चलिए एक नई कहानी शुरू करते हैं –
मुम्बई की भीड़भाड़ भरी सड़कों पर चलते हुए, रोहन अपने महंगे सूट में बिजनेस कॉल पर बिजी था। वो एक बड़ा कॉर्पोरेट लॉयर था, जो सिर्फ एक चीज़ में विश्वास करता था पावर और पैसा। उसके लिए इमोशन्स, रिश्ते और छोटे शहरों की सादगी सिर्फ बेवकूफी थी।
दूसरी तरफ, काव्या… एक छोटे से पहाड़ी कस्बे से आई एक जुनूनी एक्टिविस्ट, जो कॉर्पोरेट कंपनियों के खिलाफ लड़ाई लड़ रही थी। उसके लिए बिजनेस जगत के लोग सिर्फ स्वार्थी, लालची और निर्दयी होते थे।
उन दोनों का कोई मेल नहीं था, लेकिन किस्मत ने उन्हें एक ऐसे मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया जहां टकराव तय था।
काव्या ने अपने संगठन के साथ एक बड़ी कंपनी के खिलाफ केस फाइल किया था, जो जंगलों की जमीन को खरीदकर वहां एक मॉल बनाना चाहती थी।
और इस कंपनी का डिफेंस कौन कर रहा था? रोहन मेहरा।
कोर्ट रूम में पहली बार जब काव्या और रोहन आमने-सामने आए, तो माहौल में चिंगारी जल उठी।
"मिस काव्या, आपकी इन इमोशनल कहानियों से कानून नहीं चलता," रोहन ने ठंडी मुस्कान के साथ कहा।
काव्या ने जवाब दिया, "मिस्टर रोहन, आपको लगता है कि हर चीज पैसों से खरीदी जा सकती है? सबकुछ लीगल होने का मतलब सही होना नहीं होता!"
कोर्ट रूम में जज ने फैसला आगे बढ़ाने का आदेश दिया, लेकिन बाहर निकलते ही काव्या ने गुस्से से कहा, "तुम जैसे लोग सिर्फ पैसे और पावर की भाषा समझते हो!"
रोहन हंसते हुए बोला, "और तुम जैसी एक्टिविस्ट लोग सिर्फ बेवकूफी करते हैं! वेलकम टू रियल वर्ल्ड, मिस काव्या!"
काव्या के संगठन ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस रखी, जहां उन्होंने रोहन और उसकी कंपनी के खिलाफ तीखी बातें कहीं।
जब ये न्यूज वायरल हुई, तो रोहन का खून खौल उठा। उसने उसी शाम काव्या को फोन लगाया।
"तुमने मेरी प्रोफेशनल लाइफ को नुकसान पहुंचाने की हिम्मत कैसे की?"
"ओह, सच में? अगर सच बोलना तुम्हारे लिए नुकसानदेह है, तो शायद तुम गलत कर रहे हो!"
"मुझे तुम्हारी ये नैतिकता की बातें सुनने में कोई इंटरेस्ट नहीं है। Stay out of my way!"
"वरना?"
"वरना तुम पछताओगी!"
काव्या के संगठन ने जंगलों को बचाने के लिए एक बड़ा प्रोटेस्ट प्लान किया था। लेकिन जिस दिन प्रोटेस्ट होने वाला था, उसी दिन रोहन के लॉ फर्म की एक बड़ी प्रेस मीटिंग थी।
जब काव्या के लोगों ने रोड जाम किया, तो रोहन की गाड़ी वहीं फंस गई।
वो गुस्से में बाहर निकला और सीधे काव्या के पास पहुंचा।
"तुम पागल हो गई हो? ये तुम्हारा बचपना सिर्फ तुम्हारे गांव में चलेगा, मुम्बई में नहीं!"
काव्या ने ठंडे स्वर में कहा, "तुम्हारे लिए ये बचपना होगा, मेरे लिए ये लोगों का भविष्य है!"
रोहन ने आगे बढ़कर उसके बहुत करीब आकर कहा, "तुम ये जंग हार जाओगी, काव्या!"
काव्या बिना पीछे हटे बोली, "और तुम ये समझने में फेल हो जाओगे कि कुछ चीजें पैसों से नहीं जीती जातीं!"
एक रात, रोहन को एक जरूरी क्लाइंट मीटिंग के लिए काव्या के शहर जाना पड़ा। लेकिन खराब मौसम की वजह से वो वहीं फंस गया।
कोई होटल नहीं मिला, और मजबूरी में उसे उसी गांव में रहना पड़ा, जहां काव्या थी।
शाम को, जब वो गांव की गलियों से गुजरा, तो उसने पहली बार देखा कि वो लोग जिन्हें वो ‘बेकार’ समझता था, असल में कितनी कठिनाइयों में जी रहे थे।
तभी उसने काव्या को एक गरीब बच्चे को पढ़ाते हुए देखा।
वो चुपचाप उसे देखता रहा। पहली बार उसे अहसास हुआ कि शायद वो इस लड़की को गलत समझ रहा था।
अगले दिन, काव्या ने रोहन को गांव के लोगों से मिलवाया।
"तुम्हें लगता है कि ये प्रोजेक्ट इनके लिए अच्छा है, लेकिन क्या तुमने कभी इनकी बात सुनी?"
रोहन ने पहली बार बिना बहस किए गांव वालों से बात की।
रात को, जब काव्या और रोहन पहाड़ी पर बैठे थे, तो रोहन ने कहा, "मैं अब भी अपने काम पर गर्व करता हूँ, लेकिन पहली बार मुझे लगता है कि तुम्हारी बातों में सच्चाई है।"
काव्या ने हल्की मुस्कान दी, "और पहली बार मुझे लग रहा है कि तुम सिर्फ एक बेरहम लॉयर नहीं हो।"
धीरे-धीरे, उनकी बहसें कम होने लगीं, और देर रात तक चलने वाली बातचीत बढ़ने लगी।
एक रात, जब दोनों एक केस की फाइल पर चर्चा कर रहे थे, काव्या ने अचानक कहा, "रोहन, तुम कभी हंसते क्यों नहीं?"
रोहन ने पहली बार सच्चाई से कहा, "क्योंकि मेरे पास हमेशा जीतने का प्रेशर रहा है। बचपन से ही सिखाया गया कि अगर कमजोर हुए, तो हारे।"
काव्या ने धीरे से कहा, "और कभी किसी के साथ सिर्फ जीने की कोशिश की?"
रोहन पहली बार खामोश रह गया।
एक शाम, बारिश में भीगते हुए, काव्या फिसल गई। रोहन ने झट से उसे पकड़ लिया।
वो बहुत करीब आ गए।
काव्या ने धीमी आवाज में कहा, "अब भी मुझसे नफरत करते हो?"
रोहन ने हल्की मुस्कान के साथ कहा, "नफरत? शायद अब नहीं।"
काव्या की सांसें तेज हो गईं, और पहली बार, उन्होंने एक-दूसरे की आंखों में वो देखा जो नफरत नहीं था… बल्कि एक अधूरी चाहत थी।
लेकिन प्यार कभी आसान नहीं होता।
जब काव्या को पता चला कि रोहन अब भी कोर्ट में अपनी कंपनी का केस लड़ रहा है, उसने गुस्से में कहा, "तो सब कुछ झूठ था?"
रोहन ने समझाने की कोशिश की, "काव्या, मैं अपने प्रोफेशन और तुम्हारे इमोशन्स के बीच फंसा हूँ!"
काव्या ने गहरी सांस लेते हुए कहा, "तुम्हें एक दिन समझ आएगा, लेकिन शायद तब तक बहुत देर हो जाएगी।"
कोर्ट के आखिरी दिन, रोहन ने अचानक अपनी कंपनी के खिलाफ बयान दिया।
"मैंने अब तक कानून के हिसाब से जिया, लेकिन आज मैं सही और गलत के हिसाब से जीना चाहता हूँ।"
काव्या की आंखों में आंसू आ गए।
बाद में, जब दोनों अकेले मिले, तो काव्या ने पूछा, "ये क्यों किया?"
रोहन ने उसकी आंखों में देखते हुए कहा,
बस के दिया मेरे दिल ने कहा
काव्य की आंखों में आंसू भर गए लेकिन उस समय उनके बीच जायदा बात नहीं हो पाई। क्योंकि रोहन को अभी एक बहुत बड़ी मुसीबत का सामना करना था ।
रोहन के कोर्ट में अपने ही क्लाइंट के खिलाफ बयान देने के बाद, उसका करियर खतरे में आ गया। उसकी लॉ फर्म ने उसे सस्पेंड कर दिया, और मीडिया ने इस घटना को बड़े स्कैंडल की तरह पेश किया।
वहीं, काव्या को लगा कि उसने रोहन की ज़िंदगी को मुश्किल बना दिया है। वो खुद को दोषी महसूस करने लगी, लेकिन वो जानती थी कि रोहन ने सही किया।
जब उसने रोहन को कॉल किया, तो उसने कोई जवाब नहीं दिया।
अगले दिन, वो उसके अपार्टमेंट पहुंची, लेकिन वहां ताला लगा हुआ था।
उसके अंदर बेचैनी होने लगी।
वो पहली बार खुद से सवाल कर रही थी क्या उसने सच में रोहन से प्यार कर लिया था?
कई हफ्तों बाद, काव्या को पता चला कि रोहन लंदन चला गया है।
उसका दिल टूट गया।
एक रात, जब वो पहाड़ों की चोटी पर अकेली बैठी थी, उसे महसूस हुआ कि वो रोहन के बिना अधूरी महसूस कर रही थी।
वो अपने आपको समझाने की कोशिश कर रही थी –
"शायद यही सही था। शायद हमें कभी साथ नहीं होना था।"
लेकिन जब उसने फोन उठाकर रोहन को कॉल करने की कोशिश की, तो उसके हाथ कांपने लगे।
उसे समझ नहीं आ रहा था कि उसने आखिर किस मोड़ पर रोहन को खो दिया।
छह महीने बीत गए।
रोहन अब लंदन की एक प्रतिष्ठित लॉ फर्म में काम कर रहा था। उसने खुद को काम में डुबो दिया था, लेकिन उसके मन में हमेशा काव्या का चेहरा घूमता रहता था।
वहीं, काव्या ने भी खुद को अपने काम में झोंक दिया था। लेकिन उसके अंदर एक खालीपन था, जो वो खुद से भी छुपा नहीं पा रही थी।
और फिर, किस्मत ने फिर से खेल खेला।
एक कान्फ्रेंस के सिलसिले में काव्या को लंदन जाना पड़ा।
वो किसी भी तरह रोहन से मिलने से बचना चाहती थी, लेकिन उसकी दोस्त ने एक पार्टी में उसे खींच लिया – और वहां उसकी नज़र जिस पर पड़ी, वो था रोहन।
रोहन किसी क्लाइंट से बात कर रहा था, लेकिन उसकी नज़र अचानक काव्या पर पड़ी।
वो कुछ पल के लिए ठिठक गया।
काव्या ने भी उसे देखा।
दोनों के बीच अजीब सी ख़ामोशी छा गई।
काव्या ने धीरे से कहा, "हाय, रोहन।"
रोहन ने ठंडे स्वर में कहा, "हाय।"
काव्या को उसकी आवाज़ में वही पुराना गुस्सा महसूस हुआ।
वो आगे बढ़ी, "कैसे हो?"
रोहन ने हल्की मुस्कान के साथ कहा, "अच्छा हूँ। और तुम?"
काव्या को महसूस हुआ कि इस ‘अच्छा हूँ’ के पीछे बहुत सारी बातें छुपी हैं।
थोड़ी देर की ख़ामोशी के बाद, रोहन ने कहा, "तुम यहां क्या कर रही हो?"
"कांफ्रेंस के लिए आई हूँ।"
रोहन ने हल्का सा सिर हिलाया और कहा, "अच्छा, तो अब भी दुनिया बचाने में लगी हो?"
काव्या ने गहरी सांस ली, "और तुम अब भी पैसे कमाने में?"
दोनों मुस्कुरा दिए, लेकिन उस मुस्कान के पीछे हजारों अनकही बातें थीं।
रात को, जब पार्टी खत्म हुई, तो रोहन बाहर निकला, और देखा कि काव्या वहीं खड़ी थी।
"क्या तुम सच में मुझसे नफरत करते हो, रोहन?"
रोहन चुप रहा।
काव्या ने आगे कहा, "मैंने तुम्हें अपनी ज़िंदगी से दूर कर दिया, लेकिन तुम्हें अपने दिल से कभी नहीं निकाल पाई।"
रोहन ने धीरे से कहा, "मैंने भी बहुत कोशिश की, लेकिन नफरत करने के लिए भी तुम्हें भूलना ज़रूरी होता है। और मैं तुम्हें कभी भूल ही नहीं पाया।"
उसकी आंखों में वही पुराना प्यार था, जो उसने कभी कबूल नहीं किया था।
काव्या ने धीरे से उसके हाथ को छुआ और कहा, "तो अब क्या? हम फिर से दुश्मन बनें या इस बार..."
रोहन ने उसकी आंखों में देखा और हल्के से मुस्कुराया, "इस बार, शायद हम अपने अहंकार को छोड़ दें?"
लंदन की उस ठंडी रात में, दोनों पहली बार दिल से दिल की बात कर रहे थे बिना किसी लड़ाई, बिना किसी बहस के।
रोहन ने धीरे से कहा, "तुम्हारी आदतें अब भी नहीं बदलीं, काव्या।"
काव्या ने हंसते हुए कहा, "और तुम्हारा गुस्सा अब भी वैसा ही है।"
रोहन ने पहली बार उसका हाथ थाम लिया और कहा, "क्या अब भी तुम्हें मुझसे नफरत है?"
काव्या ने उसकी आंखों में देखा और हल्की मुस्कान के साथ कहा, "अगर नफरत ऐसी होती है, तो शायद मैं इसे प्यार करना सीख चुकी हूँ।"
और उस पल, नफरत से शुरू हुई उनकी कहानी ने अपने सबसे खूबसूरत मोड़ पर कदम रख दिया – एक नई शुरुआत, जहां न कोई जंग थी, न कोई हार… सिर्फ प्यार था।
लंदन की वो सर्द रात, हल्की हल्की ठंडी हवाएं… और उनके बीच खामोशियों की गर्मी।
रोहन और काव्या अब आमने-सामने थे, बिना किसी झगड़े, बिना किसी बहस के। पहली बार, दोनों ने एक-दूसरे को सिर्फ महसूस किया।
रोहन ने धीरे से काव्या की ठंडी हथेलियों को अपने हाथों में लिया और हल्की आवाज़ में कहा, "छह महीने बहुत लंबे थे, काव्या…"
काव्या की आंखों में नमी थी, लेकिन वो मुस्कुराई। "हाँ… लेकिन इस बार, मैं तुम्हें जाने नहीं दूंगी।"
रोहन ने उसकी आंखों में देखा, और फिर धीरे से उसके करीब आ गया। उसकी उंगलियां काव्या के चेहरे को छू रही थीं, जैसे किसी अजनबी एहसास को पहली बार अपनाने की कोशिश कर रही हों।
"तुम्हें पता है, मैं तुम्हें भूलने की पूरी कोशिश कर चुका हूँ…" रोहन ने फुसफुसाते हुए कहा।
काव्या ने धीरे से उसकी शर्ट की कॉलर पकड़ी, उसे थोड़ा और करीब खींचते हुए बोली, "तो क्या मैं तुम्हें याद दिलाऊँ?"
उस रात, लंदन की चमचमाती सड़कों के बीच, दोनों बिना कुछ कहे एक-दूसरे को महसूस कर रहे थे।
काव्या ने पहली बार खुद को रोकने की कोशिश नहीं की। उसने अपनी उंगलियां रोहन के बालों में फिराई, और उसके माथे को हल्के से चूमा।
रोहन ने गहरी सांस ली और उसके चेहरे को अपने हाथों में ले लिया। उसकी नजरें उस लड़की पर टिकी थीं, जिससे उसने पहले नफरत की थी… और अब वही उसकी सबसे खूबसूरत सच्चाई बन चुकी थी।
"क्या तुम अब भी मुझसे लड़ोगी?" रोहन ने हल्के से मुस्कुराते हुए पूछा।
काव्या ने उसकी शर्ट के बटन से खेलते हुए कहा, "अगर तुम ऐसे ही पास आते रहे, तो शायद अब और नहीं।"
रोहन ने बिना कुछ कहे उसे अपनी बाहों में भर लिया।
लंदन के उस छोटे से अपार्टमेंट में, मोमबत्तियों की हल्की रोशनी में, जब रोहन और काव्या एक-दूसरे के पास बैठे थे, तो हर दीवार गवाह थी कि नफरत से शुरू हुई ये कहानी अब मोहब्बत के सबसे गहरे रंग में डूब चुकी थी।
रोहन ने धीरे से काव्या की उंगलियों को चूमा, और उसके कानों में फुसफुसाया, "तुम्हें पता है, जब मैं कोर्ट में तुम्हारे खिलाफ लड़ रहा था, तब भी मुझे पता था कि तुम ही मेरी सबसे बड़ी हार बनोगी…"
काव्या ने हल्का सा हंसते हुए कहा, "तो फिर जीतने की कोशिश क्यों की?"
रोहन ने उसकी गर्दन पर हल्का सा स्पर्श किया और कहा, "क्योंकि मैं तुम्हें इतनी आसानी से नहीं पाना चाहता था… मैं तुम्हें हर तरह से जीना चाहता था।"
उस रात, नफरत की सारी दीवारें टूट गईं।
सुबह की हल्की रोशनी खिड़की से अंदर आ रही थी।
काव्या रोहन के सीने पर सिर रखकर हल्की सी मुस्कान के साथ बोली, "अब भी लगता है कि मैं तुम्हारी सबसे बड़ी दुश्मन हूँ?"
रोहन ने उसकी पीठ पर उंगलियां फेरते हुए कहा, "अब तुम मेरी सबसे खूबसूरत सजा हो।"
और इस बार, काव्या को किसी बहस की जरूरत नहीं थी।
रोहन ने मुस्कुराकर कहा, "अगर हमारी लड़ाइयां ऐसी ही खत्म होती रहीं, तो मैं हर रोज़ हारने के लिए तैयार हूँ।"
काव्या ने धीरे से उसकी शर्ट के कॉलर को पकड़कर उसे अपने करीब खींचा और उसके होंठों पर हल्का सा चुम्बन दिया।
"अब तुम्हारी हार मेरी सबसे बड़ी जीत है, मिस्टर लॉयर।"
अब वो सिर्फ दो लोग नहीं थे जो एक-दूसरे को सहन करने की कोशिश कर रहे थे अब वो दो लोग थे जो एक-दूसरे के बिना रहने की कल्पना भी नहीं कर सकते थे।
एक शाम, रोहन और काव्या लंदन की सड़कों पर हाथों में हाथ डाले घूम रहे थे। ठंडी हवा चल रही थी, लेकिन उनके बीच की गर्माहट सब महसूस कर रही थी।
काव्या ने हल्की आवाज़ में पूछा, "क्या तुम्हें कभी डर लगता है?"
रोहन ने उसकी उंगलियां अपने हाथों में कसकर पकड़ीं, "किस चीज़ से?"
"कि अगर हमने एक-दूसरे को फिर खो दिया तो?"
रोहन रुका, और उसके सामने आकर उसकी ठोड़ी को हल्के से ऊपर किया।
"अब नहीं, काव्या। इस बार, मैं तुम्हें किसी भी हाल में जाने नहीं दूंगा।"
काव्या ने उसकी आंखों में देखा और महसूस किया कि पहली बार कोई था जो उसे हमेशा थामे रखने को तैयार था।
रोहन का अपार्टमेंट अब सिर्फ उसका नहीं था—अब वहां काव्या की किताबें, उसके कपड़े, उसकी चाय की प्याली और उसकी हंसी भी थी।
एक रात, जब रोहन काम से लौटा, तो देखा कि काव्या किचन में कुछ बना रही थी।
"तुम किचन में? ये तो किसी बड़ी तबाही का संकेत है!" रोहन ने हंसते हुए कहा।
काव्या ने गुस्से से चम्मच उसकी ओर फेंकी, "बहुत मज़ाक उड़ाते हो! देखना, आज की डिनर तुम्हारी जिंदगी की सबसे बेहतरीन डिनर होगी!"
रोहन ने उसके पास आकर उसके चारों ओर अपनी बाहें डाल दीं और हल्के से उसके कानों में फुसफुसाया, "मुझे इससे बेहतर डिनर नहीं चाहिए, बस तुम ही काफी हो।"
काव्या की सांसें तेज़ हो गईं। उसने धीरे से कहा, "तुम्हें पता है, मुझे लगता था कि मैं कभी किसी से इस तरह प्यार नहीं कर पाऊंगी…"
रोहन ने उसकी कमर को हल्के से अपनी तरफ खींचते हुए कहा, "और मुझे लगता था कि मैं कभी किसी के बिना अधूरा महसूस नहीं करूंगा। लेकिन अब…"
काव्या ने उसकी आंखों में देखा।
"अब?"
रोहन ने हल्के से उसकी गर्दन पर एक चुम्बन दिया और फुसफुसाया, "अब मैं तुम्हारे बिना अधूरा हूँ।"
रोहन ने काव्या को बेडरूम तक खींच लिया और हल्की रोशनी में उसका चेहरा देखा।
"तुम अब भी सोचती हो कि मैं तुम्हारे लिए सही नहीं हूँ?"
काव्या ने उसके हाथों को अपने हाथों में लिया, "अगर तुम सही नहीं हो, तो सही क्या होता है?"
रोहन ने धीरे से उसके चेहरे को अपने करीब खींचा, उसकी सांसें अब तेज़ हो रही थीं।
काव्या ने हल्के से उसके गालों को छुआ और धीरे से कहा, "मैं अब कहीं नहीं जाऊंगी, रोहन।"
उसकी ये बात सुनकर रोहन ने उसे बाहों में उठा लिया और बिस्तर पर लिटा दिया।
हर स्पर्श में एक अपनापन था, हर चुम्बन में एक इकरार था।
उस रात, सिर्फ जिस्म नहीं, उनकी आत्माएं भी एक हो गई थीं।
अब कोई लड़ाई नहीं थी।
अब कोई नफरत नहीं थी।
अब सिर्फ "हम" थे।
काव्या और रोहन की जिंदगी अब एक खूबसूरत मोड़ पर थी। उनके बीच प्यार गहरा हो चुका था, और हर सुबह उनके लिए एक नई शुरुआत थी।
लेकिन खुशियों की ये कहानी तब ठहर गई जब रिया, रोहन की एक्स-गर्लफ्रेंड, अचानक उनकी जिंदगी में लौट आई।
उस दिन, जब काव्या रोहन के ऑफिस गई, तो उसने देखा कि रिया और रोहन एक ही टेबल पर बैठे थे। रिया रोहन की बांह पकड़कर हंस रही थी, और रोहन भी मुस्कुरा रहा था।
काव्या के कदम वहीं ठिठक गए।
उसका दिल तेजी से धड़कने लगा।
"तो क्या ये सब बस एक खेल था?" उसने खुद से कहा।
उसने बिना कुछ कहे ऑफिस से बाहर कदम बढ़ाया।
शाम को जब रोहन घर लौटा, तो उसने देखा कि काव्या गुस्से में बैठी थी।
"क्या हुआ? तुम इतनी चुप क्यों हो?"
काव्या ने एक ठंडी हंसी के साथ कहा, "रिया कैसी है?"
रोहन चौंक गया। "रिया? तुम उससे मिली?"
"मिलने की जरूरत नहीं थी, तुम्हारी हंसी ही काफी थी यह समझने के लिए कि तुम आज भी उसे भूले नहीं हो!" काव्या ने तंज कसते हुए कहा।
रोहन समझ गया कि कोई गलतफहमी हो चुकी है।
"तुम पागल हो? मैं और रिया—अब हमारे बीच कुछ भी नहीं है!"
काव्या ने उसकी आंखों में देखा।
"तो फिर तुम आज भी उसके साथ क्यों बैठे थे? उसके इतने करीब क्यों थे?"
रोहन ने गहरी सांस ली। "रिया अब बस एक क्लाइंट है। उसका मेरे दिल में कोई मतलब नहीं बचा, काव्या।"
लेकिन काव्या की आंखों में शक था।
अगले कुछ दिन, दोनों के बीच बातचीत कम हो गई।
रोहन समझ नहीं पा रहा था कि काव्या इतनी छोटी बात को इतना बड़ा क्यों बना रही थी, और काव्या सोच रही थी कि अगर रोहन सही होता, तो वो उसे पहले ही सब कुछ बता देता।
एक दिन, जब काव्या घर लौटी, तो उसने देखा कि रोहन फोन पर बात कर रहा था।
"हाँ रिया, मैं तुमसे फिर बात करता हूँ… हाँ, मैं देख लूंगा… ठीक है, बाय।"
काव्या का दिल टूट गया।
"फिर से रिया?" उसने गुस्से में कहा।
रोहन ने चौंककर उसकी ओर देखा।
"काव्या, प्लीज़ समझने की कोशिश करो—ये कुछ नहीं है!"
लेकिन इस बार, काव्या सुनने के मूड में नहीं थी।
"अगर कुछ नहीं होता, तो तुम मुझसे छुपाते नहीं!"
रोहन ने आगे बढ़कर उसका हाथ पकड़ा, "कसम से, मेरे दिल में सिर्फ तुम हो।"
लेकिन काव्या ने अपना हाथ झटक दिया।
"शायद तुम्हें खुद नहीं पता कि तुम्हारे दिल में कौन है, रोहन।"
और वो दरवाजा बंद करके चली गई।
रोहन पूरी रात बेचैन रहा।
काव्या की ये नाराज़गी उसे अंदर तक तोड़ रही थी।
अगली सुबह, उसने फैसला किया कि वो खुद रिया को काव्या के सामने लाएगा, ताकि ये गलतफहमी हमेशा के लिए खत्म हो जाए।
वो सीधा रिया के पास गया और बोला, "तुमने काव्या को मेरे और तुम्हारे बारे में कुछ कहा?"
रिया चौंक गई, "नहीं, बिल्कुल नहीं! लेकिन मैं समझ सकती हूँ कि वो ऐसा क्यों सोच रही है।"
"तो फिर चलो, काव्या से मिलो और खुद बताओ कि हमारे बीच अब कुछ भी नहीं है!"
रिया मुस्कुराई। "तुम उससे बहुत प्यार करते हो, है ना?"
रोहन ने एक सेकंड भी सोचे बिना कहा, "हाँ, मैं उसके बिना जी नहीं सकता।"
शाम को, जब काव्या घर लौटी, तो उसने देखा कि रोहन और रिया दोनों वहां खड़े थे।
"तुम यहाँ क्यों आई हो?" काव्या ने रिया से ठंडी आवाज़ में पूछा।
रिया ने गहरी सांस ली और कहा, "क्योंकि मैं तुम्हें बताना चाहती हूँ कि रोहन सिर्फ तुम्हारा है, काव्या। हमारे बीच अब कुछ नहीं है।"
काव्या चुप रही।
रिया ने उसकी आंखों में देखा, "मैं तुम्हारी जगह होती, तो शायद मैं भी यही सोचती। लेकिन काव्या, कुछ रिश्ते सिर्फ अतीत बनकर रह जाते हैं… और मेरा और रोहन का रिश्ता भी वैसा ही था।"
रोहन ने धीरे से काव्या का हाथ पकड़ा।
"मैं सिर्फ तुमसे प्यार करता हूँ, काव्या। और मुझे बस तुम्हारी जरूरत है।"
काव्या की आंखों में आंसू आ गए।
उसने धीरे से रोहन का हाथ थामा और फुसफुसाई, "सॉरी…"
रोहन ने हल्का सा हंसकर कहा, "अगर हर झगड़ा ऐसे खत्म होता रहा, तो मैं बार-बार झगड़ने के लिए तैयार हूँ।"
काव्या ने उसकी बाहों में सिर रख दिया।
अब कोई गलतफहमी नहीं थी।
अब सिर्फ प्यार था।
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