महाभारत की कहानी - भाग-८१
दुर्योधनादी द्वारा मत्स्यदेश का उत्तर के और हमला और अर्जुन से पराजय की कहानी
प्रस्तावना
कृष्णद्वैपायन वेदव्यास ने महाकाव्य महाभारत रचना किया। इस पुस्तक में उन्होंने कुरु वंश के प्रसार, गांधारी की धर्मपरायणता, विदुर की बुद्धि, कुंती के धैर्य, वासुदेव की महानता, पांडवों की सच्चाई और धृतराष्ट्र के पुत्रों की दुष्टता का वर्णन किया है। विभिन्न कथाओं से युक्त इस महाभारत में कुल साठ लाख श्लोक हैं। कृष्णद्वैपायन वेदव्यास ने इस ग्रंथ को सबसे पहले अपने पुत्र शुकदेव को पढ़ाया और फिर अन्य शिष्यों को पढ़ाया। उन्होंने साठ लाख श्लोकों की एक और महाभारतसंहिता की रचना की, जिनमें से तीस लाख श्लोक देवलोक में, पंद्रह लाख श्लोक पितृलोक में, चौदह लाख श्लोक ग़न्धर्बलोक में और एक लाख श्लोक मनुष्यलोक में विद्यमान हैं। कृष्णद्वैपायन वेदव्यास के शिष्य वैशम्पायन ने उस एक लाख श्लोकों का पाठ किया। अर्जुन के प्रपौत्र राजा जनमेजय और ब्राह्मणों के कई अनुरोधों के बाद, कृष्णद्वैपायन वेदव्यास ने अपने शिष्य वैशम्पायन को महाभारत सुनाने का अनुमति दिया था।
संपूर्ण महाभारत पढ़ने वाले लोगों की संख्या बहुत कम है। अधिकांश लोगों ने महाभारत की कुछ कहानी पढ़ी, सुनी या देखी है या दूरदर्शन पर विस्तारित प्रसारण देखा है, जो महाभारत का केवल एक टुकड़ा है और मुख्य रूप से कौरवों और पांडवों और भगवान कृष्ण की भूमिका पर केंद्रित है।
महाकाव्य महाभारत कई कहानियों का संग्रह है, जिनमें से अधिकांश विशेष रूप से कौरवों और पांडवों की कहानी से संबंधित हैं।
मुझे आशा है कि उनमें से कुछ कहानियों को सरल भाषा में दयालु पाठकों के सामने प्रस्तुत करने का यह छोटा सा प्रयास आपको पसंद आएगा।
अशोक घोष
दुर्योधनादी द्वारा मत्स्यदेश का उत्तर के और हमला और अर्जुन से पराजय की कहानी
जब त्रिगर्तराज सुशर्मा मत्स्यदेश के दक्षिणी हिस्से में विराट राजा से लड़ने गए, तब भीष्म, द्रोण, कर्ण आदि के साथ दुर्योधन मत्स्यदेश के उत्तर में आए और गोपों को निष्कासित करके कइ हजारों गायों को छीन लेने से गोपों का प्रमुख जल्दी राजधानी में पहुंचा और विराट के पुत्र उत्तर को उस खवर दिया और बोला आप तुरंत जाकर उस गायों को वापस लाइए।
उत्तर ने कहा, "अगर मुझे एक कुशल सारथी मिलती है, तो मैं धनुष लेकर युद्ध में जा सकता हूं।" तुम जल्द ही एक सारथी लाओ। अगर मुझे एक उपयुक्त रथ चलानेवाला मिल जाता है तो मैं दुर्योधन, भीष्म, कर्ण, कृप, द्रोण आदि को हराकर गायों को वापस लाउंगा। कौरवो नें गायों को चुराके ले गया क्योंकि मैं वहां नहीं था। कौरव आज मेरे विक्रम देखकर सोचेंगे, अर्जुन ने खुद हमला किया क्या?
उत्तर का बातें और अर्जुन के नाम का उल्लेख सुनकर द्रौपदी बरदास्त नहि कर सके। उन्होंने कहा, "राजकुमार, बृहन्नला पहले अर्जुन के सारथी और शिष्य था, वह हथियार चलाने में अर्जुन से कम नहीं है।" यदि आपकी छोटी बहन उत्तरा कहती है, तो बृहन्नला निश्चित रूप से आपका सारथी होंगे। भाई के अनुरोध पर उत्तरा नृत्यशाला में गए और अर्जुन को सभी घटनाओं बताकर कहा, "बृहन्नला, आप मेरे भाई का सारथी बन जाइए, अगर मेरी बात नहीं सुनेंगे तो मैं जीवन त्याग दूंगा।" अर्जुन उत्तर के पास गए और कहा, "क्या युद्ध में सारथी होने का शक्ति मुझमे है?" मैं सिर्फ नृत्य, संगीत, वादन जानता हूं। उत्तर ने कहा, "आप एक गायक, वादक, नर्तक जो भी हो, जल्द ही मेरे रथ में उठो और चलाओ।"
अर्जुन तब उत्तरा के सामने उल्टा करके कबच पहन ने गया तो कुंवारीओ ने हंसने लगा। तब उत्तर ने खुद उसे एक मूल्यवान कवच पहना दिया। यात्रा के दौरान उत्तरा और उनके सखीयों ने कहा, "बृहन्नला, आप भीष्म और द्रोनादी को जीत कर हमारी गुड़िया के लिए विभिन्न प्रकार के नरम कपड़े लाना।" अर्जुन ने कहा, "अगर उत्तर जीतता है, तो मैं निश्चित रूप से सुंदर कपड़े लाऊंगा।"
अर्जुन ने रथ को हवा के गति से चलाया। कुछ दूरी पर जाने के बाद वह श्मशान के पास आया और उत्तर ने देखा कि विशाल कौरवसेना ब्युह की रचना करके इन्तेजार कर रहा है, समुद्र की लहरों की गर्जना की तरह उनकी आवाज़ हो रहा है। उस दृश्य को देखने के बाद, वह डर से कांप गया, और कहा, "मैं कौरवों से नहीं लड़ूंगा, उनमें से कई ऐसे हैं जो देवताओं के लिए भी अजेय हैं।" मेरे पिता ने सभी सैनिकों को सुशर्मा से लड़ने के लिए ले गिया है, मेरे पास कोई सैनिक नहीं हैं, मैं एक बालक हूं, युद्ध में दक्ष नही हूं। बृहन्नला, तुम वापस चलो।
अर्जुन ने कहा, "राजकुमार, यात्रा करते समय तुम सभी के सामने बहुत गर्व किया था, अब तुम वापस क्यों जा रहे हैं?" यदि आप चोरी हुया गायों को वापस लेकर नही जाते हैं, तो हर कोई हंसेगा। सैरिंध्री ने मेरी प्रशंसा की, मैं सफलता के बिना नहीं लौटूंगा। उत्तर ने कहा, "कौरवों संख्या में बहुत है, उन्हें हमारे धन ले जाय तो जाने दिजिए, सभी को मुझ पर हंसना है तो हंसने दिजिए, लेकिन मैं लड़ नहीं सकता।" यह कहते हुए, उत्तर रथ से कूद गया और धनुष छोड़ कर द्रुतगति से भागने लते। अर्जुन उसे पकड़ने के लिए उसका पिछ किया।
अर्जुन को लाल रंग के कपड़े पहने हुए लंबे बालों के साथ दौड़ते हुए देख कर कौरब में से कुछ सैनिकों ने हंसने लगे। कौरवों ने कहा, "भष्म से ढके हुए आग की तरह यह आदमी कौन है?" इसको देखने में कुछ पुरुषों और कुछ औरत की तरह है। इसके सिर, गर्दन, बाहो और गति अर्जुन की तरह है। ऐसा लगता है कि विराट का बेटा हमें देखकर डर से भाग रहा है और अर्जुन उसे पकड़ने जा रहा है।
अर्जुन कुछ दूरी पर जाकर उत्तर के बाल पकड़ लिया। उत्तर ने मिनति करके कहा, "बृहन्नला, तुम मेरी बात सुनो, रथ वापस लो, जीवित रहने से मनुष्य का कल्याण होता है।" मैं तुमको बहुत धन दूंगा, तुम मुझे छोड़ दो। अर्जुन ने उत्तर को रथ के पास लाकर कहा, "यदि तुम नहीं कर सकते, तो मैं लड़ूंगा, तुम मेरे सारथी हो जाओ।" भयभीत उत्तर अनिच्छा से रथ में उठा और अरजुन के निर्देशन में रथ को शमीबृक्ष की ओर ले गया।
द्रोनाचार्य ने कौरवपक्ष के वीरो से कहा, " विभिन्न प्रकार की कुलक्षण दिख रहा है, रेत हवा में उड़ रही है, आकाश अंधकार में ढंका हुआ है, हथियार कोशिकाओं से गिर रहे हैं।" तुमलोग सावधानी से खुद की रक्षा करो, गायों की रक्षा करो, इसमें कोई संदेह नहीं है कि महान धानुष अर्जुन नपुंसक के भेस में आ रहा है।
कर्ण ने कहा, "आप हमेशा अर्जुन की प्रशंसा करते हैं और हमारी निंदा करते हैं, यहां तक कि अर्जुन की शक्ति मेरा या दुर्योधन का सोलह भाग का एक भाग भी नहीं।" दुर्योधन ने कहा, "अगर इस आदमी अर्जुन है तो हमारा उद्देश्य पूरा हो गया, हम उन्हें पहचान लिया।" इस लिए पांडवों को फिर से बारह साल तक जंगल जाना पड़ेगा। और अगर कोई और होगा तो मैं उसे तेज तीर से मार दूंगा।
अर्जुन शमीबृक्ष के पास आकर उत्तर को कहा, "तुम इस पेड़ पर उठ कर पांडवों को धनुष, तीर, ध्वज और कवच उतार के लाओ।" तुम्हारा धनुष मेरे लिए उपयुक्त नहीं है, न ही दुश्मन को नष्ट किया जा सकता है। उत्तर ने कहा, "मैंने सुना है कि एक मृत शरीर इस पेड़ से बंधा हुआ है, मैं इसे एक राजकुमार होकर कैसे छुंउंगा?" अर्जुन ने कहा, "डरो मत, कोई मृत शरीर नहीं है, जो है वह धनुष आदि हथियार हैं।" मैं तुम से नीच काम क्यों कराएंगे? अर्जुनका आदेश के अनुसार उत्तर शमीबृक्ष से हथियारों को नीचे उतार लिया और बंधन खोला तो उज्ज्वल हथियारों को देखकर रोमांचित हो गए। उसका सवाल के जवाब में अर्जुन ने कहा, "यह धनुष अर्जुन का है और इसका नाम गांडीव है, अर्जुन ने खंडब जंगल को जलाने के दौरान वरुण से इस धनुष अर्जुन को मिला था ।" यह धनुष भीम का है, इंद्रगोप चिंहित इस धनुष युधिष्ठिर का, स्वर्णसूर्य चिंहित इस धनुष नकुल का और स्वर्णपतंग चिंहित इस धनुष सहदेव का है। उनके तीर, तुणीर, खड़्ग आदि भी इसके साथ हैं।
उत्तर ने कहा, महात्मा पांडवों के हथियार यहाँ हैं, लेकिन वे कहाँ हैं? द्रौपदी कहाँ है? अर्जुन ने कहा, "मैं अर्जुन, समासद कंक युधिष्ठिर, खाना पकानेवाला बल्लभ भीम, घोषाला और गोशला के अध्यक्ष नकुल और सहदेव है।" सैरिंध्री ही द्रौपदी हैं, जिनके लिए कीचक की मृत्यु हो गई। उत्तर ने कहा, "मैंने अर्जुन के दसठो नाम सुना है, अगर तुम कह सकते हैं, तो मैं तुम्हारा सभी बातें विश्वास करूंगा।" अर्जुन ने कहा, "मेरे दस नामों को सुनें - मैं सभी देशों को जीत कर धन संग्रह करता हूं इसलिए मैं धनंजय, युद्ध में दुश्मनों को बिना जीतकर वापस नहीं लोटता हुं इसलिए मेरे नाम विजय, मेरा रथ का घोड़ा सफेद है इसलिए मेरा नाम श्वेतबाहन, क्योंकि मैं उत्तर और पूर्वी फालगुनी नक्षत्रों में पैदा हुआ था इसलिए मैं फाल्गुनी, दानवों के साथ युद्ध के समय इंद्र ने मुझे उज्ज्वल किरीट दिया था, इसलिए मैं किरीटी, युद्ध के समय मैं कभी बीभत्स काम करते नहीं इसलिए मेरा नाम बीभत्सु है, बाएं और दाहिने हाथ मैं हथियार संचालित कर सकता हूं इसलिए मेरा नाम सव्यसाची, पुरा दुनिया में मेरा यश में कोइ कलंक नहीं इसलिए मेरा नाम अर्जुन, मै दुश्मनो को जिता इसलिए मेरा नाम जिष्णु और बचपन में सुंदर काला बालक था इसलिए मेरा नाम पिताजी ने कृष्ण रखा था।
अर्जुन को अभिवादन करके उत्तर ने कहा, "सौभाग्य से मुझे आपकी दर्शन मिला, बिना जाने मैंने जो कहा उसे माफ कर दिजिए।" मेरा डर दूर हो गया है, आप रथ में उठिए, मैं इसे जहां भी कहेंगे, वहां ले जाऊंगा। लेकिन आप किस कारण से नपुंसक हुया हैं? अर्जुन ने कहा, "युधिष्ठिर के आदेश से मैं एक साल के लिए ब्रह्मचर्य व्रत पालन कर रहा हूं, मैं नपुंसक नहीं हूं।" अब मेरी व्रत समाप्त हो गई है। अर्जुन ने अपनी बाहों से बलय खोला और कवच पहना और अपने बालों को कपड़े से बांध दिया। उसके बाद, जब उसे अपने हथियारों को याद किया, तो वे तुरंत पहुंचे। तब अर्जुन धनुष को जोरसे आकर्षण किया। उसका वज्र की तरह आवाज सुनकर कौरवों ने महसूस किया कि यह अर्जुन के गांधीब की आवाज थी।
उत्तर के रथ में जो झंडा था वह उतार कर अर्जुन विश्वकर्मा का बनाया हुया झंडा लगाया, जिस पर सिंहलांगुल बंदर था। अग्निदेव के इशारे पर, कुछ भूत भी ध्वज में आकर बैठ गए। उसके बाद, अर्जुन शमीबृक्ष को प्रोदक्षिण करके रथ लेकर उत्तर की ओर बढ़ गया। अर्जुन के रथ और शंख के शब्दों को सुनकर और विभिन्न प्रकार के कुलक्ष्ण को देखकर द्रोण ने कहा, "दुर्योधन, आज आपकी सेना अर्जुन के तीर से तबाह हो जाएगी, उनमें से कोई भी लड़ना नहीं चाहता है, कई योद्धा का चेहरे पर डर दिख रहे हैं।" आप गायों को हस्तिनापुर भेज दिजिए, हम युद्ध की प्रतीक्षा करते हैं।
दुर्योधन ने कहा कि पाशा की सभा में, शर्त यह थी कि पराजित पक्ष बारह साल के जंगल और एक साल अज्ञातबास मे जएंगे। तेरह साल अभी तक पूरा नहीं हुआ है, लेकिन अर्जुन दिखाई दिया है, इसलिए पांडवों को बारह साल फिर से बनबास जाना होगा। अज्ञातबास का समय पूरा हुआ है या अभी भी कुछ दिन बचे हैं, पितामह भीष्म कह सकते हैं। यह ठीक था कि त्रिगर्त देशों की सेना सातवें दिन विराट राजा की गायों को छीन लेगी। हो सकता है कि उन्होंने वह किया या पराजित होकर विराट के साथ संधि की। जो हमारे साथ लड़ने के लिए आ रहा है वह विराट के एक महान योद्धा या खुद विराट लगता है। विरात या अर्जुन जो भी आता है, हम लड़ेंगे। आचार्य द्रोन हमारे सैनिकों के पीछे रहे, उनहे हमे डरा रहे है और अर्जुन की प्रशंसा कर रहा है। आचार्यों सदा दयालु होता है, हमेशा खतरे से डरते है। उन्हें राजभवन और यज्ञ के सभा में शोभा देता है, बैठक में अच्छे बातें बोल सकते हैं, वे अगले दोष की तलाश करने में और मनुष्य के चरित्र के बिषय में और भोजन का दोष-गुण के बारे मे कुशलता दिखाते हैं। इन विद्वानों को पीछे रखकर दुश्मन को मारने का उपाय तय किजिए।
कर्ण ने कहा, "बेराट या अर्जुन जो भी आए,, में उसको अपना तीर से तबाह कर दुंगा।" परशुरम से जो पाया उसस और अपनी शक्ति में मैं इंद्र के साथ भी लड़ सकता हूं। आज मैं अर्जुन को रथ से जमीन पर फेंक कर दुर्योधन को खुश कर दुंगा।
कृप ने कहा, "कर्ण तुम क्रूर हो, तुम हमेशा लड़ना चाहते हो, यह सोचते नहीं कि परिणाम क्या होगा।" शास्त्रों में कई प्रकार के सिद्धांतों का उल्लेख किया गया है, युद्ध प्राचीन विद्वानों के बिचार से सबसे अधिक पाप है। हमें अब अर्जुन से नहीं लड़ना चाहिए। कर्ण, अर्जुन ने जो कुछ काम किया, उसकी तुलना में तुमने क्या किया? हमने धोखें से उसे तेरह साल बनबास में रखा, क्या वह शेर अब मुक्त होकर हमें खत्म नहीं करेगा? हम सभी एक साथ अर्जुन से लड़ने के लिए तैयार हैं, लेकिन तुम अकेले हिम्मत नहीं करना।
अश्वत्थामा ने कहा, "कर्ण, हमने गायों को छिनकर अभी तक मत्स्यदेश की सीमा पार नहीं किया है, और हस्तिनापुर भी नहीं गए।" दुर्योधन ने आपके सलाह से पांडवों की संपत्ति छीन लिया है, लेकिन क्या आपने कभी उनमें से एक को भी युद्ध में जीता है? किस युद्ध में आपने द्रौपदी को जीता था, जिसको आपके सलाह से पाशा खेल की सभा में एकबस्त्रा रजस्वला की हालत में लाया गया था? जब मानव और कीटों आदि सभी जानवरों ने जितना हो सके क्षमा करते है, लेकिन द्रौपदी को दी गई परेशानियों को पांडवों ने कभी माफ नहीं करेंगे। धार्मिक लोग कहते हैं कि एक शिष्य बेटे से कम नहीं है, यही कारण है कि अर्जुन मेरे पिता द्रोण के पसंदीदा हैं। आपके सलाह से दुर्योधन पाशा का खेल कराया था, द्रौपदी को सभा में लाया गिया था, इंद्रप्र्स्थ राज्य छिना गया था, अब आप ही अर्जुन से युद्ध किजिए। दुर्योधन, आपका मामा दुष्ट पाशा खिलाड़ी शकुनी भी युद्ध करे। लेकिन इए भुलना नहीं, अर्जुन के गांधीब पाशा के गुंटी नहीं छोड़ते हैं, तेज तीर बरषता है, और वे तीर आसानी से नहीं रुकते हैं। अगर आचार्य द्रोण चाहता है, तो लड़ें, लेकिन मैं अर्जुन से नहीं लड़ूंगा। अगर मत्स्यराज यहां आते, तो मैं उसके साथ लड़ते।
भीष्म ने अश्वथामा से कहा, "कर्ण ने जो कहा है वह आपको युद्ध में उत्साहित करने के लिए।" तुम माफ कर दो, इस समय अपनो के बीच अंतर होना अच्छा नहीं है, हमें इकाट्टा होकर लड़ना होगा। अश्वत्थामा ने कहा, "गुरुदेव द्रोणाचार्य ने किसिका उपर गुस्से में अर्जुन की प्रशंसा नहीं की, क्योंकि दुश्मन को गुण भी बोलना चाहिए, गुरु का गलती भी कहा बोलना चाहिए, बेटे और शिष्य को शुभदायक सलाह दी जानी चाहिए।"
दुर्योधन ने द्रोणाचार्य से माफी मांगी। कर्ण, भीष्म और कृप के अनुरोध पर, द्रोण प्रसन्न होकर कहा, "अगर अज्ञातबास समाप्त नहीं होता, तो अर्जुन हमसे दिखाइ नहीं देता।" आज वह गायों को वापस लेकर बिना नहीं रुकेंगे। आप ऐसा सलाह दिजिए ताकि दुर्योधन का बदनाम न हो या वह पराजित न हो।
भीष्म ने गणना करके कहा कि तेरह साल पूरे हो चुके हैं और अर्जुन को निश्चित रूप से पता चला है। पांडव धार्मिक हैं, वे लालची नहीं हैं, वे राज्य को गलत तरीके से प्राप्त करना नहीं चाहते हैं। दुर्योधन, युद्ध में जीत या हार या एक पक्ष का जीवन या मृत्यु अवश्य होता है। अर्जुन आ गया है, अब जल्दी फैसला करो क्या धार्मिक कार्य करोगे या लड़ोगे ।
दुर्योधन ने कहा, "पितामह, मैं पांडवों के राज्य वापस नहीं करूंगा, इसलिए युद्ध के लिए तैयार हो जाइए।" भीष्म ने कहा, "यदि ऐसा है, तो जो मुझे लगता अच्छा है वह कह रहा हूं – तुम सैनिकों में से एक-चौथा के साथ हास्टिनापुर वापस चले जाओ, और एक-चौथा गायों को लेकर चली जाय।" हम बाकि सैनिकों के साथ अर्जुन से लड़ेंगे। भीश्म के कहने पर, दुर्योधन ने हस्तिनापुर की और एक-चौथा सैनिकों के और दुसरा एक समूह गायों के साथ रवाना हुए। तब द्रोण, अश्वथामा, कृप, कर्ण और भीष्म बाकी सैनिकों के साथ इंतजार करते रहे।
थोड़ी देर के बाद, अर्जुन ने आकर देखा कि द्रोण, भीष्म, कर्ण आदि है, लेकिन दुर्योधन नहीं है। उन्होंने उत्तर से कहा, "यह सेनाको अब यहां रहने दो, पहले मैं दुर्योधन के साथ लड़ूंगा।" हम दुर्योधन की जीतकर गायों को वापस लेकर फिर से यहां आएंगे। अर्जुन को दूसरी तरफ जाते हुए देखकर, द्रोण ने कहा, "वह दुर्योधन के अलावा किसी और को नहीं चाहता है, चलो उसका पिछे जाकर उसे पकड़ुंगा।"
उस समय, अर्जुन ने तीरो से कौरव सेना को मूर्छित कर दिया। उनके गांडीव धनुष, शंख और रथ की आवाज़ में और झंडे में बैठे भूतों की गर्जना में चार और कांपने लगी। अपहरण किया गया गाय समूह उस शब्द से डरते हुए मत्स्यदेश के दक्षिण की ओर लौटने लगा। जब गायों को वापस लेकर अर्जुन दुर्योधन के और जा रहे थे तो उन्होंने कौरव पक्ष के अन्य वीरों को देखाकर उत्तर को कहा, "रथ लेकर कर्ण के पास चलो।"
दुर्योधन के भाई बिकर्ण और कुछ अन्य सेनानी कर्ण की रक्षा के लिए आए, लेकिन अर्जुन का तीर से जखमी होकर भाग गया। अर्जुन के तीर में कर्ण के भाई की मृत्यु हो गई, कर्ण भी अर्जुन के तीर में जखमी होकर भाग गए।
अर्जुन के आदेशों पर उत्तर रथ को कृपाचार्य के पास ले गए। थोड़ी देर लड़ने के बाद, कृपाचार्य के रथ का चार घोड़े अर्जुन के तीर में घायेल होने से कृप ने गीर गए। उनका महिमा की रक्षा करने के लिए अर्जुन ने उनको और चोट नहीं पहुंचाई, लेकिन कृप ने उठकर फिर से अर्जुन को दस तीरों से बिंधा तो अर्जुन ने कृप के कवच, धनुष और रथ को नष्ट कर देने से अन्य सेनानी कृप को साथ लेकर द्रुत चले गए।
अर्जुन ने द्रोणाचार्य का सामना करके अभिवादन किया और कहा, "हम बनबास के अंत में दुश्मन से बदला लेने के लिए आए हैं, आप हमसे गुस्सा नहीं हो सकते।" मैं केवल तभी प्रहार करुंगा जब आप मुझे पहले प्रहार करेंगे। द्रोण ने अर्जुन को और कई तीर फेंके। फिर दोनों के बीच में भयंकर युद्ध होने लगे, द्रोण अर्जुन के तीर से मूर्छित हो गए। तब अश्वथामा रुकने के लिए आया। उन्होंने अपने दिल में अर्जुन की प्रशंसा की, लेकिन गुस्से में भी थे। अर्जुन अश्वथामा की ओर आगे बढ़े और द्रोण को जाने का रास्ता दिया तो द्रोण जल्दी से चले गए।
कुछ समय तक अर्जुन के साथ युद्ध के बाद अश्वत्थामा का तीर समाप्त हो गया, तब अर्जुन कर्ण की प्रति धाबित हुया। एक लंबे युद्ध के बाद, अर्जुन के तीर कर्ण की छाती में घुया, वह काफि दर्दनाक था तो उत्तर के और भाग गया।
उसके बाद अर्जुन ने उत्तर को कहा, "तुम उस स्वर्णरथ के पास रथ लेकर चलो, उंहा पितामह भीष्म मेरा इंतजार कर रही है।" उतर ने कहा, "मैं हैरान हूं, आपके तीर चलाना देखकर मुझे लगता है कि दस दिशाओं घुम रहा है, डर से मेरा रथ को चलाने की शक्ति नहीं है।" अर्जुन ने कहा, "डरो मत, धीरज रखो, तुम भी इस युद्ध में बहुत अच्छा रथ चलाया।" शांत होकर रथ को चलाओ, मुझे भीष्म के पास लेकर चलो, आज मैं तुमको अपने असाधारण हथियार का शिक्षा दिखाऊंगा। उत्तर आश्वस्त होकर रथ को भीष्म के पास ले गया।
भीष्म और अर्जुन एक -दूसरे की और भयानक तीर फेंकना शुरू कर दिया। अंत में, जब भीष्म अर्जुन के तीर से लगभग बेहोश हो गया तो उनका सारथी उनको युद्ध के मैदान से हटा कर ले गया। उसके बाद दुर्योधन आकर अर्जुन पर हमला किया। एक लंबे युद्ध के बाद दुर्योधन रक्त उल्टि करते करते भाग गया। अर्जुन ने उससे कहा, तुम क्यों भाग रहे हो? तुम्हारा दुर्योधन नाम आज गलत प्रमाण हुया, तुम युद्ध के मैदान छोड़ कर भाग रहे हैं।
दुर्योधन अर्जुन का बातें सुनकर लौट आया। भीष्म, द्रोण, कृप, आदि भी उसकी रक्षा करने के लिए आए और अर्जुन के चारों ओर से घेर कर तीरों का बारिश करने लगी। तब अर्जुन इंद्र का दिया हुया सम्मोहन हथियार प्रयोग किया तो कौरव पक्षका सभी ने बेहोश हो गईं। तब उत्तरा के अनुरोध को याद करते हुए, अर्जुन ने कहा, "उत्तर, तुम रथ से उतार कर, द्रोण और कृप का सफेद कपड़े, कर्ण का पिला कपड़े और अश्वथामा और दुर्योधना का नीले कपड़े खोलके लाओ।" भीष्म ने सायद बेहोश नहिं हुया क्योंकि वह मेरे हथियारों को रोकने का तरीका जानता है, तुम उसकी बाईं ओर से जाओ द्रोण आदि का कपड़े लाकर उत्तर फिर से रथ पर उठा और अर्जुन को लेकर युद्ध के मैदान से बाहर चले गए।
अर्जुन को जाते हुए देखा तो भीष्म ने एक तीर फेंककर उसे मारने से अर्जुन ने भीष्म के रथ का घोड़ों को मार डाला और उनका शरीर के पास में दसठो तीरों से मारा। दुर्योधन ने होश में आकर कहा, "पितामह, हथियार से अर्जुन को मारिए ताकि वह जा नहीं सके।" भीष्म ने हँसते हुए कहा, "आपकी बुद्धिमत्ता और विक्रम इतने लंबे समय तक कहाँ थे?" जब तुम धनुष छोड़कर अचेतन हो गिया था, तो अर्जुन ने तुम्हारा साथ कोई क्रूरता नहीं की, उसने कभी भी अपना धर्म नहीं छोड़ा, इसलिए तुम सभी ने इस युद्ध में नहीं मारा गया। अब तुम अपने देश में वापस जाओ, अर्जुन भी गायों के साथ लौट जाय। दुर्योधन ने एक लंबी सांस के साथ युद्ध की इच्छा को छोड़ कर चुप हो गए और अन्य सभी भीष्म के बातों पर सहमत हुए और दुर्योधन को साथ लेकर वापस जाना चाहा।
कौरवों को वापस जाते हुए देखकर अर्जुन खुश हुया और बुजुर्गों को सम्मान प्रदर्शन किया। उन्होंने पितामह भीष्म और द्रोणाचार्य को प्रणाम किया और अश्वथामा, कृप और माननीय कौरवों को विभिन्न प्रकार के तीरों के साथ अभिबादन किया और एक तीर फेंक कर दुर्योधन के रत्न मुकुट को काट दिया। उसके बाद, अर्जुन ने उत्तर को कहा, "रथ को घुमा लो, तुम्हारा गाय बरामद हो गई है। अब खुशी के साथ राजधानी में लौट चलो।"
वे सभी कौरवसेना जो भाग गए और जंगल में छिप गए थे, उन्होंने कांपते हुए अर्जुन को प्रणाम किया और कहा, "अब हम क्या करेंगे?" अर्जुन ने उन्हें आश्वासन देकर कहा, "आपलोगोको कल्याण हो, तुम निडर होकर लौट जाओ।" वे अर्जुन के लम्बे जीवन, महिमा और यश मिलने का आशीर्वाद देकर चले गए।
अर्जुन ने उत्तर को कहा, "अब तुम राजधानी में लौटकर तुम्हारा पिता से हमारा परिचय नहीं देना, उसमे वह डर जाएंगे।" आपने खुद युद्ध में कौरवों को हराया है और कहा है कि गायों को बरामद किया गया है। जवाब में कहा गया, "कोई भी ऐसा नहीं कर सकता जो आपने किया है, मेरे पास कोई शक्ति नहीं है।" हालांकि, यदि आप आदेश नहीं देते हैं, तो मैं पिता को असली बात नहीं बताऊंगा।
अर्जुन ने जख्मी हालत मे श्मशान के नजदिक शमीबृक्श के पास आया। अर्जुन का कहने से, उत्तर पांडवों का अस्त्रादि शमीबृक्श में रखकर रथ चला दिया। नगर के रास्ते में आकर अर्जुन ने कहा, "गोपालक आपकी सभी गायों को वापस ले जा रहे हैं।" हम घोड़ों को नहाके और पानि पिलाके और थोड़ा आराम करने के बाद दोपहर में विराटनगर जाएंगे। आप कुछ गोपों को बता दो कि वे जल्द ही नगर जाएंगे और तुम्हारा जीत की घोषणा करेंगे। अर्जुन ने फिर से बृहन्नला के भेस धारण किया और उत्तर के सारथी बनकर दोपहर में विराटनगर की यात्रा की।
इस बीच, विराट राजा त्रिगर्त देशके राजा को पराजित करके चार पांडवों के साथ राजधानी लौट आए। उन्होंने सुना कि कौरवो ने राज्य के उत्तर में आकर गायों को छिनकर ले गया और राजकुमार उत्तर बृहन्नला को साथ लेकर भीष्म, द्रोण, कृप, कर्ण, दुर्योधन और अश्वत्थामा से लड़ने के लिए गए। विराट बहुत चिंतित होकर अपने सैनिकों से कहा, "तुम सब जल्द ही जाकर देखो कि उत्तर जीवित है या नहीं।" मुझे लगता है नपुंसक जिसका सारथी उसका जीवित रहना असंभव है। युधिष्ठिर ने कहा, "महाराज, अगर बृहन्नला जब सारथी है तो दुश्मन आपकी गायों को नहीं ले पाएंगे, उसका मदद से आपके पुत्र कौरवों यहां तक कि देवताओं को भी जीत लेंगे।"
उस समय, उत्तर का दूत आकर विजय का खबर देने से विराट ने मंत्रियों को बड़े आनंद के साथ आदेश दिया राजमार्ग को झंडे से सजाने के लिए, देवताओं की पूजा करने और राजकुमारों, योद्धाओं और सालंकारा गणिकाओं वादन के साथ मेरा बेटे का स्वागत करें और हाथीके उपर बैठके घंटियाँ बजाकर मेरे विजय घोषित करें। उसके बाद, विराट ने कहा, सैरिंध्री, पाशा लाओ, मैं और कंक पाशा खेलूंगा। युधिष्ठिर ने कहा, "महाराज, मैंने सुना की खुशी में पाशा का खेल उचित नहीं है।" पाशा खेलने में बहुत दोष है, इसे बर्जन करना बेहतर है। आप युधिष्ठिर के बारे में सुने होंगे, उन्होंने अपने विशाल राज्य और देवता जैसा भाइयों को पाशा के खेल में खो दिया था। लेकिन आप अगर खेलना चाहते हैं, तो मैं खेलूंगा।
पाशा खेलते हुए हुए विराट ने कहा, "देखो, मेरे बेटे ने कौरबवीरों पर भी विजय प्राप्त की है।" युधिष्ठिर ने कहा, "बृहन्नला जिसका सारथी वह जीत जाएगा।" बहुत गुस्से में विराट ने कहा, "निचले ब्राह्मण, तुम मेरे बेटे के बराबर एक नपुंसक की प्रशंसा कर रहे हो, आप नहीं जानते कि किसको क्या कहना चाहिए, तुम मेरा अपमान कर रहे हो।" नपुंसक भीष्म, द्रोण आदि को कैसे जीत सकता है? तुम मेरा सखा हो इसलिए तुम्हारा अपराध माफ कर दिया, अगर तुम जीना चाहते तो फिर ऐसा नहीं कहना। युधिष्ठिर ने फिर से कहा, "महाराज, भीष्म, द्रोण, कर्ण आदि जैसे महारथों से बृहन्नला बिना और कौन लड़ सकता है? इंद्र आदि देवताओं भी नहीं जित सकते। विराट ने कहा," तुमको कई बार मना करने का बाद भी तुम एक ही बात बोल रहे हो, शासन न करने से कोइ धर्म के मार्ग पर नहीं चलते। इए कहकर विराट ने युधिष्ठिर का मुह में पाशा से मारा। युधिष्ठिर के नाक से खुन निकलने लगे तो उन्होने अपना हाथों में लेकर द्रौपदी के और देखा। द्रौपदी तुरंत एक पानी का बर्तन लाया और युधिष्ठिर के खून उसमे पकड़ लिया। उस समय द्वारपाल आकर बताय की राजकुमार उत्तर आया, वह बृहन्नला के साथ द्वार पर प्रतीक्षा कर रहे है। विराट ने कहा, जल्द ही उन्हे ले आओ।
अर्जुन का वादा यह था कि यदि कोई व्यक्ति युद्ध बिना अन्य कारणों से युधिष्ठिर का खून बाहता है तो वह जीवित नहीं रहेगा। इस वादे को याद करते हुए, युधिष्ठिर ने द्वारपाल से कहा, "केवल उत्तर को लाओ, बृहन्नला को नहीं।" उत्तर आकर अपने पिता को प्रणाम किया और देखा कि धर्मराज युधिष्ठिर जमीन पर बैठे है और उनकी नाक से खून बह रहा था, द्रौपदी उनके पास थे। उत्तर व्यस्त होकर पूछा, "महाराज, यह पाप किसने किया?" विराट ने कहा कि मैंने इस कुटिल को मारा, इसने अधिक सजा के योग्य, तुम्हारा प्रशंसा करने से इसने एक नपुंसक की प्रशंसा कर रहे थे। उत्तर ने कहा, "महाराज, आपने गलत काम किया है, कृपया इसे प्रसन्न किजिए, इन्होने ब्रह्मशाप में आपका बंश को नष्ट न कर दे।" बेटे का कहने से, विराट युधिष्ठिर से माफी मांगी। युधिष्ठिर ने कहा, "राजा, मैंने पहले ही माफ कर दिया है, मुझे कोई गुस्सा नहीं है। यदि मेरा खून जमीन पर गीरता, तो आप राज्य के साथ नष्ट हो जाते।
जब युधिष्ठिर का रक्तस्राव बंद हो गया, तो अर्जुन आया और पहले राजा को उसके बाद युधिष्ठिर को अभिवादन किया। बृहन्नला की भेस में अर्जुन को सुनाकर विराट ने अपने बेटे से कहा, "बत्स्य, तुम्हारा जैसा बेटा मेरा नहीं हुया और न ही होगा।" महाबीर कर्ण, यमराज जैसे भयानक भीष्म, क्षत्रियों के अस्त्रगुरु द्रोणाचार्य उनके बेटे अश्वथामा, कृपाचार्य, महाबल दुर्योधन - तुम उन सभी के साथ कैसे युद्ध किया? तुमने उस महाबीरों को हराया और गायों को बचाया, जैसे कि तुमने शेर के मुह से मांस छिन लिया हो।
उत्तर ने कहा, "मैंने गायोंको नहीं बचाया, न ही मैंने दुशमनों को जिता।" मै डर से भाग रहा था, एक देवकुमार ने मुझे आश्वासन दिया। वह रथ में उठे और भीष्मादी छह रथीओं को हराया और सभी गायों को बरामद किया। एक शेर की तरह उस युवक ने कौरवों को उपहास किया और उनलोगोका बस्त्र छीन लिया। विराट ने कहा, वह महाबीर देवकुमार कहाँ है? उत्तर ने कहा, "पिता, वह चला गया है, लगता है कि वह कल या परशु दिखाई देगा।"
बृहन्नला के भेस में अर्जुन विराट की अनुमति के साथ उनका बेटी उत्तरा को कौरवों का किमती विचित्र बस्त्रे दिया। उसके बाद उन्होंने उत्तर के साथ सलाह करके युधिष्ठिरादि आत्मप्रकाश की उद्योग किया।
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(धीरे-धीरे)