अंतिम संदेश
रात के 2 बजे का समय था। घने कोहरे में लिपटी दिल्ली की सड़कों पर सन्नाटा पसरा हुआ था। पत्रकार रवि शर्मा अपने ऑफिस से लौट रहा था, जब उसके फोन पर एक अज्ञात नंबर से मैसेज आया—
"अगर सच जानना चाहते हो, तो कल रात पुरानी हवेली आओ। अकेले।"
रवि चौंक गया। वह क्राइम रिपोर्टिंग करता था और कई खतरनाक मामलों की पड़ताल कर चुका था, लेकिन यह संदेश अजीब था। पुरानी हवेली? वो जगह तो कई सालों से वीरान थी। वहां जाने का मतलब था किसी अनजाने खतरे को बुलावा देना। लेकिन उसके अंदर का पत्रकार जाग चुका था। आखिर सच जानने की चाह उसमें बचपन से ही थी।
अगली रात, चांदनी के हल्के उजाले में लिपटी पुरानी हवेली रवि का इंतजार कर रही थी। वह अपने कैमरा और नोटपैड के साथ हवेली के विशाल फाटक के सामने खड़ा था। जंग लगी लोहे की ग्रिल को धकेलते ही एक हल्की चरमराहट गूंज उठी। हवेली अंदर से उतनी ही डरावनी थी जितनी बाहर से लग रही थी—धूल से भरे फर्श, दीवारों पर उखड़ता प्लास्टर, और छत से लटकता एक टूटा हुआ झूमर।
अचानक, पीछे से किसी के कदमों की आहट सुनाई दी। रवि मुड़ा, लेकिन वहां कोई नहीं था। उसका दिल तेज़ी से धड़कने लगा। तभी एक धीमी आवाज़ आई—
"तुम्हें सच जानना है? तो ऊपर आओ..."
रवि ने टॉर्च जलाकर सीढ़ियों की ओर देखा। एक-एक कदम रखते हुए वह ऊपर की ओर बढ़ा। पहली मंज़िल पर एक लकड़ी का दरवाज़ा था, जो आधा खुला हुआ था। जैसे ही उसने दरवाज़ा खोला, वहां एक पुरानी टेबल पर कुछ धूल भरे कागज़ पड़े थे। उन पर कुछ अजीब बातें लिखी हुई थीं—
"इस हवेली में जो भी आया, वह लौट कर नहीं गया। 25 साल पहले जो हुआ था, वह आज भी एक रहस्य है..."
रवि को झटका लगा। उसने अपने कैमरे से तस्वीरें खींचनी शुरू कीं, तभी पीछे से किसी ने उसके कंधे पर हाथ रखा। वह तेजी से पलटा—लेकिन वहां कोई नहीं था।
अचानक, हवा में एक हल्की सरसराहट हुई, और टेबल पर रखे कागज़ अपने आप उड़ने लगे। रवि का पूरा शरीर ठंडे पसीने से भीग गया। तभी एक तस्वीर उसके पैरों के पास आकर रुकी। उसने कांपते हाथों से वह तस्वीर उठाई। यह एक पुराने अख़बार की कटिंग थी, जिसमें एक परिवार की तस्वीर छपी थी—एक आदमी, एक औरत और एक छोटी बच्ची। नीचे लिखा था:
"मित्तल परिवार की रहस्यमयी मौत: आत्महत्या या हत्या?"
रवि को याद आया कि 25 साल पहले यह केस काफ़ी चर्चित हुआ था। कहा जाता था कि इस हवेली में रहने वाले मित्तल परिवार की रहस्यमयी मौत हो गई थी। पति-पत्नी के शव तो मिले थे, लेकिन उनकी सात साल की बेटी रिया का कोई पता नहीं चला था। लोगों का कहना था कि उसकी आत्मा आज भी यहां भटकती है।
रवि के हाथ-पैर ठंडे पड़ गए। उसे लगा जैसे कोई उसकी मौजूदगी को महसूस कर रहा हो। तभी हवा में एक धीमी, पर साफ़ आवाज़ गूंजी—
"मुझे बचा लो..."
रवि का दिल तेज़ी से धड़कने लगा। उसने अपनी टॉर्च चारों ओर घुमाई, लेकिन कोई नहीं था। तभी अचानक, टेबल पर रखा एक पुराना खिलौना घड़ी की तरह बजने लगा। वह धीरे-धीरे आगे बढ़ा और खिलौने को उठाया। जैसे ही उसने उसे छुआ, एक दरवाज़ा अपने आप खुल गया।
उस दरवाजे़ के पीछे एक छोटा सा कमरा था। वहां एक पुरानी अलमारी रखी थी, जिसके अंदर एक डायर रखी थी। उसने डायर खोली, और पहला ही पन्ना पढ़कर उसकी सांसें अटक गईं—
"मेरा नाम रिया मित्तल है। अगर कोई यह पढ़ रहा है, तो मुझे न्याय दिलाओ। मेरे माता-पिता की हत्या हुई थी, यह आत्महत्या नहीं थी। हत्यारा आज भी ज़िंदा है..."
रवि की आंखें चौड़ी हो गईं। इतने सालों बाद भी इस केस का सच सामने नहीं आया था। लेकिन अब उसके पास सबूत थे। उसने जल्दी-जल्दी तस्वीरें खींचनी शुरू कीं। तभी हवा में एक हल्की हंसी गूंज उठी—न तो डरावनी, न ही भूतिया, बल्कि संतोष भरी।
रवि समझ गया कि रिया की आत्मा को अब शांति मिल गई थी। वह तेजी से वहां से निकला और अगले ही दिन यह रिपोर्ट पुलिस को सौंप दी। कुछ ही दिनों में, नए सबूतों के आधार पर केस दोबारा खोला गया और असली हत्यारा पकड़ा गया।
25 साल बाद, पुरानी हवेली का रहस्य सुलझ चुका था। लेकिन उस रात का अनुभव रवि के ज़ेहन में हमेशा के लिए刻 (刻) हो गया।
दीपांजलि दीपाबेन शिम्पी