देश की पुकार: NDA का सफर"
मेरठ का सूरज आसमान में धीरे-धीरे अपनी लाली बिखेर रहा था। छत पर खड़ा आर्यन दूर क्षितिज की ओर देख रहा था। आज का दिन उसके जीवन का सबसे महत्वपूर्ण दिन था—आज वह राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (NDA) में कदम रखने वाला था।
बचपन से ही उसका सपना था कि वह भारतीय सेना का हिस्सा बने। जब उसने पहली बार अपने बड़े भाई, कैप्टन विक्रम, को वर्दी में देखा था, तब ही उसने ठान लिया था कि एक दिन वह भी देश की रक्षा करेगा। उसके लिए यह सफर आसान नहीं था। सुबह 4 बजे उठकर दौड़ लगाना, घंटों पढ़ाई करना, गणित के जटिल सवालों को हल करना और इतिहास की महान लड़ाइयों को याद रखना—सब कुछ उसने इस लक्ष्य के लिए किया था।
NDA की परीक्षा कठिन थी, लेकिन उसने पूरे आत्मविश्वास के साथ उसे पास किया। फिर आया SSB इंटरव्यू, जहाँ उसकी हिम्मत, मानसिक दृढ़ता और नेतृत्व क्षमता को परखा गया। पाँच दिनों की कड़ी परीक्षा के बाद, जब मेरिट लिस्ट में उसका नाम आया, तो उसकी आँखों में खुशी और गर्व के आँसू थे।
आज वह NDA के गेट पर खड़ा था। विशाल अकादमी की इमारतें, दूर-दूर तक फैले परेड ग्राउंड, और हर तरफ अनुशासन का माहौल देखकर उसका सीना गर्व से चौड़ा हो गया। उसके माता-पिता की आँखों में आंसू थे, पर ये आँसू खुशी और गर्व के थे।
"आर्यन, याद रखना, यह सफर आसान नहीं होगा," उसके पिता ने कहा।
आर्यन मुस्कुराया, एक सैल्यूट मारा और आत्मविश्वास के साथ NDA के गेट के अंदर चला गया। आज से उसकी जिंदगी सिर्फ एक आम युवक की नहीं, बल्कि एक भविष्य के योद्धा की थी—एक ऐसे योद्धा की, जो देश की रक्षा के लिए हर चुनौती का सामना करने को तैयार था।
"सेवा परमो धर्मः"—यही उसका मंत्र था, और यही उसका जीवन बन चुका था।
Age limit.
NDA (National Defence Academy) में शामिल होने के लिए उम्मीदवार की आयु 16.5 से 19.5 वर्ष के बीच होनी चाहिए।
इसका मतलब है कि जब आप कक्षा 12वीं में होते हैं या पूरी कर लेते हैं, तब आप NDA की परीक्षा के लिए आवेदन कर सकते हैं।
मेरठ का सूरज आसमान में धीरे-धीरे अपनी लाली बिखेर रहा था। छत पर खड़ा आर्यन दूर क्षितिज की ओर देख रहा था। आज का दिन उसके जीवन का सबसे महत्वपूर्ण दिन था—आज वह राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (NDA) में कदम रखने वाला था।
बचपन का सपना
बचपन से ही उसका सपना था कि वह भारतीय सेना का हिस्सा बने। जब उसने पहली बार अपने बड़े भाई, कैप्टन विक्रम, को वर्दी में देखा था, तब ही उसने ठान लिया था कि एक दिन वह भी देश की रक्षा करेगा। उसके लिए यह सफर आसान नहीं था। सुबह 4 बजे उठकर दौड़ लगाना, घंटों पढ़ाई करना, गणित के जटिल सवालों को हल करना और इतिहास की महान लड़ाइयों को याद रखना—सब कुछ उसने इस लक्ष्य के लिए किया था
।संघर्ष और सफलता
NDA की परीक्षा कठिन थी, लेकिन उसने पूरे आत्मविश्वास के साथ उसे पास किया। फिर आया SSB इंटरव्यू, जहाँ उसकी हिम्मत, मानसिक दृढ़ता और नेतृत्व क्षमता को परखा गया। पाँच दिनों की कड़ी परीक्षा के बाद, जब मेरिट लिस्ट में उसका नाम आया, तो उसकी आँखों में खुशी और गर्व के आँसू थे।
परिवार के लिए यह गर्व का क्षण था। उसके माता-पिता ने उसे गले लगाया, और उसके भाई विक्रम ने उसकी पीठ थपथपाई। "अब तू सिर्फ मेरा छोटा भाई नहीं, बल्कि देश का बेटा है," विक्रम ने कहा।
NDA में पहला दिन
आज वह NDA के विशाल गेट के सामने खड़ा था। चारों ओर अनुशासन का माहौल था। प्रवेश द्वार पर लिखे शब्द उसे गर्व का अनुभव करा रहे थे—"SERVICE BEFORE SELF" (सेवा परमो धर्मः)"
अंदर कदम रखते ही, उसकी नई जिंदगी की शुरुआत हो चुकी थी। रैगड़ा, कठिन ट्रेनिंग, अनुशासन और त्याग—सब कुछ उसका इंतजार कर रहा था। पहले ही दिन उसकी मुलाकात राहुल, कबीर और समीर से हुई, जो उसके जैसे ही जुनूनी और देशभक्त थे।
ट्रेनिंग की कठिनाइयाँ
ट्रेनिंग आसान नहीं थी। रोज सुबह 4 बजे पीटी, फायरिंग प्रैक्टिस, लॉन्ग रन और असंभव लगने वाले ड्रिल्स से गुजरना पड़ता। कभी-कभी वह इतना थक जाता कि शरीर जवाब देने लगता, लेकिन उसका जज़्बा उसे गिरने नहीं देता। उसे अपने ट्रेनिंग ऑफिसर के शब्द याद थे—"हम यहाँ लड़ाकू बनाने आते हैं, कमजोर नहीं।
"पहली परेड और गर्व का क्षण
छह महीने बाद, जब उसने पहली बार पूरी वर्दी में पासिंग आउट परेड की, तो उसकी आँखों में आत्मविश्वास था। दूर खड़े उसके माता-पिता और भाई उसे देख रहे थे, और उनकी आँखों में गर्व छलक रहा था।
जब उसने सलामी दी, तो मन ही मन उसने अपने आप से कहा—"अब मैं सिर्फ आर्यन नहीं, बल्कि एक योद्धा हूँ।"अंतिम लक्ष्य
अब उसका अगला सपना था—भारतीय सेना में एक अधिकारी बनना, अपने देश के लिए लड़ना, और हर हाल में अपने राष्ट्र की रक्षा करना। उसके लिए NDA सिर्फ एक जगह नहीं थी, बल्कि एक मंदिर था, जहाँ से उसे देशभक्ति की दीक्षा मिली थी।
"सेवा परमो धर्मः"—यही उसका मंत्र था, और यही उसका जीवन बन चुका था।
समय बीतता गया, और NDA की कठिन ट्रेनिंग ने आर्यन को मानसिक और शारीरिक रूप से एक मजबूत योद्धा बना दिया। तीन साल की कठिन मेहनत के बाद, उसे भारतीय सैन्य अकादमी (IMA), देहरादून के लिए चुना गया। वहाँ उसने अपने जुनून को और निखारा, युद्ध रणनीतियों, हथियारों के संचालन और वास्तविक युद्ध स्थितियों में निर्णय लेने की कला सीखी।
फिर वो दिन आया, जब वह लेफ्टिनेंट आर्यन सिंह बनकर भारतीय सेना का हिस्सा बना। यह क्षण उसके जीवन का सबसे गर्वभरा पल था। जब उसने अपने माता-पिता को सैल्यूट किया, तो उनकी आँखों में खुशी और गर्व के आँसू थे। उसका भाई कैप्टन विक्रम, जो अब मेजर बन चुका था, उसके कंधे पर स्टार लगाते हुए बोला—"अब तू सिर्फ मेरा भाई नहीं, बल्कि देश का रक्षक है।
"पहला ऑपरेशन
आर्यन की पहली तैनाती जम्मू-कश्मीर के एक दुर्गम क्षेत्र में हुई। आतंकवादियों की हलचल बढ़ रही थी, और सेना को सतर्क रहने का आदेश मिला था। एक रात, इंटेलिजेंस से खबर आई कि घुसपैठिए नियंत्रण रेखा (LoC) पार कर भारतीय क्षेत्र में दाखिल हो चुके हैं।
योजना तुरंत बनाई गई। आर्यन और उसकी टुकड़ी को इस ऑपरेशन की जिम्मेदारी सौंपी गई। यह उसका पहला असली मिशन था। दिल तेजी से धड़क रहा था, लेकिन दिमाग पूरी तरह शांत था—NDA और IMA की ट्रेनिंग ने उसे यही सिखाया था।
आतंकियों से मुठभेड़
रात के अंधेरे में, बर्फीली घाटी में, पूरी टीम ने घुसपैठियों को ट्रैक किया। कुछ ही देर में फायरिंग शुरू हो गई। गोलियाँ हवा में सनसनाहट भर रही थीं। आर्यन ने अपने जवानों को सतर्क रहने और मोर्चा संभालने का आदेश दिया।
एक आतंकी ने उसके एक साथी को निशाना बनाया, लेकिन आर्यन ने तेजी से प्रतिक्रिया करते हुए उसे ढेर कर दिया। लड़ाई करीब दो घंटे तक चली, और अंततः भारतीय सेना ने पूरे इलाके को आतंकियों से मुक्त कर दिया। ऑपरेशन सफल रहा, और आर्यन ने पहली बार युद्ध के मैदान में अपनी वीरता साबित की।
वीरता का सम्मान
इस ऑपरेशन में बहादुरी दिखाने के लिए आर्यन को "शौर्य चक्र" से सम्मानित किया गया। पूरे देश ने उसकी वीरता को सलाम किया। जब वह राष्ट्रपति भवन में अपने माता-पिता के साथ सम्मान ग्रहण कर रहा था, तो उसकी आँखों में चमक थी।
अपने भाषण में उसने कहा—"मैंने NDA में जो पहला कदम रखा था, तभी मैंने ये ठान लिया था कि मैं अपने देश के लिए मरते दम तक लड़ूँगा। आज जो कुछ भी हूँ, वो मेरे परिवार, मेरे ट्रेनर्स और मेरी मातृभूमि की बदौलत हूँ।
"अंतहीन सफर
आर्यन के लिए यह बस एक शुरुआत थी। उसे अभी और भी मिशनों पर जाना था, देश की रक्षा के लिए हर चुनौती का सामना करना था। लेकिन एक बात तय थी—जब तक देश को उसकी जरूरत होगी, वह हर मोर्चे पर डटा रहेगा।
"सेवा परमो धर्मः"—यही उसका संकल्प था, और यही उसकी पहचान बन चुकी थी।
Jai hind🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳