Zindagi Ke Panne - 9 in Hindi Motivational Stories by R B Chavda books and stories PDF | जिंदगी के पन्ने - 9

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जिंदगी के पन्ने - 9

रागिनी के परदादी को गुज़रे कुछ महीने ही हुए थे कि उसके छोटे से शहर में हर साल की तरह मेला लगा। शहर में इस मेले की अपनी एक अलग ही धूम थी—रंग-बिरंगी रौशनियाँ, ऊँचे झूले, मीठे-खट्टे गोलगप्पे, खिलौनों की दुकाने, और तरह-तरह की मिठाइयों की महक पूरे शहर में फैली हुई थी। पाँच दिनों तक चलने वाले इस मेले में रागिनी के पापा उसे हर दिन लेकर गए।

"पापा, वो देखो! कितने बड़े-बड़े झूले!" रागिनी ने चहकते हुए कहा।

उसके पापा मुस्कुराए और बोले, "तो फिर चलो, आज तुम्हें इन झूलों पर बैठाकर आसमान की सैर कराते हैं।"

रागिनी ख़ुशी से उछल पड़ी। वह झूलों पर चढ़ी और जैसे ही झूला ऊपर गया, हवा उसके चेहरे से टकराई, उसकी चोटी हवा में लहराने लगी। उसका मासूम चेहरा खिल उठा।

मेले में वह कभी चाट खाने की ज़िद करती, तो कभी किसी खिलौने की दुकान के सामने अड़ जाती। उसके पापा ने भी दिल खोलकर उसकी हर ज़िद पूरी की।

"पापा, मुझे ये गुड़िया चाहिए!" उसने एक सुंदर सी गुड़िया की ओर इशारा किया।

"बिलकुल मेरी गुड़िया को गुड़िया चाहिए। ये लो, और हाँ, इसे अच्छे से संभालना, ये तुम्हारी तरह बहुत प्यारी है।"

रागिनी की आँखें खुशी से चमक उठीं। उसके पापा उसे पूरे नौ दिन तक मेला घुमाने ले गए। संयोग से यह मेला श्रावण मास में ही लगता था, और इस महीने के हर सोमवार को शिव मंदिर में भी एक छोटा मेला लगता था। रागिनी के पापा वहाँ भी उसे ले गए। हर जगह एक अलग रौनक थी, लेकिन रागिनी के लिए सबसे बड़ी खुशी थी अपने पापा का साथ।

लेकिन खुशियों के ये पल जैसे आए थे, वैसे ही जल्दी छिनने वाले थे...

कुछ ही महीनों बाद, रागिनी की मम्मी का जन्मदिन आया। इस बार उसके पापा ने उन्हें सरप्राइज़ देने की सोची और पूरी फैमिली को एक बड़े रेस्टोरेंट में डिनर पर ले गए। उस दिन सब कुछ कितना अच्छा लग रहा था। मम्मी-पापा खुश थे, बच्चे भी हँसी-खुशी खेल रहे थे। लेकिन शायद यह खुशी स्थायी नहीं थी...

उस रात के अगले ही दिन, घर का माहौल पूरी तरह बदल गया। रागिनी की मम्मी और पापा के बीच न जाने किस बात को लेकर झगड़ा हो गया। पहले तो छोटी-मोटी बहस थी, लेकिन धीरे-धीरे आवाज़ें तेज़ होने लगीं।

"तुम हमेशा अपनी मनमानी करते हो!"

"तो तुम क्या चाहती हो? घर छोड़कर चली जाओ?"

"शायद यही ठीक रहेगा!"

रागिनी घबराकर अपने छोटे भाई-बहन को पकड़कर खड़ी हो गई। वह कुछ समझ नहीं पा रही थी कि अचानक ऐसा क्या हुआ जो उसके पापा-मम्मी इतने गुस्से में आ गए। लेकिन अगले ही पल, उसकी मम्मी ने सच में घर छोड़ने का फैसला कर लिया।

जब वह अपना सामान पैक कर रही थीं, रागिनी उनके पास दौड़कर आई।

"मम्मी, कहाँ जा रही हो?"

"बेटा, मुझे जाना होगा...!" मम्मी की आवाज़ काँप रही थी।

रागिनी भागकर पापा के पास गई और रोते हुए बोली, "पापा, मम्मी जा रही हैं... उन्हें रोक लो ना, प्लीज़!"

लेकिन उसके पापा ने एक शब्द भी नहीं कहा। उन्होंने बस अपनी नज़रे फेर लीं।

रागिनी की मम्मी छोटे भाई-बहन को छोड़कर अपने मायके, अहमदाबाद चली गईं। उस समय रागिनी का भाई महज़ डेढ़ साल का था। रास्ते भर उसकी मम्मी की आँखों में आँसू थे, दिल और दिमाग़ में तूफ़ान चल रहा था।

अहमदाबाद पहुँचने के बाद उनकी हालत और खराब हो गई। मन पूरी तरह टूट चुका था। उन्हें हर पल बस यही महसूस हो रहा था कि अब इस दर्द का कोई अंत नहीं। जब कोई सहारा नज़र नहीं आया, तो वे सीधा साबरमती नदी के पुल पर चली गईं। उनके दिमाग़ में बस एक ही ख़्याल था—इस दर्द को हमेशा के लिए ख़त्म कर देना।

जैसे ही उन्होंने पुल की रेलिंग पकड़कर आगे कदम बढ़ाया, अचानक किसी ने उनका हाथ पकड़ लिया।

"क्या कर रही हो?" एक बुज़ुर्ग औरत की कड़वी आवाज़ आई।

रागिनी की मम्मी ने चौंककर पीछे देखा—सामने एक बूढ़ी औरत खड़ी थीं। उनकी आँखों में ग़ुस्सा भी था और ममता भी।

"जीवन ईश्वर की देन है। इसे ख़त्म करना पाप है!"

रागिनी की मम्मी ने कुछ नहीं कहा, उनकी आँखों से बस आँसू बहते रहे। वह बूढ़ी औरत उन्हें खींचकर पुल से दूर ले गईं और एक रिक्शे में बैठाकर उनके मायके का पता रिक्शेवाले को दे दिया।

रागिनी की मम्मी को होश ही नहीं था। जब वे अपने मायके पहुँचीं, तो उनके पापा (रागिनी के नाना) घर के बाहर ही खड़े थे। रिक्शेवाले ने सब कुछ बता दिया कि किसी बुज़ुर्ग महिला ने उन्हें रिक्शे में बैठाकर भेजा, लेकिन वह ख़ुद कहाँ चली गईं, यह कोई नहीं जानता।

घर पहुँचने के बाद भी रागिनी की मम्मी को यकीन नहीं हो रहा था कि वह बच गईं। अगले दिन, जब उनकी माँ (रागिनी की नानी) ने उनसे पूछा कि वह बूढ़ी औरत कौन थी, तो उन्होंने जो जवाब दिया, उसे सुनकर सब दंग रह गए।

"वह मेरी दादीसास थीं, जिनका देहांत कुछ महीनों पहले ही हुआ था!"

यह सुनते ही पूरा घर स्तब्ध रह गया। कमरे में सन्नाटा छा गया, जैसे किसी ने सबकी आवाज़ छीन ली हो। किसी को अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था। क्या यह सच में संभव था? क्या उनकी दादीसास उन्हें मरने से बचाने आई थीं, या यह सिर्फ़ उनका वहम था? लेकिन रागिनी की माँ की आँखों में जो भय और विस्मय था, वह किसी भ्रम की तरह नहीं लग रहा था। शायद यह किसी अनदेखी शक्ति का आशीर्वाद था, जिसने उन्हें उस अंधेरे रास्ते से वापस खींच लिया था।

अगले ही दिन, रागिनी के मामा, रागिनी और उसके छोटे भाई-बहन को लेने आए। वे उन्हें अपनी माँ के पास ले गए।

रागिनी की नन्ही आँखों में एक ही सवाल था—"अब क्या होगा?"

उसकी दुनिया बिखर रही थी, और वह समझ नहीं पा रही थी कि आगे की ज़िन्दगी कैसी होगी।

अगले भाग में जानेंगे कि रागिनी और उसके भाई-बहन की ज़िन्दगी कैसे बदलती है।

... (जारी)