Swayamvadhu - 39 in Hindi Fiction Stories by Sayant books and stories PDF | स्वयंवधू - 39

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स्वयंवधू - 39

गलत यादे भाग 2
यह पता चलने के बाद कि उसके पिता का नंबर उसके पिता का नहीं था, वह अपने परिवार के साथ अब तक की अपनी हर पल को याद करके और उस पर संदेह करते हुए फूट-फूटकर रोने लगी। समीर ने उसे सांत्वना देने कि कोशिश की, जब वह उसे सांत्वना दे रहा था तब उसके कोट की ऊपरी जेब से एक फोटो फिसल कर उसकी बाहों पर गिर गई। ऐसे लगा कि समीर ने फोटो को नहीं देखा। वृषाली ने इसे नज़रअंदाज करना चाहा लेकिन वह उसके चेहरे के पसीने और आँसू बहने के कारण यह उससे चिपक गया। उसने हताश होकर उसे अपने से खींचा और देखा.....उसे अपने जीवन का सबसे भयानक झटका लगा। उसके पैर तले ज़मीन खिसक गई! वो किसीको मुँह दिखाने लायक नहीं बची।
वह शर्म से काँप उठी। समीर को उसमें कुछ गड़बड़ नज़र आई और फिर फोटो ने उसका ध्यान खींचा। उसने फोटो उससे छीन ली लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
"क्या आप कह रहे हैं कि मैं इसी प्रकार की व्यक्ति हूँ?", उसकी आवाज़ काँप रही थी,
समीर बहुत देर तक चुप रहा।
घबराहट की हालत में वह अपनी दाहिनी कलाई खरोंचने लगी।
डॉक्टर ने उसे शांत करने कि कोशिश की।
"क्या मैंने सचमुच ऐसी सस्ती जीवनशैली के लिए खुद को इस तरह बेच दिया?", यह उम्मीद मे कि वह इसे झुठला दे।
समीर ने बस अपना सिर नीचे किया और दूसरी ओर देखने लगा। जिसने उसके सवालों के जवाब दे दिए। और अब उसका अस्तित्व संकट में था। वृषाली राय के तौर पर उसकी पहचान, जो उसे याद थी वो उसकी नहीं थी, पता नहीं वो लड़की सच में है की भी नहीं? समीर के अनुसार वह मीरा पात्रा थी जिसकी एक अंश की भी स्मृति उसमे नहीं थी। वह एक कोरा कागज़ थी।
वह बहुत असमंजस में थी।
समीर ने उसके पास आकर सावधानी से पूछा, "तुम्हारी ताज़ा याद कौन सी है?",
वह अपनी याददाश्त को बार-बार, बार-बार, बार-बार ताज़ा करती रही लेकिन नतीजा वही रहा, "इसका कोई फायदा नहीं है। मुझे तो बस खुद को वृषाली के रूप में याद है।",
डॉक्टर ने कहा, "हमें वह स्मृति बताओ।",
वह झिझकते हुए बोली, "क-कल एक पुलिस अधिकारी ने मुझे वृषा के साथ किसी की तस्वीर दिखाई और कहा कि मैं वृषाली नहीं हूँ और..... मैं आज अस्पताल में जागी।",
"कुछ पहले या बाद में? जैसे यादों के कुछ छंद?", समीर बीच में आकर चिंता कर पूछा,
"नहीं। कछ नहीं।", उसने अपना सिर पकड़कर बोला। बोलते-बोले उसकी नज़र उसके हाथ पर गई, "मेरे हाथ? मेरे हाथ पर ये बँधे के निशान कैसे?",
समीर थोड़े उलझन में पूछा, "क्या तुम सच्चाई झेल पाओगी?",
उसने आगे आने वाली गंदी स्थिति के लिए खुद को तैयार कर लिया।
समीर ने पुष्टि के लिए डॉक्टर की ओर देखा। डॉक्टर ने हाँ में सिर हिलाया।
उसने एक गहरी साँस ली और उसे सब कुछ विस्तार से समझाया, "वादा करो, जो कुछ हुआ था वह अतीत है जो तुम्हें याद नहीं है, इसलिए कृपया इसे अपने ऊपर हावी मत होने देना।", समीर ने उससे वचन माँगा,
"जी।", उसने निराश स्वरों में कहा,
समीर ने उसके सिर पर हाथ रखकर बोला, "तुम मीरा पात्रा हो। तुम्हारा जन्म और पालन-पोषण एक सामान्य मध्यवर्गीय भारतीय परिवार में हुआ। तुम्हारा परिवार काफी बड़ा था, माता-पिता, दादा-दादी, बड़ी बुआ और उसके बच्चे, तुम दो भाई-बहन।
परिवार में सिर्फ तुम्हारे पिता और तुम्हारा बड़ा भाई ही कामकाजी था। बाकि सदस्य अविश्वसनीय थे और बजट हमेशा तंग थी। तुम्हारे भाई और तुम्हें इस वजह से स्कूल छोड़ना पड़ा। तुम्हारे परिवार की स्थिति विषाक्त थी, तुम्हारी माँ ने परिवार को व्यवस्थित रखने कि भरपूर कोशिश की लेकिन चीजें ठीक से काम नहीं कर रही थीं। और स्थिती तब और बिगड़ गयी जब तुम्हारे पिता और माँ एक भयानक सड़क दुर्घटना में थे और तुम्हारे परिवार ने तुम्हारी माँ को छोड़ दिया और तुम्हारे पिता को बचाया।-",
"क्या?", उसे गहरा झटका लगा, "मम्मा नहीं रही?", उसके आँखो अश्रु बिना रुके गिर रहे थे। वह अपनी माँ को याद कद बिलक रही थी।
समीर ने उसे सहारा दिया, "आज के लिए बस इतना।",
सिसकते हुए उसने अपने कमज़ोर हाथों से समीर का हाथ पकड़ा और, "डैडा? डैडा?", बोल अपने पिता के बार में पूछने लगी जिनकी स्मृति उसमे थी ही नहीं।
"वो सही सलामत थे पर कुछ वक्त के लिए।", समीर ने कहा,
"मतलब?", उसे धक्का लगा। वह आगे के लिए तैयार नहीं थी। वो डर से खुद को नोंचे जा रही थी।
समीर ने उसका हाथ रोका और उसे सीधे बिठाया, "तुम्हारी माँ के देहांत के बाद तुम बागी हो गयी थी। तुम्हारे दृष्टिकोण से तुम्हारे परिवारवालों ने तुम्हारी माँ को त्यागा था जिसने खुद को उस घर के लिए झोंक दिया था। तुम अपने पिता से भी नाराज़ थी। तुम दिन-ब-दिन बत्तमीज़ होती जा रही थी और घर से देर रात तक बाहर रहने लगी। उस वक्त तुम्हारी संगत गलत लोंगो से होने लगी। पहले लेट नाइट पार्टीस् से शुरू तुम्हारी ये गलत संगती ड्रग्स और वेश्यावृत्ति में बदल गयी। तुम्हारे पिता ने तुम्हें अनगिनत बार इससे चक्रव्यूह से बाहर निकलने कि कोशिश की पर तुम पर तो अपनी माँ के साथ हुए अन्याय का गुस्सा था। तुमने उनकी एक ना सुनी।
एक बड़े झगड़े के बाद तुमने अपना घर छोड़ दिया था।-", बोलते-बोलते वह अचानक रुका,
"फिर?", वृषाली ने कर्कश आवाज़ में पूछा,
"फ-फिर, फिर वो?", वह अपने शब्द उलझा रहा था,
"एक बात पूछूँ मिस्टर बिजलानी?", उसने गहरी साँस लेकर पूछा, "आप मेरे बारे में इतना कैसे और क्यों जानते है?",
उसने आहत स्वरों में कहा, "क्योंकि मेरा बेटा, मेरा बेटा भी तुम्हारा एक ग्राहक था। उस समय तुम अमीरों के बीच खेला करती थी। उसी वक्त तुम्हारी जान पहचान वृषा, मेरे बेटे से होने लगी। दो ही मुलाकात में तुमने उसके हर एक इंद्रियों पर काबू पा दिया था। तुम काफी चौकस थीं और उसे खास महसूस कराया लेकिन तुम्हारे लिए वे बस एक और यादृच्छिक ग्राहक थे। वह तुम्हें चाहता था और तुम पर अपना एकाधिकार स्थापित करना चाहता था।
पहले तो उसने तुम्हें सीधे खरीदने कि कोशिश की लेकिन तुम्हारे बॉस, जिन्हें तुम भैय्या कहती थी और जिसके अधीन तुम काम कर रही थी, उसने उसे साफ मना कर दिया। आखिरकार तुम उनके लिए बड़ी हिट थी। फिर उसने तुम्हें बहलाने कि कोशिश की जिसकी वजह से उन्होंने उसे क्लब से प्रतिबंधित कर दिया गया। इससे उसका अहंकार क्रोध से भर गया। उसने सब कुछ नष्ट करने की कसम खा ली थी।
जब वह छोटा था तो हमारे प्रतिस्पर्धी अक्सर उस पर हमला करते थे इसलिए मैंने उसकी सुरक्षा के लिए चार लोगों को नियुक्त किया, वे तब से उसके साथ थे। वे भावनात्मक रूप से उससे जुड़े हुए थे और उसकी सेवा करने के लिए नियुक्त थे। उसके आदेश पर उन्होंने क्लब को तहस-नहस कर दिया और उन्हें निर्दयतापूर्वक मार डाला तथा पवन झंकार की तरह लोंगो को दिखाने के लिए प्रवेश द्वार पर लटका दिया। उसने तुम्हें ज़बरदस्ती अगवा किया, तुम्हारा बायां पैर तोड़ दिया, दाहिने पैर में जंजीर डाल दी और तुम्हें अपने कमरे में सजावट की वस्तु की तरह पिंजरे में बंद कर दिया। वह काफी संतुष्ट था लेकिन फिर भी वह तुम्हारी अस्वीकृति से उबर नहीं पाया इसलिए उसने तुम्हें अपने पालतू जानवर के रूप में सबक सिखाने का फैसला किया इसलिए-", समीर फिर चुप हो गया। उसकी चुप्पी से पूरे कमरे में अजीब सी खामोशी छा गई। इससे उसकी त्वचा में झुनझुनी होने लगी। उसकी साँसें बेचैन हो गयीं।
" 'इसलिए' क्या मिस्टर बिजलानी?", उसने अपने-आप पर संयम रखकर पूछा,
समीर जल्दी-जल्दी बात करने लगा। उसे अनसुना कर, "कुछ नहीं, कुछ नहीं। बस यही है। तुम्हें अधिक आराम करना चाहिए। तुम आज ही जागी हो। अच्छी तरह आराम करो।", कह वो जाने लगा।
वृषाली को उसकी तेज़ी में कुछ गड़बड़ी लगी। उसने से रोकने कि कोशिश की।
"नहीं! मैं नहीं कह सकता।", अचानक वह अजीब हरकतें करने लगा।
उसे ऐसा देख डॉक्टर भी हैरत में पड़ गया।
"मैंने सबसे भयावह बातें सुनीं जो एक बच्चा अपने माता-पिता के बारे में सुन सकता है। मैं किसी भी भयावह स्थिति के लिए तैयार हूँ।", उसने आत्मविश्वास से कहा। यह केवल उसका मुँह था, वह बार-बार अपने हाथों को नोंच रही थी। लगातार खरोंचने के कारण उसके हाथों से खून निकालने लगा।
उसे देख समीर ने गहरी साँस ली, " मुझे डर है कि तुम इस वक्त इसके लिए तैयार नहीं हो। एक बार तुम्हारी स्थिती ज़्यादा स्थिर हो जाएगी तब हम इस बारे में बात करेंगे। अब डॉक्टर को अपना हाथ दिखाओ।", उसने एक पिता की तरह उसे बहलाया और समझाया।
उसके हाथ में भी इतनी शक्ति नहीं थी कि वो उनसे बहस कर सके।