शापित हवेली in Hindi Short Stories by Sun books and stories PDF | शापित हवेली

The Author
Featured Books
Categories
Share

शापित हवेली

इसमें आप सबको एक एक चैप्टर की अलग अलग हिंदी शॉर्ट स्टोरीज पढ़ने को मिलेगी। ---  

पहाड़ों से घिरे एक छोटे से गाँव में एक प्राचीन हवेली थी, जिसे लोग "शापित हवेली" कहते थे। यह हवेली कई वर्षों से वीरान थी, और गाँव वाले इसके पास जाने से भी डरते थे। कहते थे कि वहाँ कोई आत्मा भटकती है, जिसकी सिसकियाँ रात के सन्नाटे में सुनाई देती हैं। लेकिन राधिका को इन कहानियों पर विश्वास नहीं था।  

राधिका एक 22 वर्षीय लड़की थी, जो अपने माता-पिता के साथ शहर से इस गाँव में आई थी। उसके पिता, प्रोफेसर अशोक, इतिहासकार थे और उन्होंने इस हवेली को खरीदने का फैसला किया था ताकि इसके रहस्यों का अध्ययन कर सकें। माँ को यह जगह पसंद नहीं आई, लेकिन पिता के शोध के लिए वे यहाँ रहने को तैयार हो गए।  

राधिका को पुरानी जगहें पसंद थीं, उसे इतिहास में दिलचस्पी थी और किताबें पढ़ना उसका शौक था। हवेली में आते ही उसे एक अजीब सा आकर्षण महसूस हुआ, जैसे कोई उसे पुकार रहा हो। लेकिन उसने इसे केवल अपनी कल्पना मानकर टाल दिया।  

---

पहली रात जब सब सो रहे थे, राधिका को अजीब-सी आवाज़ें सुनाई दीं। उसने सोचा कि यह हवा होगी, लेकिन फिर उसे अपने कमरे के कोने में हल्की छाया दिखी। डर के मारे उसने आँखें बंद कर लीं और सोने की कोशिश करने लगी।  

अगली रात फिर वही हुआ। जब उसने हिम्मत करके देखा, तो पाया कि वह कोई परछाईं थी, जो धीरे-धीरे उसकी ओर बढ़ रही थी। राधिका ने कांपती आवाज़ में पूछा,  

"क... कौन हो तुम?"  

तभी एक धीमी लेकिन गहरी आवाज़ आई,  

"मेरा नाम आरव है।"  

राधिका के रोंगटे खड़े हो गए। वह चिल्लाने ही वाली थी कि आवाज़ फिर आई,  

"डरो मत, मैं तुम्हें कोई नुकसान नहीं पहुँचाऊँगा।"  

राधिका ने हिम्मत जुटाई और कहा, "तुम कौन हो? यहाँ क्या कर रहे हो?"  

आवाज़ ने उत्तर दिया, "यह मेरी हवेली थी… सौ साल पहले। लेकिन अब मैं सिर्फ एक भटकती आत्मा हूँ, जो इस जगह से बंधी हुई है।"  

---

राधिका को आरव की बातें सुनकर यकीन नहीं हो रहा था, लेकिन उसके शब्दों में एक सच्चाई थी। और एक बार भी राधिका को नुकसान पहुंचाने की कोई कोशिश नहीं की थी। जिसके चलते अगले दिन उसने गाँव के बुजुर्गों से इस हवेली के बारे में पूछा।  

गाँव के एक बुजुर्ग, दादू, ने गहरी साँस लेकर कहा, "आरव... यह नाम हमने बरसों पहले सुना था। वह इस हवेली का आखिरी वारिस था।"  

"क्या हुआ था उसके साथ?" राधिका ने जिज्ञासु होकर पूछा।  

दादू ने एक लंबी चुप्पी के बाद कहा, "उसका प्रेम अधूरा रह गया था। कहते हैं कि वह एक गरीब लड़की, मीरा, से प्यार करता था। लेकिन समाज ने उनके प्यार को कुबूल नहीं किया। एक रात, जब वे भागने की योजना बना रहे थे, हवेली में एक रहस्यमयी हादसा हुआ और आरव की मौत हो गई। मीरा का भी कोई अता-पता नहीं चला। तभी से यह हवेली शापित मानी जाती है।"  

राधिका को अब समझ आया कि आरव की आत्मा क्यों इस हवेली में अटकी थी।  

---
  
राधिका ने अब आरव से खुलकर बातें करनी शुरू कर दीं। रात में जब सब सो जाते, तो वह अपने कमरे में अकेले उससे बातें करती। आरव की आवाज़ में दर्द था, लेकिन उसमें एक अजीब-सी शांति भी थी।  

धीरे-धीरे राधिका को महसूस हुआ कि वह आरव से जुड़ने लगी है। वह अब उसका इंतजार करने लगी थी, उसकी कहानियाँ सुनने लगी थी। उसे एहसास हुआ कि वह आरव को सिर्फ एक आत्मा नहीं, बल्कि एक इंसान की तरह महसूस करने लगी थी।  

एक रात, जब चाँद की रोशनी खिड़की से अंदर आ रही थी, आरव ने कहा,  

"काश मैं तुम्हारे साथ हमेशा रह सकता। लेकिन मैं इस दुनिया में नहीं हूँ, और तुम एक जीवित इंसान हो। हमारा प्यार कभी पूरा नहीं हो सकता।"  

राधिका की आँखों में आँसू थे, लेकिन उसने तय कर लिया था वह आरव को मुक्ति दिलाएगी।  

---
  
राधिका ने किताबों में पढ़ा था कि आत्माओं को तब तक शांति नहीं मिलती जब तक उनका कोई अधूरा काम पूरा न हो जाए। वह समझ गई कि आरव की आत्मा का अधूरा काम उसका प्रेम था।  

उसने गाँव के एक पुराने पुजारी से सलाह ली। पुजारी ने कहा,  

"अगर तुम सच्चे दिल से आरव को मुक्त करना चाहती हो, तो तुम्हें उसे यकीन दिलाना होगा कि उसका प्यार अधूरा नहीं था। उसे यह महसूस कराना होगा कि मीरा ने भी उसे सच्चे दिल से चाहा था, और यह प्यार कभी खत्म नहीं होगा।"  

---
  
राधिका ने एक अनुष्ठान की तैयारी की। रात के समय, जब हवेली पूरी तरह शांत थी, उसने आरव को बुलाया।  

"आरव, क्या तुम मीरा से सच्चा प्यार करते थे?" राधिका ने पूछा।  

"हाँ, पूरी दुनिया से ज्यादा।" आरव ने जवाब दिया।  

"तो अगर मीरा तुमसे प्यार करती थी, तो क्या वह चाहती कि तुम हमेशा के लिए इस हवेली में कैद रहो?"  

आरव चुप हो गया। राधिका ने अपनी आँखों में आँसू लिए कहा,  

"तुम्हारा प्रेम सच्चा था, आरव। और सच्चा प्रेम किसी भी बंधन से मुक्त होता है। मीरा ने भी तुमसे उतना ही प्यार किया होगा जितना मैंने किया। अगर प्यार सच्चा है, तो उसे बांधकर नहीं रखना चाहिए, उसे मुक्त करना चाहिए।"  

आरव की आत्मा काँप उठी। हवेली में हल्की रोशनी फैलने लगी। आरव की आँखों में पहली बार शांति दिखी। उसने हल्की मुस्कान के साथ कहा,  

"तुम सही कह रही हो, राधिका। शायद अब मैं मुक्त हो जाऊंगा लेकिन मैं हमेशा तुम्हारे दिल में रहूँगा।"  

और धीरे-धीरे, उसकी आत्मा सुनहरी रोशनी में बदलकर हवेली से गायब हो गई।  

लेकिन पता नहीं क्यों राधिका को उसके बाद भी काफी अजीब लगता था। शायद वो प्यार को सच्चे दिल से प्रेम करने लगी थी । और वो नहीं चाहती थी कि वो उसे छोड़कर जाएं ।

---
  
एक दिन राधिका ने हवेली को छोड़ दिया, लेकिन उसके दिल में आरव की यादें हमेशा के लिए बस गईं। वह जानती थी कि कुछ प्रेम कहानियाँ पूरी नहीं होतीं, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि वे कमज़ोर होती हैं।  

उसने हवेली के बाहर खड़े होकर कहा,  

"तुम मेरे पहले और आखिरी प्यार थे, आरव।"  

हवा में हल्की सरसराहट हुई, जैसे आरव ने उसकी बात का जवाब दिया हो।  

और फिर, हवेली की खिड़की से एक हल्की परछाईं दिखी, जो धीरे-धीरे गायब हो गई।  


  
राधिका अब उस गाँव को छोड़ चुकी थी, लेकिन हवेली और आरव की यादें उसके दिल में हमेशा के लिए बस गई थीं। वह शहर लौटकर अपनी ज़िंदगी में आगे बढ़ने की कोशिश कर रही थी, लेकिन कहीं न कहीं उसे लगता था कि वह अधूरी है।  

हवेली में बिताए गए वे पल, आरव की आवाज़, उसकी कहानियाँ – सबकुछ उसकी यादों में जिंदा था। लेकिन सबसे बड़ा सवाल था – क्या आरव सच में मुक्त हुआ था? या कोई और राज़ अभी भी छिपा था? क्योंकि जब से आरव की आत्मा गायब हुई थी उसे काफी अजीब लगता था । फिर भी उसने अपनी जिंदगी में आगे बढ़ने का फैसला ले लिया था।

---
  
शहर में लौटने के कुछ महीनों बाद, राधिका के साथ अजीब घटनाएँ होने लगीं।  

एक दिन जब वह अकेली थी, उसे ठंडी हवा का झोंका महसूस होता ठीक वैसे ही जैसे हवेली में महसूस होता था।  

एक दिन और किताबें अपने-आप गिर जातीं, और जब वह उन्हें उठाती, तो किसी न किसी पन्ने पर "आरव" नाम लिखा होता।  

कभी कभी उसके सपनों में वही हवेली बार-बार आने लगी। लेकिन अब वह पहले से अलग दिखती थी – वहाँ कुछ अधूरा था।  

राधिका समझ गई कि कुछ तो ग़लत है। आरव शायद पूरी तरह मुक्त नहीं हुआ था। शायद वो दूर से ही उसे कुछ बताना चाहता था ।

---

राधिका ने फैसला किया कि उसे फिर से गाँव जाकर हवेली का सच खोजना होगा।  

जब वह दोबारा हवेली पहुँची, तो उसे अजीब-सी ऊर्जा महसूस हुई। हवेली पहले जैसी नहीं लग रही थी – अब वहाँ हल्की सरसराहट थी, जैसे कोई वहाँ मौजूद हो।  

राधिका ने कमरे में प्रवेश किया और वही जगह देखी जहाँ आरव हमेशा प्रकट होता था। उसने धीरे से कहा,  

"आरव, क्या तुम यहाँ हो?"  

कुछ देर तक कोई जवाब नहीं आया, लेकिन फिर हल्की फुसफुसाहट सुनाई दी –  

"राधिका..."  

राधिका का दिल तेजी से धड़कने लगा।  

"लेकिन तुम तो मुक्त हो गए थे, फिर वापस क्यों आए?"  

अब आरव की आवाज़ स्पष्ट हुई, "क्योंकि मेरी कहानी अभी पूरी नहीं हुई थी..."  

---
  
राधिका ने महसूस किया कि हवेली में सिर्फ आरव ही नहीं, बल्कि कोई और भी मौजूद था। तभी अचानक खिड़की से ठंडी हवा आई और एक नई आवाज़ गूँजी –  

"आरव..."  

यह आवाज़ कोमल थी, लेकिन दर्द से भरी हुई थी। राधिका ने पलटकर देखा, तो सामने एक धुंधली परछाईं थी। 

यह मीरा थी – वह लड़की जिससे आरव ने प्यार किया था।  

"तो तुम भी यहाँ हो?" राधिका ने धीरे से पूछा।  

मीरा की आत्मा काँपते हुए बोली, "हाँ... मैं कभी नहीं जा सकी। जब आरव की आत्मा मुक्त हो गई, तब भी मैं यहाँ रह गई। मैं उसे देखना चाहती थी, उससे बात करना चाहती थी... लेकिन मैं बंधी रह गई।"  

राधिका को अब समझ आया कि आरव तो मुक्त हो गया था, लेकिन मीरा की आत्मा अभी भी भटक रही थी। और जब तक मीरा को शांति नहीं मिलेगी, तब तक यह कहानी अधूरी ही रहेगी और कहीं ना कहीं राधिका आरव से जुड़ चुकी थी इसलिए ये भाव उस तक पहुंच गया।  

---
  
राधिका ने अब फैसला कर लिया कि वह मीरा को भी मुक्त करेगी, ताकि आरव और मीरा का प्रेम हमेशा के लिए अमर हो सके।  

उसने गाँव के पुजारी से एक अनुष्ठान के बारे में जाना, जिससे आत्माएँ एक-दूसरे से मिल सकती थीं। इसके लिए उसे हवेली के सबसे पुराने हिस्से में जाना था, जहाँ कभी आरव और मीरा मिलते थे।  

राधिका ने वहाँ एक दीपक जलाया और धीरे-से कहा,  

"आरव, मीरा यहाँ है। वह तुमसे आखिरी बार मिलना चाहती है।"  

धीरे-धीरे हवेली की दीवारें गूँजने लगीं। हवा तेज़ चलने लगी। और फिर... अचानक एक रोशनी फूट पड़ी।  

आरव की आत्मा फिर से प्रकट हुई, और इस बार मीरा भी स्पष्ट दिखने लगी।  

दोनों एक-दूसरे की ओर बढ़े, उनकी आँखों में प्यार और दर्द दोनों थे। 

मीरा ने काँपती आवाज़ में कहा,  
"मैंने तुम्हें हर जन्म में चाहा है, आरव। लेकिन हम कभी साथ नहीं रह सके।"  

आरव ने हल्की मुस्कान के साथ कहा,  

"अब हम हमेशा के लिए एक साथ रहेंगे, मीरा। कोई हमें अलग नहीं कर सकता।"  

धीरे-धीरे, दोनों आत्माएँ रोशनी में बदल गईं और आसमान में विलीन हो गईं। हवेली में पहली बार शांति महसूस हुई।  

---
  
राधिका की आँखों में आँसू थे, लेकिन इस बार ये आँसू खुशी के थे। उसने हवेली से बाहर कदम रखा और ऊपर आसमान की ओर देखा – जैसे वहाँ से कोई उसे देख रहा हो।  

अब हवेली पूरी तरह शांत थी। लेकिन क्या आरव और मीरा की कहानी पूरी हो चुकी थी?  

 हल्की हवा में एक आखिरी फुसफुसाहट गूँजी –  

"धन्यवाद, राधिका।"  

राधिका को अजीब सा लगा क्योंकि ये आवाज ना तो उसे आरव की लगी और ना ही मीरा की लेकिन उसने इसे अपना वहम समझ लिया।

उसने मान लिया कि आरव और मीरा की आत्माएँ मुक्त हो चुकी थीं, हवेली में शांति लौट आई थी, लेकिन राधिका के मन में अब भी कई सवाल थे।  

"क्या यह सच में अंत था? क्या आत्माओं की दुनिया में भी प्रेम अमर रहता है?"  

वह एक बार फिर गाँव छोड़कर वापस शहर लौट आई, लेकिन हवेली के अनुभव उसकी यादों में हमेशा के लिए बस गए। उसके जीवन में अब सब कुछ सामान्य हो जाना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।  

शहर में लौटने के कुछ दिनों बाद से ही, राधिका को अजीब-अजीब अनुभव होने लगे।  

जब वह आइना देखती, तो कभी-कभी उसे पीछे किसी की हल्की परछाईं दिखती।  
उसकी डायरी के पन्ने अपने-आप पलटने लगते और कुछ शब्द लिखे मिलते – "हम अभी भी यहाँ हैं..."  
रात को जब वह सोने की कोशिश करती, तो उसे धीमी-सी आवाज़ सुनाई देती – जैसे कोई कुछ कहना चाह रहा हो।  

राधिका को समझ नहीं आ रहा था कि यह सब सच था या महज़ उसकी कल्पना।  

---

राधिका को लगा कि उसे दोबारा हवेली लौटकर सच्चाई का पता लगाना होगा क्योंकि आखिरी बात उसके कानों में बोले गए दो शब्द दफन हो चुके थे, धन्यवाद राधिका जो आरव और मीरा में से किसी के नहीं थे। इस बार, वह अकेली नहीं गई। उसने अपने दोस्त कबीर को अपने साथ चलने के लिए कहा।  

जब वे हवेली पहुँचे, तो सबकुछ शांत लग रहा था। लेकिन जैसे ही वे अंदर गए, दरवाजे खुद-ब-खुद बंद हो गए। हवेली के अंदर ठंडी हवा बहने लगी, और अचानक ही एक मोमबत्ती अपने-आप जल उठी।  

कबीर घबरा गया, "राधिका, मुझे यह अच्छा नहीं लग रहा। हमें यहाँ से जाना चाहिए।"  

लेकिन राधिका जानती थी कि कुछ तो अनसुलझा रह गया है। लेकिन अब उसे शुरुआत की तरह डर नहीं लगता था शायद आरव के प्रति उसका प्रेम था ।

राधिका ने एक बार पूरी हवेली को जांच करने के बारे में सोचा। वो और कबीर दोनो उसमें कुछ ढूंढने लगे । राधिका को पूरा यकीन था कि उसे कुछ ना कुछ तो ऐसा मिलेगा जिससे ये पहले सुलझ सकें ।

तभी उन्हें एक कोने में एक पुराना संदूक मिला, जो पहले कभी नहीं देखा था। उन्होंने जब उसे खोला, तो उसमें एक बहुत पुरानी किताब मिली – मीरा की डायरी।  

  
डायरी के पन्ने पीले पड़ चुके थे, लेकिन शब्द अब भी साफ थे।  

राधिका और कबीर ने उसे पढ़ना शुरू किया।

"12 नवंबर 1920 – आज मैंने आरव से मिलने का फैसला किया है। हम हमेशा के लिए इस गाँव को छोड़ देंगे। लेकिन मुझे डर लग रहा है... कोई हमें रोकना चाहता है।"  

"14 नवंबर 1920 – मैंने सुना कि हवेली में किसी ने आरव को धोखा दिया। मैं छिप गई हूँ, लेकिन मुझे नहीं पता कि अब क्या करना है।"  

"16 नवंबर 1920 – अगर कोई यह डायरी पढ़ रहा है, तो कृपया सच को सामने लाएँ। हमें किसी ने मारा था, यह हादसा नहीं था।"  

राधिका और कबीर ने एक-दूसरे को चौंककर देखा। इसका मतलब था कि आरव और मीरा की मौत एक दुर्घटना नहीं थी, बल्कि किसी ने जानबूझकर उन्हें मारा था।  

---  
राधिका ने गाँव के बुजुर्गों से और बातें पूछनी शुरू कीं। धीरे-धीरे एक नया राज़ सामने आया –  

आरव और मीरा को एक साथ देखकर हवेली के नौकर, रघु, ने गाँव के लोगों को बताया था कि आरव परिवार की इज्जत मिट्टी में मिला रहा है। उस ज़माने में ऊँच-नीच की दीवारें बहुत ऊँची थीं। गाँव के कुछ लोगों ने इस रिश्ते को रोकने का फैसला किया।  

जब आरव और मीरा भागने वाले थे, उन्होंने हवेली में आग लगाने की कोशिश की। आरव को अंदर बंद कर दिया गया और मीरा को पकड़कर दूर ले जाया गया। लेकिन किसी को नहीं पता कि मीरा की मौत कैसे हुई – उसका शरीर कभी नहीं मिला।  

अब राधिका को समझ आ गया था कि मीरा की आत्मा इसीलिए हवेली में अटकी थी – उसे तब तक शांति नहीं मिल सकती थी जब तक सच्चाई दुनिया के सामने नहीं आ जाती।  

---
  
राधिका ने गाँव के प्रमुख से बात की और हवेली के पुराने दस्तावेज़ और इतिहास के रिकॉर्ड खंगाले। धीरे-धीरे, यह सच सामने आया कि आरव और मीरा की मौत एक सोची-समझी साजिश थी।  

गाँव के लोग, जिन्होंने सालों से इन कहानियों को मिथक मान लिया था, अब हैरान थे। उन्होंने हवेली में एक प्रार्थना सभा रखी और वहाँ एक स्मारक बनवाया – आरव और मीरा के प्रेम को सम्मान देने के लिए।  
और इसके साथ ही राधिका ने उस आवाज की पहली को भी सुलझा दिया था वो एक और आत्मा थी जो भटक रही थी वहीं जिसने उन्हें खत्म करने का आदेश दिया था । ये आवाज उसी की थी शायद उसे अब पश्चाताप हो रहा था ।

जैसे ही यह सब हुआ, हवेली में एक हल्की रोशनी फैल गई।  

राधिका ने महसूस किया कि अब हवेली में कोई परछाईं नहीं थी, कोई सिसकियाँ नहीं थीं।  

मीरा और आरव को आखिरकार मुक्ति मिल गई थी।  

---

  
राधिका ने हवेली को हमेशा के लिए छोड़ दिया, लेकिन इस बार वह संतुष्ट थी। उसने आसमान की ओर देखा और हल्की मुस्कान के साथ कहा,  

"अब तुम्हारी कहानी हमेशा के लिए जिंदा रहेगी।"  

हवा में हल्की सरसराहट हुई, जैसे कोई जवाब दे रहा हो –  

"धन्यवाद, राधिका..." 
ये आवाज अब आरव की थी जो दिल से उसे धन्यवाद कह रहा था । 

“अब हवेली में सिर्फ शांति थी, और आरव-मीरा की प्रेम कहानी इतिहास में अमर हो गई।