Wo jo Kitabo me Likha tha - 1 in Hindi Detective stories by nk.... books and stories PDF | वो जो किताबों में लिखा था - भाग 1

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वो जो किताबों में लिखा था - भाग 1


वो जो किताबों में लिखा था

भाग 1: धूल में छिपा भविष्य

आरव को किताबों से मोहब्बत थी।
नहीं, वो मोहब्बत जो लोग शायरी में कहते हैं—बल्कि वो मोहब्बत जो सांस लेने जितनी जरूरी होती है। उसका ज़्यादातर समय पुराने किताबों की दुकानों में बीतता था। वहां की सोंधी, धूल-भरी खुशबू में उसे एक अजीब-सी शांति मिलती थी, जैसे हर किताब उसके भीतर कुछ कह रही हो।

उस दिन भी, जैसे किसी अनजाने खिंचाव में खींचा चला गया था वो उस तंग गली के कोने पर बनी एक जर्जर सी किताबों की दुकान में। दुकान का नाम मिट चुका था, लकड़ी का बोर्ड आधा टूट चुका था, और खिड़की पर जाले फैले थे—जैसे सालों से किसी ने वहाँ कदम ही न रखा हो।

लेकिन दरवाज़ा खुला था।

"कोई है?" आरव ने धीमे से पूछा।

कोई जवाब नहीं मिला, सिर्फ़ लकड़ी की फर्श पर हल्की चरमराहट हुई, जैसे दुकान खुद जाग उठी हो। वह आगे बढ़ा, किताबों की धूलभरी कतारों के बीच। तभी उसकी नज़र एक पुरानी अलमारी के सबसे ऊपरी खाने में रखी एक मोटी, चमड़े की जिल्द वाली किताब पर पड़ी।

किताब पर कोई नाम नहीं था।
सिर्फ़ एक सिंदूरी रंग का निशान – जो किसी प्राचीन चिन्ह जैसा दिखता था।

आरव ने किताब उठाई।
जैसे ही उसने उसे छुआ, एक ठंडी लहर उसकी उंगलियों से होती हुई पूरे शरीर में दौड़ गई।
उसने डरते हुए किताब खोली।

पहले पन्ने पर सिर्फ़ एक पंक्ति लिखी थी – "जो लिखा है, वही होगा।"

आरव हँस दिया। "कोई फैंटेसी उपन्यास होगा," उसने सोचा।
लेकिन जैसे ही वह अगला पन्ना पलटता है, उसकी हँसी जम जाती है।

> "2 अप्रैल, शाम 5:17 – आरव ने एक पुरानी किताब उठाई, ये सोचे बिना कि वो उसका भाग्य बदलने वाला है।"



उसकी आँखें चौड़ी हो गईं।
वह घड़ी की तरफ़ देखने लगा—शाम के ठीक 5:17 थे।

"क्या मज़ाक है ये?" उसने बुदबुदाया।
लेकिन किताब में अगली लाइन पहले से लिखी थी—

 "उसने बुदबुदाया – 'क्या मज़ाक है ये?' – और फिर उसे पहली बार एहसास हुआ कि ये किताब उसके जीवन की कहानी है।"



आरव के हाथ कांपने लगे। उसने किताब बंद की, मगर वो गर्म होने लगी, जैसे किसी अदृश्य ऊर्जा से भर रही हो।

और फिर आखिरी पन्ना अपने आप पलट गया…
…और उसमें लिखा था:

> "7 अप्रैल – वह किताब में ऐसा कुछ पढ़ेगा जो या तो उसे बना देगा… या हमेशा के लिए मिटा देगा।"

आरव तेजी से दुकान से बाहर निकला, लेकिन किताब उसके हाथ से चिपकी रह गई — जैसे किसी अदृश्य शक्ति ने उसे पकड़ रखा हो।
उसने ज़ोर लगाकर उसे फेंकना चाहा, पर किताब फिर से उसके बैग में जा गिरी।
घबराया हुआ वह घर पहुंचा।
कमरे की बत्तियाँ अपने आप झपकने लगीं।
उसने किताब को मेज़ पर रखा, लेकिन तब ही किताब का ढक्कन फिर से खुल गया…
और एक नई लाइन उभर कर सामने आई:

> "अब ये कहानी तुम्हारी नहीं… तुम्हारे ज़रिए किसी और की पूरी होने वाली है।"



आरव का गला सूख गया। अब वह भाग नहीं सकता था।


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(भाग 1 समाप्त)

कैसा लगा आपको?
अगर पसंद आया तो अगला भाग और भी गहरा और रहस्यमयी होगा—जहाँ आरव किताब के भीतर की सच्चाई से टकराएगा, और वो राज़ सामने आएंगे जो उसकी कल्पना से भी परे हैं।