Swayamvadhu - 45 in Hindi Fiction Stories by Sayant books and stories PDF | स्वयंवधू - 45

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स्वयंवधू - 45

इसमें धुम्रपान और शराब का सेवन है। लेखक इसे प्रोत्साहित नहीं करता।  
साथ ही, इसमें हिंसा, खून-खराबा और कुछ जबरन संबंध भी शामिल हैं। पाठकगण कृपया विवेक से पढ़ें।

मीरा भाग 1
पिछले भाग में वृषाली ने मीरा के मोहक गुण को अपनाया जिससे समीर अचंभे में पड़ गया था। मीरा उर्फ वृषाली की जिद्द के कारण समीर जो 'एक अच्छा आदमी जो जीवनभर अपने आदर्शों और कानून पर जिया है उसे अपने पुत्रमोह के कारण गलत काम करना पड़ा' का किरदार निभा रहा था, अब उसके सामने आँखों के स्तर पर बैठकर उसके सवालों का जवाब दे रहा था।
"आप मुझसे मेरा सच क्यों छुपा रहे हो?", उसने उससे आदरपूर्वक पूछा,
उसकी आँखें फड़क उठीं, फिर उसने गंभीर आँखों से कहा, "कभी-कभी अतीत को अतीत ही रहना चाहिए। कब्र खोदना हमेशा सबसे अच्छा विकल्प नहीं होता।",
"कभी-कभी गढ़े मुर्दे वो जवाब देती है जो आपका भविष्य बचा देती है।", उसने उसकी आँखों में देखते हुए कहा,
उन्होंने आँखें मूँद लीं, "तो मेरा बेटा....",
उसकी गंभीर आवाज़ और नज़रें उससे हटी नहीं, "मेरा जीवन आपका ऋणी है और मेरा दिल भी कुछ-कुछ तक आपका आभारी है इसलिए मैं ऐसा कुछ नहीं करूँगी जिससे मेरे उद्धारकर्ता को ठेस पहुँचे।",
"तुम कुछ कड़े शब्द बोल रही हो।",
"आज के थपेड़ो ने बता दिया, साथ देने वाला फरिश्ता है, गाली देने के लिए तो पूरा समाज खड़ा है। जो भी मेरा अतीत है, अनजान से जानने से बेहतर होगा अपनो से जानूँ।",
समीर उसके व्यक्तित्व में एक सौ अस्सी डिग्री पलट देख हैरत में पड़ गया।
उसने हैरत में पूछा, "तुम्हारी तबियत तो ठीक है? तुम, तुम नहीं कोई और लग रही हो।",
वो हँसकर प्रलोभन के साथ बोली, "ये आप क्या बात कर रहे है बिजलानी साहेब? ये मेरे पेशा है। मुझे कभी-न-कभी इस धंधे मे वापस जाना होगा।", उसके आवाज़ में हल्की कंपन थी।
"ये तुम क्या-", समीर उसे रोकने गया पर उसने उसे बीच में काटते हुए कहा,
"मेरे कुछ बयानो के बाद आपको आपका बेटा मिल जाएगा और मैं बिजलानी निवास के बाहर।
और आज तो मुझे अच्छा सबक मिल चुका है कि आगे मेरा भविष्य कैसा रहेगा।", उसने हँसकर कहा,
"क्या?", समीर ने उलझन में पूछा,
उसने नज़र दूसरी तरफ कर, "यही कि एक लड़की पर हल्का सा लांछन भी उसे जीने नहीं दे, और मेरा तो यह पेशा पैदाइश है। इससे मुझे आप तो क्या भगवान भी नहीं बचा सकते।
आज ही देखिए, आपके कर्मचारियों ने मुझे मेरी औकात साफ दिखा दी।
समाज में मेरी इज़्ज़त एक धूल के बराबर है या उससे भी कम! ये समाज मुझपर रहम नहीं खाएगी मिस्टर समीर बिजलानी! वो मुझे तार-तार करने में रहम नहीं खाएगी। वो तब तक ही रुकी हुई है जब तक आपका साया भी मेरे साथ है। जब एक बार आपका सुपुत्र, वृषा बिजलिनी बाहर निकला, मैं इन भेड़ियों कें जकड़ में। इसलिए मुझे अभी से ही...", उसने लाल आँख के साथ कहा,
उसने अपने आँसू रोकते हुए कहा, "मेरे लिए इस समाज में कोई जगह नहीं। इसलिए मुझे ये जानने दीजिए कि मैं किस तरह की नीच चरित्र की थी!",
समीर भावुक होकर कहा, "तुम्हें ऐसे-",
"प्लीज़।", उसके दाई आँख से एक बूँद आँसू गिरी,
समीर ने पसीने छोड़ते हुए कहा, "हाह! शुरुआत के लिए तुम अपना शरीर नहीं बेच रही थी, तुम एक गायक के रूप में बार में काम कर रही थी जो अपने ग्राहकों को सुखदायक सत्र प्रदान करता था जहाँ तुम उनकी प्रशंसा करती और उनकी चिंताओं को सुनती और कुछ नहीं!",
तंस भरी हँसी के साथ उसने व्यंग्य किया, "सिर्फ उनकी प्रशंसा करती और चिंताएँ सुनती?", वह टहाके मारकर हँस रही थी और बड़बड़ा रही थी, "हा हा हा! सिर्फ चिंताएँ सुनती थी... सिर्फ प्रशंसा करती थी।.... आहा हा हा...!", पेट पकड़कर लंबा हँसने के बाद उसने कहा, "आप काफी अच्छा मज़ाक करते है बिजलानी साहेब! मैं प्रशंसा सुनती, नहीं, नहीं , नहीं! मैं प्रशंसा करती फिर-", उसने चिढ़ाने वाली अंदाज़ में कहा, "- फिर उनकी प्रशंसा लेती। ठीक ऐसे ही बिस्तर पर! ऐसी ही हाई-राईस बिल्डिंग के स्वीटहार्ट रूम में उनकी प्रशंसा यहाँ निर्वस्त्र और भीगी हुई लेटे-लेटे सुनाती।
मुझे क्या सुनाया गया, क्या समझाया गया मैं समझ गयी। बस अब मीरा का मीरा से परिचय करवा दीजिए। मैं आपके सामने हाथ जोड़ती हूँ।", वो हर बात में उसकी बेचैनी को तान रही थी।
समीर ने ज़्यादा कुछ नहीं कहा, "ठीक है। आज रात को घर के बार में मिलना। मैं होश में रहते हुए पूरी सच्चाई नहीं बता सकता।",
वह आँखो से मुस्कुराई, "मैं करूँगी।",
समीर भावुकता अभिव्यक्त करते हुए कहा, "चलो फ्रेश हो जाओ। सूरज ढलने से पहले कुछ खा लेते हैं। आज तुम्हारी दवाइयों का रूटीन गड़बड़ा गया है। रात की दवाइयाँ ठीक से लेना सुनिश्चित करो।",वह उसकी गति पर मुस्कुराई, "हाँ...उम...",
वह खड़ा हो रहा था जब वह हकला रही थी, "क्या?", उसने धीरे से पूछा,
"मैं आपको क्या कहूँ? मिस्टर समीर या मिस्टर बिजलानी?", पूछते समय उसके हाथ कांप रहे थे,
"ठीक है... अगर हम वैसे ही जा रहे हैं जैसे हम थे, तो तुम्हें मुझे 'समीर' कहना चाहिए। तुम हमेशा ऐसा ही करती थी। मैंने पहले कई बार तुम्हें रोका था पर तुमने कभी मेरी नहीं मानी।", उसने अपनी आँखें फेर लीं और बढ़बढ़या , "मुझे अच्छा लगता है जब तुम मुझे मेरे नाम से बुलाती हो।",
मीरा उर्फ वृषाली ने शर्म से अपना चेहरा दूसरी ओर मोड़ लिया।
समीर ठंडे हाथ के साथ बाहर चला गया।
वही मीरा उर्फ वृषाली अपने शर्माएँ हुए चेहरे को बनाए रखे गहरी साँस ली। उसने अपनी आँखे बँद की और गहरी साँस लेकर खुद को शांत कर रही थी। आँखे खोलते ही वो बाथरूम में गयी आइने में खुद को देखा और शीशे वाले बाथरूम के दरवाज़े से बाहर देखते हुए उत्साहित होकर कहा, "अच्छा हुआ कि मैंने इसे रोक लिया। मेरा दिल ऐसा लग रहा है जैसे किसी भी क्षण फट जाएगा। सब्र करो मीरा, सब्र! इश!", उसने अपनी होंठ को दबाते हुए कहा।

अभी-अभी जो कुछ भी इस बाथरूम में हुआ और उसकी हर छोटी-बड़ी हरकत उसे अपने मोबाइल फोन पर देख रहा था। इस तरह, वह बिना अपनी शक्ति का प्रयोग करे सिर्फ तकनीक का उपयोग कर उसे नियंत्रित कर सकता था। वह शुरुआत से ही सबकुछ जानता था। वह जानता था कि उसे उस डॉक्टर से एक नोट मिला था जिसमें कहा गया था कि उसकी मानसिक स्थिति ठीक है जिसे उसने अपने कमरे में किस तरह छिपाया था। वह दवाइयाँ भी चार महीने के ऊपर से ठीक से नहीं ले रही थी। वो एक ना एक दवाई थूक देती थी। वो हद से ज़्यादा शांत रहती थी और जैसे फेका वैसे ही पड़े रहती थी।
उसके पास ऐप था जिससे वो उसका मूड भी कंट्रोल कर सकता था।
(दिस लिटिल जर्म इज़ प्रिटी इंटरेस्टिंग।)
उसने सिगार का धुँआ ऊपर फेका।
वो तैयार होकर कमरे से बाहर निकली।
उसने अपना फोन अपनी जेब में रखकर दूसरे व्यापारी से बात करने लगा,
"सो मिस्टर बिजलानी, थिंकिंग ऑफ मेकिंग न्यू वन और यूजीन दा ओल्ड वन?", सामने बैठे व्यापारी ने सिगार फूंकते हुए पूछा,
"मेरी बात छोड़िए मिस्टर प्रजापति, अब मेरी उम्र कहाँ है बच्चे पैदा करने की। पर हाँ आप जैसे, जिसके कारनामे इस उम्र में भी इतने रंगीन है वो कुछ कर सकता है।", समीर अपनी सिगार बुझाते हुए कहा,
"क्या बात कर रहे है समीर साहब। अगर मेरी घरवाली ने तुम्हें सुन लिया होता तो वो मुझे घर से बाहर निकाल देती।", उसने सिगार को मुँह में दबाकर कहा,
"कैसे जानेगी बेचारी भाभी जी? आज तक उन्हें कभी पता चला कि उनके शरीफ, ज़मीन से जुड़े पतिदेव कितने रंगीन मिजाजी है? और अपने रंग किधर-किधर फैलाए है?", समीर उसकी आँखो में आँखे डाल मुँह में कुछ माउथफ्रेशनर जैसा चीज़ स्प्रे किया,
प्राजापि चिढ़कर अपनी मुँह का धुँआ समीर के ठीक बगल उड़ाया।
समीर का फोन वाइब्रेट हुआ।
वृषाली पचास मीटर के रेडियस में थी। उसने नज़र इधर-उधर दौड़ाई। दिव्या और आर्य उसे लेकर कही जा रहे थे। समीर खड़ा हुआ।
"क्या हो गया?", प्रजापति ने पूछा।
उसने अपनी कजरारी आँखो से मीरा उर्फ वृषाली के हाव-भाव को देखा।
वो परेशान लग रही थी। उसने अपने फोन में देखा।
उसका मूड लेवल, 'भय' दिखा रहा था।
वो अपनी तंस वाली हँसी हँसा, "बाद में मिलते है।", कह वो उन तीनों की तरफ गया।

उन्होंने उसे अपने साथ अलग कमरे में लेकर जाने कि कोशिश की पर वो समीर की ओर भागकर जाने लगी तो दिव्या ने उसे होटल के रेस्टोरेंट में ही खड़ाकर सब याद दिलाने लगी जबकि आर्य उसे रोक रहा था।
"वृषाली! अपने दिमाग में थोड़ा ज़ोर दो। मैं दिव्या! हम स्वयंवधू प्रतियोगिता में एक साथ थे?", दिव्या ने उसे पिछली बातो याद दिलाने कि कोशिश की।
"...नहीं।", वो पीछे हटने लगी,
"याद करने कि कोशिश करो। मैं दिव्या... जो तुम्हें हाथ से बने खाने के लिए पागल थी!", उसने एक कदम आगे बढ़ाया,
वो पीछे हटते हुए, "माफ कीजिए पर मैं किसी वृषा या दिव्या को नहीं जानती।",
दिव्या उसका हाथ पकड़कर, "तुम हमे नहीं जानती तो ठीक! तो ठीक! तो ठीक...", उसने आर्य के हाथों से एक बिल्ली को लिया, "तुम हमे नहीं जानती तो ठीक। पर तुम्हें ये तो याद होनी चाहिए!", उसने उस बिल्ली को उसके मुँह के ठीक सामने पकड़कर बोला, "तुम्हें पहेली तो याद होनी चाहिए। इसने तुम्हारी इज्ज़त बचाने के लिए अपनी जान को दाँव पर लगा दी थी। अपने मालिक से लड़ गयी थी वो तुम्हें बचानेषके लिए। क्या तुम्हें याद आया?!", दिव्या का गला भर आया,
पहेली उसे देख म्याऊँ-म्याऊँ कर रोने लगी। पहेली की काली चमकीली आँख उसे देख नम हो गयी थी। वो इंसानों की बात को अनसुन कर वृषाली के लिए रोती हुई वो उसकी गोद में कूद गयी। वृषाली उसे उछलता देख अपनी बांह फैलाई। पहेली रोते हुए उसके गोद तक पहुँच ही रही थी कि समीर ने आकर उसे बीच हवा में पकड़कर वापस दिव्या के पास दे दिया।
सब अपनी जगह जम गए।
पूरे होटल का ध्यान उनकी तरफ था। तभी, मीरा उर्फ वृषाली अचानक पीछे घूमी और समीर से लिपटकर रोने लगी।
"मैं वृषाली नहीं मीरा पात्रा हूँ। समीर प्लीज़ मुझे यहाँ से चलिए। प्लीज़...",
समीर ने उन्हें व्यंग्यात्मक मुस्कान दे,
"बस, बस। सब ठीक है।", समीर उसके पीठ को थपथपा रहा था।
उसे देख दिव्या का खून उबल आया, "क्या किया तुमने इसके साथ दरिंदे!?",
समीर खड़ा रह उन्हें मज़े से देख रहे था।
"श्शश! शांत रहो।", आर्य ने उसे रोका,
"यही ठीक रहेगा आपके और आपके अजन्मे शिशु के लिए।", वृषाली को अपने से लगाकर कहा,
दिव्या और आर्य हैरत में पड़ गए।
हालात बिगड़ता देख मीरा उर्फ वृषाली ने समीर को और कसकर पकड़ा और कमज़ोर आवाज़ के साथ कहा, "मुझे घर ले चलिए समीर।",
समीर उनपर हँसा और बिना कुछ बोले उसके गर्दन पर हाथ डाल उसे अपने साथ ले गया और वो बेबस सब देख रहे थे। समीर उससे अपने साथ बिजलानी हाउस ले गया।

टूटी दिव्या ने पश्चाताप में आर्य से लिपट गयी। आर्य उसे अपने साथ होटल में अपने कमरे में ले गया।
अरविंद प्रजापति वहाँ बैठ सब देख रहा था और अपनी जाल बुन रहा था,
"गजब खेल खेला है भाईसाहब ने।"

कमरे में आर्य उसे शांत होने के लिए पानी दिया।
"आखिर बात यहाँ तक कैसे पहुँच गई? वह तो खुद को भी नहीं पहचान रही।", उसका सिर गुस्से से भन्ना रहा था।
"शांत रहो दीपू। बच्चे के लिए शांत हो जाओ।", आर्य ने उसे शांत करने का प्रयास किया,
"कैसे शांत हो जाऊँ आर्य? याद है ना वो दिन?", दिव्या के आँखो से गुस्से के मारे आँसू बहने लगे,
आर्य उसे गले लगाकर, "याद है... सब याद है। कैसे एक ही रात में सब तबाह हो गया?", आर्य के आँखो से भी आँसू गिरने लगे।

रात के वक्त बिजलानी हाउस में,
समीर सफेद पैंट-शर्ट पहनकर नंगे पैर फायर पिट के बगल हाथ में जाम लिए बैकयार्ड लाउंज कुर्सी पर बैठा अपनी सोच की दुनिया में था। वृषाली नीली फ्लोई लॉग मैक्सी ड्रेस पहन नंगे पैर एक सामान्य जूड़े पहने, हाथ में समीर के लिए दूसरा जाम लिए आई और उसके ठीक सामने आग की दूसरी तरफ उसे देख बैठ गयी। समीर उसे देख रहा था। उन दोंनो के बीच आग धधक रही थी।
वृषाली उसे देख मंद-मंद मुस्काई।
समीर उसे देख, "तुम कब से पीने लगी?",
उसने शराब के गिलास को अपने चेहरे के सामने रख नशीली नज़रो से कहा, "ये मेरे लिए नहीं पर किसी अत्यंत व्यक्ति विषेश के लिए है।",
उसने गिलास आग को पार करते हुए समीर को पकड़ाया।
"तुमने बनाया है?",
समीर ने उसके हाथ से गिलास लिया।
"बड़े प्यार से।",
वो लपटो का कारण सुनहरी चमक रही थी।
उसने शराब की एक घूंट ली।
"बहुत ताकतवर है।", उसने उसे बगल रखा।
वृषाली उसके बगल वाली लाउंज कुर्सी पर बैठकर उस गिलास को अपने हाथ में थामा।
"ये मेरा प्यार दिखाता है।", मीरा उर्फ वृषाली ने गिलास उसके होंठो से चिपकाई।
"ओह!", समीर ने पूरा जाम एक घूंट में पी लिया।
उसे थोड़ी-थोड़ी चढ़ने लगी।
उसने वृषाली को बांह से खींचा और उसके आँखो में आँखे डाल घूरा फिर अपने हाथ के उसके बाल तक ले गया और उसके बँधे बाल को खोल दिया। उसके हल्के बाल बहती हवा के गति में बहने लगे। शर्माकर उसने अपने दूसरी तरफ कर लिया।
"इसी भोले चेहरे पर थप्पड़ और चोट के निशान ने मेरा स्वागत किया था।",
"फिर?",
समीर नशे की हालत में उसके उँगलियों से खेल रहा था।