Mera Pahla Kadam - 1 in Hindi Women Focused by Beginner books and stories PDF | मेरा पहला कदम - भाग 1

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मेरा पहला कदम - भाग 1

ये कहानी हे मेरे सभी पहले कदम चलने के पहले कदम की नहीं जिंदगी के पहले कदम की हो या फिर कहानी लिखने के। ज़रा रुकिए तो सही जनाब कहानी इतनी उबाऊ नहीं है।

लोग कहते हे कि बचपन किसे याद होता है, सब लोग भूल जाते हे। लेकिन मुझे मेरे बचपन की बहुत सी झलके धुंधली धुंधली नज़र आती है। बचपन में वैसे तो में बहुत शरारती थे पर धीरे धीरे समाज क्या कहेगा, क्या सोचेगा और लोगों की आपस की बातें सुनकर मुझे दिमाग से परिपक्व बना दिया।

मेरी छवि इस प्रकार रही है ना कि लोग मुझे शुरुआत में बहुत सामान्य ओर उबाऊ समाज लेते हे। लेकिन जब मुझे जान जाते हैं कुछ दिन फिर उनका नजरिया बदल जाता है।

जब में छोटी थी तब मेरा पहला कदम जलने का तो मुझे याद नहीं है लेकिन मेरा पहला कदम जब हम ३-५ साल के होते हे तब पढ़ने जाते हे हमारे यहां उसे बालमंदिर जाना कहते है। वैसे ये बालमंदिर बोलने में मुझे पहले saram आती थी कि सब लोग एलकेजी एचकेजी थे और में बालमंदिर लेकिन फिर जब मैंने बालमंदिर शब्द का मतलब समझा मुझे गर्व होने लगा। बालमंदिर यानी बच्चों का मंदिर। वहां हमें मूलाक्षर अंक ये सब ज्यादा सीखने नहीं मिला लेकिन वो सिखाया गया जो सही मायने में सीखना चाहिए। सही गलत की पहचान, लोगों से मिल जुलकर रहना के हुनर।

में बहुत शांत हो गए थी जैसे जैसे मुझे समड़ा आती गई। बचपन में ही बड़े होने का सपना देखने लगी थी। गुड़ियों से खेलने की जगह मुझे मेरा अकेलापन अच्छा लगने लगा। क्योंकि में मेरे अकेलेपन में मेरे भविष्य के सपने देखने लगी थी। कभी कभी सोचती थी के वकील हु और मन से ही कहानी सोचकर में वकील के किरदार में चली जाती थी तो फिर कभी पुलिस बन जाती थी। में बचपन में बहुत बार सोचती थी कि ऐसा संभव हे क्या की के सब कुछ एक साथ बन सकू डॉक्टर वकील इंजीनियर कलेक्टर सब कुछ।

फिर में सरकारी स्कूल में १ कक्षा में प्रवेश लिया। मेरी एक अच्छी आदत कहो या बुरी मुझे खुद से सीखना ही अच्छा लगता था बचपन से। शिक्षक और मम्मी दोनों मुझे मूलाक्षर सीखते थे लेकिन में नहीं सिख पाती थी लेकिन एक दिन मुझे याद हे मैने खुद से अकेले बैठ के सिखा तो मुझे आ गया। उसी दिन से मुझे पता लगा कि में खुद से आसानी से सिख सकती हु। १ से ७ कक्षा तक सब कुछ अच्छा चला। मेरा कक्षा में पहला नम्बर आता था। और में खेल कूद में भी बहुत अच्छी थी। दौड़ में मेरा पहला नम्बर आया और मुझे एक अच्छे विद्यालय में मुझे स्कालरशिप मिल गई ७ से १२ वीं कक्षा तक । यह था मेरा पहला कदम मेरे सपने की और। कभी घर परिवार से अलग रही नहीं थी लेकिन जब पता चला स्कॉलरशिप मिली एक बार भी सोचे बिना मैने जाने का मन बना लिया क्योंकि घर की आर्थिक स्थिति इतनी ज्यादा अच्छी नहीं थी और मुफ़्त में अच्छी शिक्षा का मौका में खोना नहीं चाहती थी। आगे की कहानी जानने के लिए बने रहे मेरे साथ दूसरे भाग के लिए।