने दिल से लौटो, वीर।"
वीर कुछ नहीं कहता, बस उसकी आँखों में देखता रहता है, और फिर धीरे से कहता है,
"मैं अपने दिल से ही लौटा हूँ, आर्या।"
आर्या की आँखें नम हो जाती हैं, और पहली बार वह बिना कुछ कहे, बस वीर को गले लगा लेती है।
वीर और आर्या की जिंदगी अब एक नई राह पर थी। हवेली अब सिर्फ एक ऐतिहासिक इमारत नहीं, बल्कि उनकी यादों और एहसासों की भी गवाह बन चुकी थी। लेकिन प्यार जितना गहरा होता है, उतनी ही उसकी परतें भी होती हैं।
एक दिन, वीर और आर्या लाइब्रेरी में बैठे थे। वीर ने एक पुरानी किताब उठाई, जिसके पन्नों के बीच से एक सूखा हुआ गुलाब गिर पड़ा।
वीर (मुस्कुराते हुए): "अरे, ये क्या? लगता है किसी का दिया हुआ फूल अभी तक संभालकर रखा है?"
आर्या ने झट से फूल उठाकर किताब में रख दिया और बिना उसकी ओर देखे पन्ने पलटने लगी।
आर्या: "ये मेरी एक पुरानी किताब है, इसमें कुछ भी मिल सकता है।"
वीर हल्का मुस्कुराया, लेकिन फिर धीरे से पूछा।
वीर: "किसने दिया था?"
आर्या ने चुपचाप किताब बंद कर दी और वीर की ओर देखा।
आर्या (थोड़ा नाराज़ लहजे में): "तुम्हें क्या लगता है? क्या मैं किसी और के दिए फूल संभालकर रखूंगी?"
वीर (हल्के से हंसते हुए): "मैंने ऐसा तो नहीं कहा, लेकिन… अगर होता भी, तो?"
आर्या ने किताब ज़ोर से टेबल पर रख दी और गहरी सांस ली।
आर्या (थोड़ी तुनककर): "वीर, मुझे बहुत गुस्सा आता है जब तुम बेवजह की बातें करते हो। तुम्हें मुझ पर भरोसा है या नहीं?"
वीर तुरंत गंभीर हो गया। उसने धीरे से आर्या का हाथ पकड़ा।
वीर (नरम लहजे में): "बिलकुल है, आर्या। लेकिन क्या तुम ये भरोसा मुझ पर भी कर सकती हो कि मैं तुम्हारे सिवा किसी और के बारे में सोच भी नहीं सकता?"
आर्या थोड़ी देर चुप रही, फिर हल्के से मुस्कुरा दी।
आर्या (शरारत भरे अंदाज़ में): "अगर भरोसा नहीं होता, तो तुम्हें इस लाइब्रेरी में रोज़ आने देती क्या?"
वीर ने राहत की सांस ली और मुस्कराते हुए उसके माथे पर हल्की थपकी दी।
एक शाम वीर को अपने अगले प्रोजेक्ट के सिलसिले में कुछ दिनों के लिए जयपुर जाना पड़ा। उसने आर्या को बताया कि वह जल्द लौट आएगा। लेकिन दो दिन बाद, आर्या ने सुना कि वीर को जयपुर में किसी पुराने दोस्त के साथ देखा गया था—एक लड़की के साथ।
आर्या के दिल में हल्की जलन सी हुई। उसने वीर को मैसेज किया,
"कैसी चल रही है जयपुर की हवाएँ?"
वीर ने तुरंत जवाब दिया,
"ठीक हैं, लेकिन उदयपुर की हवाओं में तुम्हारी खुशबू की आदत हो गई है।"
आर्या ने कुछ नहीं कहा, लेकिन उसके दिमाग में वह अनजान लड़की घूम रही थी।
जब वीर लौटा, तो वह सीधा हवेली गया, जहाँ आर्या पहले से ही मौजूद थी।
वीर (खुश होकर): "अरे, तुम यहाँ हो? मुझे लगा कि तुम लाइब्रेरी में होगी।"
आर्या (हल्की नाराज़गी से): "क्यों? वहाँ कोई और इंतज़ार कर रहा है क्या?"
वीर चौंक गया, फिर मुस्कुराया।
वीर: "क्या हुआ, आर्या?"
आर्या (आँखें टेढ़ी करते हुए): "कुछ नहीं, बस सुना कि तुम्हारी जयपुर में बड़ी अच्छी कंपनी थी।"
वीर समझ गया कि बात किस ओर जा रही है। वह हल्की हंसी रोकते हुए बोला।
वीर: "ओह, तो किसी ने देखा था मुझे वहाँ?"
आर्या (हलक़ा सा भौंह चढ़ाते हुए): "तो यह सच है?"
वीर ने पास आकर उसके दोनों कंधों को पकड़ा और हल्के से कहा।
वीर: "हाँ, सच है। लेकिन तुमने यह नहीं सुना कि वो लड़की मेरी बचपन की दोस्त थी, जो अब शादीशुदा है और अपने पति के साथ वहाँ आई थी।"
आर्या का चेहरा थोड़ा ढीला पड़ा, लेकिन उसने यूँ ही ज़िद में कहा।
आर्या: "तुम पहले ही बता सकते थे!"
वीर ने उसके बालों को हल्के से पीछे किया और कहा।
वीर: "और तुम मुझसे पहले ही पूछ सकती थी, यूँ घुमा-फिरा कर सवाल करने की ज़रूरत क्या थी?"
आर्या ने गहरी सांस ली और वीर की आँखों में देखा।
आर्या (धीरे से): "शायद इसलिए कि मैं तुम्हें खोने से डरती हूँ।"
वीर के चेहरे पर हल्की मुस्कान आई। उसने धीरे से आर्या का हाथ पकड़ा और कहा।
वीर: "अब अगर कभी ऐसा डर लगे, तो सीधे मुझसे पूछ लेना, क्योंकि मैं कहीं नहीं जाने वाला।"
आर्या ने सिर झुका लिया और मुस्कुराई, जैसे अपनी नासमझी पर खुद ही शर्मिंदा हो। वीर ने प्यार से उसका माथा चूम लिया, और हवेली की दीवारों ने फिर एक नया पल अपनी यादों में कैद कर लिया।
आर्या और वीर के बीच अब हर दिन नज़दीकियाँ बढ़ रही थीं, लेकिन कहीं न कहीं आर्या के मन में अब भी एक अनकहा डर था।
एक रात, जब वीर लाइब्रेरी में बैठा था, तो उसने देखा कि आर्या किसी गहरी सोच में खोई हुई थी।
वीर: "क्या हुआ? फिर से कोई पुरानी कहानी दिमाग में घूम रही है?"
आर्या ने धीरे से सिर उठाया, और थोड़ी गंभीरता से बोली।
आर्या: "वीर, क्या हर कहानी का अंत सुखद ही होता है?"
वीर उसकी तरफ देखकर मुस्कुराया, लेकिन आर्या की आँखों में गहराई थी।
वीर: "हम अपनी कहानी का अंत खुद लिख सकते हैं, आर्या। लेकिन यह सवाल क्यों?"
आर्या (धीमे स्वर में): "क्योंकि मुझे डर है... क्या होगा अगर हम भी किसी अधूरी कहानी की तरह रह जाएँ?"
वीर थोड़ी देर चुप रहा, फिर उसने आर्या के हाथों को अपने हाथों में लिया और हल्की मुस्कान के साथ कहा।
वीर: "अगर तुम चाहती हो कि यह कहानी अधूरी न रहे, तो इसे हर दिन पूरा करते रहना होगा। और मैं तुम्हारे साथ इसे पूरा करने के लिए तैयार हूँ। क्या तुम भी तैयार हो?"
आर्या ने गहरी सांस ली, फिर मुस्कुराकर धीरे से कहा।
आर्या: "हाँ, वीर। अब मैं अधूरी कहानियों से नहीं डरती।"
वीर ने उसके हाथ को हल्के से दबाया, और पहली बार दोनों ने महसूस किया कि उनकी कहानी सच में इंतज़ार की इमारत से आगे बढ़ चुकी थी अब यह साथ की इमारत बन रही थी।
अब तक आर्या और वीर के प्यार की कहानी बहुत खूबसूरत चल रही थी।
अब आगे :
आर्या और वीर की कहानी अब एक खूबसूरत सफर पर थी, लेकिन हर कहानी में एक मोड़ ज़रूरी होता है।
यह मोड़ आर्या की ज़िंदगी में तब आया, जब हवेली में एक नया मेहमान आया अभय।
अभय, जो एक प्रसिद्ध इतिहासकार था, हवेली के पुराने दस्तावेज़ों और कहानियों पर रिसर्च करने आया था। वह लंबा, आत्मविश्वासी और बातों का जादूगर था। पहली मुलाकात में ही उसने आर्या को प्रभावित कर दिया।
अभय (मुस्कुराकर): "तो आप ही हैं आर्या, जिनके नाम से ये लाइब्रेरी जानी जाती है?"
आर्या हल्का मुस्कुराई और सिर झुका लिया।
आर्या: "इतनी बड़ी बात नहीं है, बस किताबों से लगाव है।"
वीर, जो पास ही खड़ा था, हल्की हंसी के साथ बोला।
वीर: "लगाव? अगर किताबें इंसान होतीं, तो आर्या उनसे शादी कर चुकी होती।"
अभय ज़ोर से हँस पड़ा।
अभय: "अगर ऐसा हुआ, तो हम जैसे लोगों के लिए कोई कहानी बची ही नहीं रहेगी।"
आर्या मुस्कुरा दी, लेकिन वीर को अभय का यह अंदाज़ थोड़ा अजीब लगा। वह आर्या की तरफ देखता, तो उसे लगता कि आर्या भी अभय की बातों में थोड़ा खो रही थी।
अभय अब हवेली में ज़्यादा समय बिताने लगा। वह आर्या के साथ पुरानी कहानियों और दस्तावेज़ों पर चर्चा करता, हवेली के रहस्यों को खोजने की कोशिश करता। वीर को यह सब ठीक नहीं लग रहा था।
एक शाम, वीर और आर्या हवेली की छत पर बैठे थे। वीर थोड़ी देर चुप रहा, फिर धीरे से बोला।
वीर: "अभय तुम्हें पसंद आता है?"
आर्या चौंक गई, उसने वीर की ओर देखा।
आर्या: "क्या?"
वीर (हल्की हंसी के साथ, लेकिन आँखों में बेचैनी): "मैं देख रहा हूँ कि तुम दोनों में अच्छी दोस्ती हो रही है। तुम्हें उसकी बातें पसंद आती हैं?"
आर्या कुछ देर चुप रही, फिर हल्के से मुस्कुराई।
आर्या: "अभय बहुत दिलचस्प है, वीर। उसका ज्ञान, उसकी बातें, सब अलग हैं।"
वीर का दिल हल्का सा धड़क उठा। उसे पहली बार यह अहसास हुआ कि शायद उसके प्यार को कोई और भी समझ सकता है।
एक दिन वीर ने देखा कि अभय और आर्या लाइब्रेरी में किसी पुरानी किताब पर चर्चा कर रहे थे। अभय ने मज़ाक में आर्या की हथेली पर हल्की सी थाप दी और ज़ोर से हँस पड़ा।
वीर के अंदर कुछ जलने लगा। उसने कभी सोचा भी नहीं था कि वह खुद को इस तरह महसूस करेगा।
उस रात, वीर छत पर अकेला बैठा था, जब आर्या वहाँ आई।
आर्या (हंसते हुए): "क्या हुआ? आजकल बहुत गुमसुम रहते हो?"
वीर (गहरी सांस लेते हुए): "बस… कुछ सोच रहा था।"
आर्या: "कुछ खास?"
वीर (थोड़ा रुककर): "अगर तुम्हें कभी ऐसा लगे कि तुम्हारी दुनिया में कोई और आ रहा है… तो क्या तुम मुझे बता दोगी?"
आर्या चौंक गई। उसने वीर की तरफ देखा, उसकी आँखों में एक अजीब सा डर था।
आर्या (धीमे स्वर में): "वीर, तुम ऐसा क्यों कह रहे हो?"
वीर: "क्योंकि मुझे लग रहा है कि मैं तुम्हें खो सकता हूँ।"
आर्या ने वीर की आँखों में देखा, फिर हल्के से उसका हाथ पकड़ लिया।
आर्या: "मैंने तुम्हें खोने के लिए इंतज़ार नहीं किया था, वीर। अभय मेरा दोस्त है, लेकिन तुम… तुम मेरे दिल के सबसे करीब हो।"
वीर को थोड़ा सुकून मिला, लेकिन अंदर कहीं न कहीं यह डर अब भी था कि क्या वाकई अभय बस एक दोस्त था?
वीर और आर्या के बीच प्यार था, पर अब उनके रिश्ते में एक नई परछाईं आ गई थी अभय। आर्या तो इसे एक सामान्य दोस्ती मान रही थी, लेकिन वीर के मन में कहीं न कहीं हल्की बेचैनी थी।
एक दिन हवेली के बगीचे में वीर और अभय आमने-सामने बैठे थे। दोनों के बीच चाय के कप थे, लेकिन माहौल थोड़ा गंभीर था।
अभय (हल्की मुस्कान के साथ): "तो वीर, तुम और आर्या बचपन के दोस्त हो, है ना?"
वीर (संयम रखते हुए): "हाँ, और अब सिर्फ दोस्त नहीं…"
अभय ने हल्का सिर झुकाया, जैसे कुछ सोच रहा हो।
अभय: "समझ सकता हूँ। आर्या अद्भुत है। उससे मिलकर लगता है कि वह किसी भी इंसान की ज़िंदगी बदल सकती है।"
वीर ने हल्के से अपनी मुट्ठियाँ भींच लीं, लेकिन चेहरे पर भावनाओं को ज़ाहिर नहीं होने दिया।
वीर (थोड़ा ठहरकर): "तुम्हें आर्या कैसी लगती है?"
अभय ने थोड़ा मुस्कुराकर वीर की तरफ देखा।
अभय: "एक दोस्त की तरह, या शायद उससे भी ज़्यादा… लेकिन मैं जानता हूँ कि उसका दिल किसी और के लिए धड़कता है।"
वीर चौंका, लेकिन खुद को शांत रखा।
वीर (धीमे स्वर में): "तुम्हें पूरा यकीन है?"
अभय ने चाय का घूंट लिया, फिर हल्के से मुस्कुराया।
अभय: "प्यार और यकीन का रिश्ता अजीब होता है, वीर। कई बार हमें लगता है कि हम किसी के बहुत करीब हैं, लेकिन असल में कोई तीसरा हमेशा मौजूद होता है… संदेह के रूप में।"
वीर कुछ नहीं बोला। उसे लगा कि अभय कुछ कहना चाह रहा है, लेकिन खुलकर नहीं कह रहा।
कुछ दिन बाद, हवेली में एक छोटी सी महफ़िल रखी गई थी। वीर को किसी काम से बाहर जाना था, इसलिए वह जल्दी चला गया। लेकिन जब वह रात को लौटा, तो उसे लाइब्रेरी में धीमी आवाज़ें सुनाई दीं।
वह जैसे ही अंदर गया, उसने देखा कि अभय और आर्या अकेले बैठे थे।
अभय कुछ कह रहा था, और आर्या सिर झुकाए सुन रही थी। वीर दरवाजे के पास ही रुक गया।
अभय (गहरी आवाज़ में): "आर्या, क्या तुम्हें कभी लगा कि तुमने जो चुना है, वो सही है?"
आर्या ने चौंककर उसकी तरफ देखा।
आर्या: "क्या मतलब?"
अभय: "मतलब… अगर तुम्हें ज़िंदगी से एक और मौका मिले, तो क्या तुम वही रास्ता चुनोगी?"
आर्या थोड़ी देर चुप रही, फिर धीरे से बोली।
आर्या: "अभय, मैं जानती हूँ कि तुम क्या कहना चाहते हो… लेकिन मैं अपने फैसले पर कभी शक नहीं कर सकती। वीर मेरा अतीत, मेरा वर्तमान और मेरा भविष्य है।"
वीर के दिल को सुकून मिला, लेकिन तभी अभय की अगली बात ने उसे हिला दिया।
अभय (हल्के से मुस्कुराकर): "पता नहीं क्यों, लेकिन मुझे लगता है कि कभी-कभी तुम्हारे दिल में कोई छुपी हुई उलझन होती है, जिसे तुम खुद से भी छिपाती हो।"
वीर के अंदर एक हल्की बेचैनी दौड़ गई। क्या सच में आर्या के मन में कोई उलझन थी?
रात के समय, वीर और आर्या हवेली के छत पर खड़े थे। हवाओं में ठंडक थी, पर वीर के मन में एक अजीब सी गर्मी थी जलन की।
वीर (गहरी सांस लेते हुए): "आज अभय से क्या बात हो रही थी?"
आर्या (थोड़ा हैरान होकर): "कौन सी बात?"
वीर: "जो लाइब्रेरी में चल रही थी, जब मैं आया था।"
आर्या चौंक गई। उसने वीर की आँखों में हल्का सा शक देखा।
आर्या (थोड़ी नाराज होकर): "तो तुमने सुना?"
वीर: "हाँ, और मैं जानना चाहता हूँ कि क्या तुम्हारे दिल में सच में कोई उलझन है?"
आर्या (गहरी सांस लेते हुए): "वीर,
अब तक आर्या और वीर के प्यार की कहानी बहुत खूबसूरत चल रही थी।
अब आगे :
आर्या और वीर की कहानी अब एक खूबसूरत सफर पर थी, लेकिन हर कहानी में एक मोड़ ज़रूरी होता है।
यह मोड़ आर्या की ज़िंदगी में तब आया, जब हवेली में एक नया मेहमान आया अभय।
अभय, जो एक प्रसिद्ध इतिहासकार था, हवेली के पुराने दस्तावेज़ों और कहानियों पर रिसर्च करने आया था। वह लंबा, आत्मविश्वासी और बातों का जादूगर था। पहली मुलाकात में ही उसने आर्या को प्रभावित कर दिया।
अभय (मुस्कुराकर): "तो आप ही हैं आर्या, जिनके नाम से ये लाइब्रेरी जानी जाती है?"
आर्या हल्का मुस्कुराई और सिर झुका लिया।
आर्या: "इतनी बड़ी बात नहीं है, बस किताबों से लगाव है।"
वीर, जो पास ही खड़ा था, हल्की हंसी के साथ बोला।
वीर: "लगाव? अगर किताबें इंसान होतीं, तो आर्या उनसे शादी कर चुकी होती।"
अभय ज़ोर से हँस पड़ा।
अभय: "अगर ऐसा हुआ, तो हम जैसे लोगों के लिए कोई कहानी बची ही नहीं रहेगी।"
आर्या मुस्कुरा दी, लेकिन वीर को अभय का यह अंदाज़ थोड़ा अजीब लगा। वह आर्या की तरफ देखता, तो उसे लगता कि आर्या भी अभय की बातों में थोड़ा खो रही थी।
अभय अब हवेली में ज़्यादा समय बिताने लगा। वह आर्या के साथ पुरानी कहानियों और दस्तावेज़ों पर चर्चा करता, हवेली के रहस्यों को खोजने की कोशिश करता। वीर को यह सब ठीक नहीं लग रहा था।
एक शाम, वीर और आर्या हवेली की छत पर बैठे थे। वीर थोड़ी देर चुप रहा, फिर धीरे से बोला।
वीर: "अभय तुम्हें पसंद आता है?"
आर्या चौंक गई, उसने वीर की ओर देखा।
आर्या: "क्या?"
वीर (हल्की हंसी के साथ, लेकिन आँखों में बेचैनी): "मैं देख रहा हूँ कि तुम दोनों में अच्छी दोस्ती हो रही है। तुम्हें उसकी बातें पसंद आती हैं?"
आर्या कुछ देर चुप रही, फिर हल्के से मुस्कुराई।
आर्या: "अभय बहुत दिलचस्प है, वीर। उसका ज्ञान, उसकी बातें, सब अलग हैं।"
वीर का दिल हल्का सा धड़क उठा। उसे पहली बार यह अहसास हुआ कि शायद उसके प्यार को कोई और भी समझ सकता है।
एक दिन वीर ने देखा कि अभय और आर्या लाइब्रेरी में किसी पुरानी किताब पर चर्चा कर रहे थे। अभय ने मज़ाक में आर्या की हथेली पर हल्की सी थाप दी और ज़ोर से हँस पड़ा।
वीर के अंदर कुछ जलने लगा। उसने कभी सोचा भी नहीं था कि वह खुद को इस तरह महसूस करेगा।
उस रात, वीर छत पर अकेला बैठा था, जब आर्या वहाँ आई।
आर्या (हंसते हुए): "क्या हुआ? आजकल बहुत गुमसुम रहते हो?"
वीर (गहरी सांस लेते हुए): "बस… कुछ सोच रहा था।"
आर्या: "कुछ खास?"
वीर (थोड़ा रुककर): "अगर तुम्हें कभी ऐसा लगे कि तुम्हारी दुनिया में कोई और आ रहा है… तो क्या तुम मुझे बता दोगी?"
आर्या चौंक गई। उसने वीर की तरफ देखा, उसकी आँखों में एक अजीब सा डर था।
आर्या (धीमे स्वर में): "वीर, तुम ऐसा क्यों कह रहे हो?"
वीर: "क्योंकि मुझे लग रहा है कि मैं तुम्हें खो सकता हूँ।"
आर्या ने वीर की आँखों में देखा, फिर हल्के से उसका हाथ पकड़ लिया।
आर्या: "मैंने तुम्हें खोने के लिए इंतज़ार नहीं किया था, वीर। अभय मेरा दोस्त है, लेकिन तुम… तुम मेरे दिल के सबसे करीब हो।"
वीर को थोड़ा सुकून मिला, लेकिन अंदर कहीं न कहीं यह डर अब भी था कि क्या वाकई अभय बस एक दोस्त था?
वीर और आर्या के बीच प्यार था, पर अब उनके रिश्ते में एक नई परछाईं आ गई थी अभय। आर्या तो इसे एक सामान्य दोस्ती मान रही थी, लेकिन वीर के मन में कहीं न कहीं हल्की बेचैनी थी।
एक दिन हवेली के बगीचे में वीर और अभय आमने-सामने बैठे थे। दोनों के बीच चाय के कप थे, लेकिन माहौल थोड़ा गंभीर था।
अभय (हल्की मुस्कान के साथ): "तो वीर, तुम और आर्या बचपन के दोस्त हो, है ना?"
वीर (संयम रखते हुए): "हाँ, और अब सिर्फ दोस्त नहीं…"
अभय ने हल्का सिर झुकाया, जैसे कुछ सोच रहा हो।
अभय: "समझ सकता हूँ। आर्या अद्भुत है। उससे मिलकर लगता है कि वह किसी भी इंसान की ज़िंदगी बदल सकती है।"
वीर ने हल्के से अपनी मुट्ठियाँ भींच लीं, लेकिन चेहरे पर भावनाओं को ज़ाहिर नहीं होने दिया।
वीर (थोड़ा ठहरकर): "तुम्हें आर्या कैसी लगती है?"
अभय ने थोड़ा मुस्कुराकर वीर की तरफ देखा।
अभय: "एक दोस्त की तरह, या शायद उससे भी ज़्यादा… लेकिन मैं जानता हूँ कि उसका दिल किसी और के लिए धड़कता है।"
वीर चौंका, लेकिन खुद को शांत रखा।
वीर (धीमे स्वर में): "तुम्हें पूरा यकीन है?"
अभय ने चाय का घूंट लिया, फिर हल्के से मुस्कुराया।
अभय: "प्यार और यकीन का रिश्ता अजीब होता है, वीर। कई बार हमें लगता है कि हम किसी के बहुत करीब हैं, लेकिन असल में कोई तीसरा हमेशा मौजूद होता है… संदेह के रूप में।"
वीर कुछ नहीं बोला। उसे लगा कि अभय कुछ कहना चाह रहा है, लेकिन खुलकर नहीं कह रहा।
कुछ दिन बाद, हवेली में एक छोटी सी महफ़िल रखी गई थी। वीर को किसी काम से बाहर जाना था, इसलिए वह जल्दी चला गया। लेकिन जब वह रात को लौटा, तो उसे लाइब्रेरी में धीमी आवाज़ें सुनाई दीं।
वह जैसे ही अंदर गया, उसने देखा कि अभय और आर्या अकेले बैठे थे।
अभय कुछ कह रहा था, और आर्या सिर झुकाए सुन रही थी। वीर दरवाजे के पास ही रुक गया।
अभय (गहरी आवाज़ में): "आर्या, क्या तुम्हें कभी लगा कि तुमने जो चुना है, वो सही है?"
आर्या ने चौंककर उसकी तरफ देखा।
आर्या: "क्या मतलब?"
अभय: "मतलब… अगर तुम्हें ज़िंदगी से एक और मौका मिले, तो क्या तुम वही रास्ता चुनोगी?"
आर्या थोड़ी देर चुप रही, फिर धीरे से बोली।
आर्या: "अभय, मैं जानती हूँ कि तुम क्या कहना चाहते हो… लेकिन मैं अपने फैसले पर कभी शक नहीं कर सकती। वीर मेरा अतीत, मेरा वर्तमान और मेरा भविष्य है।"
वीर के दिल को सुकून मिला, लेकिन तभी अभय की अगली बात ने उसे हिला दिया।
अभय (हल्के से मुस्कुराकर): "पता नहीं क्यों, लेकिन मुझे लगता है कि कभी-कभी तुम्हारे दिल में कोई छुपी हुई उलझन होती है, जिसे तुम खुद से भी छिपाती हो।"
वीर के अंदर एक हल्की बेचैनी दौड़ गई। क्या सच में आर्या के मन में कोई उलझन थी?
रात के समय, वीर और आर्या हवेली के छत पर खड़े थे। हवाओं में ठंडक थी, पर वीर के मन में एक अजीब सी गर्मी थी जलन की।
वीर (गहरी सांस लेते हुए): "आज अभय से क्या बात हो रही थी?"
आर्या (थोड़ा हैरान होकर): "कौन सी बात?"
वीर: "जो लाइब्रेरी में चल रही थी, जब मैं आया था।"
आर्या चौंक गई। उसने वीर की आँखों में हल्का सा शक देखा।
आर्या (थोड़ी नाराज होकर): "तो तुमने सुना?"
वीर: "हाँ, और मैं जानना चाहता हूँ कि क्या तुम्हारे दिल में सच में कोई उलझन है?"
आर्या (गहरी सांस लेते हुए): "वीर, ये कैसी बातें कर रहे हो? क्या तुम मुझ पर भरोसा नहीं करते?"
वीर: "भरोसा करता हूँ, लेकिन जब कोई दूसरा आदमी मेरी प्रेमिका से ये पूछे कि क्या उसने सही चुनाव किया है, तो मुझे परेशान होने का हक है, है ना?"
आर्या को समझ आ गया कि वीर को जलन हो रही है। लेकिन उसे ये एहसास भी हुआ कि अगर वीर इतना बेचैन है, तो इसका मतलब वह उसे खोने से डर रहा है।
आर्या (धीमे से मुस्कुराकर): "वीर, मैं कोई उलझन नहीं छिपा रही। लेकिन एक बात कहूँ?"
वीर: "क्या?"
आर्या: "तुम्हें जलन हो रही है।"
वीर ने गहरी सांस ली, फिर हल्का सा मुस्कुराया।
वीर (आँखें घुमाकर): "हाँ, हो रही है। क्योंकि तुम मेरी हो, और मैं तुम्हें किसी के साथ इतनी नज़दीक नहीं देख सकता।"
आर्या ने वीर के हाथों को अपने हाथों में लिया और हल्के से कहा।
आर्या: "तो फिर भरोसा रखो, क्योंकि मेरी कहानी में सिर्फ एक ही हीरो हैऔर वो तुम हो।"
वीर को पहली बार सुकून महसूस हुआ। उसने आर्या को हल्के से अपनी बाहों में भर लिया। हवेली की पुरानी दीवारें एक और अनकहा वादा सुन रही थीं—जो प्यार को और मजबूत कर रहा था।
आर्या की बातों से वीर को कुछ सुकून मिला था, लेकिन अभय की मौजूदगी अब भी उसे खटक रही थी। कुछ चीजें थीं जो उसे असहज कर रही थीं अभय का हर समय आर्या के आसपास रहना, उसकी बातों में छुपा हुआ रहस्य, और सबसे ज्यादा… आर्या का बदलता व्यवहार।
आर्या अब पहले से ज़्यादा चुप रहने लगी थी। कभी-कभी वीर उससे कोई सवाल करता, तो वह टाल देती। यह बदलाव वीर को परेशान कर रहा था।
एक दिन, वीर ने आर्या को हवेली के पुराने हॉल में अकेले बैठे देखा। वह किसी गहरी सोच में थी।
वीर (धीमे से): "आर्या, क्या तुम मुझसे कुछ छुपा रही हो?"
आर्या चौंक गई। उसने वीर की तरफ देखा, लेकिन उसकी आँखों में कुछ ऐसा था जो वीर को और परेशान कर गया।
आर्या: "नहीं, ऐसा कुछ नहीं…"
वीर (उसकी आँखों में देखते हुए): "तो फिर तुम इतनी अनमनी सी क्यों हो?"
आर्या कुछ कहना चाहती थी, लेकिन फिर चुप हो गई। वीर ने उसका हाथ पकड़ लिया।
वीर: "आर्या, मैं तुम्हें खोने से डरता हूँ।"
आर्या ने गहरी सांस ली और वीर की तरफ देखा। उसके चेहरे पर हल्की मुस्कान आई, लेकिन उसकी आँखों में कुछ अनकहा था।
आर्या: "मैं तुम्हें नहीं छोड़ूंगी, वीर। लेकिन कुछ बातें होती हैं, जो हमें खुद समझनी पड़ती हैं।"
वीर और उलझ गया।
अगले दिन, वीर को एक चिट्ठी मिली। यह किसी अनजान व्यक्ति की तरफ से थी, लेकिन उसमें लिखी बातें उसे झकझोरने के लिए काफी थीं,
"तुम जिसे अपना सब कुछ मानते हो, क्या वह भी तुम्हें उतना ही अपना मानती है? अगर हाँ, तो ज़रा उससे पूछो कि उसने पिछली रात अभय से क्या कहा था…"
वीर का दिल तेजी से धड़कने लगा। उसे नहीं पता था कि यह चिट्ठी किसने लिखी, लेकिन अब उसका दिमाग कई सवालों से भर गया था।
उसी शाम, वीर ने अभय और आर्या को बगीचे में बातें करते देखा। वह थोड़ा दूर खड़ा हो गया और उनकी बातचीत सुनने की कोशिश करने लगा।
अभय (गंभीर स्वर में): "क्या तुमने वीर को बताया?"
आर्या (धीमी आवाज़ में): "नहीं… अभी नहीं।"
वीर का दिल धड़क उठा। क्या छुपाया जा रहा था उससे?
रात को, वीर और आर्या हवेली की छत पर खड़े थे। वीर अब और चुप नहीं रह सकता था।
वीर (गंभीर स्वर में): "आर्या, तुमने मुझसे कुछ छुपाया है?"
आर्या ने चौंककर उसकी तरफ देखा।
आर्या: "क्या?"
वीर: "अभय से तुम्हारी क्या बात हो रही थी? और यह चिट्ठी… इसमें लिखा है कि तुमने मुझसे कुछ छुपाया है।"
वीर ने चिट्ठी आगे बढ़ाई। आर्या ने उसे पढ़ा, फिर गहरी सांस ली।
आर्या (धीमे स्वर में): "वीर, मैं तुम्हें चोट नहीं पहुँचाना चाहती थी।"
वीर के चेहरे का रंग उड़ गया। तो सच में कुछ ऐसा था जो उसे नहीं बताया गया?
वीर (गंभीरता से): "आर्या, क्या बात है? मुझे सच-सच बताओ!"
आर्या थोड़ी देर चुप रही, फिर उसने गहरी सांस ली और कहा।
आर्या: "अभय… सिर्फ एक इतिहासकार नहीं है, वीर। वह मेरे बचपन का दोस्त भी है।"
वीर चौंक गया। यह सच उसके लिए नया था।
वीर: "क्या? लेकिन तुमने कभी उसका ज़िक्र क्यों नहीं किया?"
आर्या: "क्योंकि मैं खुद उसे भूल चुकी थी। बचपन में, जब मैं छोटी थी, अभय और मैं अच्छे दोस्त थे। लेकिन फिर वह किसी वजह से अचानक गायब हो गया। मैंने उसे खोजने की बहुत कोशिश की, लेकिन वह कहीं नहीं मिला।"
वीर (धीमी आवाज़ में): "तो अब वह अचानक लौट आया?"
आर्या ने सिर झुका लिया।
आर्या: "हाँ, और उसने मुझे एक सच्चाई बताई है… जो मैंने खुद से भी छुपाई थी।"
वीर ने धीरे से आर्या के कंधों को पकड़ा।
वीर: "कौन सी सच्चाई?"
आर्या ने गहरी सांस ली, फिर धीरे से कहा।
आर्या: "अभय मुझसे… प्यार करता था।"
वीर को ऐसा लगा जैसे उसके पैरों के नीचे से ज़मीन खिसक गई हो।
वीर कुछ देर तक कुछ नहीं बोला। हवाओं में एक अजीब सा सन्नाटा था।
वीर (धीमे स्वर में): "और तुम?"
आर्या ने वीर की आँखों में देखा, उसकी आँखों में दर्द था।
आर्या (धीमे से): "मैं सिर्फ तुम्हें प्यार करती हूँ, वीर।"
वीर ने गहरी सांस ली, लेकिन फिर भी एक सवाल उसके दिल में चुभ रहा था।
वीर: "तो फिर तुमने मुझसे यह सब क्यों छुपाया?"
आर्या की आँखें भर आईं।
आर्या: "क्योंकि मुझे डर था… कि कहीं तुम मुझ पर भरोसा करना छोड़ दोगे।"
वीर का दिल अब भी उलझा हुआ था। अभय की मौजूदगी, उसकी बातें, आर्या का बदला हुआ व्यवहार यह सब वीर को बेचैन कर रहा था।
वह कुछ देर चुप रहा, फिर धीरे से बोला।
वीर: "आर्या, मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ। लेकिन इस वक़्त… मुझे अकेले रहने दो।"
आर्या का दिल डूब गया।
आर्या: "वीर…?"
वीर ने धीरे से सिर झुका लिया और बिना कुछ कहे वहाँ से चला गया। हवेली की दीवारों ने पहली बार ऐसा महसूस किया था कि उनका प्यार एक इम्तिहान से गुज़र रहा था।
वीर उस रात हवेली से चला गया। उसने आर्या से कुछ नहीं कहा, बस अपने कमरे से ज़रूरी सामान उठाया और शहर की ओर निकल पड़ा। आर्या दरवाज़े पर खड़ी देखती रही, लेकिन उसे रोकने की हिम्मत नहीं हुई।
अगले कुछ दिनों तक वीर ने न तो आर्या से बात की, न ही उसका कोई संदेश आया। यह पहली बार था जब उनके बीच इतनी लंबी ख़ामोशी थी। आर्या का दिल बेचैन था, लेकिन वह समझ नहीं पा रही थी कि इस दूरी को कैसे खत्म करे।
इधर, वीर एक अजीब जद्दोजहद से गुजर रहा था। क्या उसने सही किया? क्या उसे आर्या की बात पर पूरा भरोसा करना चाहिए था?
एक रात, जब वह अकेले अपने होटल के कमरे में बैठा था, तभी उसके फ़ोन की स्क्रीन चमक आर्या का मैसेज।
"वीर, क्या तुम मुझसे बस एक बार मिल सकते हो?"
वीर ने मैसेज देखा, लेकिन कोई जवाब नहीं दिया।
उसी शाम, वीर एक कैफ़े में बैठा था, जब उसके सामने अभय आकर बैठ गया।
अभय (धीमे से मुस्कुराते हुए): "तुम मुझसे भाग रहे हो या आर्या से?"
वीर ने गहरी सांस ली और उसकी ओर देखा।
वीर: "मैं बस चीज़ों को समझने की कोशिश कर रहा हूँ।"
अभय (हल्की हंसी के साथ): "तुम्हें क्या समझना है, वीर? कि मैं आर्या से प्यार करता था? या यह कि उसने कभी मुझे उस नज़र से नहीं देखा?"
वीर ने उसकी तरफ ध्यान से देखा।
अभय: "तुम्हें पता है, वीर, अगर मैं चाहता, तो मैं आर्या के करीब आने की कोशिश कर सकता था। लेकिन मैंने नहीं किया। क्योंकि मैं जानता हूँ कि वह सिर्फ तुम्हारी है। पर सवाल यह है कि क्या तुम खुद पर और अपने प्यार पर भरोसा करते हो?"
वीर कुछ नहीं बोला। शायद, अभय सही कह रहा था।
वीर को अब एहसास हो गया था कि उसने गलती की। प्यार का मतलब भरोसा होता है, और उसने वही खो दिया था।
अगले दिन, वह हवेली लौटा। उसे लगा कि आर्या उसे देखकर खुश होगी, लेकिन जब उसने उसे देखा, तो वह उदास थी।
आर्या (धीमे स्वर में): "तुम लौट आए?"
वीर: "हाँ, और मुझे तुमसे माफी माँगनी है।"
आर्या की आँखों में आँसू आ गए।
आर्या: "तुमने मुझ पर भरोसा नहीं किया, वीर। क्या हमारा प्यार इतना कमजोर था?"
वीर ने आर्या के हाथ पकड़ लिए।
वीर: "नहीं, यह मेरी गलती थी। लेकिन अब मैं हमेशा के लिए तुम्हारा भरोसा जीतना चाहता हूँ।"
आर्या ने वीर को देखा, फिर हल्की मुस्कान आई।
आर्या: "फिर दोबारा मुझसे दूर जाने का नाम मत लेना।"
वीर ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा।
वीर: "कभी नहीं।"
और फिर, हवेली ने एक और वादा सुना—एक ऐसा वादा, जो प्यार और भरोसे से बंधा था।
****
अगर आपको आर्या वीर की कहानी पसंद आई तो फॉलो करें और अपने रिव्यू जरूर दीजिए ।
ऐसी ही शॉर्ट कहानियां पसंद है तो कृप्या करके हमें फॉलो करें और अपने रिव्यू जरूर दीजिए ।