रात की ठंडी हवा उनके चारों ओर घनी होती जा रही थी। आरव ने ज़ोया को खुद से कसकर लगा लिया। उनके दिल एक साथ धड़क रहे थे, जैसे किसी अनजाने खतरे का सामना करने के लिए तैयार हो रहे हों। लेकिन यह खतरा क्या था? यह कौन था जो ज़ोया को वापस बुला रहा था?
आरव ने मोमबत्ती उठाई और ध्यान से देखा। उसकी लौ बुझ चुकी थी, लेकिन मोम के ऊपर जो खून से लिखा था, वह धीरे-धीरे गायब हो रहा था, जैसे कोई अदृश्य हाथ उसे मिटा रहा हो। आरव को महसूस हुआ कि यह कोई सामान्य चेतावनी नहीं थी।
ज़ोया का शरीर हल्के-हल्के काँप रहा था। उसकी आँखें दूर कहीं देख रही थीं, जैसे वह किसी अनदेखी दुनिया को देख रही हो। अचानक, उसने धीमे स्वर में कहा, **"आरव, मुझे कुछ याद आ रहा है..."**
आरव ने उसका चेहरा अपने हाथों में लिया। "क्या?"
"मैंने जब हवेली छोड़ी थी, तो एक दरवाज़ा बंद रह गया था। एक ऐसा दरवाज़ा जो कभी खुला ही नहीं था। शायद वहीं से यह सब शुरू हुआ था।"
आरव को याद आया, जब वे हवेली से निकले थे, तब भी उन्होंने एक कमरे का दरवाजा बंद पाया था। उस समय उन्हें लगा था कि वह बस एक पुराना कमरा होगा, लेकिन अब उसे शक हो रहा था कि कहीं उसी में तो कोई राज नहीं छुपा?
अचानक, हवा में वही गूँजती हँसी सुनाई दी। यह वही आवाज़ थी, जिसने कुछ देर पहले दरवाजे पर दस्तक दी थी। लेकिन इस बार वह और करीब थी, जैसे कोई उनके ठीक पीछे खड़ा हो।
आरव ने ज़ोया का हाथ पकड़ा और तेजी से दरवाजा बंद कर दिया। लेकिन तभी खिड़की के शीशे पर एक अजीब आकृति उभरने लगी—दो जलती हुई आँखें, जो उन्हें घूर रही थीं।
"हमें हवेली वापस जाना होगा।" आरव ने कहा।
ज़ोया ने उसकी ओर देखा, उसकी आँखों में डर और विश्वास की अजीब-सी जुगलबंदी थी। "क्या तुम सच में मेरे साथ वहाँ जाओगे?"
आरव ने मुस्कुराकर उसका हाथ कसकर पकड़ लिया। "हमने साथ जीने की कसम खाई थी, और साथ लड़ने की भी।"
सुबह होने से पहले, वे दोनों अपनी कार में हवेली की ओर निकल पड़े। रास्ते भर ज़ोया चुप रही। आरव भी जानता था कि यह चुप्पी किसी तूफान के आने से पहले की शांति थी।
जब वे हवेली पहुँचे, तो सबकुछ पहले जैसा ही लगा—खामोश, डरावना, और रहस्यमयी। लेकिन जैसे ही उन्होंने दरवाजे की ओर कदम बढ़ाए, अचानक हवेली के अंदर की लाइट जल उठी।
आरव और ज़ोया दोनों रुक गए।
"यह कैसे हो सकता है?" आरव ने फुसफुसाकर कहा।
"कोई हमारी राह देख रहा है..." ज़ोया ने धीरे से जवाब दिया।
दरवाजा अपने आप चरमराता हुआ खुल गया। हवेली के अंदर अंधेरा था, लेकिन एक कोने से धीमी-सी रोशनी आ रही थी।
वे दोनों धीरे-धीरे अंदर दाखिल हुए। हर कदम के साथ हवा और ठंडी होती जा रही थी। ज़मीन पर धूल की मोटी परत जमी थी, लेकिन बीच-बीच में किसी के पैरों के निशान भी थे—ऐसे निशान जो इंसानों के नहीं थे।
आरव ने ज़ोया की ओर देखा। "तैयार हो?"
ज़ोया ने हल्का-सा सिर हिलाया।
उन्होंने उस बंद दरवाजे की ओर बढ़ना शुरू किया, जिसे उन्होंने पहले कभी नहीं खोला था।
जैसे ही उन्होंने उसे छुआ, दरवाजा खुद-ब-खुद चरमराता हुआ खुल गया।
अंदर गहरी कालिख जैसी अंधेरी सुरंग थी, जिससे ठंडी हवा बाहर आ रही थी। और वहाँ, सुरंग के अंत में, दो जलती हुई आँखें उन्हें घूर रही थीं...