यह कहानी भारतीय समाज की उस गहरी मानसिकता को उजागर करती है, जहाँ बेटी का जन्म आज भी अभिशाप माना जाता है और बेटे को वंश का दीपक समझा जाता है। एक छोटे-से गाँव में, जहाँ हर सुबह मंदिर की घंटियों और पक्षियों की चहचहाहट से होती है, वहाँ एक झोपड़ी के भीतर एक नई ज़िंदगी जन्म लेने वाली थी। लेकिन यह जन्म खुशियों की सौगात लाने वाला था या किसी परिवार के लिए बोझ?
चलिए कहानी शुरू करते है ~
गाँव का नाम: बगवानीपुर
बगवानीपुर, एक बहुत ही सुंदर सा गाँव था, जो पहाड़ी इलाकों के बीच बसा हुआ था। चारों ओर हरी-भरी वादियाँ और घने जंगल थे, जिनमें हरियाली की कोई कमी नहीं थी। पेड़-पौधे खिल रहे थे, और पक्षियों की चहचहाहट वातावरण को और भी मधुर बना रही थी। सुबह का समय था, और सूरज की किरणें धीरे-धीरे धरती पर फैल रही थीं, जिससे गाँव का माहौल और भी खूबसूरत हो गया था। नदियाँ शांतिपूर्वक बह रही थीं, और उनका पानी गाँव के जीवन का अहम हिस्सा था।
कुछ महिलाएँ नदियों से पानी भरकर अपने घरों की ओर लौट रही थीं। वे बड़े-बड़े मटके सिर पर रखे हुए थी, और आपस में बात करते हुए घर लौट रही थीं। क्योंकि गांव में सिर्फ गिने चुने लोगों के घर पर ही हैंडपंप लगा हुआ था.... इसलिए सभी नदी और कुंए का पानी ही इस्तमाल करते थे।
घरों की दीवारें छोटी और खपरैल से बनी हुई थीं, जैसे गाँव के अधिकतर घर होते हैं। कुछ लोग अपने खेतों में काम करने जा रहे थे, तो कुछ लोग गाय-भैंसों को चराने ले जा रहे थे। यह उस वक्त का साधारण सा जीवन था।
इसी गाँव के एक छोटे से घर में मधुरी अपने पहले बच्चे को जन्म देने वाली थी। घर में एक चुप्प सी खामोशी छाई हुई थी, जैसे सबकी धड़कनें तेज हो रही हों। मधुरी, जो अभी 21 साल की थी, पेट से थी , उसकी सास, मंदिर में बैठकर पूजा कर रही थी, उसके हाथों में माला थी, जिसे वह पूरे ध्यान से जाप कर रही थी। उसकी आँखों में यह ख्वाहिश थी कि भगवान से वह अपने पोते का मुँह देख सके।
वहीं श्यामलाल, जो मधुरी के पति थे, घर के आंगन में एक छोटी सी खाट पर बैठे थे। वे भी भगवान से प्रार्थना कर रहे थे, और उनका चेहरा कुछ अलग सा था। एक ओर खुशी थी, तो दूसरी ओर डर भी था कि कही लड़की ना हो जाए....
माधुरी की दर्दनाक चीख अब शांत हो चुकी थी....
कुछ देर बाद, घर के भीतर से बच्चे के रोने की आवाज़ सुनाई दी। वह आवाज़ जैसे श्यामलाल और मधुरी की सास को एक साथ जगा देती है। दोनों की नज़रे कमरे की ओर मुड़ जाती हैं, जहाँ मधुरी और दाई माँ मौजूद थीं।
श्यामलाल का चेहरा खुशी से भर गया, लेकिन साथ ही एक हल्का सा डर भी था। लेकिन फिर भी वे अपने बच्चे और पत्नी के सुरक्षित होने की कामना कर रहे थे।
माधुरी ने धीरे से अपनी आँखें खोलीं। दाई माँ के हाथों में कपड़ों के बीच लिपटा हुआ उसका बच्चा था, जो बिल्कुल शांत था। माधुरी का दिल घबरा गया। उसने धीमी आवाज़ में पूछा, "काकी, क्या हुआ?"
दाई माँ ने माधुरी की ओर देखा और उसकी आँखों में झाँकते हुए कहा, " बेटी " इतना सुनते ही माधुरी ने अपनी आँखें बंद कर लीं, लेकिन उसके चेहरे पर एक हल्की मुस्कान छा गई। उसने कहा, "मुझे दीजिए।" उसने अपने बच्चे को सीने से लगाया और प्यार से सहलाने लगी।
तभी कमरे में उसकी सास और श्यामलाल आ गए। दाई माँ और माधुरी दोनों ने दरवाजे पर खड़े उन दोनों को देखा। माधुरी का दिल ज़ोर से धड़कने लगा। दोनों के चेहरे पर खुशी थी। माधुरी की सास ने एक सोने का सिक्का दाई मां के ओर बढ़ाते हुए पूछा, "बताओ, पोता है ना हमारा?"
दाई मां चुप रही.... उसकी चुप्पी देख माधुरी की सास और उसका पति कुछ घबरा से गए.....
श्यामलाल ने पूछा, "क्या हुआ?"
तब दाई मां ने कहा " श्याम बाबू घर में लक्ष्मी ने जन्म लिया है "
इतना सुनते ही कमरे में सन्नाटा छा गया। श्यामलाल का चेहरा उदास हो गया लेकिन अपनी उदासी को छुपाते हुए उसने अपनी मां की ओर देखा उसकी मां ने सोने का सिक्का वापस पीछे खींच लिया.... और उसका चेहरा अब सख्त हो चला था..... वो वही जमीन पर धम्म से बैठ गई और अपना माथा पीट लिया....
" हे भगवान तुझसे एक पोता ही तो मांगा था एक ही बेटा है मेरा कैसे करेगा सब अकेले घर में उजाला मांगा था अंधेरा नहीं....
माधुरी ये सब चुपचाप देख रही थी उसकी आंखों में आंसू आ चुके थे जो सास पिछले दो महीने से उसके साथ खूब अच्छे से रहती थी आज उसका रूप बिल्कुल बदल आ गया था माधुरी को सास की एक एक बात किसी तीर के समान चुभ रही थी....
ऐसे शोक मनाते हुए देख दाई मां उसके पास आई और उसके कंधे पर हाथ रखकर बोली —
" अरे लाली बेटा नहीं हुआ तो क्या हुआ घर में लक्ष्मी आई है और लक्ष्मी उन्हीं को मिलने के घर आती है जो बहुत भाग्य वाले होते हैं .... ऐसे दिल छोटा मत करो बहू की सेवा करो तुम दादी बन गई हो "
लाली जोर से दाई मां को धक्का दे देती है ....
श्याम दौड़ कर दाई मां को संभालता है तब लाली कहती है...
" दिमाग पहले से खराब है इसे लक्ष्मी काहे कह रही हो अरे बोझ बनकर आई है .... कोई लक्ष्मी नहीं है ये "
श्याम अपनी मां के पास जाता है और कहता है —
" मां शांत हो जाओ आप.... चिंता मत करो इस बार बेटी है हुई तो अगली बार जरूर पोते का मुंह देखोगी....
लाली अपने बेटे के सीने पर अपना कर रख लेती और कहती है — “ पता नहीं ये मुझे पोते का मुंह दिखाएगी भी या नहीं .... इसकी पहली औलाद भी लड़की ही थी , लेकिन भगवान को बहुत शुक्र है कि वह पेट में ही मर गई वरना आज दो-दो लड़कियों का बोझ लेकर तू अपने कंधे पर घूमता "
श्यामलाल फिर अपनी मां को चुप करता है — “ अरे मां शांत हो जाओ.. "
दाई मां एक नजर माधुरी को देखती हैं जिसकी आंखों से लगातार आंसू बह जाए थे वो माधुरी को इशारे से दिलासा देती है कि सब ठीक हो जाएगा और उसे चुप हो जाने को कहती है....
तब भी बच्चा रोने लगता है लाली और श्याम दोनों की नजरों से बच्चे पर जाती है श्यामलाल बच्चे को देखने के लिए उठता है तो वहीं लाली मुंह बना करके कमरे से पैर पटकते हुए बाहर निकल जाती है ...
मगर इस वक्त माधुरी अपने बच्चों को संभालती है तब दाई मां उसके पास आती है और उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहती हैं — " माधुरी बहु बिटिया को दूध पिलाओ इसे भूख लगी है "
तब श्याम भी माधुरी के गाल पर प्यार से हाथ रखते हुए कहता है " — हां माधुरी बिटिया को दूध पिला दो हम मां को देखकर आते हैं " इतना कहकर वो कमरे से बाहर चला जाता है।
माधुरी अपनी बिटिया को अपना स्तनपान करवाने लगती हैं , तब दाई मां उसके पास बैठी हैं और उसे कुछ औषधि देती हैं और कहती हैं — " इसे पी लो तुम्हें ताकत मिलेगी और अपना और बिटिया का अच्छे से ख्याल रखना और रोना मत सास ही है... एक दिन बिटिया का मुंह देखेगी तो खुद पिघल जाएगी।
माधुरी फीकी मुस्कान लेकर हामी भर देती है तब दाई मां कहती " ठीक है बिटिया अब हम भी चलते हैं "
और इतना कह कर दाई मां कमरे से बाहर निकल जाती है।
क्रमशः