Ishq ka dusra naam in Hindi Love Stories by Sun books and stories PDF | इश्क़ का दूसरा नाम

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इश्क़ का दूसरा नाम



चलिए एक नई कहानी शुरू करते है –

रायपुर की तंग गलियों में बसी एक छोटी-सी बस्ती, जहाँ हर सुबह ज़िंदगी एक नई उम्मीद के साथ जागती थी। इसी बस्ती में रहती थी कोमल, एक पढ़ी-लिखी, आत्मनिर्भर लड़की, जिसने अभी-अभी शहर के एक प्रतिष्ठित स्कूल में टीचर की नौकरी शुरू की थी। वह खुशमिजाज थी, सपनों से भरी हुई और अपने जीवन में एक सही साथी की तलाश में थी। लेकिन प्यार उसे वहाँ मिलेगा, जहाँ उसने सोचा भी नहीं था।  
 
कोमल का घर स्कूल से ज्यादा दूर नहीं था, इसलिए वह रोज़ सुबह पैदल ही जाया करती थी। रास्ते में कई बार उसने एक हैंडसम सफाई कर्मचारी को देखा था, जो हर सुबह गली को साफ़-सुथरा करने में लगा रहता था। उसकी उम्र कोई 27-28 के आसपास होगी, कद लंबा, चौड़ा सीना और चेहरे पर एक सादगी भरी मुस्कान। वह लड़का था सोहन।  

सोहन की आँखों में एक अलग चमक थी, वह अपने काम को बहुत मेहनत और ईमानदारी से करता था। कोमल को उसकी यही बात पसंद आई। लेकिन समाज ने सफाई कर्मचारियों को कभी वो इज्जत नहीं दी, जो बाकी नौकरियों को मिलती है। कोमल को यह सोचकर हमेशा बुरा लगता था।  

एक दिन स्कूल से लौटते वक़्त कोमल ने देखा कि एक बुजुर्ग महिला सड़क किनारे गिर गई थी और किसी को कोई परवाह नहीं थी। लोग बस देख रहे थे, लेकिन कोई मदद के लिए आगे नहीं आया। तभी सोहन भागकर आया, उन्हें उठाया, पानी दिया और एक ऑटो रोककर घर तक छोड़ने चला गया।  

यह देखकर कोमल के दिल में उसके लिए इज्जत और बढ़ गई। अब वह रोज़ उसे देखने लगी, कभी-कभी वह मुस्कुराकर उसे 'गुड मॉर्निंग' कहती और सोहन भी शर्मीली मुस्कान के साथ जवाब दे देता।  
 
एक दिन ज़ोरदार बारिश हो रही थी। कोमल छतरी के नीचे खड़ी थी, जब उसने देखा कि सोहन भीगते हुए भी सफाई करने में जुटा था। उसने हिम्मत जुटाई और उसके पास जाकर कहा,  
"तुम्हें भीगने से दिक्कत नहीं होती?"  

सोहन ने मुस्कुराकर जवाब दिया,  
"दिक्कत तो होती है, लेकिन अगर मैं ना करूँ तो यह सड़क गंदगी से भर जाएगी। फिर लोग शिकायत करेंगे कि सफाई कर्मचारी ठीक से काम नहीं करते।"  

कोमल को उसकी ईमानदारी पर गर्व महसूस हुआ। उसने अपनी छतरी उसकी ओर बढ़ा दी,  
"थोड़ी देर इसके नीचे आ जाओ।"  

सोहन पहले झिझका, लेकिन फिर धन्यवाद कहकर छतरी के नीचे आ गया। उस दिन दोनों के बीच पहली बार सही मायने में बातचीत हुई।  
  
इसके बाद दोनों की मुलाकातें बढ़ने लगीं। कोमल ने जाना कि सोहन सिर्फ एक सफाई कर्मचारी ही नहीं, बल्कि एक मेहनती और इज्जतदार इंसान भी है। वह बचपन से ही गरीब था, लेकिन उसने कभी किसी के आगे हाथ नहीं फैलाया। उसके माता-पिता नहीं थे, वह अकेला रहता था, पर अपनी खुद्दारी नहीं छोड़ी।  

धीरे-धीरे, कोमल को एहसास हुआ कि वह सोहन से प्यार करने लगी है। लेकिन एक डर उसके दिल में था ! समाज क्या कहेगा? परिवार कैसे रिएक्ट करेगा?  

कोमल के लिए यह आसान नहीं था, लेकिन उसने तय कर लिया था कि वह समाज की परवाह नहीं करेगी। एक दिन उसने सोहन को पार्क में बुलाया और कहा,  
"अगर मैं कहूँ कि मुझे तुम्हारे साथ अपनी ज़िंदगी बितानी है, तो तुम्हारा जवाब क्या होगा?"  

सोहन पहले चौंक गया, फिर बोला,  
"कोमल, मैं तुम्हें बहुत पसंद करता हूँ, लेकिन क्या तुम सच में अपने परिवार और समाज के खिलाफ जा पाओगी?"  

कोमल ने उसका हाथ थाम लिया,  
"अगर प्यार सच्चा हो, तो समाज की बंदिशें कोई मायने नहीं रखतीं। मैं तुम्हारे साथ हूँ।"  

(अब सोहन की नज़र से वो क्या महसूस करता था)  

रायपुर की इन गलियों में सुबह सबसे पहले मैं ही आता था। हाथ में झाड़ू, चेहरे पर मेहनत की लकीरें, और दिल में एक इज्जतदार ज़िंदगी जीने की चाह। लोग आते-जाते मुझे देखते, लेकिन उनकी नज़रों में मेरे लिए कोई पहचान नहीं थी। मैं बस एक सफाई कर्मचारी था जो हर रोज़ उनकी गंदगी को साफ़ कर देता, मगर ख़ुद उनके दिलों में जगह नहीं बना पाता।  

लेकिन एक जोड़ी आँखें थीं, जो मुझे औरों की तरह अनदेखा नहीं करती थीं।  

वो थी कोमल।  

पहली बार किसी ने मुझे ऐसे देखा था ! रोज़ सुबह मैं अपनी गली साफ़ करता था, और वह लड़की… स्कूल जाते वक़्त मुझे हल्की मुस्कान देती थी। पहले तो मैंने ध्यान नहीं दिया, मगर फिर मुझे एहसास हुआ कि वो मुस्कान सिर्फ़ औपचारिक नहीं थी। वो एक अपनापन था।  

एक दिन बारिश हो रही थी। मैं गीले कपड़ों में भी अपनी ड्यूटी निभा रहा था, तभी उसने छतरी मेरी तरफ़ बढ़ा दी।  
"थोड़ी देर इसके नीचे आ जाओ," उसने कहा।  

मैंने उसे देखा साफ़ रंग, बड़ी-बड़ी आँखें और उनमें एक अजीब-सी चमक।  

"नहीं, मैं ठीक हूँ," मैंने कहा और वापस काम में लग गया।  

पर वो वहीं खड़ी रही, जैसे मेरी परवाह करती हो। यह मेरे लिए नया था।  

धीरे-धीरे मेरे मन उसका ख्याल आने लगा। उसके लिए एहसास जगने लगे।
अब हर दिन मैं उस वक़्त का इंतज़ार करने लगा जब वो गली से गुज़रती थी। एक दिन उसने मुझे रोककर पूछा,  

"सोहन, तुम हमेशा इतने गंभीर क्यों रहते हो?"  

मैंने हल्के से मुस्कुराया,  
"काम के दौरान हँसने की आदत नहीं है।"  

वो हँस पड़ी,  
"कोशिश करो, हो सकता है तुम्हारी मुस्कान किसी का दिन बना दे!"  

मैं पहली बार किसी के इतना करीब महसूस कर रहा था। लेकिन यह आसान नहीं था। मैं एक मामूली सफाई कर्मचारी था, और वह एक पढ़ी-लिखी लड़की। हमारा मेल समाज के हिसाब से "अनफ़िट" था।  
  
एक दिन मैंने उसे एक आदमी से झगड़ते हुए देखा। वह आदमी गली में कूड़ा फेंक रहा था और कोमल उसे मना कर रही थी।  
"अगर सफाई कर्मचारी हैं तो इसका मतलब यह नहीं कि आप उनके काम बढ़ाते रहें!"  

उसकी बातें सुनकर मेरे अंदर एक अजीब-सा एहसास हुआ। वो सिर्फ़ मुझे पसंद नहीं करती थी, बल्कि मेरे काम की भी इज्जत करती थी।  

उस रात मैं सो नहीं सका। मन में सिर्फ़ एक सवाल था क्या मैं सच में इस लड़की के लायक हूँ?  
  
एक शाम, पार्क में मुलाकात हुई। उसने सीधे मुझसे पूछा,  
"अगर मैं कहूँ कि मुझे तुमसे प्यार हो गया है, तो तुम्हारा जवाब क्या होगा?"  

मुझे यकीन नहीं हुआ। यह लड़की, जो किसी भी बड़े अफसर से शादी कर सकती थी, मुझसे प्यार करती थी?  

मैंने धीमे से कहा,  
"कोमल, प्यार अमीर-गरीब नहीं देखता, लेकिन दुनिया देखती है। तुम्हारा परिवार, समाज… ये सब क्या कहेंगे?"  

वो थोड़ा गुस्से में बोली,  
"तो क्या हमें अपनी ज़िंदगी उनके हिसाब से जीनी चाहिए?"  

मैंने उसके चेहरे को देखा उसमें हौसला था, भरोसा था। पहली बार किसी ने मुझे सिर्फ़ एक 'सफाई कर्मचारी' नहीं, बल्कि सोहन के रूप में देखा था।  

  
जब कोमल ने अपने घर पर हमारे बारे में बताया, तो कयामत आ गई।  
"तू पागल हो गई है? एक सफाई कर्मचारी से शादी करेगी?" उसकी माँ चिल्लाई।  

उसके रिश्तेदारों ने ताने मारे, दोस्तों ने मज़ाक उड़ाया। उधर, मेरे अपने लोग भी कहने लगे,  
"तू उस लड़की की ज़िंदगी मत बर्बाद कर, वो तेरे से कहीं ऊपर है।"  

मैंने सोचा, क्या मैं सच में उसकी ज़िंदगी के लायक हूँ?  

मैंने कोमल से दूरी बनानी चाही, पर वो हर बार मेरे सामने खड़ी हो जाती।  
"अगर तुमने मुझे छोड़ने की कोशिश की, तो मैं तुम्हें ढूँढ लूँगी, सोहन!" उसने ज़िद से कहा।  
  
हमारे बीच प्यार था, लेकिन झगड़े भी थे।  
एक दिन मैं बिना बताए काम पर नहीं गया, तो कोमल स्कूल के बाद सीधा मेरी खोज में आ गई।  
"कहाँ थे तुम?" उसने गुस्से में पूछा।  

"बस… तबीयत ठीक नहीं थी," मैंने कहा।  

"तो बताना ज़रूरी नहीं समझा? मैं पूरा दिन परेशान थी!"  

मैं चुप रहा, मगर अंदर कहीं अच्छा लग रहा था कि कोई है जो मेरी इतनी फ़िक्र करता है।  

दूसरी बार उसने मुझसे कहा,  
"सोहन, तुम हमेशा वही गंदे कपड़े क्यों पहनते हो?"  

मैं हँसा,  
"मैडम, सफाई कर्मचारी हूँ, महंगे सूट पहनूँगा क्या?"  

वो गुस्से में बोली,  
"तो क्या हुआ? एक दिन मैं तुम्हें ऐसा आदमी बनाऊँगी कि लोग तुम्हें सिर्फ़ काम से नहीं, बल्कि पहचान से जानें!"    

***

उस दिन के बाद से अब सोहन के मन में भी कोमल के सामने अपना प्यार जताने की हिम्मत आ गई थी। वो उससे दूर नहीं भागता था ।

***  

एक रात हल्की-हल्की बारिश हो रही थी। कोमल और सोहन अकेले गली में चल रहे थे। बारिश की बूंदें दोनों को भिगो रही थीं, लेकिन किसी को परवाह नहीं थी।  

कोमल ने रुककर उसकी ओर देखा, उसके भीगे बाल उसके चेहरे पर चिपक गए थे।  
"सोहन, क्या तुम मुझसे प्यार नहीं करते?”

सोहन ने उसकी आँखों में झाँका, फिर धीमे से एक कदम आगे बढ़ाया।  
"मुझे बहुत पहले से तुमसे प्यार है, बस कहने की हिम्मत नहीं थी।"  

कोमल हल्की मुस्कान के साथ उसकी तरफ़ बढ़ी और उसके हाथों को अपने हाथों में ले लिया।  
"अब कह दिया ना? तो अब कभी दूर मत जाना।"  

सोहन ने बारिश में भीगती हुई कोमल को अपनी बाहों में खींच लिया। कोमल ने अपनी आँखें बंद कर लीं और उसके कंधे पर सिर रख दिया।  

एक दिन कोमल और सोहन बाजार गए थे। भीड़ इतनी थी कि सोहन आगे निकल गया और कोमल पीछे रह गई। अचानक किसी ने उसे धक्का दिया, और वह सोहन से टकरा गई।  

सोहन ने झट से उसे पकड़ लिया, उसके दोनों हाथ अपने मजबूत हाथों में थाम लिए।  

"संभल के कोमल, मैं हूँ न," सोहन ने धीमे से कहा।  

कोमल ने पहली बार उसके इतने करीब खुद को महसूस किया। उसकी तेज़ धड़कनें, उसकी गर्म हथेलियों का अहसास… एक अजीब-सा करंट उसके पूरे बदन में दौड़ गया।  

वह धीरे से बोली, "अगर तुमने हाथ छोड़ दिया, तो मैं फिर खो जाऊँगी।"  

सोहन ने हल्के से उसके हाथों को और कस लिया, "अब कभी नहीं छोड़ूँगा।"  
  
एक शाम, कोमल बहुत परेशान थी। घर में उसके और उसकी माँ के बीच झगड़ा हुआ था। वह भागते हुए सोहन के पास पहुँची और बिना कुछ कहे उसे ज़ोर से गले लगा लिया।  

सोहन अचानक इस पल के लिए तैयार नहीं था, लेकिन उसने देखा कि कोमल काँप रही थी।  

"कोमल, क्या हुआ?" उसने धीरे से उसके सिर पर हाथ फेरते हुए पूछा।  

"कुछ मत पूछो, बस मुझे अपने पास रहने दो," कोमल की आवाज़ हल्की और भावुक थी।  

सोहन ने बिना कुछ कहे उसे अपनी बाहों में समेट लिया, उसकी पीठ पर हाथ फेरा, और हल्के से उसके माथे पर एक नरम चुंबन दे दिया।  

"जब तक मैं हूँ, तुम्हें कोई तकलीफ़ नहीं होने दूँगा," उसने फुसफुसाया।  

एक रात के 11 बजे थे। पूरा मोहल्ला सो चुका था, लेकिन कोमल को नींद नहीं आ रही थी। उसने चुपके से अपने घर की खिड़की खोली और देखा कि सोहन पहले से ही नीचे खड़ा था।  

वह हल्के-हल्के कदमों से नीचे आई और धीमे से बोली,  
"अगर किसी ने देख लिया तो?"  

सोहन ने मुस्कुराते हुए कहा,  
"तो कह देंगे कि चाँदनी रात में दो दिल बातें कर रहे थे।"  

कोमल हँस पड़ी और उसके करीब आ गई।  
"तुम्हारी ये बातें मुझे पागल कर देती हैं।"  

सोहन ने धीरे से उसकी ठुड्डी ऊपर उठाई और आँखों में देखते हुए कहा,  
"और तुम्हारी आँखें मुझे किसी और को देखने ही नहीं देतीं।"  

चाँद की रोशनी में दोनों एक-दूसरे के इतने करीब थे कि हर धड़कन, हर साँस महसूस हो रही थी।  
  
एक दिन कोमल बहुत उदास थी। उसकी माँ ने फिर से उसके और सोहन के रिश्ते को लेकर ताने दिए थे।  

सोहन ने उसके चेहरे को दोनों हाथों में लिया और धीरे से उसकी आँखों में देखा।  

"तुम्हें दुखी देखना मुझे अच्छा नहीं लगता," उसने गहरी आवाज़ में कहा।  

कोमल की आँखों से आँसू टपकने लगे। सोहन ने धीरे से उसे अपने करीब खींचा और उसके माथे पर एक नरम और प्यार भरा चुंबन दिया।  

"जब तक मैं हूँ, तुम्हारी हर तकलीफ़ मेरी तकलीफ़ है," उसने कहा।  

कोमल ने आँखें बंद कर लीं और उसकी बाहों में समा गई। "तुम्हारे साथ दुनिया की हर तकलीफ़ छोटी लगती है, सोहन," उसने धीरे से कहा।  

एक रात दोनों नदी किनारे बैठे थे। हल्की ठंडी हवा चल रही थी, चाँद आसमान में चमक रहा था, और कोमल पानी में कंकड़ फेंक रही थी।  

सोहन उसे बस देखे जा रहा था।  

"तुम इतने चुप क्यों हो?" कोमल ने पूछा।  

सोहन ने उसकी ओर देखा, हल्की मुस्कान के साथ बोला,  
"क्योंकि मैं तुम्हें देख रहा हूँ और सोच रहा हूँ कि मैंने ऐसा कौन-सा अच्छा काम किया कि भगवान ने तुम्हें मेरी ज़िंदगी में भेजा?"  

कोमल ने हँसते हुए कहा, "बस इतना ही?"  

सोहन ने उसके बालों को हल्के से हटाया और पहली बार उसके कानों में फुसफुसाया,  
"आई लव यू, कोमल।"  

कोमल का दिल तेज़ी से धड़कने लगा। वह शर्म से हल्का सा पीछे हटने लगी, लेकिन सोहन ने उसका हाथ पकड़ लिया।  

"अब दूर मत जाना," उसने कहा।  

कोमल ने उसकी आँखों में देखा और धीमे से जवाब दिया, "आई लव यू टू, सोहन।"  

प्यार सिर्फ़ शब्दों में नहीं, उन अनकहे लम्हों में भी होता है, जब कोई बिना कहे तुम्हारे पास खड़ा रहता है।
  
कई महीनों की लड़ाई के बाद, उनके परिवार वाले मान गए। शादी एक साधारण मंदिर में हुई, लेकिन उनके लिए वो किसी राजमहल से कम नहीं थी। 

****

शादी के बाद कोमल और सोहन ने एक छोटे से किराए के घर में अपनी ज़िंदगी की शुरुआत की। घर छोटा था, लेकिन उसमें प्यार और अपनेपन की कोई कमी नहीं थी। सुबह सोहन सफाई अभियान के लिए निकल जाता, और कोमल उसे टिफिन पकड़ा कर उसके माथे को चूमते हुए कहती, "जल्दी आना, नहीं तो खाने का स्वाद फीका रहेगा।"  

सोहन मुस्कुरा देता और कहता, "अब तो हर रोज़ भागते हुए ही आऊँगा।"  
  
पहली रात जब दोनों अपने कमरे में थे, तो कोमल थोड़ी घबराई हुई थी। हल्की मोमबत्ती की रोशनी में उसकी आँखों की झिझक साफ़ दिख रही थी।  

सोहन ने धीरे से उसके पास जाकर कहा,  
"डर रही हो?"  

कोमल ने हल्की मुस्कान के साथ सिर झुका लिया।  

सोहन ने प्यार से उसकी ठुड्डी ऊपर की और बोला,  
"तुम्हें डरने की जरूरत नहीं, मैं तुम्हारा दोस्त पहले हूँ, पति बाद में।"  

कोमल ने पहली बार उसकी आँखों में एक सुकून देखा और धीरे-धीरे उसके कंधे पर सिर रख दिया। सोहन ने अपनी उंगलियों से उसके बालों को सहलाया और धीरे से उसकी माँग में एक हल्का चुंबन दिया।  

"अब से हर रात ऐसी ही होगी सुकून भरी," उसने फुसफुसाया।  
  
एक दिन सोहन को तेज़ बुखार हो गया। वो फिर भी काम पर जाने की ज़िद करने लगा।  

कोमल ने गुस्से में कहा, "अगर एक कदम भी बाहर निकाला, तो मैं तुम्हें ज़बरदस्ती वापस खींच लाऊँगी!"  

सोहन ने मुस्कुराते हुए कहा, "तो तुम मुझे बाँध लो, ताकि मैं भाग ही न सकूँ।"  

कोमल ने हँसते हुए उसके सिर पर ठंडी पट्टी रखी और धीरे-धीरे उसका हाथ अपने हाथ में लेकर बोली,  
"जब तुम बीमार होते हो, तो लगता है जैसे मेरी दुनिया ही थम गई हो।"  

सोहन ने हल्की मुस्कान के साथ आँखें बंद कीं, "तुम्हारे हाथ की देखभाल में तो मैं हर दिन बीमार पड़ना चाहूँगा।"  

शादी के कुछ महीनों बाद, एक रात कोमल ने कहा, "चलो कहीं घूमने चलते हैं।"  

सोहन ने कहा, "इतनी रात को?"  

"हाँ! प्यार करने वालों के लिए रात ही सबसे खूबसूरत होती है," कोमल ने शरारती अंदाज में कहा।  

सोहन हँस पड़ा और मोटरसाइकिल निकाली। कोमल उसके पीछे बैठी, लेकिन इस बार उसने शर्माते हुए खुद को और कसकर पकड़ लिया।  

जब हवा उनके चेहरे से टकरा रही थी, तो कोमल ने धीरे से सोहन के कान में कहा,  
"अगर ये सफर कभी खत्म न हो, तो?"  

सोहन ने मुस्कुराते हुए कहा, "जब तक तुम मेरे साथ हो, हर सफर खूबसूरत रहेगा।"  
  
एक दिन कोमल को बहुत गुस्सा आ गया, क्योंकि सोहन सफाई अभियान में इतना बिजी हो गया कि उसके साथ समय नहीं बिता पा रहा था।  

"तुम्हारे पास सबके लिए टाइम है, बस मेरे लिए नहीं!" कोमल ने नाराज़ होकर कहा।  

सोहन भी चिढ़ गया, "मैं तुम्हारे लिए ही तो मेहनत कर रहा हूँ!"  

कोमल ने गुस्से में कहा, "मुझे बस तुम्हारा साथ चाहिए, पैसे नहीं!" और गुस्से में अपने कमरे में चली गई।  

सोहन को जल्द ही अहसास हुआ कि वो गलत था। वो उसके पास गया, पीछे से उसकी कमर में हाथ डालकर उसे करीब खींचा और धीरे से कहा,  
"मुझे माफ कर दो, मेरी दुनिया।"  

कोमल ने उसे हल्के से मुक्का मारा और बोली, "बस इतना ही? कुछ और नहीं कहोगे?"  

सोहन ने शरारती अंदाज में कहा, "अब तुम चाहती हो तो सजा भी दो, मैं तैयार हूँ।"  

कोमल ने मुस्कुराते हुए उसकी बाहों में समा गई।  

एक दिन कोमल बहुत शांत थी। उसने सोहन को देखा और धीरे से उसका हाथ अपने पेट पर रखा।  

सोहन को पहले तो समझ नहीं आया, फिर उसकी आँखें खुशी से भर आईं।  

"मैं… मैं पापा बनने वाला हूँ?"  

कोमल ने हल्की मुस्कान के साथ सिर हिला दिया।  

सोहन ने खुशी में उसे गोद में उठा लिया और पूरी दुनिया की परवाह किए बिना उसकी पेशानी पर एक लंबा, प्यार भरा चुंबन दिया।  

"अब मेरी ज़िंदगी पूरी हो गई, कोमल।"  

उसके बाद कोमल ने सोहन को प्रोत्साहित किया कि वो सफाई कर्मचारी से आगे बढ़कर कुछ करूँ। सोहन ने एक स्वच्छता अभियान शुरू किया, जहाँ वो और उसके साथी शहर को साफ़ करने के साथ-साथ लोगों को सफाई के लिए जागरूक करने लगे। धीरे-धीरे उनका काम शहर में चर्चित होने लगा, और एक दिन सरकार ने उन्हें ‘बेस्ट सिटिजन अवार्ड’ से सम्मानित किया।  

जब मैं स्टेज पर ट्रॉफी लेने गया, तो उसकी आँखों में आँसू थे। नीचे कोमल खड़ी मुस्कुरा रही थी। उसके हाथ उसके पेट पर थे । दोनों को एक दूसरे से प्यार हुआ जबकि दोनों जानते थे कि उनकी दुनिया एक दूसरे से बिल्कुल अलग और जुदा है फिर भी ना ही कोमल ने सोहन का साथ छोड़ा और ना ही सोहन ने कभी मेहनत करने से पहले अपने पैर पीछे लिए ।

 "इश्क़ का दूसरा नाम यही तो होता हैएक ऐसा प्यार जो सिर्फ़ दिल से जुड़ा हो, ना कि हालातों से!"