बहुत समय पहले, एक छोटे से गाँव में एक साधारण बालक रहता था जिसका नाम ध्रुव था। वह अन्य बच्चों की तरह ही था—खुशमिजाज, निडर और जीवन की चिंताओं से मुक्त। उसका जीवन खेतों में खेलते हुए और अपने दोस्तों के साथ समय बिताने में बीतता था। लेकिन उसके जीवन में एक ऐसा मोड़ आया जिसने उसकी पूरी दिशा ही बदल दी।
एक दिन, गाँव के राजा की अचानक मृत्यु हो गई। राजा के कोई संतान न होने के कारण राज्य को अगला उत्तराधिकारी चुनना था। यह निर्णय आसान नहीं था, इसलिए राज्य के महामंत्री ने सोचा कि राजा का उत्तराधिकारी ऐसा व्यक्ति होना चाहिए जो न केवल बलशाली हो, बल्कि ज्ञान और धैर्य में भी श्रेष्ठ हो।
उन्होंने राजा गौतम बुद्ध से परामर्श करने का निश्चय किया।गौतम बुद्ध ने एक विशेष परीक्षा की योजना बनाई, जिसमें कई युवा बालकों को भाग लेने का अवसर दिया गया। उन्होंने कहा कि केवल वही बालक जो पाँच कठिन परीक्षाओं को पार करेगा, वही राज्य का सही उत्तराधिकारी होगा।
गाँव के कई लोग इन परीक्षाओं में भाग लेने आए, लेकिन ध्रुव ने भी अपनी किस्मत आज़माने का फैसला किया।
पहली परीक्षा: मोह-माया का त्याग
पहली परीक्षा यह थी कि सभी बालकों को गाँव के सबसे बड़े महल में ले जाया गया, जहाँ चारों ओर सुख-सुविधाओं की भरमार थी। वहाँ खाने-पीने के सामान, सोने के आभूषण, और अन्य सभी प्रकार की भौतिक संपत्तियाँ रखी गई थीं।
बुद्ध ने आदेश दिया कि जो बालक इस महल में तीन दिन बिता सके बिना इन सुखों के आकर्षण में फंसे, वही परीक्षा पास करेगा।ध्रुव ने महल में प्रवेश किया और उसे भी इन सभी वस्तुओं का आकर्षण महसूस हुआ। लेकिन उसने सोचा, "ये सभी चीजें केवल कुछ समय के लिए हैं। असली खुशी इनसे नहीं मिलती।" उसने अपने मन को शांत किया और तीन दिनों तक किसी भी वस्तु की ओर ध्यान नहीं दिया। अंततः वह पहली परीक्षा में सफल रहा।
दूसरी परीक्षा: भय का सामना
दूसरी परीक्षा और भी कठिन थी। ध्रुव और अन्य बालकों को एक अंधेरी गुफा में भेजा गया, जहाँ चारों ओर अजीब-अजीब ध्वनियाँ और भयावह दृश्य थे। गौतम बुद्ध ने कहा कि जो बालक इस गुफा में एक रात बिना डर के बिता सकेगा, वही विजय प्राप्त करेगा।ध्रुव का दिल पहले तो डर से कांप उठा, लेकिन फिर उसने सोचा, "डर केवल एक भ्रम है। यदि मैं इससे भागा, तो यह हमेशा मेरे साथ रहेगा।" उसने अपनी आँखें बंद कीं और ध्यान लगाने लगा। धीरे-धीरे उसका डर समाप्त हो गया, और उसने पूरी रात बिना किसी भय के गुफा में बिताई।
तीसरी परीक्षा: लालच से ऊपर उठना
तीसरी परीक्षा में ध्रुव को राजकोष का मुख्य खजाना दिखाया गया। वहाँ सोने के सिक्कों का अम्बार था, और बुद्ध ने कहा, "जो इस खजाने को देख कर भी उसे अपना न माने, वही इस परीक्षा में सफल होगा।"ध्रुव के मन में एक पल के लिए विचार आया कि यदि उसके पास यह खजाना हो, तो वह क्या-क्या कर सकता है। लेकिन फिर उसने सोचा, "खजाना केवल मनुष्य को लोभ में डालता है। असली संपत्ति आत्म-संतुष्टि और ज्ञान में है।" उसने खजाने की ओर मुड़कर देखा तक नहीं और परीक्षा में उत्तीर्ण हो गया।
चौथी परीक्षा: अहंकार पर नियंत्रण
चौथी परीक्षा सबसे जटिल थी। ध्रुव को बहुत प्रशंसा और सम्मान दिया गया। उसे कई लोगों ने राजा के रूप में स्वीकार करने का संकेत दिया। लेकिन बुद्ध ने कहा, "जो व्यक्ति इस स्थिति में भी अहंकार से मुक्त रहेगा, वही सच्चा शासक बनेगा।"ध्रुव ने ध्यान दिया कि जैसे ही उसे दूसरों से प्रशंसा मिली, उसके मन में थोड़ा-सा गर्व उत्पन्न हो गया। लेकिन उसने तुरंत इसे पहचान लिया और अपने मन को साधा। "अहंकार केवल विनाश का रास्ता दिखाता है," उसने सोचा। ध्रुव ने खुद को उस अहंकार से मुक्त कर लिया और चौथी परीक्षा भी पास कर ली।
पाँचवीं परीक्षा: क्षमा का भाव
आखिरी परीक्षा में ध्रुव को उस व्यक्ति का सामना करना पड़ा जिसने उसके परिवार को पहले नुकसान पहुँचाया था। बुद्ध ने कहा, "जो व्यक्ति क्षमा कर सके, वही महान राजा बनेगा।"ध्रुव के मन में पहले क्रोध आया, लेकिन फिर उसने ध्यान किया कि क्रोध केवल उसे ही नुकसान पहुँचाएगा। उसने अपने मन को शांत किया और उस व्यक्ति को क्षमा कर दिया। इस परीक्षा में उसकी सफलता ने उसे एक सच्चे राजा की तरह परिपक्व बना दिया।गौतम बुद्ध ने ध्रुव को इन पाँच कठिन परीक्षाओं में सफल होने पर राज्य का उत्तराधिकारी घोषित किया।
उन्होंने कहा, "ध्रुव ने न केवल इन परीक्षाओं को पास किया है, बल्कि उसने जीवन के सबसे महत्वपूर्ण सबक सीखे हैं—मोह-माया का त्याग, भय का सामना, लोभ से ऊपर उठना, अहंकार पर नियंत्रण और क्षमा का भाव। यही एक सच्चे शासक के गुण होते हैं।"ध्रुव ने राजा बनने के बाद अपने राज्य को न्याय, धैर्य और करुणा के साथ चलाया। उसकी महानता केवल उसकी शक्ति में नहीं, बल्कि उसकी विनम्रता और ज्ञान में थी।
इस कथा से हमें यह सिखने को मिलता है कि जीवन में चाहे कितनी भी कठिन परीक्षाएँ क्यों न आएँ, यदि हम मोह, भय, लोभ, अहंकार और क्रोध से मुक्त होकर जीना सीख लें, तो हम भी अपने जीवन के सच्चे शासक बन सकते हैं। यही वह मार्ग है जो गौतम बुद्ध ने दिखाया, और यही मार्ग हमें सच्ची सफलता की ओर ले जाता है।