इसमें हिंसा, खून-खराबा और कुछ ज़बरदस्ती के रिश्ते हैं। पाठकों, यदि आप आघात नहीं चाहते तो इसे छोड़ दें।
कंपनी के सामने
दो घंटे की लंबी यात्रा के बाद वह 'बिजलानी कॉरपोरेशन' नामक एक इमारत के सामने खड़ी थी। उसने काली जींस और सफेद शर्ट पहन रखी थी और उसके ऊपर काला ब्लेज़र था।
"चलो।", अधीर ने रूखे स्वर में कहा।
उसने एक कदम बढ़ाया। उसका जूता टाइल पर बिना आवाज़ के चला। वह अधीर के पीछे-पीछे चल रही थी। चलते-चलते वह एक भव्य शीशे के प्रवेशद्वार से प्रवेश कर रिसेप्शन में प्रवेश कर गई। वहाँ काम कर रही दो लड़कियों ने अधीर का आदर और भय के साथ स्वागत किया। वह बीस बड़े कदम चली और अधीर के पीछे लिफ्ट में चढ़ गई। फिर अधीर ने छठी मंज़िल का बटन दबाया। लिफ्ट के बटन के अनुसार, उस इमारत में सात मंज़िलें, छत और एक पार्किंग स्थल था। अन्य लोग उस लिफ्ट से बचने लगे जिसमें वे थे। कुछ ही मिनटों के बाद वे छठी मंजिल पर थे। गलियारा काफी लंबा था और दीवारों के किनारे कमरे बने हुए थे। वे तीन मिनट तक गलियारे के अंत तक चले, जहाँ मंज़िल पर सबसे बड़ा कमरा था, अधीर ने दरवाज़ा खटखटाया और खोला। नारंगी प्रकाश की किरणों ने कुछ पल के लिए उसकी दृष्टि को अँधा कर दिया। यह एक कांफ्रेंस हॉल था जैसे आमतौर पर फिल्मों में दिखाया जाता है। एक विशाल अंडाकार मीटिंग टेबल पर प्रोजेक्टर लगा था, जो दीवार पर स्लाइडें प्रक्षेपित की जा रही थीं और सूट पहने तथा गंभीर चेहरे वाले पुरुष और गिने चुने दो-तीन अधेड उम्र की महिलाए अपने निर्धारित स्थान पर बैठे थे। वह अकेली खड़ी थी, एक महिला, कुलीन व्यापारियों के सामने। सभी उसे ऐसे घूर रहे थे जैसे वे उसे अभी कच्चा चबा जाऐंगे।
"सर के पास जाओ।", अधीर ने समीर को सिर हिलाकर संकेत दिया और वृषाली के कान में फुसफुसाया।
वह घबराई हुई सी उनसे नज़रें मिलाए बिना समीर के पास चली जा रही थी। समीर के सामने जाते हुए उसे एहसास हुआ कि वह स्थिति और वहाँ खड़े लोगों का विश्लेषण करना भूल गई थी। अब बहुत देर हो चुकी थी। वह उसके ठीक सामने खड़ा था। वह उसे बिना भाव के घूर रहा था। वह बिना आँखों के मुस्कुराया।
"सब ठीक है।", उसने फुसफुसाकर उससे कहा,
उसने सबसे कहा, "यह वह शेयरधारक है जिसके बारे में हम बात कर रहे हैं, मीरा पात्रा।",
हर कोई उसे ऊपर से नीचे, अगल-बगल, अंदर से बाहर तक अपनी आलोचनात्मक निगाहों से नोंच रहे थे। कमरे में तनाव चरम सीमा पर थी। यहाँ तक कि सोलह डिग्री सेल्सियस पर चल रही ए.सी भी चालीस डिग्री के बराबर थी। उसे ठंडा पसीना आ रहा था। उसने सिर नीचे रख अपने हाथों से अपना मुँह का पसीना पोंछा। वह उनके चेहरों की ओर देखने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी।
फिर वे आपस में फुसफुसाने लगे।
उस फुसफुसाहट ने स्थिति को और अधिक तनावपूर्ण बना दिया तथा उसके लिए स्थिति और भी बदतर हो गई।
समीर ने उसे आगे किया।
तेज़ फुसफुसाहट धीमी हो गई। फिर लंबे तीस सेकंड के मौन के बाद एक साहसी आवाज़ ने पूछा, "-क्या ये अवैध मालिक नहीं है?", सबकी नज़र उस आवाज़ के स्वामी डायरेक्टर नीरज पर गयी।
नीरज ने आगे कहा, "वृषा सर ने नशे की हालत में अपना सारा शेयर इसके नाम कर दिया है। यह उसकी असली हकदार नहीं बन सकती।",
वह सोच में पड़ गयी।
(कौन से कैसे शेयर?)
सब उसकी बात से सहमत थे।
"शेयर बाज़ार इसकी अतीत को नहीं भूलेगा सर। जैसे ही यह खबर सोशल मीडिया पर फैलेगी हमारे शेयर यूँ ताश के पत्तों की तरह ढह जाऐंगे! हम भूल सकते है पर ये मार्केट, यह मार्केट कभी नहीं भूल सकता। ये मार्केट और इस मार्केट के हर एक प्यादे को इस लड़की का घिनौनी और अमावस से भी काली अतीत के बारे में पता है। मेरा तो यही मत है कि सर इससे शेयरस् की हर एक राइट इससे छीन लेनी चाहिए।", डायरेक्टर नीरज ने कहा जिसे वहाँ पर मौजूद आधे डायरेक्टर्स समर्थन दे रहे थे।
"हम सभी जानते हैं कि कैसे वह चंद पैसों के लिए नग्न होकर लेटकर अपना प्रदर्शन कर देगी। वह एक वेश्या थी और अब सती सावित्री बन रही है? मैं इस बकवास पर मैं विश्वास नहीं कर पा रही हूँ तो दुनिया खाक करेगी। बस इसके अधिकार रद्द कर दो!", डायरेक्टर दीपिका ने माँग की।
सभी लोग एक स्वर में सहमत हुए। उसकी आँखे सूजकर लाल हो गयी। अपने बारे में यह सब अभद्र अपमान देखकर और सुनकर उसे रोना आ रहा था पर खुद को रोक रही थी। उसने अपने बारे में ये सब निराधार, अभद्र, अनुचित अपमान सुनने से बचने और अपने आँसू छिपाने के लिए अपना चेहरा और कान ढक लिए।
"अपने आप को ढकने और घड़ियाली आँसू बहाने से तुम यहाँ एक सभ्य महिला नहीं बन जाओगी। तुम हमारी कंपनी में मौजूद काला धब्बा हो।", वह तंस कसते हुए कहा, "सिर्फ इसकी उपस्थिति मात्र से ही हम ढेर सारे पैसे और सालों की कमाई इज़्ज़त खो देंगे।
एक अनपढ़ ड्रॉप आउट! एक वेश्या! हत्यारिन! वेश्या प्रदर्शक! अपने ही परिवार और दोस्तों की हत्यारिन! तुम-", उसे उसका अपमान करने में बहुत मज़ा आ रहा था। वह रुकने के मूड में नहीं थी तभी अचानक कमरे में आदेश गूँज उठी, "बहुत हो गया!",
सबका ध्यान उस आवाज़ की ओर गया। वह आवाज़ समीर की थी, "बस बहुत हो गया। अब मैं उसका अभिभावक हूँ। यह मेरे संरक्षण में है।",
यह सुनकर सब चुप हो गए। कमरे में अब कोई आवाज़ या अपमान नहीं था।
उसने निराश होकर कहा, "यह बैठक हमारी प्रगति पर नज़र रखने के लिए आयोजित की गई थी, और हमारी स्थिति सुधारने के लिए थी।",
शुरू में यह उसके दस निदेशकों के साथ सामान्य बोर्ड बैठक थी। बैठक के दौरान निदेशक राघव ने वृषा के हिस्से के शेयरों के बारे में सवाल किया। वह एक अपराधी था जिसे नशीली दवाओं की तस्करी और मानव तस्करी के मुख्य संदिग्ध के तौर पर गिरफ्तार किया गया था। इस घोटाले के कारण शेयर बाज़ार में अराजकता फैल गई और गिरफ्तारी के कुछ ही घंटों के भीतर उन्हें हर क्षेत्र में लगभग बीस प्रतिशत का नुकसान हुआ जो धीरे-धीरे बढ़ रहा था। वे कवच के शेयरों को ज़ब्त करने और कंपनी में उसके सभी स्वामित्व को प्रतिबंध करने की योजना बना रहे थे। जब वे कागज़ात और दस्तावेजों को खंगाल रहे थे, तब उन्हें पता चला कि उसका हिस्सा कानूनी तौर पर वृषाली को बहुत पहले ही हस्तांतरित कर दिया गया था। यह घटना उसके अपहरण के दो महीने के अंदर ही घटी थी। उसने केवल 'स्वयंवधू' प्रतियोगिता में प्रवेश के लिए ही एक दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर किए थे। यह उसके प्लान से जल्दी था, लेकिन उसे मौके हथोड़ा मारना आता था।
उसने अपनी योजना शुरू की, "हम यहाँ वापस पटरी पर आने के लिए एकत्र हुए हैं, ना कि पीड़िता को निर्दयतापूर्वक शर्मिंदा करने के लिए! वह भी मेरे बेटे की पीड़िता है।", उसने उसे अपना रूमाल दे दिया। वृषाली ने अपने आँसू पोंछे।
एक निर्देशक ने पूछा, "तो अब क्या किया जाना चाहिए?",
वह रुका, "हमें मिलकर काम करना होगा ताकि हमारे हजारों कर्मचारी और उनके परिवार के सदस्य सड़कों पर भूख से ना मरें। आज के लिए बस इतना ही। आज की बैठक यहीं समाप्त होती है। हम कल बेहतर मूड के साथ मीटिंग जारी रखेंगे।", उसने गंभीर भाव से कहा।
उसने सबको जाने का इशारा किया। बचे थे समीर और वृषाली। किसी ने दो मिनट तक एक शब्द भी नहीं कहा। फिर,
"मेरे पीछे आओ।",
उसने कहा और वह बिना किसी और बातचीत के उसके पीछे चल दी। वे छठी मंजिल पर चले, लिफ्ट ली, सातवीं मंजिल पर गए। कंपनी पर काम कर रहे कर्मचारियों को पार कर दोंनो उसके केबिन तक की दूरी तय की। दोंनो ने सबका ध्यान खूब आकर्षित किया। वृषाली ने शर्मिंदगी से अपना सिर नीचे रखा और उसके पीछे-पीछे अन्दर चली गयी।
वहाँ पहले से ही एक उच्च अधिकारी, एक इंस्पेक्टर और एक कांस्टेबल के साथ समीर का इंतजार कर रहे थे। समीर उस आदमी के सामने बैठा था जहाँ बॉस बैठता है। उसने वृषाली को कुछ दूरी पर सोफे पर बैठने को कहा।
वह निर्देशानुसार चुपचाप बैठी रही। वे गंभीर चेहरे के साथ बातचीत कर रहे थे, वे कुछ दस्तावेजों का आदान-प्रदान भी कर रहे थे। उसने अपना सिर सीधा रखते हुए कमरे की ओर देखा। उसने दो सी.सी.टी.वी देखे। प्रवेश द्वार से वह दाहिनी ओर के कोने पर बैठता है। मध्य भाग पुस्तक अलमारियों से भरा हुआ था और बाईं ओर एक दरवाज़ा था जो बँद था। वह कमरे के बीच में दरवाज़े की ओर मुँह करके बैठी थी। किताबों की अलमारियों से अंदर का दरवाज़ा झलकभर दिखाई दे रहा था। घबराहट में उसने नीचे देखा, नीचे देखते समय एक कागज के टुकड़े ने उसका ध्यान आकर्षित किया। यह एक अपेक्षाकृत छोटी कंपनी की बैलेंस शीट थी। इसमें कुछ परिसंपत्तियां और देनदारियां थीं, लेकिन राशि पूरी तरह मेल नहीं खा रही थी। जिज्ञासावश उसने कागज़ उठाया और उसका विश्लेषण किया। उसे तुरंत पता चल गया कि इसमें कुछ गड़बड़ी थी। यह एक अस्पष्ट गड़बड़ थी। देनदारियों में नदी राफ्ट उपकरण गोदाम किराया, सीमेंट विक्रेता भुगतान 2020 से देय, लकड़ी प्रेस मशीन शामिल थे। संपत्ति में मोटर साइकिल, एक मकान और थोड़ी बहुत जमीन थी तथा कोई उत्पादन या अन्य कोई चीज़ नहीं थी। वह इसमें इतनी मग्न थी कि उसे पता ही नहीं चला कि वे लोग चले गये। कंधे पर थपथपाहट से वह चौंककर उठ बैठी। उसने देखा कि वह समीर था, लेकिन उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं था। "ये...वोह...", वह बकवास बड़बड़ाने लगी, "मुझे माफ़ कर दो!", उसने डर के मारे समीर के सामने सिर झुका लिया। वृषाली की आवाज़ में कछ अलग था... जैसे वह शर्मिंदा नहीं थी। वह बस खाली आँखों से उसे घूर रहा था। उसने उसके हाथ से कागज़ छीन लिया और फिर उसकी ओर देखा।
"क्षमा-", तभी एक और पुरुष की आवाज़ ने उन्हें बीच में रोका। यह निर्देशक राघव और नीरज थे। उन्होंने समीर के हाथ पर कागज़ देखा और उसे तीखी निगाहों से घूरने लगे।