Hamara Dil Aapke Paas he - 2 in Hindi Love Stories by Sunita books and stories PDF | हमारा दिल आपके पास है - चैप्टर 2

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हमारा दिल आपके पास है - चैप्टर 2

जूही का दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। उसकी सांसें तेज हो गई थीं, और शरीर में अजीब-सी घबराहट दौड़ रही थी। वह समझ नहीं पा रही थी कि अभय की आँखों में ऐसा क्या था जो उसे असहज कर रहा था। वो उससे कुछ कदम की दूरी पर खड़ा था, लेकिन उसके निगाहों की चुभन उसे महसूस हो रही थी।

जूही ने अपने दोनों हाथ खुद में समेट लिए, जैसे खुद को सुरक्षित करना चाहती हो। उसने कांपते होंठों से कहा, "तुम चाहते क्या हो? देखो, मुझे जाने दो।"

अभय ने हल्की मुस्कान के साथ जवाब दिया, "अरे, परेशान क्यों हो रही हो? क्या मैंने तुम्हारे साथ कुछ भी गलत किया?"

जूही को उसका यह जवाब और भी बेचैन कर गया। उसकी आवाज़ में कोई डर नहीं था, बल्कि एक अजीब सा आत्मविश्वास था, जो जूही को असहज कर रहा था। उसे लग रहा था कि वो किसी शिकारी के सामने खड़ी है, जो अपने शिकार को आसानी से जाने नहीं देगा।

जूही ने गहरी सांस लेते हुए खुद को संभालने की कोशिश की, लेकिन उसकी घबराहट उसकी आवाज़ में झलक रही थी। "देखो, मुझे डर लग रहा है... प्लीज़, मुझे जाने दो।"

अभय ने उसकी तरफ एक कदम बढ़ाया, लेकिन तभी उसका फोन बज उठा। उसने एक नजर जूही पर डाली और फिर फोन उठाकर दूसरी तरफ देखने लगा।

जूही की सांसें अभी भी तेज थीं, लेकिन उसे इस मौके का इंतजार था। बिना कोई समय गंवाए, उसने तुरंत दरवाजे की ओर दौड़ लगा दी। उसकी तेज़ चाल से उसके पैरों की आहट गूंज रही थी, लेकिन डर उसके पीछे था।

अभय ने फोन पर बातचीत करते हुए उसे जाते हुए देखा, लेकिन उसके चेहरे पर कोई हैरानी नहीं थी। उसने फोन काटा, एक लंबी सांस ली, और फिर तिरछी मुस्कान के साथ फुसफुसाया, "स्वीटहार्ट... बहुत जल्द मिलेंगे।"

जूही को नहीं पता था कि इस भागने की शुरुआत, एक बड़े खतरे की दस्तक थी।

जूही की धड़कनें अभी भी तेज़ थीं। वह तेज़ी से गलियारे से गुजरी और पार्टी हॉल की ओर भागी। उसकी आँखों में डर साफ झलक रहा था, लेकिन उसने खुद को संभालने की कोशिश की। जैसे ही वह हॉल में पहुँची, रंगीन रोशनी और संगीत की तेज़ धुन ने उसके घबराए मन को थोड़ा राहत दी।

यह एक भव्य शादी थी। हर तरफ सजावट थी, मेहमान हँसी-ठिठोली कर रहे थे, और माहौल खुशनुमा था। लेकिन जूही के दिल में हलचल मची हुई थी। वह एक कोने में जाकर खड़ी हो गई और अपनी तेज़ सांसों को नियंत्रित करने लगी।

"जूही! तुम ठीक हो?" उसकी सहेली स्नेहा ने पास आकर पूछा।

"हाँ... हाँ, मैं ठीक हूँ," जूही ने जबरदस्ती मुस्कुराने की कोशिश की।

लेकिन तभी...

उसकी नज़र हॉल के दूसरी तरफ गई, जहाँ अभय खड़ा था। वह अकेला था, लेकिन उसकी आँखें जूही पर जमी हुई थीं। उसके होंठों पर वही तिरछी मुस्कान थी, जिससे जूही और भी असहज हो गई।

जूही का शरीर ठंडा पड़ने लगा। उसके गले में सूखापन आ गया। उसने घबराकर इधर-उधर देखा, लेकिन कोई नहीं जानता था कि वह किस परेशानी में है।

अभय ने धीरे-धीरे कदम बढ़ाना शुरू किया। वह सीधे उसकी ओर नहीं आ रहा था, लेकिन उसकी आँखों का तेज़ वार साफ महसूस किया जा सकता था।

जूही ने स्नेहा का हाथ पकड़ लिया, "स्नेहा, मुझे यहाँ से जाना है।"

"अरे, पर अभी तो शादी शुरू भी नहीं हुई। क्या हुआ?" स्नेहा ने चिंतित होकर पूछा।

"कुछ नहीं, बस... मुझे अच्छा नहीं लग रहा," जूही ने कहा और बाहर जाने की कोशिश करने लगी।

लेकिन तभी, अभय ने उसे रोक लिया। हालाँकि, उसने उसे छुआ नहीं, बस एक कदम आगे बढ़कर उसके सामने आ गया।

"इतनी जल्दी जाने की क्या ज़रूरत है, जूही?" उसकी आवाज़ में वही आत्मविश्वास था।

जूही ने कुछ कहने की कोशिश की, लेकिन उसके शब्द गले में ही अटक गए।

"तुम मुझसे डरती हो?" अभय ने धीरे से कहा, उसके होंठों पर खेलती मुस्कान अब और गहरी हो गई थी।

जूही ने हिम्मत जुटाई और जवाब दिया, "तुमसे डरने की कोई वजह नहीं है। बस, मैं... मैं यहाँ से जाना चाहती हूँ।"

"अच्छा? लेकिन भागकर कब तक जाओगी?" अभय की आँखों में एक रहस्यमयी चमक थी।

जूही ने एक लंबी सांस ली और वहाँ से हटने की कोशिश की। स्नेहा अब और भी चिंतित हो गई थी।

"जूही, चलो यहाँ से," स्नेहा ने उसका हाथ कसकर पकड़ लिया।

अभय ने बिना कोई रोक-टोक किए उन्हें जाते हुए देखा। लेकिन उसके चेहरे पर शिकारी जैसी मुस्कान बनी रही।

जूही जानती थी कि यह सिलसिला यहाँ खत्म नहीं होगा। यह तो बस एक नई शुरुआत थी... एक ऐसे खेल की, जिससे बचना शायद अब उसके लिए आसान नहीं था।

 रास्ते पर

मुंबई की चकाचौंध भरी रात में एक अजीब सी सिहरन थी। शहर की रफ्तार भले ही दिन में हजारों किलोमीटर प्रति घंटे की तरह लगती हो, लेकिन रात के इस पहर में सड़कें किसी वीराने से कम नहीं लग रही थीं। गगनचुंबी इमारतों से झांकती रोशनी और सड़कों पर जलती-बुझती स्ट्रीट लाइट्स इस रात को और रहस्यमय बना रही थीं। हल्की ठंडी हवा चल रही थी, जो माहौल को और गूढ़ बना रही थी।

इन्हीं सड़कों पर एक आदमी बेसुध सा चला जा रहा था। उसकी चाल लड़खड़ाई हुई थी, और चेहरा किसी बोझ से झुका हुआ लग रहा था। शायद वह किसी गहरी सोच में था या किसी मुसीबत से जूझ रहा था। उसके कपड़े हल्के से मैले थे, मगर यह बताना मुश्किल था कि वह कोई गरीब इंसान था या किसी परेशानी ने उसे इस हाल में ला दिया था।

रात का यह पहर, जब दुनिया अपने घरों में चैन से सो रही थी, तब यह व्यक्ति अकेला अंधेरे में आगे बढ़ रहा था। वह बार-बार अपने कंधे झटकता, मानो किसी अनदेखे भार को हटाने की कोशिश कर रहा हो। उसके चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ झलक रही थीं, और उसके कदम कभी तेज, कभी धीमे हो जाते थे।

तभी, दूर से एक कार की हेडलाइट्स झिलमिलाती हुई नज़र आईं। यह कार बाकी वाहनों की तुलना में कहीं अधिक तेज गति से दौड़ रही थी। इसके इंजन की घरघराहट ने सन्नाटे को चीर दिया था। वह आदमी अब भी अपने ही ख्यालों में उलझा हुआ आगे बढ़ता जा रहा था।

अगले ही पल, जैसे समय थम गया हो।

धड़ाम!

भयानक आवाज़ पूरे इलाके में गूंज उठी। कार की तेज रफ्तार और उस आदमी के शरीर की टक्कर ने एक पल में सब कुछ बदल दिया। वह आदमी हवा में उछला और फिर ज़मीन पर गिर पड़ा। उसके गिरते ही खून की एक धार सड़क पर बह निकली, जो धीरे-धीरे दूर तक फैलती चली गई।

वह कार रुकी नहीं। उसके टायरों की चरमराती आवाज़ और इंजन की गड़गड़ाहट कुछ ही सेकंड में गायब हो गई। यह एक हिट-एंड-रन केस था—एक ऐसा हादसा, जिसमें इंसानियत अक्सर पीछे छूट जाती है।