Benam Ishq in Hindi Love Stories by Sun books and stories PDF | बेनाम इश्क़

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बेनाम इश्क़

(जब प्यार एक एहसास बनकर दिल में बस जाता है, बिना किसी नाम के…)  

शुरू करते है –

कहते हैं, प्यार जब होता है, तो बस हो जाता है। वह न वक़्त देखता है, न हालात, और न ही कोई वजह। ऐसा ही कुछ आयरा के साथ हुआ था।  

आयरा, 28 साल की, एक स्वतंत्र आत्मनिर्भर लड़की, जो मुंबई में एक एडवरटाइजिंग कंपनी में काम करती थी। वह ज़िंदगी को अपने तरीके से जीना चाहती थी बिना किसी रोक-टोक के।  

लेकिन फिर उसकी ज़िंदगी में एक अजनबी आया... कबीर।  

****

"एक ब्लैक कॉफी और एक ब्राउनी।"  
आयरा ने कैफे में ऑर्डर दिया और अपनी टेबल पर बैठ गई। वह अपने लैपटॉप में काम कर रही थी, जब अचानक किसी ने सामने की कुर्सी खींची।  

"क्या मैं यहाँ बैठ सकता हूँ?"  

आयरा ने नज़रें उठाईं लंबा कद, हल्की दाढ़ी, गहरी आँखें और एक हल्की मुस्कान।  

"यह टेबल खाली है, बैठ सकते हो," आयरा ने बिना ज़्यादा ध्यान दिए कहा।  

"वैसे, तुम्हारा नाम क्या है?" अजनबी ने पूछा।  

आयरा ने चौंककर उसे देखा, "मुझे नहीं लगता कि मेरा नाम जानना ज़रूरी है।"  

वह हँसा, "ठीक है, फिर हम बेनाम ही सही।"  

उसका अंदाज़ अलग था बेपरवाह, लेकिन गहरा। 

वो अजनबी आयरा के चहरे को देखे जा रहा था जिससे तंग आकर वो अपनी कॉफी लेकर उठ खड़ी हुई शायद उसी वक्त वो अजनबी भी उसे अपने से असहजता होता देख सामने टेबल पर जाने के लिए उठ खड़ा हुआ। दोनों विपरीत दिशा में बढ़ गए।

 "उफ्फ! तुम रास्ता देखकर नहीं चल सकते क्या?" उसने झुंझलाते हुए कहा और जैसे ही नज़रें उठाईं, वो अजनबी कातिलाना मुस्कान लिए हुए उसे देख रहा था।  

"सॉरी मिस... लेकिन अगर आपने कॉफी कमज़ोर पकड़ रखी थी, तो इसमें मेरी गलती नहीं।"  

आयरा भौंचक्की रह गई। "सुनो मिस्टर… गलती तुम्हारी है, और तुम बहस कर रहे हो?"  

वह आदमी मुस्कुराया, "बहस नहीं, बस यह कह रहा हूँ कि कॉफी गिरने का दोष गुरुत्वाकर्षण को दो, मुझ पर नहीं।"  

आयरा की भौहें तन गईं। "वैसे तुम्हें बहाने बनाने में कोई अवॉर्ड मिलना चाहिए!"  

"और तुम्हें गुस्से में भी खूबसूरत लगने का अवॉर्ड!" उसने हल्की हंसी के साथ जवाब दिया।  

आयरा को नहीं पता था कि यह "अजनबी" उसकी ज़िंदगी का सबसे खूबसूरत हिस्सा बनने वाला है।  

****

वो पहली और आखिरी मुलाकात नहीं थी। 

अगली बार जब आयरा उसी कैफे में गई, तो उसने देखा कि वही अजनबी आराम से उसकी फेवरेट टेबल पर बैठा हुआ था।  

"तुम फिर?" उसने हाथ बाँधकर पूछा।  

कबीर ने उसकी तरफ देखते हुए कप उठाया, "तुम भी?"  

"यह मेरी टेबल है!"  

"कैफे मालिक से पूछ लो, यह टेबल किसी के नाम पर नहीं है।"  

आयरा खीझ गई, "उफ्फ, तुम हमेशा दूसरों की चीज़ों पर कब्ज़ा कर लेते हो?"  

"केवल उन्हीं चीज़ों पर, जो मुझे पसंद आती हैं।" कबीर ने उसकी आँखों में देखते हुए कहा।  

आयरा को लगा कि यह आदमी उसे चिढ़ाने में एक्सपर्ट है। लेकिन सच कहूँ तो, उसे यह खेल मज़ेदार लगने लगा था।   

मुंबई जैसे बड़े शहर में, आयरा और कबीर बार-बार एक-दूसरे से टकराने लगे। कभी कैफे में, कभी समंदर किनारे, और कभी किसी अजनबी गली में।  

"तुम मेरा पीछा तो नहीं कर रहे?" एक दिन आयरा ने चुटकी लेते हुए पूछा।  

"अगर सच कहूँ, तो शायद किस्मत हमारा पीछा कर रही है," कबीर ने हल्की मुस्कान के साथ जवाब दिया।  

वह लड़का अजीब था न उसे ज़्यादा बातें करनी थीं, न अपने बारे में बताना था।  

बस जब भी मिलता, एक नया एहसास आयरा को देकर चला जाता।  

***
 
एक दिन, दोनों अचानक एक ही म्यूजिक कंसर्ट में मिल गए।  

आयरा ने चौंककर पूछा, "तुम भी यहाँ?"  

कबीर ने हँसते हुए कहा, "अब कहोगी कि मैं तुम्हारा पीछा कर रहा हूँ!"  

वे दोनों साथ में संगीत की धुन में खो गए। भीड़ के बीच खड़े, लेकिन एक-दूसरे के बहुत करीब।  

उस रात पहली बार आयरा ने महसूस किया कि कबीर कोई अजनबी नहीं रहा! उसे कबीर के साथ एक अहसास होने लगा था जो हर एक अहसास से विपरीत था।

***

कबीर उसके साथ हर जगह था, बिना किसी वादे के, बिना किसी नाम के पहुंचने लगा। दोनों एक दूसरे के साथ ही घूमने निकल पड़ते बिना सोचे समझे।

वह आयरा की जिंदगी में एक हवा के झोंके की तरह आया था हल्का, पर बहुत असरदार।  

एक दिन, कबीर और आयरा एक छोटे से हिल स्टेशन पर घूमने गए।  

रात के अंधेरे में, तारे चमक रहे थे। कबीर ने कहा,  

"क्या तुम कभी सोचती हो कि हमारा रिश्ता क्या है?"  

आयरा ने उसकी तरफ देखा, "क्या हमें इसे कोई नाम देना जरूरी है?"  

कबीर ने गहरी सांस ली, "नहीं, शायद यह नाम से परे ही अच्छा है..."  

उसने हल्के से आयरा की उंगलियाँ थाम लीं और दोनों ने चुपचाप रात को महसूस किया।  

***

उस दिन के बाद से वक़्त बीतता गया और उनकी मुलाकातें बढ़ने लगीं। बिन सोचे होने लगीं।  

***

"तुम हमेशा लेट क्यों आते हो?" आयरा ने एक दिन गुस्से में पूछा।  

"क्योंकि तुम्हारा इंतज़ार करने में जो मज़ा है, वह और किसी चीज़ में नहीं।"  

आयरा ने उसकी तरफ गहरी नज़रों से देखा, "तुम फ्लर्ट बहुत करते हो, कबीर।"  

"तुम्हें बुरा लगता है?"  

"पता नहीं..."  

कबीर मुस्कुराया, "तो फिर अभी थोड़ा और ट्राय करता हूँ।"  

वह उसकी कुर्सी के पास झुका और फुसफुसाया, "क्या तुम्हें पता है कि जब तुम गुस्से में नाक फुलाती हो, तो तुम्हें चूमने का बहुत मन करता है?"  

आयरा के गाल गुलाबी हो गए, लेकिन उसने खुद को संभाला, "कबीर, तुम्हें शरम नहीं आती?"  

"बिलकुल नहीं, जब तक तुम्हारी यह झूठी नाराजगी जारी रहेगी!"  

***
  
फिर एक रात, वे दोनों समंदर किनारे बैठे हुए थे।  

"क्या तुम जानबूझकर मुझे तंग करते हो?" आयरा ने पूछा।  

"अगर मैं कहूँ कि तुम्हारी चिढ़ने वाली शक्ल दुनिया की सबसे प्यारी चीज़ लगती है, तो?"  

आयरा ने उसे धक्का दे दिया, "कबीर, तुम असली ड्रामेबाज़ हो!"  

कबीर ने अचानक उसका हाथ पकड़ लिया, "और तुम मेरे लिए सबसे खूबसूरत पहेली हो, जिसे हल करना चाहता हूँ।"  

उसकी आवाज़ में कुछ ऐसा था जो आयरा को हिला गया।  

***

एक शाम, तेज़ बारिश हो रही थी। कबीर और आयरा भीग चुके थे।  

"मुझे बारिश से नफरत है!" आयरा ने झुँझलाकर कहा।  

कबीर हँसा, "और मुझे तुम्हारी झुँझलाहट से प्यार!"  

उसने अचानक आयरा की कलाई पकड़कर उसे अपनी ओर खींच लिया।  

"कबीर, पागल हो गए हो क्या?"  

"हाँ, तुम्हारे लिए।"  

और फिर, उसने उसके गीले होंठों को अपने होंठों में कैद कर लिया।  

आयरा को एक पल के लिए झटका लगा, लेकिन फिर उसने खुद को छोड़ दिया।  

बारिश की बूंदें गिरती रहीं वो पहला अहसास था जो उन दोनों के लिए ही बहुत कीमती था । दोनों ने उस अहसास को जिया।

***

फिर एक रात, समंदर किनारे चलते हुए, कबीर ने आयरा का हाथ पकड़ लिया।  

"पता नहीं क्यों, लेकिन तुम्हारे साथ वक़्त ठहर सा जाता है..." उसने हल्की आवाज़ में कहा।  

आयरा ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, "शायद यह इश्क का एहसास है..."  

उसने कबीर की हथेलियों को अपने हाथों में लिया, और उनकी नज़रों के बीच एक अजीब-सी कशिश बहने लगी।  

कबीर ने धीरे-से उसके चेहरे को अपनी उंगलियों से छुआ और उसके कानों में फुसफुसाया,  

"अगर मैं कहूँ कि मैं तुम्हें हर पल महसूस करना चाहता हूँ, तो?"  

आयरा का दिल जोर से धड़क उठा।  

"तो महसूस कर लो…" उसने धीरे से कहा।  

***

उस रात, बरसात तेज़ हो गई थी। तो कबीर आयरा कबीर के अपार्टमेंट में चले गए।

कबीर ने आयरा को अपनी बाहों में लिया और धीरे से उसके होंठों को छू लिया।  

पहली बार, दोनों ने एक-दूसरे की हर साँस, हर धड़कन को महसूस किया।  

आयरा ने कबीर की शर्ट के बटन खोलते हुए कहा, "तुम्हें पता है, तुम्हारी आँखों में एक नशा है, जिसमें मैं हर रोज़ खो जाना चाहती हूँ।"  

कबीर ने उसे बेड पर गिराया और हल्के से उसके गालों पर अपने होंठ फिराए,  

"और तुम्हारी खुशबू में एक जादू है, जो मुझे तुम्हारे करीब खींच लाती है..."  

उस रात, चाँद गवाह था, बारिश गवाही दे रही थी, और दो जिस्म एक-दूसरे में खो रहे थे।  

प्यार कभी-कभी बिना कहे भी महसूस किया जा सकता है।  

***

लेकिन जब हर चीज़ परफेक्ट लगने लगती है, तभी कड़वा सच सामने आ जाता है।  

फिर एक दिन कबीर अचानक गायब हो गया।  

न कोई फोन, न कोई मैसेज। बस एक खाली जगह।  

आयरा ने उसे हर जगह ढूँढा, लेकिन कहीं कोई सुराग नहीं था।  

"कहीं यह सब सिर्फ एक सपना तो नहीं था?" उसने खुद से सवाल किया।  

***

कुछ महीनों बाद, आयरा को कबीर के बारे में एक चौंकाने वाली सच्चाई पता चली।  

"कबीर एक ट्रैवल फोटोग्राफर था, जो सिर्फ कुछ महीनों के लिए मुंबई में था। वह कभी भी किसी एक जगह पर ज्यादा नहीं रुकता था..."  

"तो क्या वो बस आया और चला गया?" आयरा के दिल में दर्द था।  

लेकिन फिर उसे एक चिट्ठी मिली—  

"आयरा,  
पता नहीं तुम मुझे माफ़ करोगी या नहीं, लेकिन मैं हमेशा वहीं रहूँगा, जहाँ तुम्हारे दिल की धड़कन होगी। मुझे मत ढूँढना, क्योंकि मैं तुम्हें कभी खोना नहीं चाहता था। लेकिन शायद मेरा जाना ही हमारी कहानी का सबसे खूबसूरत हिस्सा था—क्योंकि कुछ रिश्ते अधूरे ही खूबसूरत होते हैं..."  
- कबीर  

आयरा ने वह चिट्ठी पढ़ी और उसकी आँखों से आँसू बह निकले।  

उसने चिट्ठी संभालकर रख दी, क्योंकि अब कबीर की यादें हमेशा के लिए उसकी ज़िंदगी का हिस्सा थीं।  

क्योंकि इश्क का हर रिश्ता नाम का मोहताज नहीं होता...  

कबीर तो चला गया था।  

लेकिन आयरा हर रोज़ उसी टेबल पर बैठती, लेकिन सामने की कुर्सी खाली रहती।       

आयरा ने उसके बाद खुद को पूरी तरह से काम में डुबो दिया, लेकिन हर रोज़ कैफे की वह टेबल खाली देखती थी। वह टेबल, जहाँ पहली बार उनकी तकरार हुई थी, जहाँ पहली बार उनकी आँखें मिली थीं, और जहाँ पहली बार उनके बीच प्यार का बीज बोया गया था।  

"क्या यह प्यार सिर्फ एक अधूरी कहानी बनकर रह जाएगा?"  

पर जिंदगी हमेशा वैसी नहीं चलती जैसी हम सोचते हैं…  

दो साल बाद…  

आयरा को पेरिस में एक इंटरनेशनल एडवरटाइजिंग सेमिनार के लिए भेजा गया।  

उसे अब भी याद था कि पेरिस कबीर का सपना था।  

एक शाम, जब वह अकेली "सीन नदी" के किनारे चल रही थी, उसने अचानक एक परिचित आवाज़ सुनी है– 

"तुम्हें अब भी बारिश से नफरत है?"  

आयरा के कदम थम गए।  

"कबीर?"  

वह पलटकर देखी, और वहीं था वह वैसे ही गहरी आँखें, वही हल्की मुस्कान, और वही पुरानी शरारत।  

दो सालों का फासला मिट गया।  

"तुम यहाँ क्या कर रहे हो?"  

कबीर मुस्कुराया, "मैं यहाँ रहता हूँ। और तुम?"  

"काम के सिलसिले में आई हूँ," उसने कहा, लेकिन उसकी आँखें कह रही थीं "मैं तुम्हें ढूँढ रही थी।"  

कबीर ने धीरे से कहा, "तो फिर, यह इत्तेफाक़ है या किस्मत?"  

आयरा ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा, "शायद यह हमारा अधूरा इश्क मुकम्मल होने का इशारा है।"  

***

उस रात, दोनों ने पेरिस की गलियों में यूँ ही घूमते हुए अपनी अधूरी बातें पूरी कीं।  

"क्या तुम्हें कभी मेरी याद नहीं आई?" आयरा ने अचानक पूछा।  

कबीर ने एक लंबी साँस ली और धीरे से उसका हाथ थामा,  

"तुम हर रोज़ मेरी यादों में थीं। लेकिन मैंने खुद को रोका, क्योंकि मैं चाहता था कि अगर हम फिर मिलें, तो हमारी कहानी किसी मजबूरी से नहीं, बल्कि हमारे दिलों की पुकार से मुकम्मल हो।"  

आयरा ने अपनी आँखों में छलकते आँसुओं को रोका और हल्के से कहा,  

"तो अब रोको मत, कबीर…"  

और तभी, कबीर ने उसे अपनी बाहों में भर लिया।  

यह सिर्फ एक आलिंगन नहीं था, यह उन सभी सालों का इंतज़ार था। यह उस प्यार का इकरार था, जो कभी बेनाम था, लेकिन अब अपनी पहचान बना चुका था।  

***

कुछ महीनों बाद, आयरा ने अपनी नौकरी छोड़ दी और पेरिस में अपने नए जीवन की शुरुआत की और कबीर ने इस बार आयरा का पूरा साथ दिया वो अब उससे और दूर नहीं रहना चाहता था ।

अब वे दोनों साथ थे, बिना किसी अधूरे एहसास के, बिना किसी अधूरी कहानी के।  

"तो अब हमारा इश्क बेनाम नहीं रहा?" कबीर ने चुटकी ली।  

आयरा ने मुस्कुराकर कहा, "इश्क का नाम ज़रूरी नहीं होता, बस एहसास ज़िंदा रहना चाहिए… और हमारा इश्क अब हमेशा के लिए ज़िंदा रहेगा।"  

कबीर ने धीरे से कहा, "हाँ, क्योंकि यह सिर्फ एक कहानी नहीं थी, यह हमारी तक़दीर थी…"  

और फिर, पेरिस की सड़कों पर दो प्यार करने वाले हाथों में हाथ डाले यूँ चले, जैसे उनके बीच कभी कोई दूरी थी ही नहीं।  

क्योंकि जब इश्क सच्चा हो, तो वह अधूरा नहीं रहता… वह हमेशा मुकम्मल हो जाता है। चाहें वो पास हो या ना हो ।