Hanumat Hank - Parichay v Samiksha - 1 in Hindi Spiritual Stories by Ram Bharose Mishra books and stories PDF | हनुमत हांक - परिचय व समीक्षा - 1

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हनुमत हांक - परिचय व समीक्षा - 1

हनुमत हांक -परिचय व समीक्षा

हनुमत हांक' बलदेव दास जी द्वारा लिखी गई बड़ी महत्वपूर्ण पुस्तक है । यद्यपि यह सामान्य रूप से सब जगह नहीं पाई जाती, मंदिरों, बड़े पुस्तकालयों और पुस्तक विक्रेताओं से मांगने पर भी इसे पाना अतिदुष्कर है  बलदेव दास जी का जन्म ग्राम खटवारा जिला बांदा उत्तर प्रदेश में संवत 1908 में हुआ।वे  भाई थे। बलदेव दास जी के पिता का नाम लाल सुखनंदन उपनाम सुखदेव था। हनुमान जी की भक्ति के ग्रन्थों सहित कुल मिलाकर लगभग 35 ग्रँथों का प्राणायाम आचार्य बलदेव दास जी ने किया जिनमें से कुछ पुस्तक प्रकाशित हुई हैं।

 

बलदेव दास हनुमान भक्त बड़े कवि थे। उन्हें कहीं महात्मा कहकर संबोधित किया गया तो कहीं आचार्य कहकर। उन्होंने हनुमान जी की प्रशंसा में अनेक ग्रंथ लिखे। दरअसल वे छन्द विदा में लिखे जाने वाले काव्य के मर्मज्ञ थे। भक्ति को जब काव्य का  सहारा प्राप्त होता है तो भक्ति  काव्य शिल्पो व कविता के रूपों को मंत्र और श्लोक बना देती है । ऐसा ही बलदेव दास जी के तमाम हनुमान भक्ति के छंदों के साथ हुआ। प्रस्तुत पुस्तक  प्रस्तुत पुस्तक हनुमत हांक में दोहा, कविता, सवैया,घनाक्षरी मिलाकर कुल 71 छंद सम्मिलित हैं  इनमें अनुप्रास अलंकार की अद्भुत छटा हैं ।अनुप्रास, मालोपमा, उत्प्रेक्षा, रूपक जैसे अलंकार भी उनके इस काव्य खजाने में काव्य कोश में विराजमान है। उनके हनुमत हांक ग्रंथ का भी अनेक लोग भक्ति भाव से पाठ करते हैं। तो कुछ लोग तांत्रिक प्रयोग में भी इस ग्रंथ का पाठ करते हैं  वश्री हनुमान जी द्वारा किए गए समस्त राम  कार्य, राम की सेवा के कार्य हनुमत हांक में आए हैं। हनुमान जी की हांक की वंदना करने वाले हनुमान जी के संपूर्ण बदन का वर्णन करने वाले श्री बलदेव दास जी का यह ग्रंथ मेरे इस कथन की पुष्टि करेगा। इस हेतु कुछ छंदों को मैं उदाहरण के रूप में प्रस्तुत कर रहा हूँ

 

श्री बलदेव दास कृत

          हनुमत  हांक

 जिसको गंगा विष्णु श्री कृष्ण दास अध्यक्ष लक्ष्मी वेंकटेश्वर छापेखाने में संवत 1979 सकल 18  44 कल्याण मुंबई से प्रकाशित किया

 हनुमत हांक को श्री बलदेव दास कृत

श्री गणेशाय नमः ।

अथ हनुमत हांक ।

श्रीबलदेवदास कृत।

दोहा-जय हनुमत मंगल करण, हरण अमंगल मूल।

चरणशरण बलदेव गुनि, रहहु सदा अनुकूल ॥

सम्वत रस शर अंक शशि, कार्तिक सित बुध वार ।

वरणत हनुमतहांक शुभ जन्म भूमि खटवार ॥ २ ॥

 

 

 

छप्पय-छंद ।

 

ओमतुलित बलधाम हेम शैलाभलसतं तन ।

दानव विपिन कृशानु ज्ञानि जन अग्रगण्य गन ॥

सब गुण बुद्धिनिधान वानरन वृन्द अधीश्वर।

श्रीरघुवर वर दूत प्रभंजनपूत कवीश्वर ॥

मंगल मूरति राम मय नाम जपत मंगल करण ।

संकट मोचन काम तरु बलदेवहि राखिय शरण ॥ १ ॥

 

 

हनुमतहांक ।

 

 

 

कवित्त घनाक्षरी दंडक ।

 

जयति श्रीरंग शारंगधर प्रेम रसरंग मन मग्न बजरंग वीरं।

मेरुसंकाश संकरन संकटहरन सत्य संकल्प संग्राम धीरं ॥

लंकिनी दलन सकलंक लंका दहन लंक हरि ललित लंगूर चीरं ।

 बुद्धिदं सिद्धिदं भक्तिदं मुक्तिदं ज्ञानदं दमन बलदेव पीरं ॥ २ ॥

 

कवित्त घनाक्षरी ।

 

कार्तिक असित पक्ष चौदशि शनौकी राति अंजनी प्रभंजनसे भयो कपिवारो है।

 भोरै भानु भीक्षन को उछल्यो ततक्षन सोपौन चल्यो रक्षनको जानि गभुवारो है ॥

ग्रहणको आयो राहु लीलिबे को धायो ताहु मारिकै भगायो सुरनाहु को पुकारो है।

भयो को प्रबल देव दानव कि दैत्य एक आजु हठि छीनि लीन्हयो अशन हमारो है ॥ १ ॥

 

अंजनि गरभ से प्रगट भयो भोरानाथ भोर होत भूखे ह्वे सरोष  उमडानो है।

जननि रजाय पाय उठ्यो बलदेव कपि काय को बढाय वज्रअंग अंगडानो है ॥

श्रवण चपाय हाथ पाय को कपाय कुछ पुच्छ को उठाय ऊर्ध उछलि उडानो है।

वायुसुत बायो मुख धायो वायुमंडल पै जाइ मँडरान्यो मार्तण्ड घबडानो है ॥ २ ॥

 

हनुमतहांक ।

 

उझकि झपाका झापि लीन्हो सविता-का बिम्ब जानि फल पाका लाल लीलगो गपाका है।

दुरयो  रविचाका अन्धकारभो अचाका लोक शोक भय छाका परयो संकट सनाका है ॥

 दैत्य गुनि ताका तापै छुट्यो मघवाका वज्र फूटयो सो फडाका. भयो कीश मुख बांका है।

वीर जब दांका तब थाका बल देवन को हांका बजरंग यह कौन धों कहां का है ॥ ३ ॥

वज्र सनमान हित मान लीन्हो हनुमान मूर्च्छित प्रमान पवमान दुख माने हैं।

 सुवन उछंग लैके बैठ्यो गिरि कन्दर में जाकि दीन्हो प्रान सर्व प्रानी अकुलाने हैं।

 जान बलदेव गीर्वान विधि सिद्धगन कीन्हेगु न गान बहु विनय बखाने है।

अजर अमर बलज्ञान गुणवान होहु पाय वरदान बजरंग हरषाने हैं ॥ ४

 

 

 देवन्ह दुचित जानि भई बर ब्रह्म। वानि करो न गलानि यह रुद्र अवतार है।

 सूर मद गंजन को साधु मनरंजन को भयो कपि अंजनी प्रभंजन कुमार है ॥

लोक अँधियार अवलोक कै न कीजै शोक कीन्हो निज यश से त्रिलोक उजियार है।

 सुनत त्रिदेव सर्व देव बलदेव सिद्ध विनय बडाई बहु कीन्ही बार बार है॥ ५॥

 

 

 

 

ऊषा काल बाल रवि अंजनी को लाला लखि लाल फल लेखि लील हीते लील लीन्हो है।

 छूट्यो पविमान को गुमान

हनुमान सौंह विनय बडाई बलदेव बहु कीन्हों है ॥

रुद्र भगवान बलवान कपिरूप देखि सकल भुलान ताते कोऊ नहिं चीन्होहै ।

 मानि गीर्वान वानि मुदित कृपा निधान कान मग भान को निकार द्रुत दीन्हो है ॥ ६ ॥

 

केशरीके क्षेत्रसे प्रगट भयो भोरानाथ लाल फल भोरे भख्यो और भासमान को ।

मारयो इंद्र बान लीन्हो  चिबुकपै तेजवान व्यर्थ करिडारयो पविमान के गुमानको ॥

 जानि बल-देव देव वन्दित त्रिदेव रूप मानिगुरुदेव राख्यो मान स्वभानु को ।

 सिद्ध गीर्वान मुनि मोदमान पुनि पुनि देखि गुनि सुनि बाल लीला हनुमानको ॥ ७ ॥

 

 

 

कोउ कहै ब्रह्मतेज कोउ कहै मायातेज कोउ कहै रुद्र तेज भो प्रकाशमान पै ।

कोउ कहै विष्णुचक्र कोउ कहै मेरुशृंग उड्यो सो अचर्य गुनि भये त्रासमानपै ॥

कोउ कहै विद्यु माल कोउ कहै अग्नि ज्वाल कोउ कहै गरुड उडान्यो आसमानपै।

जौछौं बलदेव करें देवअनुमान तौलों गयो वेगवान हनुमान भासमानपे ॥८॥

आदित के आगे आगे पाछिले पगन चापि गगन पै विद्या पढ्यो बुद्धि बल वान है।

कविता विधान भक्ति योग में प्रधान गुण ज्ञान के निधान वेज पंज भ्राजमान है॥

देखि गीर्वान बलदेव अनु मान करे आज आसमान हुए आन भासमान है।

 

१०

 

 

 रुद्र भगवान कहे भूलो न सुजान कोउ पाछे भानु यान अग्र जात हनुमान है ॥ ९ ॥

 

शोचे वालि डर से सुकंठ ऋष्यमूक पर ल्याय महावीर रघुवीर को मिलाय दयो ।

वैरि बधवाय सधवाय बलदेव कार्य ताहि की सहायता कीश कपिराय भयो ॥

पायो राम मुद्रिका सिधाये सिय शोधन को कानन में प्यासे सब प्राणन बचाय लयो ।

 नीरनिधि तीर जाइ बैठे कपि भालु भीर दुस्तर गंभीर देखि वीरन को धीर गयो ।

 वारिधि तीरमें वीर सबै अपने अपने बल विक्रम भाषे।

 

 

हनुमतहांक ।

 

११

पै  कोउ पारके जात जकै

कोउ आवत बारकी संशय राषे ॥ पौन-तनय सुनि मौन गहे बलदेव कछू न कहे नहिं माषे।

तासु पराक्रम जाननको सब आनन जोहि रहे अभिलाषे ॥११॥

 

घनाक्षरी ।

 

बोले जामवंत हनुमंत काह बैठे मौन पौन के समान बल पौन के कुमार तूं ।

विद्या औ विवेक बुद्धि ज्ञानके समुद्र रुद्र फोरै ब्रह्मअंड चाहे तोरै शिशुमार तूं ।

कौन ऐसो कारज कठिन जो न तो सों होय विश्व बलदेव वीर विक्रम अपार तूं।

शूर सिरताज आज राखो कपिराज लाज रामहीके काज लागि धारयो अवतार तूं ॥ १२ ॥

 

१२

 

हनुमतहांक ।

 

रामहि के काज लगि धारयो अवतार सुनि शूर सिरताज गिरिराज से विशाल भो ।

 कंचन वरण तन तेजपुंज भ्राजमान भोर भासमान के समान मुख लाल भो ॥

गाज मृगराज से गराज कीन्हो बार बार पिंग दृग ज्वाल लाल काल से कराल भो ।

देखि बलदेवजू निहाल कपि भालुदल हाल्यो ब्रह्मअंड मार्तंडहू बेहाल भो ॥ १३ ॥

 कहो तो समुद्र डांकों एकही फलंकामाहिं लंका दलौं दाहौं यातुधान रजधानीको ।

कहो दल बंका बधि बैरिन को शंका देउँ ल्यावों देत डंका सिय लंकापति रानी-को ॥

रावण को कूटकै त्रिकूट ही उपारि आनों करो एक घूंट सब सागरके

पानी को ।

 पूछौं ऋक्षराज तोहिं दीजे  योग्य शिक्षा मोहिं लीजै तो परीक्षा बल-देव बलबानी को ॥ १४॥

 

 

१३

 

बोले जामवंत साधु साधु हनुमंत वीर बुद्धि बलवंत काह कहों में बुझाइकै ।

 सांच सब लायक हो सांकरे सहायक हौ श्रेष्ठ प्रभु पायक हो लियों हों बेरांइकै ॥

जानि गुणधानी तोहिं दीन्ही सहदानी राम एतो बलदेव काम कीजो तुम जाइकै ।

नाघि कै पयोधि सोधि सीय को प्रबोधि रोधि ले कै चिन्ह शीघ्र सुधि कहौ इत आइकै ॥ १५ ॥