Swayamvadhu - 44 in Hindi Fiction Stories by Sayant books and stories PDF | स्वयंवधू - 44

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स्वयंवधू - 44

इसमें हिंसा, खून-खराबा और कुछ ज़बरदस्ती के रिश्ते हैं। पाठकों, यदि आप आघात नहीं चाहते तो इसे छोड़ दें।

कंपनी के अंदर

पिछली कहानी में समीर ने उसे अपने अधीनस्थ कंपनी की बैलेंस शीट के साथ रंगे हाथों पकड़ लिया और उसे उससे छीन लिया और उसी समय वहाँ नीरज और राघव कमरे में दाखिल हुए और समीर के हाथ में कागज देखकर समीर के बगल खड़े हो गए। अब आगे,

तीनो उसे शिकारी की तरह अपनी नज़रो से चीर रहे थे।
वह डरी हुई पछता रही थी।
उसने अपना सिर नीचे कर लिया और अपनी हाथों को खरोंचते हुए, "मुझे पता है कि मैंने गलती की है। कृपया मुझे क्षमा करे।", उसने तीनों से विनती की।
नीरज चिढ़े हुए निगाहों से, राघव और समीर भावशून्य नेत्रों से उसकी ओर देख रहे थे।
तभी वे तीन पुलिसवाले भी वहाँ आए।
समीर ने चुप्पी तोड़ते हुए पूछा, "तुम यह देख रही थी?",
उसने सिर हिलाया।
फिर उसने गुस्से पर चिंताग्रस्त होकर से पूछा, "क्या मैंने तुम्हें इसे छूने की इज़ाज़त किसीने दी थी?",
उसने सिर नीचे रख ना में सिर हिलाया।
उसने तेज़ आवाज़ में चीखा, "अगर मैंने तुम्हें इज़ाज़त नहीं दी तो तुम्हारे हाथ में ये क्या कर रहा था?!",
वह सहमकर अपने आँसू और कंपन दबाए खड़ी रही।
"क्यों खड़ी थी!?!!", वह फिर चिल्लाया।
उसकी आवाज़ पूरे ऑफिस में फैल गयी।
वह झटके से उछल पड़ी, "क्ष-मा-", उसके मुँह से एक कर्कश आवाज़ निकली, 
वह बुक शेल्फ पर ज़ोरदार मुक्का मारकर चीखा, "- 'क्षमा' का क्या करूँ?! आचार डालूँ?!",
वह फिर से उछल पड़ी। उसने अपना सिर अब भी नीचे कर रखा था। उसका सिर नीचे देख वह फिर चिल्लाया, "तुमने अपना चेहरा चोरो की तरह क्यों झुकाकर रखा है?! ऊपर देखो!",
वह डर से जमकर सिकुड़ गयी थी। उसके उँगलियाँ अपने में सहारा ढ़ूँढ़ रहे थे। उसने अपना चेहरा ऊपर नहीं किया।
चेहरा ऊपर ना होता देख उसने फिर से अपना हाथ शेल्फ पर दे मारा, "ऊपर देखो मीरा पात्रा!!", वृषाली डर से सहमकर पीछे हो गयी। उसकी आवाज़ इतनी तेज़ थी कि दूर तक सब सहम गए थे।
उसने धीरे से अपना सिर उठाया और अपना डरा हुआ चेहरा दिखाया, वह बुरी तरह लेकिन चुपचाप रो रही थी। उसके चश्मे में भाप लगी हुई थी।
वह अब भी उसपर चिल्ला रहा था, "तुम्हें बिना अनुमति के किसी भी चीज़ को नहीं छून-", जैसे ही मीरा उर्फ वृषाली ने अपना सिर उठाया, उसका गुस्सा तुरंत गायब हो गया। उसने अपना सिर पकड़ लिया।
उसने गहरी साँस ली, "ये मैंने क्या किया? मैं कैसे भूल सकता हूँ?!", उसने अपने आप में खुद को कोसा। उसने आत्मग्लानि में कहा। मैं नहीं जानती कि उसे आत्मग्लानि हो सकती है लेकिन उसे हुआ।
वह उसके पास गया और उसे सांत्वना देने कि कोशिश की, "मुझसे गलती हो गयी। मुझे माफ़ कर दो, मीरा। मुझे तुम पर चिल्लाना नहीं चाहिए था।",
ऑफिसर से, "अधिकारी क्या हम बाद में बात कर सकते हैं? जैसा कि मैंने कहा कि वह बहुत कमज़ोर स्थिति में है। वह पहले से ही तनावग्रस्त है। मैंने पहले ही उसे तनावपूर्ण स्थितियों में धकेल दिया है। उसे अब आराम की ज़रूरत है। हम बाद में बात करेंगे।",
अधिकारी ने उसे अंतिम चेतावनी दी, "ऐसा नहीं हो सकता मिस्टर बिजलानी! आपका बेटा-", समीर का हाथ उसके कोट की जेब में गया। उसने जेब के अंदर एक बटन दबाया। अचानक वृषाली ऐसे कांपी जैसे उसे बिजली का झटका लगा हो, उसकी आँखें पीछे की हो गईं और उसकी बाहों में बेहोश हो गई।
"यह आखिरी बार होगा मिस्टर बिजलानी।", अधिकारियों को उस पर विश्वास करना पड़ा,
"आज के लिए हम जा रहे है पर आप इसे और नहीं टाल सकते। हमारी मुलाकात कल बिजलानी निवास में होगी। इस लड़की के साथ!", वह चेतावनी देकर निकल गया।
समीर, मूर्छित वृषाली को वृषा की तरह उठाकर उसे पूरे ऑफिस के सामने से गोद में लेकर गया।
उसने उसे सावधानी से पीछे की सीट पर लिटाया और उसे शॉल से ढक दिया। अपने ड्राइवर को घर या हॉस्पिटल के बजाए 'ग्रीन यूनिवर्स' की ओर जाने का आदेश दिया।
'ग्रीन यूनिवर्स' व्यापारिक बैठकों का केंद्र है। अधिकांश व्यापारिक सौदे इसी होटल में हस्ताक्षरित होते हैं। इसका स्वामित्व खुरानाओं के पास है।
वह यात्री की सीट पर बैठा।
दोपहर की सड़क पर ड्राइवर ने सुचारू रूप से गाड़ी चलाई और लोगों को पार किया जो दोपहर के भोजन और दोपहर की बैठकों के लिए सड़क पर निकले थे।
शहर ऊँची गगनचुंबी इमारतों से घिरा हुआ था, वे शाही माहौल की झलक दिखाते हुए शानदार बिजनेस होटल के प्रवेश द्वार से कुछ मिनट की दूरी तक पहुँचे। जैसे ही वे होटल के पास पहुँचे, उसने अपनी आँखें बँद कर लीं जैसे कि वह किसी चीज़ पर ध्यान केंद्रित कर रहा था और पीछे देखने वाले दर्पण के माध्यम से उसे देखा और बड़बड़ाया, "उठने का वक्त हो गया।", चमत्कारिक रूप से उसे क्षण उसे होश आने लगा।
"उम...आह!...", वह दर्द से कराहई।
उसे कराहते देख वह मुस्कुराया, "मीरा?", उसने उसे धीरे से पुकारा,
"...आह....", वह दर्द से कराहई,
"क्या हुआ मीरा?", उसने मंद मुस्कान के साथ पूछा।
उसने उठने कि कोशिश की लेकिन लगभग सीट से गिर गई।
"रुको! उठो मत।", उसने पीछे मुड़कर कहा,
"हमें क्या करना चाहिए?~ घर पहुँचने में एक घंटे के ऊपर लगेगे। क्या हम किसी होटल में आराम करें?~ हाश! कोई रास्ता नहीं! ड्राइवर कोई पास वाले होटल में चलो।", उसने अपने ड्राइवर को बात तान तानकर कही।
मीरा उर्फ वृषाली ने उसकी बात मान होटल पहुँचने का इंतज़ार करने लगी।
ड्राइवर ने उन्हें दो मिनट में पहुँचा दिया।
आशा के अनुसार!
"एक कमरा बुक करो और इस संपत्ति के मालिक को पूछना सुनिश्चित करना। मेरे पास उन नव जोड़े के लिए एक बढ़िया गिफ्ट है।", उसने अपने ड्राइवर को आदेश दिया। 
तंस भरी मुस्कान के साथ समीर बड़ी स्फूर्ति के साथ उसकी मदद करने गया। उसने असंतुलित मीरा~ को कंधे से उठाया और उसे सहारा देते हुए अंदर ले गया। वह अर्ध जागृत अवस्था में थी। वहाँ इस होटल के मालिक आए, उन्हें देख समीर जीत वाली शक्तिशाली मुस्कान के साथ वृषाली के कंधे से गर्दन तक अपना हाथ ले गया और हल्का दबाया। उसके बड़े हाथ और गुलाबी नाखून उसके गर्दन में धकेल जा रहे थे। वो तब तक नहीं रुका जब तक घुटन से वो खाँसने ना लगे। जिससे दिखे कि उसपर और उसकी हर एक श्वास संपूर्ण स्वामित्व उसी का है।
"वेलकम समीर सर। आपका स्वीट रूम तैयार है।", रिसेप्शनिस्ट ने कहा,
उसने कार्ड लिया और नशे मे धुत्त दिख रही वृषाली को अपने साथ गोद में उठाकर ले गया।

वह मालिक और दम्पति युवा खुराना थे। उनकी शादी को दो महीने से अधिक हो गये थे। दिव्या नई दुल्हन की तरह हाथ में चूड़ी पहने, माँग पर सिंदूर, गले में मंगलसूत्र पहने आर् खुराना के साथ बेबस खड़ी थी। वो अपनी नयी दोस्त को और आर्य अपने सबसे अच्छे दोस्त, वृषा के आत्मसम्मान को उसी के नज़रो के सामने असहाय कुचलते हुए देखने के लिए मज़बूर थे।
जब वो उनकी सामने से निकला आर्य समीर को मारने के लिए हाथ उठाया पर दिव्या ने उसे रोक लिया, "नहीं।"
बीसवी माले के दूसरे कमरे में समीर ने उसे बिस्तर पर फेंका और कहा, "खेल ख़त्म!"
कमरे की बत्ती उसने बँद रखी थी।
उसके बाद धीरे-धीरे उसकी चेतना स्थिर हुई। उसकी दृष्टि धुंधली थी। पेट के बल लेटकर उसने अपना सिर धीरे से उठाया। उसे उसके सामने एक बड़ा, भारी मज़बूत आदमी उसके सामने, दूर पीठ कर बैठा था, ठीक वैसे ही जैसे कवच करता था। उसने अपना हाथ उस आकृति की ओर बढ़ाना चाहा, लेकिन नहीं बढ़ा सकी। इसलिए वह लेटी रही और आसानी से साँस लेने का रास्ता बनाती रही। तभी उसने उस छाया को पीड़ा में बोलते हुए सुना,
"मैं तुम पर उस वक्त इतनी बत्तमीज़ी के साथ चिल्लाने के लिए माफी चाहता हूँ।", उसने कहा।
उन्होंने तीस सेकंड तक प्रतीक्षा के बाद पीछे हटते हुए भावनात्मक रोलर-कोस्टर भाव में कहा, "दरअसल वृषा... तुम्हारा अपहरणकर्ता गिरफ्तार होने के तुरंत बाद पुलिस गिरफ्त से भाग गया था। पुलिस को तुम पर शक है कि तुमने उसकी भागने में मदद की थी। पिछले आठ महीनों से वे तुमसे पूछताछ करने की कोशिश कर रहे है लेकिन तुम्हारी अस्थिर मानसिक स्थिति के कारण मैंने उन्हें रोक रखा था। लेकिन... लेकिन अब मैं उन्हें और नहीं रोक सकता! और नहीं रोक सकता, बेटी। वे तुमसे पूछताछ करेंगे, तुम पर हर उन सब बातों का आरोप लगाएंगे जो तुमने कभी किया ही नहीं है! और एक सामान्य असहाय व्यवसायी के रूप में मैं कानून द्वारा निर्देशित नियमों का पालन ही कर सकता हूँ और कुछ नहीं। मैं तुम्हें बचाना चाहता हूँ पर अपना बच्चा तो बच्चा है, उसे ऐसे तिल-तिलकर मरा नहीं देख सकता, नहीं देख सकता
मैं जानता हूँ कि मैं अभी तुम्हें एक पाखंड लग रहा होगा पर क्या करे? बच्चा, बच्चा होता है। वो कितनी भी गलती कर ले, लाख गुनाह कर ले उसके लिए तो वो अब भी वही पेट के लुढ़कता हुए बेटा होता जो अपने पिता को देख दिल खोलकर हँस रहा हो।", उसका गला नम हो गया था।
वृषाली सब सुनकर अपना मुँह बिस्तर पर धसाकर पूछा, "मेरे परिवार का खून किसने किया?",
"वृषा ने।",
"कब?",
"नौ साल पहले।",
"कैद?",
"दस साल।",
उसने गहरी साँस ली।
"बैठने में मदद?",
वह भारी कंधो के साथ उठा और अपनी नज़र नीची कर उसे बैठने में मदद की।
उसने फर्श पर कदम रखा और दाई और नाइट लैंप पर हाथ फेरा। कमरा जगमगा उठा। समीर के बाई आँखो से अश्रु बह रहे थे।
उसने अपना हाथ उसकी गाल में रखा और अपनी नम आँखो से कहना शुरू किया "मैं वही करूँगी जो आप चाहोगे, बस...",
उसने अपना हाथ उसकी गाल से हटाया और अपनी ह्रदय के पास रखकर कहा,"मैं वही करूँगी जो आप चाहोगे, लेकिन कृपया मुझे सच बताइए।
मुझे बहुत तीव्र आंतरिक अनुभूति हो रही है कि मैं अपने पिछले जीवन का कोई महत्वपूर्ण भाग भूल रही हूँ, मुझे ऐसा लग रहा है कि मेरे पिछले जीवन में आपके प्रति मेरे मन में एक गहरा लगाव रहा होगा जो अब भी बढ़ रहा है- जो अब भी मेरी यादों के साथ फीका नहीं पड़ा है! कृपया मुझे बताईए कि हमारा रिश्ता इन दस साल में कैसा था? मैं आपसे हाथ जोड़कर विनती करती हूँ, प्लीज़ मुझे बता दो।", उसकी आँखों में उसके लिए उमड़ती भावनाओं के साथ आँसू आ गए।
समीर उसके इस जज़्बात से हैरत में पड़ गया वो तुरंत उठ बात बदलने लगा पर वृषाली हट पर बैठ गयी। उसने उसे लाख सहझाया पर वो नहीं मानी, "मैं अपने उलझे हुए मन का कारण जानना चाहती हूँ। क्या मुझे इतना सा जानने का अधिकार भी नहीं?", उसके आँसुओ ने पूछा,
"हाह! मैं हारा।", समीर उसके सामने रखे सोफे पर बैठा। दोंनो अब एक दूसरे की आँखो में आँखे डाल बात कर रहे थे।