आरव ने ज़ोया की आँखों में झाँका। वहाँ एक अजीब सा सुकून था, जैसे सदियों की पीड़ा मिट गई हो। हवेली अब पहले जैसी नहीं थी—उसकी दीवारों की दरारें गायब हो चुकी थीं, जाले हट चुके थे, और वहाँ एक अद्भुत शांति थी।
"तुम मेरे साथ चल सकती हो?" आरव ने पूछा।
ज़ोया हल्का सा मुस्कुराई। "अगर तुम मुझे अपने दिल से अपनाओगे, तो हाँ।"
आरव को समझ नहीं आया कि यह कोई शाप था या वरदान। उसने जो किया था, वह बस एक पल की भावना थी, लेकिन अब उसकी ज़िंदगी हमेशा के लिए बदल सकती थी। क्या वह सच में एक चुड़ैल के साथ रह सकता था?
"तुम्हें इंसानों की दुनिया में कोई दिक्कत तो नहीं होगी?" उसने पूछा।
"जब तक तुम मेरा साथ दोगे, नहीं," ज़ोया ने कहा।
आरव ने एक गहरी सांस ली और कहा, "तो चलो।"
***
दिल्ली लौटकर, आरव ने ज़ोया को अपने घर में रखा। वह दिन में कम दिखाई देती और रात में जागती। उसकी मौजूदगी से घर में एक अजीब सा आकर्षण आ गया था—हर कोना जैसे जादुई हो गया था।
निखिल जब मिलने आया, तो उसने ज़ोया को देखा और चौंक गया। "यार, ये लड़की कौन है?"
आरव ने हिचकिचाकर कहा, "यह... मेरी दोस्त है।"
ज़ोया ने हल्का सा सिर झुका दिया। उसकी मुस्कान में एक रहस्य था, जिसने निखिल को और ज़्यादा चौंका दिया।
"तूने हवेली की कहानी पूरी लिखी?" निखिल ने पूछा।
आरव ने अपने लैपटॉप की स्क्रीन घुमाई। "हाँ, लेकिन यह कहानी अभी खत्म नहीं हुई..."
निखिल ने उत्सुकता से पढ़ना शुरू किया, लेकिन उसने कुछ ऐसा देखा जिसने उसके रोंगटे खड़े कर दिए।
आखिरी लाइन थी—
*"और अब, आरव के पास कोई और नहीं, बल्कि एक चुड़ैल थी। लेकिन क्या उसने सच में उसे अपनाया था, या यह महज़ एक छलावा था?"*
निखिल ने धीरे-धीरे आरव की तरफ देखा। "तूने इसे अपनाया भी है या नहीं?"
आरव चुप रहा। ज़ोया ने हल्की मुस्कान के साथ उसकी तरफ देखा, लेकिन उसकी आँखों में कोई अजीब सी चमक थी।
रात का सन्नाटा था। घड़ी की टिक-टिक कमरे में गूँज रही थी। आरव अपनी किताब के आखिरी पन्ने को घूर रहा था, लेकिन दिमाग में सवालों का तूफान था।
क्या उसने सच में ज़ोया को अपनाया था?
ज़ोया उसके साथ थी, लेकिन वह अब भी रहस्यमयी थी। वह कभी-कभी गायब हो जाती, और जब लौटती तो उसकी आँखों में एक अजीब सा खालीपन होता। आरव उसे पसंद करने लगा था, लेकिन उसके मन में डर भी था।
एक रात, आरव की नींद अचानक खुली। कमरे में ठंड बढ़ गई थी। उसने देखा कि ज़ोया खिड़की के पास खड़ी थी, चाँद की रोशनी में नहाई हुई।
"ज़ोया?"
वह धीरे-धीरे मुड़ी। उसकी आँखों में वही अजीब सी चमक थी।
"तुम सो जाओ, आरव," उसने धीरे से कहा।
"तुम यहाँ क्या कर रही हो?"
ज़ोया कुछ देर चुप रही, फिर धीरे से बोली, "मैं… तुम्हारी हिफ़ाज़त कर रही हूँ।"
"किससे?"
"उनसे, जो मुझे वापस ले जाना चाहते हैं।"
आरव का दिल जोर से धड़का। "कौन?"
ज़ोया कुछ कहने ही वाली थी कि तभी दरवाजे पर तेज़ दस्तक हुई।
**धड़-धड़-धड़!**
आरव चौंक गया। इतनी रात को कौन हो सकता था? उसने ज़ोया की तरफ देखा, लेकिन वह वहाँ नहीं थी।
"ज़ोया?"
कोई जवाब नहीं आया।
दस्तक और तेज़ हो गई। आरव ने हिम्मत जुटाकर दरवाजा खोला।
बाहर कोई नहीं था। सिर्फ़ ठंडी हवा का एक झोंका उसके चेहरे से टकराया।
लेकिन फिर, उसने फुसफुसाने की आवाज़ सुनी।
*"आरव..."*
आरव ने इधर-उधर देखा, लेकिन कोई नहीं था।
"कौन है?" उसने घबराकर पूछा।
अचानक, उसकी परछाई हिलने लगी। वह पक्की जमीन पर थी, लेकिन उसकी परछाई जैसे लहराने लगी थी।
और फिर, परछाई से एक आकृति निकलने लगी—एक धुंधली, लंबी, डरावनी आकृति।
*"उसे वापस करो..."* वह गुर्राई।
आरव के पैरों के नीचे से ज़मीन खिसक गई।
"क…किसे?"
*"ज़ोया को!"*
आकृति की लाल आँखें चमक उठीं। आरव पीछे हटने लगा, लेकिन तभी किसी ने उसका हाथ पकड़ लिया।
वह ज़ोया थी।
"आरव, भागो!" उसने ज़ोर से कहा।
लेकिन आरव को अब सब समझ में आ चुका था।
"नहीं, अब मैं नहीं भागूंगा। तुम मुझे सच बताओ, ज़ोया। ये लोग कौन हैं?"
ज़ोया की आँखों में दर्द उभर आया।
"मैं सिर्फ़ एक चुड़ैल नहीं हूँ, आरव। मैं..."
अचानक, वह दर्द से कराह उठी। आकृति ने अपनी लंबी, काली उंगलियों से ज़ोया को जकड़ लिया।
*"वक़्त पूरा हुआ। तुम इंसानों की दुनिया में नहीं रह सकती।"*
"नहीं!" आरव ने ज़ोया का हाथ कसकर पकड़ लिया।
लेकिन ज़ोया की काया धुंधली पड़ने लगी।
"आरव... अगर तुम सच में मुझे अपनाते हो, तो मुझे रोक सकते हो," उसने दर्द में कहा।
आरव के दिल की धड़कन तेज़ हो गई।
"कैसे?"
ज़ोया की आँखों में आँसू आ गए। "बस कह दो... कि तुम मुझे हमेशा के लिए अपना रहे हो।"
आकृति ने ज़ोया को और खींच लिया।
आरव ने हिम्मत जुटाई, उसकी आँखों में देखा और ज़ोर से कहा—
"मैं तुम्हें अपनाता हूँ, ज़ोया! हमेशा के लिए!"
एक चमकदार रोशनी फूट पड़ी। आकृति एक चीख के साथ गायब हो गई। हवाएं रुक गईं। सब कुछ शांत हो गया।
आरव ने देखा—ज़ोया अब भी उसके सामने खड़ी थी, लेकिन अब उसकी आँखों में कोई रहस्य नहीं था। वह पूरी तरह इंसानों जैसी लग रही थी।
"अब?" आरव ने धीरे से पूछा।
ज़ोया मुस्कुराई। "अब, मैं सिर्फ़ तुम्हारी हूँ।"
आरव ने राहत की सांस ली।
लेकिन उसे नहीं पता था... कि हर जादू की एक कीमत होती है।
**(आगे क्या होगा? क्या ज़ोया अब पूरी तरह इंसान है, या अभी भी कुछ रहस्य बाकी हैं?)**