Today Holi is full of joy and fun in Hindi Spiritual Stories by Dr Yogendra Kumar Pandey books and stories PDF | आज होली में बिखरे हैं उल्लास और मस्ती के चटख रंग

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आज होली में बिखरे हैं उल्लास और मस्ती के चटख रंग

            आज होली है। होली का त्यौहार वसंत ऋतु के आनंद और उमंग की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्ति है। एक और जहां प्रकृति में मस्ती और उल्लास के दर्शन होते हैं वहीं तन- मन भी इस होलियाना रंग में पूरी तरह से डूब जाता है। होली का धार्मिक महत्व होने के साथ-साथ यह प्रकृति के अद्भुत सौंदर्य और इसके विभिन्न उपादानों में होने वाले मोहक परिवर्तनों का द्योतक भी है। जब होली पास आए तो मन स्वयं मस्ती में गुनगुनाने लगता है और तन झूम उठता है। होली का त्योहार आज का नहीं है, बल्कि हजारों वर्षों से भारत में होली मनाने की परंपरा रही है। यह वैदिक काल के नवान्नेष्टि यज्ञ से जुड़ा है। खेत के पके - अधपके अन्न को होलक या होला भी कहा जाता है। इस अन्न को यज्ञ में हवन कर प्रसाद के रूप में बांटना होलिकोत्सव का प्रारंभिक रूप माना जाता है। श्रीमद् भागवत ग्रंथ में रसों के समूह रास का उल्लेख किया गया है।

           श्री कृष्ण की होली तो प्रसिद्ध है ही। उनकी होली राधा जी समेत गोपियों को और प्रजाजन को अपने प्रेम रंग में सराबोर कर देती है। सूरदास जी ने लिखा है: - 

हरि संग खेलति है सब फाग। 

इहिं मिस करति प्रगट गोपी, उर अंतर कौ अनुराग ।। 

सारी पहिरि सुरंग, कसि कंचुकि, काजर दे दे नैन। 

बनि बनि निकसि निकसि भई ठाढ़ी, सुनि माधौ के बैन ।।

 डफ, बांसुरी रुंज अरु महुअरि, बाजत ताल मृदंग। 

अति आनंद मनोहर बानी, गावत उठति तरंग ।। 

        

      भक्त कवयित्री मीराबाई की रचनाओं में श्री कृष्ण के प्रति गहरा प्रेम और आध्यात्मिक होली का संदेश है: - 

फागुन के दिन चार होली खेल मना रे।।

बिन करताल पखावज बाजे अणहद की झणकार रे।

बिन सुर राग छत्तीसूं गावै रोम रोम रणकार रे।। सील संतोख की केसर घोली प्रेम प्रीत पिचकार रे।

उड़त गुलाल लाल भयो अंबर, बरसत रंग अपार रे ।।

घटके सब पट खोल दिये हैं, लोकलाज सब डार रे।

      महाकवि कालिदास के ऋतुसंहार में तो पूरा एक सर्ग बसंतोत्सव को समर्पित है। महाकवि माघ ने पिचकारी का वर्णन किया है:- भृगानि द्रुत कनकोज्चलानि गन्धाः, कौसुम्भपृथु कुचकुम्भ सार्गवासः माद्वीक प्रियतम सान्निधानमासन्नारीणामिति जल केलि साधनानि।              

             होलिका पर्व अपने मूल रूप में वसन्तोत्सव और नई फसल का पर्व है। इस पर्व में अपनी बुआ होलिका के साथ अग्नि दहन में हरि भक्त प्रहलाद के सुरक्षित बच जाने की कथा भी जुड़ी हुई है। यह असुर राज हिरण्यकश्यप के अन्याय के विरुद्ध भगवान नरसिंह के न्याय के संघर्ष और उनकी जीत का प्रतीक भी है।ब्रज में भगवान कृष्ण और राधा जी हैं तो अवध में श्री राम और सीता जी की होली भी प्रसिद्ध है। 

    नज़ीर अकबराबादी लिखते हैं:- 

हिंद के गुलशन में जब आती है होली की बहार। 

जांफिशानी चाही कर जाती है होली की बहार ।। एक तरफ से रंग पड़ता, इक तरफ उड़ता गुलाल। 

जिन्दगी की लज्जतें लाती हैं, होली की बहार।।

         होली हंसी- खुशी, उल्लास उमंग और मस्ती का त्यौहार है।हम सब इसे शालीनता से मनाएं। होली के विविध रंग हम सबको प्रेम रंग में सराबोर कर दें।होली पर मातृ भारती परिवार के आप सभी को बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएं। यह होली सुख- समृद्धि,आरोग्य और सफलता से परिपूर्ण हो।

डॉ. योगेंद्र कुमार पांडेय