The journey of the mind, intellect, conscience and ego in Hindi Spiritual Stories by Manish Master books and stories PDF | मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार की यात्रा

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मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार की यात्रा

बहुत समय पहले की बात है, एक शांत जंगल के मध्य एक छोटा सा गाँव बसा था। इस गाँव के पास ही एक गुफा थी, जहाँ एक वृद्ध संत ध्यान में लीन रहते थे। संत का नाम रुद्र था। लोग उनके पास अपनी समस्याएँ लेकर आते और संत उन्हें सरल मार्ग दिखाते। संत का मानना था कि जीवन की सारी उलझनों का कारण चार शक्तियों का खेल है—मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार। उन्होंने कहा था, "इन चारों को समझ लो, जीवन का सत्य तुम्हारे सामने आ जाएगा।"

एक दिन, गाँव का एक युवा, जिसका नाम अर्जुन था, संत के पास आया। अर्जुन बहुत ही असमंजस में था। उसने संत से कहा, "गुरुदेव, मेरा जीवन एक बड़ी उलझन बन गया है। मैं कभी किसी काम को करने की ठानता हूँ, परंतु मन बीच में आकर मुझे भटकाता है। कभी बुद्धि मुझे सही-गलत का ज्ञान देती है, लेकिन अहंकार उसे दबा देता है। और जब मैं ध्यान करता हूँ, तो मेरा चित्त अस्थिर हो जाता है। कृपया मुझे इन चारों के बारे में समझाएँ।"

संत मुस्कराए और बोले, "अर्जुन, यह समस्या केवल तुम्हारी नहीं है। हर व्यक्ति इसी उलझन में फंसा हुआ है। आओ, मैं तुम्हें एक कहानी सुनाता हूँ जो तुम्हारे प्रश्नों का उत्तर देगी।"

संत ने अपनी आँखें बंद कर कहानी शुरू की।

बहुत पहले, एक राजकुमार जिसका नाम सिद्धार्थ था, अपने राज्य के सबसे योग्य योद्धाओं में से एक था। उसके पास अपार धन, शक्ति और सम्मान था, लेकिन फिर भी उसके मन में एक गहरी बेचैनी थी। वह हमेशा सोचता रहता, "मुझे ये सब क्यों मिला है? क्या जीवन का यही उद्देश्य है?" इस बेचैनी के कारण, उसने राज्य छोड़कर एक यात्रा पर जाने का निर्णय लिया, ताकि वह अपने जीवन के सही अर्थ को समझ सके।

सिद्धार्थ की यात्रा में उसे चार अदृश्य शक्तियाँ मिलीं—मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार। ये शक्तियाँ उसके साथ उसकी यात्रा में जुड़ गईं। पहले मन ने उसे अपनी ओर खींचा। मन ने कहा, "सिद्धार्थ, देखो यह सुंदर जंगल, यह बहती नदी। तुम्हें यहाँ विश्राम करना चाहिए। यह यात्रा कठिन है, इससे अच्छा है कि तुम यहीं ठहर जाओ।"

सिद्धार्थ कुछ देर के लिए मन की बात मानकर रुका। लेकिन उसे लगा कि मन उसे भटका रहा है। वह समझ गया कि मन का स्वभाव उसे हमेशा नई-नई इच्छाओं की ओर खींचना है। उसने मन से कहा, "तुम मेरी यात्रा का हिस्सा हो, पर मैं तुम्हारे कहे पर नहीं चलूँगा।" और वह आगे बढ़ गया।

फिर उसकी मुलाकात बुद्धि से हुई। बुद्धि ने कहा, "तुम्हारा मन कमजोर है, लेकिन मैं तुम्हें सही निर्णय लेने की शक्ति दूँगा। इस यात्रा का सही मार्ग केवल मैं ही जानता हूँ।" बुद्धि ने सिद्धार्थ को समझाने की कोशिश की कि उसे कहां जाना चाहिए, कैसे चलना चाहिए, और किस रास्ते से उसे अपनी मंजिल तक पहुंचना चाहिए।

सिद्धार्थ ने बुद्धि की बात सुनी और उसके निर्देशों का पालन किया। लेकिन कुछ समय बाद उसे महसूस हुआ कि केवल बुद्धि पर निर्भर रहने से वह अत्यधिक सोच-विचार में फंस रहा है। बुद्धि हर बात को तर्क की कसौटी पर रखकर चल रही थी, जिससे उसके निर्णय और भी जटिल हो रहे थे। उसने बुद्धि से कहा, "तुम मेरी मदद करोगे, लेकिन मैं केवल तुम्हारे आधार पर जीवन नहीं जी सकता।"

आगे की यात्रा में चित्त ने सिद्धार्थ को अपनी ओर खींचा। चित्त, जो भावनाओं और स्मृतियों का केंद्र था, ने उसकी पुरानी यादों और भावनाओं को जाग्रत किया। चित्त ने उसे कहा, "तुम्हारे भीतर बहुत सी इच्छाएँ और भावनाएँ दबी हुई हैं। उन्हें समझे बिना तुम अपनी यात्रा पूरी नहीं कर सकते।" चित्त ने उसकी पुरानी सुख-दुख की यादें ताजा कर दीं, जिससे सिद्धार्थ की मानसिक स्थिति और जटिल हो गई।

सिद्धार्थ ने महसूस किया कि चित्त भी उसे भ्रमित कर रहा है। वह समझ गया कि चित्त की अस्थिरता उसे ध्यान से भटकाती है। उसने चित्त से कहा, "तुम मेरे भीतर हो, लेकिन तुम्हें स्थिरता की आवश्यकता है। मैं तुम्हारे बहकावे में नहीं आऊँगा।"

आखिरकार, उसकी यात्रा में अहंकार आया। अहंकार ने उसे कहा, "तुम इस यात्रा के लायक हो। तुम्हें इस संसार में सबसे श्रेष्ठ बनना चाहिए। तुम्हारी महानता के लिए ही यह सब हो रहा है।" अहंकार ने सिद्धार्थ के भीतर एक अलग प्रकार की शक्ति जाग्रत की, जिसे सिद्धार्थ ने पहले कभी महसूस नहीं किया था। उसने उसे स्वयं को महान मानने की प्रेरणा दी, लेकिन उसी समय उसे यह भी समझ में आया कि यह भावना उसे वास्तविकता से दूर कर रही है।

सिद्धार्थ ने गहरी साँस ली और अहंकार से कहा, "तुम मेरे जीवन का हिस्सा हो, लेकिन मैं तुम्हें अपने ऊपर हावी नहीं होने दूँगा।"

संत रुद्र ने आँखें खोलीं और अर्जुन की ओर देखा। "अर्जुन, मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार सभी तुम्हारे जीवन के हिस्से हैं। वे तुम्हारी यात्रा के साथी हैं, लेकिन जब तक तुम उनके ऊपर नियंत्रण नहीं पाओगे, वे तुम्हें भटकाते रहेंगे।"

अर्जुन ने पूछा, "तो क्या मुझे इन चारों से लड़ना होगा?"

संत ने मुस्कुराते हुए कहा, "नहीं, लड़ाई की आवश्यकता नहीं है। इन चारों को समझना और उनके साथ सामंजस्य बनाना ही सही मार्ग है। मन तुम्हें इच्छाओं में बांधेगा, बुद्धि तर्कों में उलझाएगी, चित्त भावनाओं से विचलित करेगा, और अहंकार तुम्हें गर्व में डूबोएगा। लेकिन अगर तुम इन सभी के ऊपर ध्यान की शक्ति से नियंत्रण कर पाओ, तो तुम अपनी सच्ची यात्रा को पूरा कर पाओगे।"

अर्जुन को संत की बातें समझ में आ गईं। उसने मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार के महत्व को स्वीकार किया और ध्यान की शक्ति से उन्हें संतुलित करने का संकल्प लिया। उसने अपनी यात्रा शुरू की, अब पहले से अधिक जागरूक और संतुलित होकर।

यही चारों शक्तियाँ जीवन का सार थीं—मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार। इनसे भागना नहीं, बल्कि इन्हें स्वीकार करना और सही दिशा में उनका उपयोग करना ही जीवन का सबसे बड़ा रहस्य था।